किसान जब खाना खाने के बाद पेमेंट देने गया, तो पता चला जेब कट गयी, रेस्टोरेंट वाला झगड़ने लगा, फिर जो

ईमानदारी और इंसानियत की कहानी
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव रामपुर में हरिराम नाम के एक बुजुर्ग किसान रहते थे। उनकी उम्र सत्तर वर्ष थी, और उनके चेहरे की झुर्रियों में दशकों की मेहनत और ईमानदारी की कहानियाँ छुपी थीं। हरिराम ने अपनी पूरी ज़िंदगी खेतों में पसीना बहाकर बिताई थी। उनके लिए उनकी ज़मीन सिर्फ़ एक टुकड़ा नहीं, बल्कि माँ के समान थी, जिससे उनका पूरा परिवार पलता था।
इस साल हरिराम के घर में खुशी का माहौल था। उनकी इकलौती पोती राधा की शादी तय हो गई थी। राधा उनके बेटे और बहू की मौत के बाद उनके लिए सबकुछ थी। हरिराम और उनकी पत्नी शारदा ने ही उसे पाल-पोसकर बड़ा किया था। अब जब राधा की शादी तय हुई, तो हरिराम की बस एक ही ख्वाहिश थी – पोती की शादी धूमधाम से हो, ताकि उसे कभी माँ-बाप की कमी महसूस न हो।
शादी के खर्चे पूरे करने के लिए हरिराम ने अपने सबसे अच्छे खेत में गन्ने की फसल लगाई। दिन-रात मेहनत की, कीड़ों से फसल बचाई, समय पर पानी दिया। उनकी मेहनत रंग लाई और गन्ने की फसल ऐसी लहराई कि देखने वाले देखते रह गए। फसल कटने के बाद सबसे बड़ी चुनौती थी – उसे शहर की मंडी में ले जाकर अच्छे दाम पर बेचना।
एक सुबह हरिराम अपनी बैलगाड़ी में गन्ना लादकर शहर की मंडी के लिए निकल पड़े। रास्ता लंबा और मुश्किल था। शहर पहुँचते-पहुँचते दोपहर हो गई। मंडी में शोर था, भीड़ थी, अलग-अलग तरह की गंध थी। हरिराम सीधा गन्ने के सबसे बड़े व्यापारी गिरधारी लाल के पास पहुँचे। गिरधारी लाल हरिराम की मेहनत और ईमानदारी की कदर करता था। मोल-भाव के बाद सौदा अच्छे दाम पर तय हुआ। मुनीम ने ₹50,000 की गड्डी हरिराम को दी। हरिराम की आँखें खुशी से चमक उठीं। उसने पैसे अपनी कुर्ते की गहरी जेब में संभालकर रखे और कई बार हाथ फेर कर तसल्ली कर ली।
अब उसे बस पकड़नी थी, लेकिन सुबह से कुछ खाया नहीं था। मंडी के बाहर एक छोटा सा रेस्टोरेंट था – स्वादिष्ट भोजनालय। हरिराम अंदर गए, एक कोने में बैठ गए, सादा खाना ऑर्डर किया। पास ही एक शरीफ दिखने वाला आदमी बैठा था, जिसकी नजर हरिराम पर थी। खाना आया, हरिराम खाने में मग्न हो गए। इसी बीच वह आदमी अपनी कुर्सी हरिराम के करीब ले आया। जैसे ही हरिराम पानी पीने के लिए थोड़ा आगे झुके, उस आदमी ने बड़ी सफाई से हरिराम की जेब से नोटों की गड्डी निकाल ली और अपनी जैकेट में छुपा ली।
खाना खाकर हरिराम काउंटर पर गया, जहाँ रेस्टोरेंट का मालिक मुरारी लाल बैठा था। मुरारी लाल थोड़ा लालची था और हमेशा ग्राहकों की जेब पर नजर रखता था। हरिराम ने पैसे निकालने के लिए जेब में हाथ डाला, लेकिन जेब खाली थी। उसने दूसरी जेब देखी, पैजामे की जेब देखी, कहीं कुछ नहीं था। उसका चेहरा सफेद पड़ गया, माथे पर पसीना आ गया। उसकी पूरी कमाई गायब थी।
मुरारी लाल ने गुस्से में कहा, “क्या बकवास कर रहा है? रोज आते हैं तेरे जैसे। मुफ्त में खाना खाकर भागने वाले।” हरिराम रोने लगा, हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने लगा, “साहब, मेरी जेब कट गई। मेरी पोती की शादी है।” लेकिन मुरारी लाल ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया, उल्टा धमकी देने लगा।
तभी वही शरीफ दिखने वाला आदमी काउंटर पर आया, बोला, “अरे भाई साहब, हो सकता है बेचारी की जेब सच में कट गई हो। कितने पैसे हुए इनके?” मुरारी लाल ने कहा, “₹80।” उस आदमी ने ₹100 का नोट दिया और हरिराम को ₹20 बस के किराए के लिए दे दिए। हरिराम ने उसका धन्यवाद किया और भारी मन से बाहर निकल गया।
उस आदमी ने भी अपना खाना खत्म किया और जाने लगा। तभी मुरारी लाल का बेटा रोहन, जो अंदर सीसीटीवी कैमरे की फुटेज देख रहा था, दौड़ता हुआ आया, “पापा रुको! वही आदमी चोर है। मैंने कैमरे में देखा, उसी ने दादाजी की जेब से पैसे निकाले।” मुरारी लाल दंग रह गया। उस आदमी ने दरवाजा पार कर लिया था, लेकिन सबने मिलकर उसे पकड़ लिया। तलाशी में उसकी जैकेट से नोटों की गड्डी मिल गई।
मुरारी लाल ने तुरंत वेटर को भेजा – भागकर जा, बस अड्डे पर दादाजी को बुला ला। उनके पैसे मिल गए हैं। वेटर गया, हरिराम को बुलाया, जो बस अड्डे पर बैठा अपनी किस्मत को कोस रहा था। हरिराम वापस आया, तो मुरारी लाल उसके पैरों पर गिर पड़ा, “माफ कर दो बाबा, मैंने आपको चोर समझा और असली चोर को फरिश्ता।” हरिराम ने उसे गले लगा लिया, “कोई बात नहीं बेटा, गलती इंसान से होती है। भगवान का शुक्र है मेरी मेहनत की कमाई मिल गई।”
मुरारी लाल ने पैसे हरिराम को वापस दिए, पुलिस को बुलाया और चोर को गिरफ्तार करवा दिया। अब माहौल बदल चुका था। मुरारी लाल ने हरिराम से कहा, “बाबा, आज आप यहाँ से बिना खाना खाए नहीं जाएंगे। और आगे जब भी शहर आएँ, इस दुकान का खाना आपके लिए हमेशा मुफ्त रहेगा। यह मेरी गलती का प्रायश्चित है।”
हरिराम ने बड़े सम्मान के साथ खाना खाया, और जब वह जाने लगे तो उनकी आँखों में संतोष था, होठों पर मुस्कान थी। न सिर्फ़ उन्हें अपनी मेहनत की कमाई वापस मिली, बल्कि इंसानियत पर उनका विश्वास भी लौट आया था। उन्होंने रोहन को दुआएँ दीं।
सीख:
यह कहानी हमें सिखाती है कि कभी भी किसी के बाहरी रूप को देखकर राय नहीं बनानी चाहिए। फटेहाल किसान ईमानदार हो सकता है, और साफ-सुथरे कपड़े पहनने वाला आदमी चोर हो सकता है। यह भी सिखाती है कि सही तकनीक का इस्तेमाल न्याय दिला सकता है। अगर रोहन ने सीसीटीवी फुटेज न देखी होती, तो सच्चाई कभी सामने न आती।
आपको इस कहानी में सबसे ज्यादा किस किरदार ने प्रभावित किया? ईमानदार हरिराम, अपनी गलती मानने वाले मुरारी लाल या सच्चाई सामने लाने वाले रोहन?
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