एक गाड़ी साफ़ करने वाली बच्ची के आगे झुक गया करोड़पति आदमी….

सड़क से सपनों तक: मानसी की कहानी

सुबह के 7:00 बज रहे थे। शहर की सड़कों पर गाड़ियों का शोर बढ़ चुका था और उसी भीड़ में एक छोटी सी लड़की, फटा-पुराना कपड़ा पहने, नंगे पैर, हाथ में गीला कपड़ा थामे हर रुकती गाड़ी के शीशे की ओर भागती थी। “साहब, गाड़ी साफ करवा लो, बस ₹5 दे देना,” वह मासूम आवाज थी मानसी की। उम्र मुश्किल से 10 या 11 साल, लेकिन आंखों में उम्र से कहीं ज्यादा थकान। चेहरे पर मासूमियत थी, मगर किस्मत ने उसे जख्मों से ढक दिया था।

हर दिन वह उसी सिग्नल पर आती थी, जहां लोगों के पास गाड़ियों के ब्रांड तो होते थे, पर दिल में इंसानियत की जगह नहीं। गाड़ी की खिड़की पर जब वह कपड़ा फेरती तो कुछ लोग शीशा ऊपर कर लेते, कुछ ताने मारते, “अरे हटो इधर से, गाड़ी गंदी कर देगी।” कुछ बिना देखे ब्रेक दबा देते, जैसे वह कोई इंसान नहीं, बस एक रुकावट हो। फिर भी मानसी हर बार मुस्कुराने की कोशिश करती थी, क्योंकि उसे पता था—मां नहीं है, घर नहीं है, और पेट भरने के लिए यही एक सहारा है।

कभी किसी की गाड़ी साफ कर देती तो पैसे नहीं मिलते। कभी कोई मुस्कुरा कर नोट दिखाता और भाग जाता। कभी कोई बदचलन कहकर धक्का दे देता। पर वह चुप रहती थी, क्योंकि जिंदगी ने उसे सिखा दिया था—बोलना नहीं, बस झेलना है।

एक नई शुरुआत

उस दिन सिग्नल पर एक चमचमाती काली गाड़ी रुकी। उसकी सीट पर बैठा था मुकेश मल्होत्रा—शहर का बड़ा बिजनेसमैन। महंगे कपड़े, ब्रांडेड घड़ी, चेहरे पर वो आत्मविश्वास जो सालों की सफलता से आता है। मानसी उसी गाड़ी की ओर दौड़ी, “साहब, शीशा साफ कर दूं।” मुकेश ने मोबाइल से नजर उठाई, झुंझला कर कहा, “नहीं, हटो इधर से।” पर मानसी रुकती नहीं। उसने धीरे से शीशा पोंछना शुरू किया और मुस्कुराई, “बस ₹2 दे देना, आज कुछ खाया नहीं।” तभी सिग्नल हरा हुआ, गाड़ी आगे बढ़ गई, मुकेश ने पलट कर भी नहीं देखा। उसके लिए वह बस एक सड़क की बच्ची थी। पर किस्मत की कहानी वहीं से शुरू हो गई थी।

अगले दिन वही सिग्नल, वही भीड़, वही तपती धूप। मानसी हर गाड़ी की ओर भागती, पर आज सब उसे भगा रहे थे। “चल हट यहां से, कल तेरा कपड़ा गिरा था मेरी गाड़ी पर, इतना गंदा कपड़ा है, पूरी गाड़ी गंदी कर देती है।” एक आदमी ने गाड़ी के शीशे से हाथ निकालकर उसे धक्का दे दिया। वह सड़क पर गिर गई, कपड़ा कीचड़ में जा गिरा और उसके साथ उसकी उम्मीदें भी। भीड़ ने देखा, पर किसी ने हाथ नहीं बढ़ाया। किसी के मोबाइल से सेल्फी निकल रही थी, किसी की गाड़ी से हॉर्न बज रहा था। पर किसी ने उसे उठाने की कोशिश नहीं की।

पहचान का पल

वही काली गाड़ी फिर आई। गाड़ी के अंदर वही मुकेश। उसने अनजाने में बाहर झांका और उसकी नजर उस लड़की पर पड़ी, जो कीचड़ में गिरकर उठने की कोशिश कर रही थी। वो पल जैसे उसके दिल पर पत्थर रख गया। मन ने कहा, क्यों न उसे उठा लूं, दिमाग बोला, यह तो रोज का दृश्य है, इसे क्या फर्क पड़ता है। लेकिन इस बार कुछ अलग था। वह लड़की उठी, अपने कपड़े झाड़े और फिर उसी गाड़ी की तरफ बढ़ी। धीरे-धीरे कदम, धूल भरे चेहरे के पीछे कुछ चमक थी, जो मुकेश के दिल को झकझोर रही थी।

वह पास आई और बिना कुछ बोले शीशा पोंछने लगी। मुकेश ने उसकी ओर गहराई से देखा, कुछ अजीब-सी पहचान, कुछ अनकहा सा अपनापन। वह बोली, “साहब, कल आपने पैसे नहीं दिए थे, आज दे देना।” मुकेश चुप रहा, बस उसके चेहरे पर आंखें टिकाए रहा। “क्या नाम है तुम्हारा?” उसने पूछा। “मानसी,” उसने मुस्कुराकर कहा, “मां कहती थी, यह नाम भगवान ने दिया है।”

मुकेश के हाथ कांप गए, क्योंकि यही नाम उसने अपनी बेटी का रखा था, जो 8 साल पहले एक हादसे में खो गई थी। वह ठिठक गया, दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। सिग्नल हरा हुआ, लोग हॉर्न बजा रहे थे, पर उसके लिए वक्त थम गया था। गाड़ी धीरे-धीरे आगे बढ़ी, पर उसके दिल में तूफान उठ चुका था।

अतीत की परछाई

रात को मुकेश मल्होत्रा ने चैन नहीं लिया। महल जैसा घर था, लेकिन दिल एक सड़क की गंदगी में अटका हुआ था। बार-बार वही चेहरा, वही मुस्कान, वही नाम… जैसे कोई अनदेखी डोर उसकी रूह को खींच रही थी। उसने बेटी की पुरानी तस्वीर उठाई—वही नाक का छोटा सा तिल, वही भूरी आंखें, वही मुस्कान। दिल धड़क उठा। नहीं, यह नहीं हो सकता। पर अगर वह सच में मेरी मानसी हो, तो क्या दुनिया मुझे माफ करेगी कि मैंने उसे सड़क पर तड़पने दिया?

अगली सुबह वही सिग्नल, वही शोर, वही भीड़। पर आज मुकेश की नजर किसी रिपोर्ट पर नहीं, बस उस एक बच्ची पर थी। उसने गाड़ी को साइड में रोका, भीड़ में नजर दौड़ाई, पर मानसी नहीं दिखी। उसका दिल कांप उठा। कहीं कुछ हो तो नहीं गया? थोड़ी दूर जाकर देखा, लोगों का झुंड लगा था। भीड़ के बीच एक छोटी सी देह जमीन पर बैठी थी, हाथ में गीला कपड़ा था और आंखों में आंसू। किसी ने धक्का दे दिया था, गाड़ी साफ करते वक्त वह गिर गई थी और उसका पैर घायल हो गया था।

सच्ची मोहब्बत

मुकेश भीड़ चीरते हुए पास पहुंचा। “रुको, हटो सब!” मानसी ने डरते हुए उसकी तरफ देखा। उसकी आंखों में मासूम दर्द था। “साहब, मैं गिरी नहीं, बस थोड़ी जल्दी थी, आपको रोकना चाहती थी।” “क्यों?” मुकेश ने कांपती आवाज में पूछा। “कल आपने पैसे नहीं दिए थे,” उसने हंसने की कोशिश की। “मां कहती थी, किसी से बिना मेहनत के कुछ मत मांगो।” उसकी बात सुनकर मुकेश की आंखें भर आईं। वह झुककर उसके घुटने के पास बैठ गया, “कहां दर्द है बेटा?” बरसों बाद किसी ने उसे ‘बेटा’ कहकर बुलाया था।

मुकेश ने अपनी जेब से पानी की बोतल निकाली, उसके कपड़े से उसका घुटना साफ किया और अपने ड्राइवर से कहा, “इस बच्ची को अस्पताल ले चलो।” भीड़ हैरान थी—इतना बड़ा आदमी सड़क की बच्ची को अस्पताल ले जा रहा है! पर मुकेश को किसी की परवाह नहीं थी। अस्पताल पहुंचते ही डॉक्टर ने इलाज किया। “चोट हल्की है, लेकिन बच्ची बहुत कमजोर है। लगता है कई दिनों से ठीक से खाया नहीं।” मुकेश ने धीरे से पूछा, “तेरे घरवाले कहां हैं?” मानसी ने सिर झुका लिया, “घर… सड़क ही मेरा घर है साहब।”

सच्चाई का पता

मुकेश ने उसकी मदद गुपचुप शुरू कर दी। कभी किसी दुकान वाले को पैसे देकर बोल देता, “इस बच्ची को खाना दे देना।” कभी किसी एनजीओ को चुपचाप दान भेजता ताकि कोई उसकी पढ़ाई शुरू करा सके। लेकिन मानसी को पता नहीं था कि जो उसके लिए दुआएं मांग रहा है, वह उसका अपना खोया हुआ बाप है।

एक दिन मुकेश ने अपने पुराने आदमी शर्मा जी को बुलाया, “उस बच्ची का पता लगाओ, नाम है मानसी, रोज सिग्नल पर होती है।” शर्मा जी ने कई दिन खोजबीन की। फिर एक दिन फाइल लेकर आया, “सर, जो पता चला है वह अजीब है। यह बच्ची 8 साल पहले एक सड़क हादसे में घायल हुई थी, मां की मौत हो गई थी। पुलिस ने केस दर्ज किया, लेकिन बच्ची की पहचान नहीं मिल पाई। वह कुछ महीनों बाद अस्पताल से गायब हो गई। शायद उसे किसी ने उठाकर काम पर लगा दिया।”

मुकेश के हाथ कांपने लगे। आंखों के सामने हादसे की रात घूमने लगी—वही रात जब उसकी गाड़ी नदी में गिर गई थी। वह बच गया था, लेकिन पत्नी और बेटी दोनों बह गए थे। वह रोया था, सालों तक खुद को दोष देता रहा। पर आज एहसास हुआ—किस्मत ने उसे एक और मौका दिया है। “वह मेरी बेटी है,” उसने कांपती आवाज में कहा, “वह मेरी मानसी है।”

पिता-बेटी का मिलन

अगले दिन मुकेश ने फैसला किया कि अब वह सच्चाई मानसी को बताएगा। वह उसके लिए नए कपड़े, खिलौने और एक छोटा सा हार लेकर निकला—वही हार जो उसने सालों पहले अपनी बेटी के लिए खरीदा था। सड़क पर वही भीड़, वही सिग्नल, वही धूल। मानसी गाड़ियों के बीच भाग रही थी, हाथ में पुराना कपड़ा, चेहरे पर मासूम मुस्कान।

मुकेश ने गाड़ी रोकी, धीरे से उतरा और उसकी ओर बढ़ा। “मानसी!” उसने पुकारा। वह पलटी, “साहब, आप आ गए।” “आज काम नहीं करना है, मेरे साथ चलो।” वह झिलकी, “कहां साहब? मुझे देर हो जाएगी, लोग गाली देते हैं अगर मैं सिग्नल पर ना आऊं।” “बस कुछ देर, मैं तुम्हें कहीं अच्छी जगह ले चलूंगा।” वह थोड़ा डरी, “आप अच्छे हैं, पर मुझे डर लगता है, दुनिया भरोसे लायक नहीं।”

मुकेश की आंखें नम हो गईं, “तुम्हें मुझ पर भरोसा करना होगा मानसी, क्योंकि मैं…” गला भर आया, “क्योंकि मैं वो हूं जिसने तुम्हें इस दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार किया था।” मानसी हैरान थी, “आप क्या कह रहे हैं?” मुकेश ने जेब से वो हार निकाला, धीरे से उसकी हथेली पर रखा, “यह हार तुम्हारा है। तुम्हारी मां ने तुम्हारे जन्मदिन पर तुम्हारे लिए चुना था। जब तुम 5 साल की थी, तुमने कहा था, ‘पापा, मैं यह वाला पहनूंगी।’”

मानसी की आंखें फैल गईं, चेहरा सन्न। “आप… आप कौन हैं?” मुकेश ने रोते हुए कहा, “मैं तुम्हारा पापा हूं, मानसी, जिसे तूने खो दिया था, जिसने हर दिन तेरी याद में खुद को कोसा है।” मानसी की आंखों में आंसू आ गए, पर उनमें डर भी था, शक भी था। “नहीं, मेरे पापा तो मर गए थे। मां ने कहा था कि वह वापस नहीं आएंगे।” मुकेश घुटनों पर बैठ गया, “मुझसे गलती हुई बेटा। हादसे में मैं बच गया, पर मैंने सोचा तुम चली गई। मैं हर दिन मरता रहा।”

वह बोली, “अगर आप मेरे पापा हैं तो इतने साल मुझे सड़क पर क्यों छोड़ दिया?” वो सवाल उसके दिल को चीर गया। “क्योंकि मुझे लगा तू अब इस दुनिया में नहीं है।” वह बिखर गया।

दर्द और नई उम्मीद

उस पल बारिश शुरू हो चुकी थी। आसमान जैसे उनके दर्द को समझ गया। मुकेश ने उसे सीने से लगा लिया। दोनों रो रहे थे—एक खोया हुआ बाप और उसकी टूटी हुई बेटी। किस्मत अभी भी पूरी कहानी खत्म नहीं करने वाली थी। सड़क के दूसरे छोर से अचानक एक गाड़ी ने तेज हॉर्न मारा। लोग चिल्लाए, “साइड हो जाओ!” मुकेश ने मुड़कर देखा, गाड़ी उनकी ओर आ रही थी। वह पल सिर्फ एक सेकंड का था। मुकेश ने मानसी को धक्का देकर बचाया, पर खुद रास्ते में आ गया। तेज ब्रेक की आवाज, लोगों की चीखें और मानसी का चिल्लाना, “पापा!”

मुकेश सड़क पर गिरा था, चेहरे पर खून, होठों पर मुस्कान। उसने कांपते हुए कहा, “अब डरना मत, अब कोई तुझे सड़क पर नहीं छोड़ने देगा।” मानसी उसकी गोद में सिर रखकर रो पड़ी, “पापा मत जाइए।” मुकेश की आंखें धीरे-धीरे बंद हो गईं, वह मुस्कुरा कर बोला, “भगवान ने जो नहीं दिया था, वह तू दे गई।” और फिर एक लंबी सांस के साथ उसकी रूह चली गई।

सड़क से सपनों तक

कभी-कभी जिंदगी इतनी देर से मिलाती है कि जब दिल पहचानता है तो वक्त छीन लेता है। मुकेश चला गया, पर उसकी आंखों की आखिरी चमक ने दुनिया को दिखा दिया कि रिश्ते खून से नहीं, एहसास से जिंदा रहते हैं।

मानसी उसी सिग्नल पर खड़ी थी, पर इस बार वह अकेली नहीं थी। उसके दिल में अपने पिता की आवाज थी, “अब कोई तुझे सड़क पर नहीं छोड़ेगा।” कुछ साल बाद सड़क की धूल, हॉर्न की आवाज और भीड़ की चिल्लाहट अब भी वहीं थी। पर उस भीड़ में अब मानसी अकेली नहीं थी। वह अब बड़ी हो चुकी थी। उसकी आंखों में वही मासूमियत थी, लेकिन चेहरे पर नई जिम्मेदारी और दृढ़ निश्चय की चमक थी।

सालों की भूख, ठोकरें और तानों ने उसे तोड़ने की कोशिश की थी, पर हर चोट ने उसे मजबूत बनाया था। हर ठुकराए गए पैसे ने उसे सिखाया था कि दुनिया में बदलाव की शुरुआत खुद से होती है। मानसी ने अपने पिता मुकेश की याद में एक एनजीओ बनाया—सड़क से सपनों तक। यहां वह वही बच्चों की मदद करती थी, जो सड़क पर भूख, ठंड और तानों के साथ जूझ रहे थे। हर बच्चा, हर लड़की और हर गरीब मुस्कुराहट के लायक था, जैसे उसके पिता चाहते थे।

आज भी जब वह सड़क पर जाती तो लोग उसे पहचानते थे, “यह वही लड़की है जो कभी सड़क पर काम करती थी।” मानसी मुस्कुरा कर कहती, “हां, यही मैं थी, पर अब मैं उन्हें वह मौका देती हूं जो मुझे कभी नहीं मिला।”

उस दिन भी बारिश हो रही थी। पर अब बरसात केवल ठंडक नहीं, एक नई शुरुआत का संदेश थी। मानसी बच्चों को समेटकर एनजीओ के घर ले जा रही थी। हर बच्चे की आंखों में चमक देख वह अपने पिता की आखिरी मुस्कान को महसूस कर रही थी। “पापा,” उसने फुसफुसाया, “आप नहीं हो, पर मैं जानती हूं कि आप हमेशा मेरे साथ हैं। अब मैं वही करूंगी जो आपने कभी सपना देखा था। सड़क के हर बच्चे को एक घर, एक आशा और एक भविष्य दूंगी।”

एनजीओ का पहला कार्यक्रम शुरू हुआ। सड़क पर रोते बच्चों के चेहरे पर मुस्कान आ रही थी। खिलौने, किताबें और गर्म कपड़े उनके हाथों में थे। मानसी ने देखा—हर बच्चा जैसे उसके पिता का स्पर्श महसूस कर रहा था। वह खुद भी याद कर रही थी, कैसे उसने कभी अपने पिता की गोद को ढूंढा, कैसे हर ठुकराए हुए पैसे और तानों के बावजूद खुद को संभाला। और अब वही शक्ति, वही प्यार दूसरों में फैल रहा था।

कभी-कभी जिंदगी दर्द देती है, कभी-कभी खुशियां। पर अगर दिल सच्चाई और प्यार से भरा हो तो हर खोया हुआ रिश्ता, हर टूटा हुआ सपना आपके जीवन में एक नई सुबह बना सकता है।

मानसी की आंखों में आंसू थे, पर इस बार वह आंसू खुशी और शांति के थे। क्योंकि उसने पाया—पिता भले नहीं रहे, पर उनके सपनों को सच करने की जिम्मेदारी अब उसके हाथ में थी और उसने उसे निभाया।

समाप्त