एक IPS मैडम गुप्त मिशन के लिए पागल बनकर वृंदावन पहुंची, फिर एक दबंग उन्हें अपने साथ ले जाने लगा!

“वृंदावन की शेरनी: आईपीएस सोनाक्षी चौहान का गुप्त मिशन”

1. एक साधारण सी औरत, असाधारण इरादा

वृंदावन की शाम सुहानी थी। हल्की बारिश, मंदिरों की घंटियों की आवाज, गलियों में मिट्टी की खुशबू और भक्तों की भीड़। इसी माहौल में बस स्टैंड पर एक देहाती सी औरत उतरती है – हल्की साड़ी, घिसी चप्पलें, कंधे पर पुरानी थैली और चेहरे पर थकावट की झलक। कोई सोच भी नहीं सकता था कि यह औरत असल में देश की नामी आईपीएस अफसर सोनाक्षी चौहान है। आज वह अपने असली रूप में नहीं, बल्कि गुप्त मिशन पर आई थी।

सोनाक्षी ने सबको यही बताया कि वह प्रेमानंद महाराज जी के दर्शन करने आई है, लेकिन असलियत कुछ और थी। सरकार को खबर मिली थी कि वृंदावन के पवित्र धरती पर एक बालिका गृह में मासूम लड़कियों पर अत्याचार हो रहा है। मामला संवेदनशील था, खुलेआम कार्रवाई से गिरोह भाग सकता था। इसलिए यह ऑपरेशन सिर्फ सोनाक्षी को सौंपा गया।

2. भेष बदल कर मिशन की शुरुआत

बारिश में भीगते हुए सोनाक्षी मंदिर की ओर बढ़ती है। साड़ी का पल्लू नीचे करके, सिर झुकाकर – बिल्कुल आम महिला की तरह। लेकिन भीतर से उसकी आंखें, दिमाग सब चौकन्ना थे। वह हर गली, हर चेहरा, हर भीड़ को गौर से देख रही थी।

मंदिर के बाहर भक्तों की भीड़ थी। सोनाक्षी भी लाइन में खड़ी हो गई। कोई उसके बारे में शक नहीं कर सकता था। दर्शन के बाद उसने एक पुरानी बेंच पर बैठकर भीड़ में खोने का अभिनय किया। तभी उसके पास किसी के रोने की आवाज आई। वह आवाज दर्द से भरी थी।

3. दर्द की कहानी और मिशन का असली मकसद

सोनाक्षी ने देखा – एक बूढ़ी औरत बारिश में भीगती हुई सीढ़ियों पर बैठी थी, साड़ी फटी हुई, आंखें लाल। सोनाक्षी ने पूछा, “मां जी, क्या हुआ?” बूढ़ी ने डरते हुए कहा, “बिटिया मुझे बचा लो वरना वो लोग मुझे भी मार देंगे।”

उसका नाम था कुंती देवी – पिछले चार साल से आशा निकेतन बालिका गृह में सफाई का काम करती थी। उसने बताया, वहां समाजसेवी कहलाने वाला विक्रम सचदेवा असल में दरिंदा है। नई लड़कियों को नशा देकर, मारकर, बेच देता है। दो दिन पहले मुकरी नाम की लड़की ने विक्रम के कमरे में जाने से मना किया, उसे मारकर नाले में फेंक दिया गया।

सोनाक्षी का खून खौल उठा। उसने कुंती का हाथ पकड़कर कहा, “मां, अब तू अकेली नहीं है। आज से मैं तेरे साथ हूं।”

4. पागल बनकर नरक में प्रवेश

कुंती ने डरते हुए कहा, “बिटिया, रात को वहां जाना ठीक नहीं।” सोनाक्षी ने मुस्कुराकर कहा, “जानवर चाहे जितना भी मजबूत हो, शेरनी के सामने टिक नहीं सकता।”

सोनाक्षी ने अपनी थैली से फटी साड़ी, सलवार, कीचड़, काजल निकाला। खुद को गंदा, बिखरा और पागल जैसा बना लिया। बालों को खोलकर जटाओं जैसा कर लिया। साड़ी में बटन कैमरा और बालों में माइक्रोफोन छुपा लिया। अब वह पूरी तरह ‘कमली’ बन चुकी थी।

बस स्टैंड पर पहुंचकर उसने पागलों की तरह चिल्लाना शुरू किया। फल वाले का ठेला उलट दिया। लोग पुलिस को बुलाने लगे। कुछ ही मिनटों में पुलिस आई, महिला सिपाहियों ने कमली को पकड़ लिया। “इसे सुधार गृह भेजना पड़ेगा।” सोनाक्षी को वही जगह भेज दिया गया – आशा निकेतन बालिका गृह।

5. बालिका गृह की भयावह सच्चाई

वैन एक पुरानी हवेली जैसी इमारत के सामने रुकी। बोर्ड लगा था – आशा निकेतन बालिका गृह। माहौल में अजीब सी घुटन थी। वार्डन सुशीला ने आदेश दिया, “इसे हॉल में फेंक दो। सुबह तक इसकी औकात पता चल जाएगी।”

हॉल में 25-30 लड़कियां फर्श पर बैठी थीं। डर, सिसकियां, खाली निगाहें। सोनाक्षी ने देखा – नेहा, वही लड़की जिसके बारे में कुंती ने बताया था। नेहा ने डरते हुए पूछा, “दीदी, तुम सच में पागल हो या नाटक कर रही हो?” सोनाक्षी ने पागलपन का अभिनय जारी रखा।

दरवाजा खुला – गुड्डू ठाकुर और राणा यादव, विक्रम सचदेवा के खास गुंडे। उन्होंने टॉर्च घुमाई, हंसते हुए कहा, “नई चिड़िया आई है। आज साहब बड़ा खुश होंगे।” लड़कियां और डर के मारे रोने लगीं। नेहा को मारने की धमकी दी गई।

6. रात का नरक और असली शेरनी का जागना

रात के 11 बजे विक्रम सचदेवा खुद आया। उम्र 50, पेट मोटा, आंखों में हवस, चेहरे पर अहंकार। उसने सोनाक्षी को देखा, बोला, “आज की रात मजेदार होगी।” नेहा ने हाथ जोड़कर कहा, “भैया, इसे मत ले जाओ।” राणा ने उसे मार दिया।

विक्रम ने सोनाक्षी को अपने कमरे में ले जाने का आदेश दिया। कमरे में शराब, दवाइयां, गंदे पोस्टर। विक्रम ने सोनाक्षी की साड़ी पकड़ कर बोला, “डर मत, तुझे रानी बनाएंगे।”

यही पल था। सोनाक्षी ने उसकी कलाई मोड़ दी। विक्रम चीख उठा। सोनाक्षी अब कमली नहीं, आईपीएस अफसर बन गई। “मैं हूं आईपीएस सोनाक्षी चौहान, तेरा खेल आज खत्म!” कैमरा दिखाया, “तेरी हर हरकत रिकॉर्ड हो चुकी है।”

विक्रम ने दराज से पिस्तौल निकालने की कोशिश की, सोनाक्षी ने उसे रोक दिया। “तेरी औकात क्या है मुझे खरीदने की? आज तू नहीं, तेरे जैसे हजारों लोग पकड़े जाएंगे।”

7. ऑपरेशन क्लीन: न्याय की सुबह

सोनाक्षी ने माइक्रोफोन में संदेश दिया – “ऑपरेशन शुरू करो, छापा मारो!” अगले ही पल पूरे आशा निकेतन में सायरनों की आवाज गूंज उठी। पुलिस की गाड़ियां परिसर में घुस गईं। दरवाजे टूटने लगे, गार्ड्स भागने लगे, लेकिन पुलिस हर कोने पर थी।

इंस्पेक्टर कबीर सिंह और हवलदार गोविंद चौहान ने टीम के साथ पूरा परिसर घेर लिया। सभी गार्ड्स, गुड्डू, राणा, सुशीला, विक्रम – सब गिरफ्तार।

नीचे हॉल में लड़कियां दरवाजे की जाली पकड़ कर कांप रही थीं। सोनाक्षी सीढ़ियों से उतरी – अब वह पागल कमली नहीं, सच्ची पुलिस अफसर थी। नेहा सबसे पहले बोली, “दीदी, आप पागल नहीं थीं।” सोनाक्षी ने मुस्कुराकर कहा, “नहीं बेटी, मैं तुम्हें बचाने आई थी। आज तुम सब आजाद हो।”

8. आजादी की सुबह और नई शुरुआत

पुलिस ने सबको वैन में भर दिया। गलियों में भीड़ जमा हो गई। लोग देख रहे थे – एक महिला पुलिस अधिकारी ने वृंदावन की धरती से बड़ा पापी साम्राज्य उधेड़ फेंका है। लड़कियां धीरे-धीरे बाहर आईं। सोनाक्षी ने कहा, “आज से तुम सब आजाद हो। तुम्हारी जिंदगी अब डर में नहीं, इज्जत और सम्मान से गुजरेगी।”

एक छोटी लड़की बोली, “दीदी, क्या हम अब हंस सकते हैं?” सोनाक्षी की आंखें नम हो गई – “हां बच्ची, जितना चाहो हंसो। आज से तुम्हारी जिंदगी तुम्हारी है।”

अखबारों में हेडलाइन थी – “आईपीएस सोनाक्षी चौहान ने वृंदावन में छुपा नरक खत्म किया। 30 बच्चियों को मिली नई जिंदगी।” विक्रम और उसके गुंडों को उम्रकैद की सजा हुई। आशा निकेतन में नई महिला अफसरों की नियुक्ति हुई। कुंती देवी को नया केयरटेकर बना दिया गया।

कुछ दिन बाद सोनाक्षी फिर आश्रम आई। इस बार उनका स्वागत फूलों से हुआ। डर से नहीं, खुशी से। लड़कियां हंस रही थीं, खेल रही थीं। नेहा बोली, “मैडम, आप फरिश्ता हैं क्या?” सोनाक्षी मुस्कुराई – “नहीं बेटी, मैं बस एक औरत हूं जो गलत को सहन नहीं करती।”

9. कहानी की सीख

सोनाक्षी ने अपनी कैप पहनी और निकल पड़ी – क्योंकि न्याय का रास्ता कभी खत्म नहीं होता। वृंदावन की हवाओं में अब डर नहीं, आजादी की खुशबू थी।

यह कहानी सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं, बल्कि समाज में बेटियों के साथ हो रहे अत्याचार के खिलाफ जागरूकता फैलाने के लिए है। कोई भी बेटी डर में ना रहे, किसी भी लड़की के साथ अत्याचार ना हो।

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जय हिंद! जय भारत!