कनाडा में फाइट देखने गयी थी पंजाबी लड़की , फाइटर ने थप्पड़ मार दिया, फिर उसने जो किया देख कर होश उड़

बलविंदर कौर की कहानी: एक आम गृहिणी, एक असाधारण ज्वाला

क्या एक आम गृहणी के आंचल में ज्वाला छिपी हो सकती है? क्या होता है जब किसी के स्वाभिमान को, उसकी जड़ों को, उसकी पहचान को सरेआम ललकारा जाता है? और क्या ताकत के नशे में चूर एक इंसान यह समझ पाता है कि हर साधारण दिखने वाला चेहरा साधारण नहीं होता?

यह कहानी है बलविंदर कौर की। पंजाब के खेतों की मिट्टी में पली-बड़ी एक ऐसी साधारण महिला, जिसने अपनी आंखों में घर-परिवार के सपने लिए सात समंदर पार कनाडा आकर बस गई थी। उसकी दुनिया उसके पति, बच्चों और उस छोटे से घर में सिमटी थी जिसे वह अपनी मेहनत और प्यार से संवारती थी।

शांत जीवन, छुपा हुआ तूफान

बलविंदर की जिंदगी सुबह बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करने, पति हरमन के लिए परांठे बनाने और दिनभर घर के कामों में उलझे रहने की सीधी-सादी लय में चलती थी। हरमन यहां एक छोटी सी ट्रांसपोर्ट कंपनी चलाता था और बलविंदर उसकी सबसे बड़ी ताकत थी। उसके आस-पड़ोस के लोग उसे एक शांत, मिलनसार और मेहनती औरत के रूप में जानते थे। उसके हाथ के बने खाने की तारीफें दूर-दूर तक होती थीं। पर कोई नहीं जानता था कि इस शांत सी दिखने वाली गृहिणी के अतीत में एक ऐसा तूफान छिपा है जिसकी गूंज आज भी उसके दिल के किसी कोने में जिंदा थी।

पंजाब के अखाड़े से कनाडा तक

यह कहानी शुरू होती है आज से 25 साल पहले, पंजाब के माझा क्षेत्र के एक छोटे से गांव से। बलविंदर इस गांव के सबसे सम्मानित पहलवान सरदार जरल सिंह की इकलौती बेटी थी। जर्नल सिंह का गांव में अपना अखाड़ा था, जहां दूर-दूर से नौजवान कुश्ती के दांव-पेच सीखने आते थे। जरल सिंह की एक ही हसरत थी कि उनका एक बेटा हो जो उनकी पहलवानी की विरासत को आगे बढ़ाए। पर किस्मत ने उन्हें एक बेटी दी। गांव वालों ने ताने दिए—”लो, पहलवान जी के घर तो पहलवान की जगह परी आ गई।”

शुरू में जरल सिंह निराश हुए, लेकिन जैसे-जैसे बलविंदर बड़ी होने लगी, उन्होंने अपनी बेटी में एक ऐसी आग, एक ऐसी हिम्मत देखी, जो उन्होंने अपने अखाड़े के बड़े-बड़े पहलवानों में भी नहीं देखी थी। उन्होंने समाज की परवाह किए बिना एक क्रांतिकारी फैसला लिया—वह अपनी बेटी को पहलवान बनाएंगे।

हर रोज जब दुनिया सो रही होती, सूरज उगने से पहले जनरल सिंह अपनी नन्ही सी बलविंदर को अखाड़े की मिट्टी में ले जाते। उन्होंने उसे कुश्ती का हर दांव सिखाया—धोबी पछाड़, धाक, बाहरली तांग। उन्होंने उसे सिर्फ लड़ना नहीं सिखाया, बल्कि मिट्टी की इज्जत करना, अपने विरोधी का सम्मान करना और अपनी ताकत का सही इस्तेमाल करना सिखाया। वह कहते थे, “पुत्तर, असली ताकत जिस्म में नहीं, जमीर में होती है। ताकत का इस्तेमाल कभी गुरूर के लिए नहीं, बल्कि स्वाभिमान की रक्षा के लिए करना।”

बलविंदर अपने पिता की उम्मीदों पर खरी उतरी। वह लड़कों से बेहतर दांव लगाती थी। उसकी पकड़ में लोहे जैसी मजबूती और उसके इरादों में फौलाद जैसी दृढ़ता थी। पर यह सब दुनिया की नजरों से छिपा हुआ था। जर्नल सिंह जानते थे कि उनका समाज एक लड़की को अखाड़े में स्वीकार नहीं करेगा।

पहली चुनौती: नकाब में शेरनी

एक दिन जब बलविंदर 15 साल की थी, गांव में कुश्ती का एक बड़ा दंगल हुआ। पड़ोसी गांव का एक पहलवान, जो अपने घमंड के लिए मशहूर था, खुलेआम चुनौती दे रहा था कि कोई उसे हरा नहीं सकता। जनरल सिंह के अखाड़े के सारे पहलवान उससे हार गए। जनरल सिंह का सिर शर्म से झुक गया। तभी बलविंदर, जो दुपट्टे से अपना चेहरा ढके हुई थी, भीड़ से निकली और अपने पिता के पैरों पर गिर पड़ी—”बाबूजी, एक मौका दीजिए। आज आपके सम्मान का सवाल है।”

उस दिन उस दंगल में जो हुआ, वह गांव के इतिहास में एक लेजेंड बन गया। उस नकाबपोश पहलवान ने, जिसे सब एक लड़का समझ रहे थे, उस घमंडी पहलवान को कुछ ही मिनटों में धूल चटा दी। जब उसने अपना नकाब हटाया और लोगों ने बलविंदर का चेहरा देखा, तो वहां सन्नाटा छा गया। कुछ लोगों ने तालियां बजाई, पर ज्यादातर लोगों की आंखों में हैरानी और अस्वीकृति थी।

उस दिन के बाद जनरल सिंह को समाज से बहुत कुछ सुनना पड़ा। पर उन्हें अपनी बेटी पर गर्व था। कुछ साल बाद जब वह बीमार पड़े और बिस्तर पर आ गए, तो उन्होंने अपनी बेटी का हाथ पकड़कर एक वचन लिया—”पुत्तर, यह दुनिया अभी तुम्हारे जैसी शेरनियों के लिए तैयार नहीं है। मुझसे वादा कर कि तू एक आम लड़की की तरह जिंदगी जिएगी, शादी करेगी, घर बसाएगी और अपनी इस कला का इस्तेमाल कभी भी बेवजह गुस्से में या शोहरत के लिए नहीं करेगी। हां, अगर कभी तेरे या किसी मजलूम के स्वाभिमान पर आंच आए, तो पीछे मत हटना।”

बलविंदर ने रोते हुए अपने पिता को वचन दिया। पिता के जाने के बाद उसने अखाड़े की मिट्टी को माथे से लगाया और उसे हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। कुछ साल बाद उसकी शादी कनाडा में रहने वाले एक नेक दिल इंसान हरमन से हो गई। हरमन को बस इतना पता था कि उसकी पत्नी के पिता पहलवान थे और वह एक मजबूत दिल की औरत है। पर वह उस ज्वाला से अनजान था जिसे बलविंदर ने अपने दिल के अंदर कहीं गहरे दफन कर दिया था।

कनाडा में नई शुरुआत, लेकिन अतीत की यादें

कनाडा आकर बलविंदर पूरी तरह एक गृहिणी बन गई। उसने अपने दो बच्चों की परवरिश में खुद को डुबो दिया। वह खुश थी, पर कभी-कभी अकेले में उसे अखाड़े की वह सौंधी मिट्टी, पिता की वह बुलंद आवाज और कुश्ती की वह ललकार बहुत याद आती। पर वह अपने वचन से बंधी थी। उसने अपनी पहलवानी को एक राज बनाकर अपने अतीत के संदूक में बंद कर दिया था।

वो रात जिसने सब बदल दिया

और फिर 15 साल बाद वो रात आई जिसने उस बंद संदूक के ताले को एक ही झटके में तोड़ दिया। उस हफ्ते हरमन का जन्मदिन था। हरमन और उसके दोस्त कनाडा में होने वाली लोकल फीमेल फाइट लीग के बहुत बड़े प्रशंसक थे। उन्होंने जिद करके बलविंदर को भी अपने साथ चलने के लिए मना लिया—”चल बलविंदर, तुझे भी दिखाते हैं कि यहां की कुड़ियां कैसे लड़ती हैं। तुझे बहुत मजा आएगा।”

बलविंदर शुरू में हिचकिचाई। लड़ाई-झगड़ा, यह सब उसे अब पसंद नहीं था। पर पति की खुशी के लिए वह तैयार हो गई। शनिवार की रात ब्रमटन का सबसे बड़ा इंडोर स्टेडियम खचाखच भरा हुआ था। तेज संगीत, लेजर लाइट्स का धुआं और हजारों लोगों का शोर, माहौल में एक अजीब सा नशा था। बलविंदर इस दुनिया में खुद को थोड़ा अलग-थलग महसूस कर रही थी। उसने एक साधारण सा पंजाबी सूट पहना था और सिर पर दुपट्टा ओढ़ रखा था। वह अपने पति और उसके दोस्तों के साथ रिंग के बिल्कुल पास वाली सीटों पर बैठी थी।

रिंग की चैंपियन विरोनिका और अपमान

फाइट शुरू हुई। रिंग में दो लड़कियां एक-दूसरे पर बेरहमी से वार कर रही थीं। बलविंदर ने ऐसा कुछ पहले कभी नहीं देखा था। यह कुश्ती नहीं थी। कुश्ती में सम्मान होता है, नियम होते हैं। यहां तो बस जीतने की एक जंगली भूख थी। आखिरी फाइट थी उस लीग की चैंपियन विरोनिका द विंडिकेटर की। विरोनिका एक लंबी-चौड़ी बेहद ताकतवर फाइटर, जिसके नाम से ही उसकी विरोधी कांपती थी। वह सिर्फ अपनी ताकत के लिए नहीं बल्कि अपने बुरे व्यवहार और घमंड के लिए भी जानी जाती थी। वह अक्सर जीतने के बाद अपने हारे हुए विरोधी का मजाक उड़ाती थी।

फाइट शुरू हुई। विरोनिका अपनी विरोधी पर भूखी शेरनी की तरह टूट पड़ी। उसने कुछ ही मिनटों में उसे बुरी तरह से हराकर नॉकआउट कर दिया। पूरा स्टेडियम “विरोनिका, विरोनिका” के नारों से गूंज उठा। बलविंदर भी यह सब देख रही थी। वह विरोनिका की ताकत से प्रभावित थी, पर उसके लड़ने के तरीके में जो क्रूरता और असम्मान था, उसे देखकर उसका मन खट्टा हो गया। “यह ताकत नहीं, यह तो वहशीपन है,” उसने मन में सोचा।

जीतने के बाद विरोनिका रिंग में घूम-घूम कर दर्शकों का अभिवादन स्वीकार कर रही थी। उसकी आंखों में जीत का नशा और गुरूर साफ झलक रहा था। वह रिंग के किनारे आई, जहां बलविंदर और उसका परिवार बैठा था। हरमन और उसके दोस्त भी बाकी लोगों की तरह शोर मचा रहे थे और तालियां बजा रहे थे। बलविंदर भी माहौल में बहकर हल्की सी मुस्कान के साथ ताली बजा रही थी।

तभी विरोनिका की नजर बलविंदर पर पड़ी। शायद उसे बलविंदर का साधारण पहनावा उस चमक-दमक वाली दुनिया में एक धब्बे की तरह लगा या शायद बलविंदर की शांत आंखों में उसे अपने लिए कोई चुनौती दिखी या शायद वह बस अपनी ताकत के नशे में चूर थी। वह बलविंदर के बिल्कुल सामने आकर खड़ी हो गई।

“व्हाट आर यू लुकिंग एट, आंटी? गो मेक सम रोटीज।”
“क्या देख रही हो आंटी? जाओ जाकर रोटियां बनाओ।” उसने ऊंची आवाज में अपमानजनक लहजे में कहा।

बलविंदर, हरमन और उसके दोस्त सब सन्न रह गए। उन्हें समझ नहीं आया कि यह क्या हो रहा है। बलविंदर ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। वह बस शांत खड़ी रही। शायद उसकी यह खामोशी विरोनिका को और चुभ गई। उसे लगा कि उसकी बेइज्जती का कोई असर नहीं हुआ। वह आगे बढ़कर जो किया, उसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। उसने अपना हाथ उठाया और हजारों लोगों के सामने, कैमरों के सामने, बलविंदर के गाल पर एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया।

स्वाभिमान की ज्वाला

थप्पड़ की आवाज तेज संगीत के शोर में दब गई, पर उसने बलविंदर के अंदर सोए हुए तूफान को जगा दिया। यह सिर्फ एक थप्पड़ नहीं था। यह उसके स्वाभिमान पर हमला था। यह उसके पिता की दी हुई सीख पर हमला था। यह उसकी पहचान पर हमला था।

“पुत्तर, अगर कभी तेरे या किसी मजलूम के स्वाभिमान पर आंच आए, तो पीछे मत हटना।”
पिता के ये शब्द उसके कानों में बिजली की तरह कौंधे। एक पल के लिए सब कुछ जैसे थम गया। बलविंदर की आंखों की शांति एकाएक गायब हो गई। उसकी जगह एक ऐसी ज्वाला धधक उठी, जिसे देखकर हरमन भी डर गया। उसने अपनी पत्नी का ऐसा रूप कभी नहीं देखा था।

“बलविंदर, जाने दे, छोड़ दे। यह प्रोफेशनल फाइटर है। यह तुझे मार डालेगी।”
हरमन ने उसे पकड़ने की कोशिश की। पर बलविंदर ने एक झटके से अपना हाथ छुड़ाया। उसकी पकड़ में इतनी ताकत थी कि हरमन पीछे हट गया। अब बलविंदर की नजरें सिर्फ विरोनिका पर थीं, जो अभी भी हंस रही थी, अपनी इस हरकत पर गर्व महसूस कर रही थी।

बलविंदर ने कुछ कहा नहीं। उसने बस अपना दुपट्टा अपनी कमर में कसा। यह वही हरकत थी जो उसके पिता दंगल में उतरने से पहले करते थे। और फिर इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, उसने दौड़कर रिंग की रस्सियों पर हाथ रखा और एक ऐसी फुर्ती और सधे हुए अंदाज में छलांग लगाई कि वहां मौजूद सारे सिक्योरिटी गार्ड और रेफरी बस देखते रह गए।

रिंग में शेरनी की वापसी

अब बलविंदर रिंग के अंदर थी, विरोनिका के सामने। स्टेडियम में अब नारों का शोर नहीं, बल्कि एक रहस्यमयी खामोशी थी। हर कोई हैरान था कि यह हो क्या रहा है। विरोनिका अब भी हंस रही थी—”ओ, तो आंटी लड़ना चाहती हैं। लगता है आज किसी को अस्पताल जाने का शौक है।”

रेफरी और सिक्योरिटी गार्ड रिंग में भागे—”मैम, आप नीचे उतर जाइए। आप ऐसा नहीं कर सकती।”
पर तभी फाइट का प्रमोटर, जो यह सब देख रहा था, उसकी आंखों में डॉलर के चिन्ह चमक उठे। उसने सोचा, “यह तो अप्रत्याशित ड्रामा है। इससे तो शो और हिट हो जाएगा।” उसने माइक पर घोषणा की—”लेडीज एंड जेंटलमैन, लगता है हमारी चैंपियन को एक अनचाही चुनौती मिल गई है। क्या कहते हैं आप लोग? क्या एक राउंड हो जाए?”

भीड़ जो अब तक कंफ्यूज थी, अब उत्साहित हो उठी। उन्हें एक मसालेदार, अनपेक्षित मुकाबला देखने को मिल रहा था। पूरा स्टेडियम “फाइट, फाइट, फाइट!” के नारों से गूंजने लगा। विरोनिका ने अपने ग्लव्स पहने—”ठीक है, मैं इस मोटी औरत को 1 मिनट में धूल चटा दूंगी।”

रेफरी ने बेमन से दोनों को रिंग के बीच में बुलाया। एक तरफ थी प्रोफेशनल एमएमए फाइटर, जिसके शरीर पर हर मांसपेशी फौलाद की तरह थी, और दूसरी तरफ थी बलविंदर कौर, एक साधारण पंजाबी सूट में, जिसके चेहरे पर अब ना कोई डर था, ना कोई गुस्सा, बस एक अजीब सी शांति थी। एक एकाग्रता थी, जो किसी योगी में ही दिखती है।

फाइट की शुरुआत: मिट्टी की ताकत

फाइट की घंटी बजी। विरोनिका अपनी पूरी ताकत से बलविंदर पर झपटी। उसने तेज किक्स और पंचेस की बौछार कर दी। वह सोच रही थी कि एक ही वार में इस औरत को नीचे गिरा देगी। पर वह हैरान रह गई। बलविंदर किसी हवा के झोंके की तरह उसके हर वार से बच रही थी। उसकी फुर्ती उसकी शारीरिक बनावट से बिल्कुल मेल नहीं खा रही थी। वह विरोनिका के हमलों से ऐसे बच रही थी जैसे वह पहले से जानती हो कि अगला वार कहां पड़ने वाला है।

भीड़ हैरान थी। हरमन अपनी आंखें फाड़े यह सब देख रहा था। उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। विरोनिका का गुस्सा अब बढ़ने लगा। उसने एक तेज हाई किक मारी, जो अगर लग जाती तो बलविंदर का काम तमाम कर देती। पर बलविंदर नीचे झुकी, किक से बची और एक ही झपट्टे में विरोनिका की टांग पकड़कर उसे अपनी ओर खींच लिया। अब विरोनिका का संतुलन बिगड़ चुका था। इससे पहले कि वह कुछ समझ पाती, बलविंदर ने उसे अपने कंधे पर उठाया, हवा में घुमाया और अखाड़े की मिट्टी की कसम खाते हुए उसे उठाकर रिंग के फर्श पर पटक दिया। यह कुश्ती का वही प्रसिद्ध दांव था—धोबी पछाड़।

विरोनिका दर्द से कराह उठी। पूरा स्टेडियम सन्न रह गया। यह क्या था? यह कोई स्ट्रीट फाइट नहीं थी, यह एक शुद्ध तकनीकी कुश्ती का प्रदर्शन था।

विरोनिका जल्दी से उठी। उसकी आंखों में अब हैरानी और गुस्सा था। वह फिर से बलविंदर की ओर दौड़ी। पर बलविंदर अब पूरी तरह से अपने रंग में आ चुकी थी। उसने विरोनिका को पास आने दिया और फिर अपनी अद्भुत पकड़ का इस्तेमाल करते हुए उसे एक ऐसे लॉक में जकड़ लिया जिससे निकलना नामुमकिन था। यह एमएमए का कोई सबमिशन होल्ड नहीं था, यह कुश्ती की एक पारंपरिक पकड़ थी जिसे “ढाक” कहते हैं।

विरोनिका की सांसें उखड़ने लगीं। उसने अपनी पूरी ताकत लगा दी, पर वह उस पकड़ से खुद को छुड़ा नहीं पाई। उसका घमंड, उसका नशा सब टूट रहा था। कुछ ही सेकंड में उसने हार मानते हुए जमीन पर हाथ पटकना शुरू कर दिया। उसने टैप आउट कर दिया। घंटी बजी, फाइट खत्म हो चुकी थी।

जीत का संदेश

एक पल के लिए पूरे स्टेडियम में मौत जैसा सन्नाटा छा गया। फिर वह सन्नाटा तालियों, सीटियों और एक अविश्वसनीय शोर के तूफान में बदल गया। लोगों को अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था। एक साधारण सी दिखने वाली आंटी ने उनकी अजय चैंपियन को हरा दिया था।

रेफरी ने कांपते हुए बलविंदर का हाथ उठाकर उसे विजेता घोषित किया। बलविंदर ने अपना हाथ नीचे कर लिया। उसने विरोनिका की ओर देखा, जो अब भी जमीन पर पड़ी दर्द और शर्मिंदगी से कराह रही थी। बलविंदर की आंखों में जीत का गुरूर नहीं, बल्कि एक शांत सा संदेश था—”यह होता है सम्मान का मतलब।”

वह चुपचाप रिंग से उतरी। प्रमोटर उसके पीछे भागा—”मैम, रुकिए एक मिनट। मैं आपको एक कॉन्ट्रैक्ट देना चाहता हूं। आप अगली चैंपियन बन सकती हैं।”

बलविंदर रुकी। उसने प्रमोटर की ओर देखा और बड़ी शांति से पंजाबी में कहा—”मैं कोई फाइटर नहीं हूं। मैं एक मां हूं, एक पत्नी हूं। मैंने तो बस अपने स्वाभिमान की लड़ाई लड़ी थी, जो अब खत्म हो गई है।”

उसने भीड़ में अपने पति हरमन को ढूंढा, जो अब भी सदमे और गर्व के मिले-जुले भाव के साथ खड़ा था। उसने उसका हाथ पकड़ा और दोनों चुपचाप उस शोर भरे स्टेडियम से बाहर निकल गए। पीछे एक ऐसी किंवदंती छोड़कर, जिसे ब्रमटन शहर शायद कभी नहीं भुला पाएगा।

अगले दिन की चर्चा और प्रेरणा

अगले दिन यह खबर पूरे कनाडा के भारतीय समुदाय में आग की तरह फैल गई—”पराठे बनाने वाली ने चैंपियन को हराया। पंजाबी शेरनी ने सिखाया सबक।” ऐसी सुर्खियों से अखबार और सोशल मीडिया भरे पड़े थे। बलविंदर कौर रातों-रात एक गुमनाम गृहिणी से एक सेलिब्रिटी बन गई थी। एक ऐसी हीरो, जिसने यह साबित कर दिया था कि असली ताकत जिम में नहीं, बल्कि जमीर में होती है।

कहानी का संदेश

दोस्तों, यह कहानी हमें सिखाती है कि किसी भी इंसान को उसके बाहरी रूप से कभी नहीं आंकना चाहिए। हर इंसान के अंदर एक कहानी, एक ताकत छिपी होती है, जिसे सही समय पर छेड़ने पर वह कुछ भी कर सकती है। स्वाभिमान ही इंसान का सबसे बड़ा गहना है और उसकी रक्षा करना हर इंसान का धर्म है।

बलविंदर कौर की इस कहानी ने साबित कर दिया कि असली ताकत सम्मान, धैर्य और सही समय पर उठाए गए कदमों में होती है। अगर आपके दिल में भी स्वाभिमान की एक छोटी सी लौ जली है, तो इसे कभी बुझने मत देना।

समाप्त