किसान ने एक घायल विदेशी पक्षी की देखभाल की, वो ठीक होकर उड़ा कुछ महीने बाद चोंच में कुछ लाया और
इंसानियत और वफादारी का चमत्कार: हीरालाल और मित्र की कहानी
क्या कभी आपने सोचा है कि इंसानियत का एक छोटा सा बीज तकदीर की बंजर जमीन पर उम्मीद की पूरी फसल उगा सकता है? क्या कर्मों का हिसाब किताब सिर्फ इंसानों की दुनिया में होता है या बेजुबान परिंदे भी एहसान और वफादारी का कर्ज चुकाना जानते हैं?
यह कहानी है राजस्थान के छोटे से गांव रामगढ़ की, जहां पिछले तीन सालों से सूखा पड़ा था। गांव उम्मीदों का कब्रिस्तान बन चुका था। कुएं सूख गए, तालाबों पर दरारें पड़ गईं, खेतों की हरियाली गायब थी। गांव के एक छोर पर हीरालाल अपनी बेटी राधा के साथ एक कच्ची झोपड़ी में रहता था। उसकी पत्नी पांच साल पहले गुजर चुकी थी, और अब उसकी दुनिया सिर्फ राधा थी। विरासत में मिली पांच बीघा जमीन कभी सोना उगलती थी, लेकिन अब वहां सिर्फ धूल उड़ती थी। हीरालाल हर साल कर्ज लेकर बीज बोता, हर बार आसमान उम्मीद जगाता लेकिन बरसता नहीं। कर्ज का बोझ पहाड़ बन चुका था।
गांव के ज्यादातर लोग शहर चले गए, लेकिन हीरालाल अपनी धरती मां को छोड़ना नहीं चाहता था। उसकी सुबह अब खेतों में हल चलाने से नहीं, दूर के सूखे कुएं से पानी लाने से शुरू होती थी। घर में जो थोड़ा राशन बचता, उससे राधा के लिए रोटियां बनतीं, खुद अक्सर पानी पीकर सो जाता। राधा अपने बाबा की उदासी समझती थी, पर मासूमियत से कहती—”बाबा, चिंता मत करो। एक दिन इंद्र देवता जरूर सुनेंगे।” हीरालाल मुस्कुरा देता, लेकिन भीतर उम्मीद की डोर कमजोर हो चुकी थी।
एक शाम, आसमान पर काले बादल छा गए। गांव वालों की आंखों में चमक आ गई, लेकिन बादल बिना बरसे आंधी-तूफान के साथ चले गए। हीरालाल और राधा अपनी झोपड़ी में दुबके बैठे थे जब उन्होंने बाहर गिरने की आवाज सुनी। तूफान के बाद हीरालाल बाहर गया तो देखा—नीम के पेड़ के नीचे एक बड़ा सफेद पक्षी पड़ा था, सिर पर लाल कलगी, पंख जख्मी और खून बह रहा था। उसकी आंखों में मौत का डर था। राधा रोने लगी—”बाबा, इसे बचाइए!”
हीरालाल के मन में आया कि खुद के खाने के लाले हैं, इस पक्षी को कैसे पालूं? लेकिन जब उसने उसकी आंखों में देखा, तो दिल पिघल गया। उसने पक्षी को गोद में उठाया, झोपड़ी में लाया, जड़ी-बूटियों का लेप लगाया, पंख बांधा। बाजरे की रोटी के टुकड़े पानी में भिगोकर पक्षी को खिलाया। राधा ने उसका नाम “मित्र” रख दिया।
अगली सुबह गांव में खबर फैल गई। लोग देखने आए—कोई कहता मनहूस पक्षी है, कोई कहता बेच दो। ठाकुर गजराज सिंह धमकी देने आया—”पूर्णिमा तक कर्ज नहीं चुकाया तो जमीन-झोपड़ी मेरी, बेटी बेगार में!” हीरालाल कांप गया, लेकिन हिम्मत नहीं हारी।
वह मित्र की सेवा करता रहा। राधा स्कूल से आकर मित्र से बातें करती, कहानियां सुनाती। धीरे-धीरे मित्र घुलमिल गया। हीरालाल रोज सुबह उसकी पट्टी बदलता, नई जड़ी-बूटी लगाता। दिन हफ्तों में बदल गए, राशन लगभग खत्म हो गया। कई दिन जंगली बेर से गुजारा, लेकिन मित्र के हिस्से में कभी कमी नहीं आई।
फिर मित्र का पंख ठीक हो गया। एक सुबह हीरालाल ने पट्टी खोली, मित्र ने पंख फैलाए। अब उसके जाने का समय था। राधा रोने लगी। मित्र ने गर्दन राधा के गालों से रगड़ी, हीरालाल के पैरों में सिर झुकाया। हीरालाल ने कहा—”जा दोस्त, अपने घर लौट जा।” मित्र ने दर्द भरी आवाज निकाली, पंख फड़फड़ाए और आसमान में उड़ गया।
झोपड़ी में खामोशी छा गई। मित्र के जाने के बाद हीरालाल की मुश्किलें बढ़ गईं। पूर्णिमा पास थी, कर्ज चुकाने को कुछ नहीं था। सूखे की मार और बढ़ गई। हीरालाल टूट गया, फैसला किया कि राधा को लेकर गांव छोड़ देगा।
अगली सुबह, सूरज की पहली किरण के साथ बाहर से मित्र की आवाज आई। हीरालाल दौड़कर बाहर गया—आसमान हजारों सफेद पक्षियों से भर गया था, सब मित्र जैसे। पूरा गांव देखने आया। मित्र अपने झुंड के साथ हीरालाल की झोपड़ी के चारों ओर उड़ता रहा। फिर सबने अपनी चोंच से छोटे-छोटे सुनहरे बीज खेतों में गिराए। हीरालाल के पांच बीघा बंजर खेत बीजों से भर गए।
बुजुर्ग मुखिया बोले—”हीरालाल, तूने एक बेजुबान की जान बचाई, आज उसने अपना एहसान चुकाया है। इन बीजों को बो दे।” हीरालाल ने गांव वालों की मदद से बीज बो दिए। लेकिन पानी नहीं था। तभी आसमान में बादल आए, हल्की बारिश हुई।
कुछ ही दिनों में सुनहरे बीज तेजी से बढ़ने लगे—घुटनों तक ऊंची फसल, अजीब फल और अनाज, स्वादिष्ट और पौष्टिक। फसल बाजार में सोने के भाव बिकी। हीरालाल ने सबसे पहले ठाकुर का सारा कर्ज सूद समेत लौटा दिया। ठाकुर का घमंड टूट गया।
हीरालाल ने बाकी फसल और कमाई अकेले नहीं रखी। उसने पूरे गांव का कर्ज चुकाया, रहस्यमयी बीज सभी किसानों में बांटे, खेती का तरीका सिखाया। रामगढ़ फिर से हरियाली से भर गया। राधा की हंसी लौट आई, हीरालाल की आंखों में फिर उम्मीद चमक उठी।
यह कहानी हमें सिखाती है कि इंसानियत और वफादारी का एक छोटा सा बीज भी चमत्कार कर सकता है। जब आप बिना स्वार्थ के किसी की मदद करते हैं, तो प्रकृति और किस्मत खुद आपके लिए रास्ते खोल देती है।
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