किसान ने अपनी जमीन गिरवी रख कर एक अनाथ लड़की की शादी कराई, फिर लड़की का पति IAS अफसर बनकर लौटा

बलराम, पूजा और अजीत की प्रेरणादायक कहानी

भूमिका

क्या होता है जब इंसानियत का एक छोटा सा दिया मजबूरी और लाचारी के सबसे घने अंधेरे में भी रोशनी करने की ज़िद पकड़ ले? क्या रिश्तों की डोर खून के संबंधों से ज्यादा मजबूत हो सकती है? क्या गरीब किसान का अपनी मिट्टी से किया गया सौदा एक अनाथ बेटी के आंचल को खुशियों से भर सकता है?

यह कहानी है उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव सूरजपुर के किसान बलराम की, जिसने अपनी पुश्तैनी जमीन को दांव पर लगाकर एक अनाथ बच्ची पूजा को बेटी बनाया, उसकी शादी की, और उस बेटी के पति अजीत के सपनों को अपना सपना बना लिया। यही अजीत एक दिन आईएएस अफसर बनकर गांव लौटता है और पूरे गांव की तकदीर बदल देता है।

गांव सूरजपुर और बलराम का परिवार

सूरजपुर, उत्तर प्रदेश का एक गुमनाम गांव। यहां की मिट्टी उपजाऊ थी, लेकिन किसानों के चेहरों पर फसल की उम्मीद से ज्यादा कर्ज की चिंता की लकीरें थीं। बिजली कभी-कभार ही आती थी, सड़कें धूल भरी थीं, ज्यादातर घर कच्चे थे।

बलराम, 50 साल का साधारण किसान, जिसकी पहचान उसकी 10 बीघा पुश्तैनी जमीन थी। उसके पास पत्नी प्रेमलता थी, लेकिन अपनी औलाद नहीं थी। यही दर्द उसके दिल में हमेशा रिसता था, पर उसने इस दर्द को अपनी इंसानियत पर हावी नहीं होने दिया।

पूजा का आगमन

10 साल पहले गांव में हैजे की बीमारी फैली। कई घर उजड़ गए। गरीब मजदूर राम भरोसे और उसकी पत्नी की मौत हो गई, पीछे रह गई उनकी 8 साल की बेटी पूजा। कुछ दिन तक गांव वाले उसे खाना देते रहे, फिर सबने अपनी गरीबी के चलते मुंह मोड़ लिया।

एक शाम बलराम और प्रेमलता ने देखा कि पूजा भूख से बेहाल ठाकुर भीम सिंह की हवेली के बाहर फेंकी हुई जूठन में से रोटियों के टुकड़े उठा रही थी। उनका दिल पसीज गया। वे पूजा को अपने घर ले आए और उसे अपनी बेटी बना लिया।

प्रेमलता ने मां की ममता दी, बलराम ने पिता की छत्रछाया। पूजा पढ़ने में होशियार थी, स्कूल में दाखिला कराया गया। पूजा ने 12वीं की परीक्षा जिले में टॉप कर ली। अब बलराम को उसकी शादी की चिंता सताने लगी।

अजीत का सपना

गांव में एक और होनहार लड़का था—अजीत। गरीब किसान का बेटा, लेकिन आंखों में आईएएस बनने का सपना। वह रात-रात भर लालटेन की रोशनी में पढ़ता, कस्बे से पुरानी किताबें लाता। पूजा और अजीत बचपन से एक-दूसरे को जानते थे। उनके बीच मासूम सा लगाव था। बलराम और प्रेमलता को लगता था कि अजीत से अच्छा लड़का पूजा के लिए कोई नहीं हो सकता।

बलराम ने पूजा का रिश्ता लेकर अजीत के पिता के पास बात की। अजीत के पिता खुश तो हुए, लेकिन बोले—”भाई, मेरे घर के हालात खराब हैं। मैं बेटे को दिल्ली भेजना चाहता हूं कोचिंग के लिए, बहुत खर्चा है। शादी में भी लाखों लगेंगे।”

बलराम का त्याग

बलराम ने फैसला किया—अपनी पुश्तैनी जमीन गिरवी रखकर अजीत की पढ़ाई और पूजा की शादी का खर्चा उठाएगा। गांव के जमींदार ठाकुर भीम सिंह ने 5 लाख का कर्ज दिया, जमीन के कागजात अपने पास रख लिए, दो साल की मोहलत दी। अगर पैसा न लौटा तो जमीन ठाकुर की।

बलराम ने पैसे के दो हिस्से किए—एक हिस्सा अजीत की पढ़ाई के लिए, दूसरा पूजा की शादी के लिए। पूजा की शादी साधारण लेकिन प्यार भरी थी। विदाई के वक्त पूजा ने बलराम से कहा, “बाबा, आपने मेरे लिए सब कुछ खो दिया।” बलराम बोले, “बेटी की खुशी के लिए बाप सब कुछ करता है।”

अजीत ने वादा किया—”बाबा, मैं इतनी मेहनत करूंगा कि एक दिन आपकी जमीन आपको वापस दिला सकूं।”

संघर्ष की राह

अजीत और पूजा दिल्ली चले गए। तंग गली में किराए के छोटे कमरे में रहने लगे। अजीत दिन-रात पढ़ाई करता, पूजा सिलाई का काम करती। कभी-कभी भूखी सो जाती, लेकिन अजीत के लिए दूध-बादाम जरूर लाती। बलराम और प्रेमलता गांव में मजदूरी करने लगे, जमीन सूखे की मार झेल रही थी।

ठाकुर भीम सिंह रोज ताने देता—”कब चुकाएगा मेरा कर्ज?” बलराम सब सहता रहा, कभी पूजा और अजीत को अपनी परेशानियों के बारे में नहीं बताता।

पहली बार यूपीएससी की परीक्षा में अजीत फेल हो गया। हताश हो गया, लेकिन पूजा ने हिम्मत दी—”फिर से कोशिश करेंगे।”

आखिरी परीक्षा और संकट

दो साल पूरे होने में एक महीना बचा था। ठाकुर ने धमकी दी—”अगले महीने जमीन मेरी होगी।” बलराम पूरी तरह टूट गया, प्रेमलता बीमार पड़ गई। अजीत ने दूसरी बार परीक्षा दी, इस बार सब कुछ दांव पर लगा दिया।

अमावस की रात, बलराम और प्रेमलता अपनी झोपड़ी से बाहर निकाले जा रहे थे। ठाकुर के आदमी सामान बाहर फेंक रहे थे। तभी गांव की सड़क पर एक सरकारी गाड़ी आई, नीली बत्ती लगी थी। उसमें से उतरा एक रौबदार अफसर—अजीत। पूजा भी साथ थी।

आईएएस अजीत की वापसी

अजीत ने ठाकुर से कागजात मांगे, सूदखोरी का आरोप लगाया, पुलिस को आदेश दिया—ठाकुर को गिरफ्तार करो। गांव वाले “अजीत बाबू जिंदाबाद” के नारे लगाने लगे। अजीत ने बलराम को जमीन के कागज लौटाए—”बाबा, आज से यह जमीन फिर से आपकी हुई।”

बलराम रो पड़ा—”तूने मेरी इज्जत, मेरा गुरूर लौटा दिया।” पूजा और प्रेमलता भी खुशी से रो रही थीं।

गांव की किस्मत बदलना

अजीत ने गांववालों को इकट्ठा किया—”आज से इस गांव की किस्मत बदलेगी। सरकार की हर योजना का फायदा मिलेगा, नया स्कूल, अस्पताल, सड़कें बनेंगी। स्कूल का नाम होगा—पूजा बलराम कन्या विद्यालय।”

पूरे गांव की किस्मत बदल गई। ठाकुर को सजा मिली, किसानों को जमीनें वापस मिलीं। बलराम फिर से अपने खेतों में हल चलाता था, अब उसकी चाल में आत्मविश्वास था।

कहानी का संदेश

बलराम का त्याग, पूजा की मेहनत, अजीत की कृतज्ञता—तीनों ने मिलकर सिर्फ एक परिवार नहीं, पूरे गांव की तकदीर बदल दी।
यह कहानी सिखाती है:

निस्वार्थ भाव से की गई नेकी कभी बेकार नहीं जाती।
इंसानियत, विश्वास और त्याग की जीत हमेशा होती है।
रिश्ते खून से नहीं, दिल से बनते हैं।

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कमेंट्स में बताएं—बलराम के त्याग या अजीत की कृतज्ञता में से किससे आपको सबसे ज्यादा प्रेरणा मिली?

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