एक बेबस औरत की दर्दभरी प्रेम कहानी |

एक रात, एक उम्मीद — कविता की नई शुरुआत
अध्याय 1: स्टेशन की बेंच पर
आधी रात का वक्त था। रेलवे स्टेशन के बाहर एक बेंच पर बैठी कविता किसी का इंतजार कर रही थी। हर बार जब कोई यात्री निकलता, उसकी आंखों में उम्मीद जगती — शायद उसका पति मनहर लौट आए। लेकिन हर बार सिर झुकाकर निराश हो जाती।
स्टेशन पर सफाई कर्मचारी राजू काफी देर से कविता को देख रहा था। जब सब लोग घर जा रहे थे, कविता वहीं बैठी थी। ठंडी हवा तेज हो चली थी।
राजू ने अपना स्वेटर पहना, जाने ही वाला था, लेकिन उसके कदम थम गए।
वह कविता के पास गया, “बहन जी, क्या आप किसी का इंतजार कर रही हैं?”
कविता थके स्वर में बोली, “हां, अपने पति का। हम मुंबई जाने वाले थे, वो टिकट लेने गए थे, दोपहर 12 बजे। तब से नहीं लौटे।”
राजू हैरान हुआ, “मुंबई वाली ट्रेन तो कब की जा चुकी है। क्या पता वो अकेले ही निकल गए हों।”
कविता का चेहरा उतर गया। राजू ने सलाह दी, “रात हो रही है, स्टेशन पर मत बैठिए। घर जाइए, अगर लौटेंगे तो घर ही आएंगे।”
कविता चुप रही। राजू घर गया, मां सुमित्रा देवी को किस्सा बताया। मां भी परेशान हो गईं।
अध्याय 2: भूख, दर्द और इंसानियत
अगली सुबह राजू फिर स्टेशन पहुंचा। कविता अब भी वहीं बैठी थी।
“आप घर नहीं गईं?”
कविता सिर हिलाकर बोली, “नहीं।”
राजू ने पूछा, “कुछ खाया आपने?”
कविता ने कुछ नहीं कहा, लेकिन उसकी नजरें सब कह गईं। राजू समोसे, बिस्कुट और पानी लाया। कविता संकोच के बाद खाने लगी।
खाते-खाते उसकी आंखों में आंसू आ गए।
“अब कहां जाऊं? मेरा घर भी नहीं रहा। मेरे पति ने गांव का घर बिकवा दिया, पैसे अपने खाते में डलवा लिए, और मुझे स्टेशन पर छोड़कर कहीं चले गए।”
राजू का दिल भर आया।
“आप चिंता मत कीजिए, मैं हूं ना। मैं कुछ करता हूं।”
शाम तक कविता वहीं बैठी रही। राजू ने पूछा, “आपका नाम क्या है?”
“कविता।”
“अगर आपको ऐतराज न हो, मेरे घर चलिए। वहां सिर्फ मैं और मेरी मां रहते हैं। जब तक कुछ हल न निकले, हमारे साथ रहिए।”
कविता कुछ सोचकर मान गई। राजू ने दुकान से शॉल खरीदी। कविता ने शॉल लपेट ली, शायद उसे कुछ सुकून मिला।
अध्याय 3: नया घर, नई उम्मीद
घर छोटा था, लेकिन साफ-सुथरा और सुकून देने वाला।
राजू ने मां सुमित्रा देवी को सारी कहानी सुनाई।
मां बोलीं, “ठीक है बेटा, उसे अंदर ले आ। अब यह लड़की हमारे साथ ही रहेगी।”
कविता ने पहली बार खुद को सुरक्षित महसूस किया। सुमित्रा देवी ने चाय-नाश्ता दिया। रात को कविता के लिए बिस्तर लगाया।
उस रात कविता को गहरी नींद आई।
अध्याय 4: अपनापन और बदलाव
सुबह कविता ने घर की सफाई शुरू की। राजू बोला, “जब तक आपके पति ना आएं, आप हमारे घर की जिम्मेदारी समझिए।”
सुमित्रा देवी बोलीं, “बेटी, यह घर तेरा ही है। इसे अपनी मां का घर समझ।”
कविता की आंखें भर आईं। “मां, अब आप ही मेरा परिवार हैं।”
दिन बीतने लगे। कविता ने घर के सारे काम संभाल लिए। उसके हाथों में स्वाद था। राजू और सुमित्रा देवी उसके खाने की तारीफ करते नहीं थकते।
लेकिन अकेले में कविता को मनहर की यादें कचोटती थीं। धोखे की पीड़ा थी। उसके अपने मां-बाप नहीं थे, भाई-भाभी का व्यवहार भी अच्छा नहीं था। अब राजू और उसकी मां ही उसका संसार बन गए थे।
अध्याय 5: रक्षाबंधन और रिश्तों की बात
रक्षाबंधन आने वाला था।
कविता ने सुमित्रा देवी से पूछा, “मां, आपकी कोई बेटी है?”
मां मुस्कुराई, “नहीं बेटी, बस राजू ही है मेरा सब कुछ। अब उसकी शादी की चिंता है।”
कविता बोली, “मां, अगर आप बुरा ना मानें, तो कल मैं राजू भैया को राखी बांध दूं?”
मां थोड़ी गंभीर हुईं, फिर सिर पर हाथ रखा, “बेटी, मैं तो कुछ और ही सोच रही थी और तू राखी की बात कर रही है।”
मां ने पूछा, “क्या तू अब भी अपने पति के पास लौटना चाहती है?”
कविता की आंखें गीली हो गईं, “नहीं मां, वो इंसान अब मेरा कुछ नहीं है।”
मां ने पूछा, “राजू कैसा लगता है? अगर वह तेरा जीवन साथी बने?”
कविता शर्म से चुप हो गई।
मां मुस्कुराई, “तुझसे पूछ रही हूं क्योंकि तुझे अपना ही मानती हूं।”
कविता बोली, “मां, जो भी आप तय करेंगी, मुझे मंजूर होगा।”
अध्याय 6: आत्मीयता और किस्मत
राजू घर लौटा, घर चमक रहा था। कविता मुस्कुराई, “आज घर पर अकेली थी, मन नहीं लग रहा था, सोचा सफाई कर लूं।”
राजू बोला, “कमाल कर दिया है तुमने। तुम्हारे हाथों में तो जादू है।”
रात को दोनों ने साथ बैठकर खाना खाया, बातें कीं। अब हल्की मुस्कानें आत्मीयता में बदल रही थीं।
वक्त के साथ राजू कविता के करीब आ गया था। कविता भी खुलकर हंसने लगी थी।
एक सुबह कविता नहाकर तौलिया लपेटे बाहर आई, सामने राजू था। दोनों थोड़ी देर एक-दूसरे को देखते रहे। राजू की नजरों में सम्मान था, कविता शर्म से भाग गई।
शाम को राजू ने कविता का हाथ थामा और गाल पर हल्का सा चूम लिया। कविता का चेहरा शर्म से गुलाबी हो गया।
अब दोनों के बीच अनकहा रिश्ता पनपने लगा।
अध्याय 7: किस्मत की लॉटरी
कविता ने बाजार से लॉटरी टिकट खरीदा। अगले दिन टीवी पर परिणाम आया — कविता ने ₹1 करोड़ की लॉटरी जीत ली!
राजू को फोन किया, टिकट दिखाया। दोनों खुश होकर टिकट जमा कराया। अगले दिन कविता के खाते में ₹1 करोड़ जमा हो गए।
सुमित्रा देवी घर लौटीं, कविता ने उन्हें खुशखबरी दी।
मां ने गले लगाकर कहा, “बेटी, भगवान ने तेरी मेहनत और आंसुओं की कीमत दी है। अब तेरा जीवन बदलेगा।”
अध्याय 8: अतीत की वापसी
शाम को दरवाजे पर दस्तक हुई। कविता ने दरवाजा खोला, सामने मनहर था।
“कविता, तू मेरी पत्नी है, तुझे लेने आया हूं।”
कविता बोली, “तू मुझे पत्नी कहता है, उस दिन स्टेशन पर छोड़कर क्यों भागा था?”
मनहर बोला, “गलती हो गई थी। अब सब ठीक करना चाहता हूं।”
कविता ने पीछे हटते हुए कहा, “अब कुछ ठीक नहीं होगा। मैं अब तेरी नहीं, अपने आत्मसम्मान की हूं।”
मनहर ने चाकू निकाल लिया, “अगर तू मेरे साथ नहीं गई, तो खुद को मार डालूंगा।”
राजू वहां आ गया, मनहर ने चाकू उसकी गर्दन पर रख दिया, “अगर पैसे नहीं दिए तो इसका गला काट दूंगा।”
कविता ने पैसे देने का नाटक किया, लेकिन सुमित्रा देवी ने पुलिस को कॉल कर दिया।
पुलिस ने मनहर को पकड़ लिया, चाकू छीन लिया, हथकड़ी लगाई। कविता ने सब कुछ बताया।
मनहर अब कानून के शिकंजे में था।
अध्याय 9: नई जिंदगी
घर का माहौल डरावना था।
सुमित्रा देवी ने कहा, “अब यहां रहना सुरक्षित नहीं है। नए सिरे से शुरुआत करनी होगी।”
राजू और कविता ने मिलकर नया घर खरीदा।
कुछ दिन बाद सुमित्रा देवी ने पूरे विधि-विधान से राजू और कविता की शादी करवाई।
अब कविता और राजू अपने नए घर में सच्चे प्रेम, सम्मान और सुरक्षा के साथ रह रहे थे।
अध्याय 10: इंसानियत की जीत
कभी-कभी जिंदगी हमें ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर देती है जहां भरोसा टूट जाता है, लेकिन वहीं कोई अनजाना हाथ थाम लेता है और सब बदल जाता है।
कविता की कहानी यही बताती है कि एक इंसान की इंसानियत किसी की पूरी दुनिया बदल सकती है।
राजू ने सिर्फ उसे छत नहीं दी, बल्कि उसकी टूटी रूह को फिर से जीने की वजह दी।
अगर आपको यह कहानी पसंद आई हो तो दोस्तों और परिवार के साथ शेयर करें। शायद किसी और को भी इस कहानी की उम्मीद की जरूरत हो। कमेंट करके बताएं क्या आप भी ऐसे किसी मोड़ से गुजरे हैं जहां किसी अजनबी की मदद ने आपकी जिंदगी बदल दी हो?
मिलते हैं अगली कहानी में।
जय हिंद।
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