एग्जाम देने ट्रैन से जा रहा था, रास्ते में पर्स चोरी हो गया, फिर एक अनजान महिला ने उसके टिकट के पैसे

शुरुआत—हरिपुर का सपना

गंगा किनारे बसे बिहार के एक छोटे से गांव हरिपुर की उड़ती हुई धूल, बेमौसम बरसात की परेशानियां, गरीबी और संघर्ष की दास्तां जैसे रोज़ किसी नए दुख का सामान लेकर आती थी। कच्ची झोपड़ियां, फूस की छतें और छह लोगों के लिए एक बीघा खेत—यहीं रवि कुमार का बचपन बीता। उसके पिता रामकिशन दिनभर खेत में मेहनत करते, मां शांति घर व खेत दोनों संभालतीं, बहनें और छोटा भाई—हर कोई ज़िंदगी की बुनियादी लड़ाई लड़ रहा था। लेकिन सबके लिए रवि ही उम्मीद की एक लौ था क्योंकि उसका सपना था UPSC पास कर के आईपीएस अफसर बनना। उसके लिए यह सिर्फ नौकरी नहीं, बल्कि पीढ़ियों की गरीबी तोड़ने की रस्सी थी।

रवि पढ़ने में होशियार था, उसके स्कूल के मास्टर भी इसे खास मानते थे। 12वीं में जिले में टॉप किया, छोटे शहर में ग्रेजुएशन और साथ-साथ काम… फिर बिना कोचिंग, बिना गाइडेंस, बिना ज्यादा साधनों के यूपीएससी प्री और मेंस क्लियर कर गया—अब बचा दिल्ली में इंटरव्यू!

त्याग की घड़ी — पिता का फैसला

लेकिन परिवार के पास दिल्ली भेजने के पैसे कहां थे? पिता के पास एकमात्र कीमती चीज थी उनकी गाय ‘लक्ष्मी’ — वही बिकी, और रवि को इंटरव्यू देने के पैसे मिल गए। उस दिन पूरी झोपड़ी जैसे उदास बारात-सी थी, मां की नम आंखें, पिता की झुकी कमर—हर कोई बड़ी उम्मीद के साथ रवि को बस स्टॉप छोड़ने चला।

मुसीबत — ट्रेन की अफरा-तफरी

विक्रमशिला एक्सप्रेस रवि के दिल्ली सफर का माध्यम बनी। चिलचिलाती भीड़, गर्मी, परेशानियां—किसी तरह एक कोने में बैठ, अपने सपने के इंटरव्यू के नोट्स देखता रहा। रात हो गई, थका—बैग को तकिया सा बनाया, सो गया। पर किस्मत का खेल, किसी चोर ने उसकी नींद में बैग खोलकर उसका बटुआ—जिसमें टिकट, पैसे, दस्तावेज थे—निकाल लिया।

सुबह दिल्ली आया, तो जागा—बटुआ गायब! टिकट चेकर डिब्बे में आया: ‘‘टिकट दिखाओ नहीं तो उतरो!’’ रवि रोता हुआ समझाने लगा। उसकी बेबसी देखकर भीड़ ने चुपचाप देखा, चेकर ने टोका: ‘‘हर तीसरा यही बहाना बनाता है!’’

फरिश्ते की दस्तक — सरिता देवी का दान

और तभी पास से एक शांत, साधारण-सी महिला, मध्यम उम्र—सरिता देवी बोलीं: ‘‘इसका टिकट मैं देती हूं!’’ सब हैरान, चेकर भी, ‘‘क्या आप इसे जानती हैं?’’ ‘‘नहीं, लेकिन इसकी आंखों की सच्चाई देख सकती हूं’’—इतना कह टिकट का खर्च उठाया। उनकी करुणा देख पूरे डिब्बे में खामोशी छा गई। चेकर चला गया।

सरिता देवी ने रवि को पास बुलाया—‘‘यहां नीचे नहीं, मेरी सीट पर बैठो, बेटा।’’ रवि फूट-फूटकर रो पड़ा—उसने अपनी झोपड़ी, गाय का बिकना, बड़ा सपना, ममेरी मां की रोटियां, घर के हालात—सबकुछ कह दिया। सरिता देवी अपने बेटे की याद में भावुक हो गईं। उतरने से पहले ₹500 का नोट रवि को थमाया, ‘‘कर्जा मत समझना, आशीर्वाद है। जब अफसर बन जाओ, तो किसी और जैसे मजबूर की ऐसे ही चुपचाप मदद कर देना।’’

नई ऊर्जा—दिल्ली की बोहनी और सफलता

रवि दिल्ली उतरा, जेब में आशीर्वाद, दिल में हिम्मत, और सिर पर गांव भर की जिम्मेदारी। एक सस्ते धर्मशाला में रुका, लंगरखाने में खाया, मीलों पैदल चला—पैसे बचाए। इंटरव्यू की सुबह वही दो चेहरे—मां-बाप और ट्रेन की मां—उसकी आंखों के आगे। इंटरव्यू में ईमानदारी से जवाब दिए। देर रात रिजल्ट देखा—टॉप रैंक, IPS के लिए चयन! घर में जश्न, पिता की आंखें नम, मां के चेहरे पर सुकून।

बोझ ना भूलने का वचन

रवि आईपीएस बन गया, मसूरी ट्रेनिंग से लौट अपने परिवार के सपने पूरे किए—बहनों की शादी, भाई की पढ़ाई, माता-पिता के लिए नया घर; लेकिन दिल में एक बोझ बरकरार—‘सरिता मां’ की मदद कैसे चुकाए?

किन्हीं भी माध्यमों से वह सरिता देवी को ढूंढ न पाया; बस नाम-शहर था, पर पता नहीं। जब उसकी पोस्टिंग एसपी बनकर अलीगढ़ में हुई, तो उसने पुलिस फाइलें पलटनी शुरू कर दीं। एक फाइल पकड़ी—‘सरिता शर्मा’ नाम की बूढ़ी महिला का केस, चोरी झोंपड़ी में, किराए के घर में। पुलिस जीप छोड़ वह खुद पहुंचा—सीलन भरा घर, जर्जर बूढ़ी औरत: वही आंखें, वही चेहरा।

कृतज्ञता का बदला और सरिता मां का नया घर

रवि सब कुछ समझ गया, गले लगकर खूब रोए। सरिता देवी की हालत बदतर—पति गुजर चुके, बेटा सब कुछ बेचकर भाग गया। रवि ने उन्हें अपने परिवारचा हिस्सा बना लिया—शहर के अच्छे इलाके में शानदार फ्लैट, नौकरानी, नर्स, सबसे बेहतर इलाज, जीवन की सारी सुविधाएं। अपनी मां शांति देवी से मिलवाया—दोनों ‘मां’ अब मिलकर जीने लगीं।

मिशन—कर्ज का चुकाना, पर नेकी की मिसाल बनना

रवि ने सरिता मां का कर्ज ही नहीं चुकाया, बल्कि पूरी सेवा-मानवीयता के साथ समाज भूमि पर मिसाल बैठा दी—गरीब और जरूरतमंदों की मदद अफसर रहते हुए हमेशा करता रहा।

सीख और संदेश

यह कहानी सिखाती है—कभी-कभी आपके जीवन का सबसे बड़ा मोड़, एक अनजाने फरिश्ते से जुड़ जाता है। नेकी का छोटा सा बीज—किसी एक इंसान को दिया गया प्यार—कभी न कभी हजार गुना बनकर आप तक लौटता है। कृतज्ञता और इंसानियत, दोनों दुनिया को सुंदर बनाती हैं।

अगर आप सबसे बड़े संकट में हैं, तो उम्मीद मत खोएं। और अगर आपके पास देने की ताकत है, तो बिना किसी सवाल के किसी ज़रूरतमंद की मदद करें—क्योंकि कौन जानता, कब आपकी मदद लौटकर आपके अपनों को उम्मीद का साहारा बन जाए।

अगर रवि और सरिता मां की यह कहानी आपके दिल को छू गई हो, तो कृपया इस संदेश को साझा करें—इंसानियत और एहसानमंदी का बीज हर दिल में बोना जरूरी है। धन्यवाद!