करोड़पति कार में बैठने लगा तभी भिखारी चिल्लाया, मत बैठिये इसमें ब्रेक नहीं हैं, फिर जो हुआ उसने सबके
कहानी: फटे कपड़ों के पीछे छिपा हीरा
दिल्ली के सबसे पॉश इलाके में वर्धन विला नाम का एक आलीशान बंगला था। उसके मालिक थे आदित्य वर्धन, एक करोड़पति बिजनेस टाइकून जिन्होंने शून्य से हजारों करोड़ का साम्राज्य खड़ा किया था। लेकिन उनकी जिंदगी में मुस्कान नहीं थी, रिश्ते सिर्फ सौदे थे और इंसान बस मोहरे। एक भयानक हादसे में पत्नी और बेटी को खोने के बाद आदित्य का दिल पत्थर सा हो गया था।
वर्धन विला के सामने, सड़क के उस पार पुराने पीपल के पेड़ के नीचे एक बूढ़ा भिखारी बैठता था—प्रकाश। फटे हुए कपड़े, सफेद बाल-दाढ़ी, झुकी हुई काया, लेकिन आंखों में गहराई। कोई उसे नाम से नहीं जानता था, सबके लिए वह बस एक भिखारी था। लेकिन कभी वह देश का होनहार ऑटोमोबाइल इंजीनियर था। एक धोखेबाज पार्टनर ने उसकी जिंदगी तबाह कर दी: झूठे आरोप, नौकरी गई, घर गया, पत्नी का सदमे में निधन, बेटा भी छोड़ गया। सब कुछ गवांकर वह सड़कों पर आ गया।
आदित्य रोज अपनी महंगी गाड़ियों में से किसी एक में बैठकर उस रास्ते से गुजरता, और प्रकाश को नफरत भरी नजरों से देखता। उसे लगता था यह आदमी समाज पर बोझ है। कई बार गार्ड से उसे हटवाने की कोशिश की, लेकिन प्रकाश लौट आता।
एक रात, जब शहर सो रहा था, प्रकाश ने देखा कि एक काली वैन वर्धन विला के पास रुकी। तीन नकाबपोश उतरे, चौकीदार ने पैसे लेकर गेट खोल दिया। प्रकाश को शक हुआ, वह पेड़ों की आड़ में छिप गया। उसने देखा वे लोग गैराज में आदित्य की Rolls Royce के ब्रेक फ्लूइड की पाइपलाइन काट रहे हैं। यह एक सोची-समझी साजिश थी—ब्रेक फेल कराकर हादसा दिखाना! प्रकाश ने उनमें से एक को कहते सुना: “विक्रम सिंह इस बार कोई गलती नहीं चाहता। कल सुबह यह इसकी आखिरी सुबह होगी।”
प्रकाश जानता था, अगर उसने कुछ नहीं किया तो आदित्य की जान चली जाएगी। उसने पूरी रात जागकर सुबह का इंतजार किया।
सुबह 9 बजे आदित्य वर्धन अपने महंगे सूट में बाहर निकला। ड्राइवर ने Rolls Royce का दरवाजा खोला। आदित्य का दिन बहुत महत्वपूर्ण था, एक इंटरनेशनल डील फाइनल करने जाना था। प्रकाश ने मौके का इंतजार किया और सड़क पार कर गेट की तरफ दौड़ा। जैसे ही आदित्य गाड़ी में बैठने वाला था, प्रकाश सुरक्षा घेरे को तोड़ता हुआ चिल्लाया—”रुक जाइए सेठ जी! इस गाड़ी में ब्रेक नहीं है!”
आदित्य और गार्ड्स चौंक गए। गार्ड्स ने प्रकाश को पकड़कर मारना शुरू कर दिया, लेकिन प्रकाश लगातार चिल्लाता रहा। आदित्य को लगा यह भिखारी भीख मांगने का नया तरीका अपना रहा है। उसने ड्राइवर से कहा—”शर्मा जी, गाड़ी स्टार्ट कीजिए और यहीं ब्रेक लगाकर सबको दिखाइए कि ये झूठ बोल रहा है।”
ड्राइवर ने गाड़ी स्टार्ट की, ब्रेक पैडल दबाया—लेकिन ब्रेक नहीं लगे। गाड़ी बंगले के गेट से टकरा गई, सबके होश उड़ गए। अगर यह हादसा सड़क पर होता, आदित्य की जान चली जाती।
आदित्य की आंखें फटी रह गईं। उसने देखा, प्रकाश गार्ड्स की मार से अधमरा पड़ा था। पहली बार आदित्य ने उसे भिखारी नहीं, इंसान के तौर पर देखा। शर्म, अपराधबोध और सम्मान के भाव ने उसका दिल झकझोर दिया। उसने तुरंत डॉक्टर और एंबुलेंस बुलवाई, प्रकाश को बंगले के अंदर ले जाया गया।
पुलिस आई, प्रकाश का बयान लिया गया। चौकीदार और मैकेनिक्स पकड़े गए, विक्रम सिंह गिरफ्तार हुआ। बिजनेस जगत में भूचाल आ गया।
आदित्य ने अपनी सारी मीटिंग्स रद्द कर दीं, प्रकाश की देखभाल खुद करने लगा। देश के सबसे अच्छे डॉक्टर उसका इलाज कर रहे थे। आदित्य रोज घंटों उसके पास बैठता, उसकी कहानी सुनता। उसे एहसास हुआ कि दौलत के पहाड़ पर वह कितना अकेला है। प्रकाश की सादगी और निस्वार्थता ने आदित्य के दिल को पिघला दिया।
प्रकाश ठीक हुआ तो आदित्य ने उसे खाली चेक दिया—”जितनी रकम चाहें भर लीजिए। आपकी नेकी का कर्ज मैं नहीं चुका सकता।” प्रकाश ने मुस्कुरा कर चेक लौटाते हुए कहा—”अगर मुझे पैसा चाहिए होता तो आपकी जान बचाने के लिए नहीं, बेचने वालों के साथ मिल जाता। मैंने जो किया वह इंसानियत के नाते किया, किसी कीमत के लिए नहीं।”
आदित्य की आंखों में आंसू आ गए। उसने प्रकाश के अतीत की जांच करवाई, सच्चाई सामने आई। आदित्य ने अपने कानूनी और वित्तीय ताकत से प्रकाश को उसका नाम, इज्जत और संपत्ति वापस दिलवाई। लेकिन वह यहीं नहीं रुका। उसने अपनी कंपनी में एक नया रिसर्च एंड डेवलपमेंट डिवीजन खोला—ऑटोमोबाइल सेफ्टी टेक्नोलॉजी के लिए। उसने प्रकाश से कहा—”मैं आपको पैसे या एहसान नहीं, आपका हक देना चाहता हूं। आप इसे लीड करें। आपका ज्ञान अब लाखों लोगों की जान बचाएगा।”
प्रकाश की आंखों में नई चमक थी। उसने प्रस्ताव स्वीकार किया। कुछ ही महीनों में अखबारों की हेडलाइन बदल गई—अब चर्चा विक्रम सिंह की गिरफ्तारी की नहीं बल्कि वर्धन इंडस्ट्रीज के नए सेफ्टी फीचर की थी, जिसे प्रकाश वर्मा की देखरेख में बनाया गया था।
दो लोग—एक करोड़पति मालिक और एक गुमनाम भिखारी—जो कभी समाज के दो छोर पर थे, आज इंसानियत और सुरक्षा के लिए एक साथ काम कर रहे थे। आदित्य को एक सच्चा दोस्त और मार्गदर्शक मिल गया, प्रकाश को अपनी खोई हुई जिंदगी और सम्मान।
वर्धन विला का गेट नया बन चुका था, लेकिन बंगले के मालिक का दिल हमेशा के लिए बदल चुका था।
सीख:
इंसानियत किसी दौलत या हैसियत की मोहताज नहीं होती। कभी भी किसी को उसके बाहरी रूप से मत आंकिए, क्योंकि अक्सर फटे कपड़ों के पीछे एक अनमोल हीरा छुपा होता है। निस्वार्थ कर्म आपको वो दे सकता है, जो दुनिया की सारी दौलत नहीं दे सकती—आत्मसम्मान और सच्ची खुशी।
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