करोड़पति बाप ने अपनी विधवा बेटी की शादी रिक्शावाले से करवा दी, अगले ही दिन जो हुआ|

शीर्षक: एक छोटे फैसले की बड़ी कहानी – मनीष और निशा

कोलकाता की एक साधारण बस्ती में, तंग गलियों और छोटे-छोटे घरों के बीच, लाल सिंह अपने परिवार के साथ रहते थे। लाल सिंह एक मेहनती रिक्शा चालक थे, जो सुबह से शाम तक पसीना बहाकर अपने परिवार का पेट पालते थे। उनका सपना था कि उनका बेटा मनीष पढ़-लिखकर एक अच्छी ज़िंदगी जिए, ताकि उसे कभी रिक्शा न चलाना पड़े।

लाल सिंह की पत्नी भी अपने बेटे को अच्छे से तैयार करती, स्कूल भेजती और उसकी पढ़ाई में कोई कमी न रहे, इसका पूरा ध्यान रखती। लाल सिंह का एक और काम था – शहर के एक बड़े बंगले में रहने वाली निशा नाम की लड़की को रोज़ स्कूल छोड़ना और वापस लाना। निशा के पिता, जिनके पास पैसों की कोई कमी नहीं थी, ने लाल सिंह को अपनी बेटी के लिए खासतौर पर चुना था। उन्हें लाल सिंह की ईमानदारी, मेहनत और व्यवहार बहुत पसंद था।

हर सुबह लाल सिंह निशा को स्कूल ले जाते और शाम को वापस छोड़ते। निशा के साथ उनका व्यवहार ऐसा था जैसे वह उनकी अपनी बेटी हो। निशा को कभी यह महसूस नहीं हुआ कि लाल सिंह सिर्फ पैसों के लिए यह काम करते हैं।

मनीष अब आठवीं कक्षा में पहुंच चुका था। वह होनहार और समझदार था, लेकिन उसकी दुनिया छोटी थी। उसका एक दोस्त बड़े और नामी स्कूल में पढ़ता था, जहां सुविधाएं शानदार थीं। मनीष भी उस स्कूल में पढ़ना चाहता था। वह अपने पिता से जिद करने लगा कि उसे भी उसी स्कूल में पढ़ना है।

लाल सिंह ने बहुत समझाया कि उनकी हालत ऐसी नहीं कि वे उस स्कूल की फीस भर सकें, लेकिन मनीष नहीं माना। वह उदास रहने लगा। आखिरकार, लाल सिंह ने वादा किया कि वह कुछ न कुछ इंतजाम करेंगे।

एक दिन जब लाल सिंह निशा को स्कूल छोड़ने गया, मनीष भी अपने पिता को टिफिन देने स्कूल के बाहर आया। उसका चेहरा उदास था। निशा ने यह सब देख लिया और समझ गई कि मनीष बड़े स्कूल में पढ़ना चाहता है, लेकिन पैसे की कमी है।

निशा का दिल पिघल गया। वह लाल सिंह को सिर्फ एक रिक्शा चालक नहीं, बल्कि एक पिता जैसा मानती थी। जब निशा घर पहुंची, तो उसके पिता ने उसकी उदासी देखी और कारण पूछा। निशा ने सारी बात बता दी। उसके पिता ने कहा, “बेटी, अगर ऐसी बात है तो तू बता क्या चाहती है?” निशा ने कहा, “पिताजी, मैं चाहती हूं कि आप मनीष का दाखिला उस स्कूल में करवा दें।”

निशा के पिता ने तुरंत हामी भर दी और उसी शाम वे लाल सिंह के घर पहुंचे। लाल सिंह हैरान रह गया। निशा के पिता ने कहा कि वे मनीष की पढ़ाई का खर्च उठाना चाहते हैं। पहले तो लाल सिंह ने मना किया, लेकिन निशा की जिद के आगे वे झुक गए और मनीष का दाखिला हो गया।

मनीष ने उस स्कूल में खूब मेहनत की और अच्छे नंबर लाने लगा। निशा के पिता उसकी पढ़ाई का पूरा खर्च उठाते रहे। धीरे-धीरे मनीष इतना समझदार हो गया कि उसने अपनी पढ़ाई के लिए खुद कमाना शुरू कर दिया। उसने निशा के पिता से कहा, “अब मैं अपनी पढ़ाई का खर्च खुद उठा लूंगा। आपने मेरे लिए बहुत कुछ किया।”

समय बीतता गया। मनीष ने पढ़ाई पूरी की और अच्छी नौकरी पकड़ ली। उसने अपने पिता का रिक्शा चलाना बंद करवाया और उन्हें किराने की दुकान खोल दी। मनीष को हमेशा याद था कि निशा के पिता ने उसकी कितनी मदद की थी। उसने ठान लिया कि एक दिन वह अपनी कामयाबी की मिठाई लेकर उनके पास जाएगा।

जब मनीष को पहली सैलरी मिली, वह खुशी-खुशी मिठाई लेकर निशा के बंगले गया। वहां उसे निशा की मां शारदा मिलीं। मनीष ने उन्हें पहचान लिया और मिठाई दी। शारदा ने पूछने पर मनीष ने अपनी पूरी कहानी सुनाई – कैसे उसने पढ़ाई की, नौकरी पाई और अपने पिता को रिक्शा से मुक्त किया।

शारदा ने पूछा, “बेटा, तेरी शादी हो गई?” मनीष ने कहा, “नहीं मां जी, मैं शादी तभी करना चाहता था जब अच्छे से कामयाब हो जाऊं। अब सोचूंगा।” शारदा ने कुछ देर सोचकर कहा, “क्या तू मेरी बेटी निशा से शादी करेगा?” निशा की शादी हो चुकी थी, लेकिन उसका पति अब इस दुनिया में नहीं था। शारदा चाहती थीं कि मनीष निशा का ख्याल रखे।

मनीष पहले हैरान हुआ, लेकिन शारदा ने निशा की दर्दभरी कहानी सुनाई – पति की मृत्यु, ससुराल वालों ने साथ छोड़ दिया, भाई-बहन के ताने, घर की जिम्मेदारी। निशा टूट चुकी थी। शारदा ने कहा, “मैं जानती हूं तेरा दिल साफ है। तू मेरी बेटी को खुश रखेगा।”

मनीष ने कहा, “अगर आप इतना भरोसा कर रही हैं तो मैं निशा को अपनाने के लिए तैयार हूं।” शारदा ने दोनों की मंदिर में शादी करवा दी। मनीष निशा को अपने घर ले गया। उसके माता-पिता ने निशा को अपनाया और खूब प्यार दिया। धीरे-धीरे निशा की मुस्कान लौटने लगी।

एक साल बाद निशा पूरी तरह ठीक हो गई। उसने अपने भाई अभिषेक के खिलाफ प्रॉपर्टी के लिए केस किया, कोर्ट ने आधा हिस्सा देने का आदेश दिया। निशा ने उस पैसे से मनीष को बिज़नेस शुरू करवाया। दोनों ने मिलकर फैक्ट्री खोली और अच्छा पैसा कमाने लगे। अभिषेक को जब अपनी गलती का एहसास हुआ, तो उसका बिज़नेस ठप हो गया।

निशा और शारदा ने उसे कोई मदद नहीं की, क्योंकि अभिषेक ने उन्हें बहुत दुख दिया था। यह कहानी सिखाती है कि सच्ची मेहनत, अच्छाई और मदद का जज़्बा जिंदगी को खूबसूरत बना सकता है। मनीष और निशा ने अपनी जिंदगी को बेहतर बनाया और अपने परिवारों को नया आधार दिया। सच्चे रिश्ते पैसे से नहीं, दिल से बनते हैं।

सीख:
इंसान वही बड़ा होता है जो माफ करना जानता है।
सच्चे रिश्ते, मेहनत और अच्छाई ही जीवन का असली आधार हैं।

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जय हिंद, जय भारत!