किसान ने बाढ़ में फंसे डॉक्टर की जान बचाई, कुछ माह के बाद किसान अपने बेटे को लेकर हॉस्पिटल गया तो

नेकी का फल: पंजाब के किसान और डॉक्टर की कहानी
प्रस्तावना
क्या होता है जब आप किसी की जान बचाने के लिए अपनी जान दांव पर लगा देते हैं और बदले में एक “शुक्रिया” तक की उम्मीद नहीं करते? क्या नेकी का फल सच में मिलता है? और अगर मिलता है, तो क्या वह उसी रूप में आता है, जिसकी हम कल्पना करते हैं? यह कहानी है पंजाब की मिट्टी में पले-बढ़े एक ऐसे किसान की, जिसके लिए सेवा और इंसानियत उसके खून में थी। उसने उफनती सतलुज नदी की लहरों से एक अजनबी शहरी बाबू की जान तो बचा ली, लेकिन उसे नहीं पता था कि कुछ महीनों बाद किस्मत उसे उसी शहरी बाबू के आलीशान हॉस्पिटल के दरवाजे पर एक फरियादी बनाकर खड़ा कर देगी। जब उसके अपने बेटे की सांसें दांव पर थीं और अस्पताल का लाखों का बिल एक पहाड़ बनकर उसके सामने खड़ा था।
पंजाब की धरती और गुरवचन सिंह
पंजाब, पांच नदियों की धरती। यहां की मिट्टी में सिर्फ गेहूं और धान ही नहीं, मेहनत, हिम्मत और इंसानियत की फसल भी लहलहाती है। सतलुज नदी के किनारे बसा एक छोटा सा गांव था—पिंड हरबंसपुरा। इसी गांव में गुरवचन सिंह अपनी छोटी सी दुनिया में मग्न रहता था। 40 साल का गुरवचन सिंह, ऊंची पगड़ी, चौड़े कंधे और खेतों की मिट्टी में रचे-बसे हाथ—एक सच्चा और खरा जाट, जिसके लिए उसकी जमीन उसकी मां थी और उसकी पगड़ी उसकी इज्जत।
गुरवचन सिंह की पत्नी कुछ साल पहले लंबी बीमारी के बाद चल बसी थी। अब उसकी जिंदगी का एक ही सहारा था—उसका 10 साल का बेटा जसप्रीत, जिसे सब प्यार से जस्सा कहते थे। जस्सा अपने बाबा की परछाई था। उसकी आंखों में वही चमक और बातों में वही सच्चाई थी। गुरवचन अपनी पूरी दुनिया अपने जस्से पर लुटाता था। उसका सपना था कि वह अपने बेटे को खूब पढ़ाए, ताकि उसे उसकी तरह खेतों में हाड़तोड़ मेहनत न करनी पड़े।
गुरवचन के पास 15 एकड़ जमीन थी, जिस पर वह दिन-रात मेहनत करता। उसकी मेहनत और गांव वालों के प्रति सेवाभाव के कारण पूरे इलाके में उसकी बहुत इज्जत थी। गांव में किसी के घर कोई मुश्किल हो, किसी की बेटी की शादी हो या किसी को खून की जरूरत हो—गुरवचन सिंह हमेशा सबसे आगे खड़ा मिलता। उसके लिए सेवा सिर्फ कहने की बात नहीं, जीने का तरीका था।
बाढ़ की तबाही और गुरवचन की बहादुरी
उस साल मानसून जैसे आसमान से कहर बनकर बरसा था। लगातार तीन दिनों की बारिश ने सतलुज का सीना चीर दिया था। नदी का पानी विकराल रूप लेकर आसपास के गांवों में घुसने लगा था। हरबंसपुरा भी बाढ़ की चपेट में आ गया था। चारों तरफ पानी ही पानी था। लोगों के घर डूब रहे थे, मवेशी बह रहे थे और जिंदगी बचाने की चीख-पुकार मची हुई थी।
ऐसे मुश्किल समय में गुरवचन सिंह एक फरिश्ता बनकर सामने आया। उसने अपने पुराने पर मजबूत ट्रैक्टर को एक नाव की तरह बना लिया था। वह अपनी जान की परवाह किए बिना पानी के तेज बहाव में ट्रैक्टर चलाकर लोगों को, उनके बच्चों को और उनके मवेशियों को सुरक्षित ऊंची जगहों पर पहुंचा रहा था। उसने अपने घर के सारे अनाज और जमा पूंजी को गांव वालों के लिए खोल दिया था।
बाढ़ का तीसरा दिन था। पानी का स्तर खतरनाक हद तक बढ़ चुका था। गुरवचन सुबह से ही बचाव के काम में लगा हुआ था। शाम ढल रही थी, जब उसे गांव के बाहर शहर को जोड़ने वाली मुख्य सड़क की तरफ से किसी के चिल्लाने की आवाज आई। उसने देखा कि एक महंगी सी कार पानी के बहाव में फंसी हुई थी और तेजी से नदी की तरफ बही जा रही थी। कार के अंदर कोई था, जो मदद के लिए हाथ-पैर मार रहा था।
गुरवचन ने एक पल भी नहीं सोचा। उसने अपने ट्रैक्टर के पीछे बंधी मोटी रस्सी को अपनी कमर में लपेटा और ट्रैक्टर को पानी में उतार दिया। बहाव बहुत तेज था, ट्रैक्टर डगमगा रहा था। पर गुरवचन ने हिम्मत नहीं हारी। वह किसी तरह उस डूबती हुई कार के पास पहुंचा। कार का शीशा तोड़कर उसने अंदर फंसे अधेड़ उम्र के एक व्यक्ति को बाहर निकाला। वह शहरी बाबू लग रहा था, कपड़े कीमती थे और वह बुरी तरह घबराया हुआ था। उसके सिर पर चोट लगी थी और वह लगभग बेहोश था।
गुरवचन ने उसे अपनी पीठ पर लादा और किसी तरह ट्रैक्टर तक पहुंचा। उसे ट्रैक्टर पर लिटाया और खुद कमर तक पानी में चलकर ट्रैक्टर को धकेलता हुआ सुरक्षित जगह की ओर बढ़ने लगा। कई घंटों की मशक्कत के बाद वह उसे गांव के स्कूल की ऊंची इमारत में राहत शिविर तक लेकर पहुंचा। गांव की औरतों ने उस शहरी बाबू की देखभाल की, सिर पर पट्टी बांधी, गर्म कपड़े दिए। गुरवचन ने अपने हिस्से का सूखा गुड़-चना उसे खिलाया।
घंटे भर बाद उस व्यक्ति को होश आया। उसका नाम था—डॉ. आशीष गौरव। वह चंडीगढ़ के सबसे बड़े और सबसे महंगे प्राइवेट हॉस्पिटल “गौरव हार्ट इंस्टिट्यूट” का मालिक और देश का जाना-माना कार्डियक सर्जन था। वह पास के गांव में एक मेडिकल कैंप लगाने जा रहा था, जब बाढ़ ने उसे घेर लिया।
उसने गुरवचन सिंह का हाथ पकड़ लिया, “भाई साहब, मैं आपका नाम नहीं जानता, पर आज आप नहीं होते तो मैं भी नहीं होता। आपने मेरी जान बचाई है। मैं आपका यह एहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगा।”
गुरवचन ने बड़ी सादगी से अपना हाथ छुड़ाया और मुस्कुराया, “डॉक्टर साहब, एहसान कैसा? हम पंजाबी हैं। मुसीबत में फंसे किसी की मदद करना हमारा धर्म है। हम इसका सौदा नहीं करते। वाहेगुरु ने हमें आपकी जान बचाने का मौका दिया। यह हमारी खुशकिस्मती है।”
डॉक्टर गौरव, जो अपनी जिंदगी में हमेशा हर चीज को पैसे और हैसियत से तौलते आए थे, आज इस अनपढ़ किसान की बातों के सामने निशब्द थे। अगले दिन जब बचाव दल गांव पहुंचा, तो डॉक्टर गौरव ने जाने से पहले अपना विजिटिंग कार्ड निकाला और गुरवचन को दिया, “भाई साहब, यह मेरा कार्ड है। मैं एक डॉक्टर हूं। अगर जिंदगी में कभी भी कोई भी जरूरत पड़े, तो बेझिझक मुझे फोन करना। मैं आपके लिए हमेशा खड़ा रहूंगा।”
गुरवचन ने वह कार्ड ले तो लिया, पर उसे अपनी फटी हुई कमीज की जेब में रखकर भूल गया। उसने सोचा, “मुझ जैसे किसान को इतने बड़े डॉक्टर की क्या जरूरत पड़ेगी?”
छह महीने बाद: बेटे की बीमारी और संघर्ष
बाढ़ चली गई, पर अपने पीछे तबाही का एक लंबा निशान छोड़ गई। गुरवचन और गांव वालों की जिंदगी फिर से पटरी पर लौटने की जद्दोजहद करने लगे। बाढ़ की तबाही को गुजरे हुए छह महीने बीत चुके थे। हरबंसपुरा गांव के लोग धीरे-धीरे अपनी जिंदगी को फिर से समेटने की कोशिश कर रहे थे। गुरवचन सिंह भी अपनी बर्बाद हुई फसल को देखकर निराश तो हुआ था, पर उसने हिम्मत नहीं हारी। उसने फिर से कर्ज लिया, नए बीज खरीदे और अपनी जमीन मां को फिर से हरा-भरा करने में जुट गया।
उसकी दुनिया अब भी अपने बेटे जस्सा के इर्द-गिर्द ही घूमती थी। वह जस्से को हंसता-खेलता देखता, तो अपनी सारी मुश्किलें भूल जाता। एक दिन जस्सा गांव के बच्चों के साथ खेतों में खेल रहा था, गुरवचन पास ही ट्रैक्टर की मरम्मत कर रहा था। अचानक बच्चों के चिल्लाने की आवाज आई, “गुरवचन चाचा, जस्सा गिर गया!”
गुरवचन का कलेजा मुंह को आ गया। वह सब कुछ छोड़कर भागा। देखा—जस्सा खेत की मेड पर बेहोश पड़ा था, शरीर नीला पड़ रहा था और उसकी सांसें बहुत धीमी चल रही थीं। गुरवचन ने उसे गोद में उठाया और गांव के हकीम के पास भागा। हकीम ने जस्से की नब्ज देखी और चिंता से सिर हिला दिया, “मामला गंभीर लगता है। इसके दिल की धड़कन बहुत कमजोर है। इसे फौरन शहर के बड़े अस्पताल ले जा।”
गुरवचन के पैरों तले जमीन खिसक गई। वह जस्से को लेकर पास के सरकारी अस्पताल भागा। वहां डॉक्टरों ने जांच की और बताया कि जस्से के दिल में जन्म से ही एक छेद है, जो अब बढ़ने लगा है और उसके फेफड़ों पर दबाव डाल रहा है। इसका इलाज सिर्फ एक ही है—ओपन हार्ट सर्जरी। और यह सर्जरी यहां नहीं हो सकती। इसके लिए तुम्हें चंडीगढ़ या लुधियाना के किसी बड़े हॉस्पिटल जाना होगा।
एक डॉक्टर ने धीरे से कहा, “गुरवचन, इसमें खर्चा बहुत आएगा। कोई 10-12 लाख का इंतजाम करके चलना।”
यह रकम सुनकर गुरवचन को लगा जैसे किसी ने उसके कानों में पिघला हुआ शीशा डाल दिया हो। बाढ़ के बाद वह पहले ही कर्ज में डूबा हुआ था। उसके पास घर में ₹10,000 भी नहीं थे। पर यह उसके बेटे की जिंदगी का सवाल था। उसने गांव लौटकर अपनी पगड़ी गांव के सरपंच के पैरों में रख दी। अपनी जमीन का एक बड़ा हिस्सा गांव के जमींदार के पास ओने-पौने दामों में गिरवी रख दिया। अपनी प्रिय गाय, जिसे वह बेटी की तरह मानता था, उसे भी बेच दिया। दोस्तों-रिश्तेदारों से उधार लिया। दिन-रात एक करके अपनी इज्जत, अपना स्वाभिमान सब कुछ दांव पर लगाकर वह किसी तरह कुछ लाख इकट्ठा कर पाया। उसे पता था कि यह रकम ऊंट के मुंह में जीरे के बराबर है, पर उसे वाहेगुरु पर भरोसा था।
अस्पताल की दहलीज पर किसान की परीक्षा
गुरवचन जस्से को लेकर चंडीगढ़ के लिए निकल पड़ा। शहर के सबसे अच्छे और सबसे बड़े हार्ट हॉस्पिटल—गौरव हार्ट इंस्टिट्यूट पहुंचा। शीशे की बनी आलीशान इमारत को देखकर ही घबरा गया। यह हॉस्पिटल किसी पांच सितारा होटल जैसा लग रहा था—एयर कंडीशन की ठंडी हवा, साफ-सुथरे गलियारे और महंगे कपड़ों में आते-जाते अमीर लोग।
गुरवचन को अपनी फटी हुई कमीज और पैरों की टूटी हुई जूतियों पर शर्म आने लगी। वह अपने बीमार बेटे को गोद में उठाए एक कोने में सहमा हुआ खड़ा था। लंबे इंतजार और कई काउंटरों पर धक्के खाने के बाद आखिरकार उसे एक जूनियर डॉक्टर ने देखा। जांच की रिपोर्ट देखकर डॉक्टर ने कहा, “बच्चे को फौरन भर्ती करना होगा। ऑपरेशन कल ही करना पड़ेगा। आप काउंटर नंबर चार पर जाकर ₹5 लाख जमा करवा दीजिए।”
गुरवचन के हाथ-पैर ठंडे पड़ गए। “साहब, मेरे पास तो सिर्फ ₹2 लाख हैं। मैं गरीब किसान हूं साहब। मैं बाकी के पैसे…”
“तो फिर अपने बेटे को किसी सरकारी अस्पताल ले जाओ। यहां अमीरों का इलाज होता है, गरीबों का नहीं।”
काउंटर पर बैठे क्लर्क ने बड़ी बेरुखी से जवाब दिया।
गुरवचन की आंखों के आगे अंधेरा छा गया। वह अपने बेटे को मरने के लिए नहीं छोड़ सकता था। वह गिड़गिड़ाने लगा, मिन्नतें करने लगा। पर उस पत्थर की इमारत में किसी का दिल नहीं पसीजा। वह थक-हारकर अपने बेटे को गोद में लिए हॉस्पिटल के गलियारे में एक बेंच पर बैठ गया। उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। “हे रब, यह कैसी परीक्षा ले रहा है तू? मैंने तो कभी किसी का बुरा नहीं किया…”
वह अपनी जेब में हाथ डालकर अपनी पगड़ी का कपड़ा ठीक कर रहा था कि उसके हाथ में एक पुराना सा कार्ड आया। वह वही विजिटिंग कार्ड था जो उस बाढ़ में फंसे डॉक्टर ने उसे दिया था। गुरवचन ने इतने महीनों से उसे संभाल कर रखा था। उसने कार्ड पर लिखे नाम को पढ़ने की कोशिश की—डॉ. आशीष गौरव। और फिर उसकी नजरें हॉस्पिटल की डिटेल पर पड़ी—गौरव हार्ट इंस्टिट्यूट, चंडीगढ़।
गुरवचन की आंखें फटी की फटी रह गईं। उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ। यह तो वही डॉक्टर साहब हैं और यह उन्हीं का अस्पताल है!
किस्मत का पलटवार
गुरवचन अपने बेटे को वही बेंच पर लिटाकर वह कार्ड हाथ में लिए पागलों की तरह हॉस्पिटल के सबसे बड़े कैबिन की तरफ भागा, जिसके बाहर डॉक्टर आशीष गौरव की नेमप्लेट लगी हुई थी। केबिन के बाहर खड़ी सेक्रेटरी ने उसे रोकने की कोशिश की—“किससे मिलना है? क्या अपॉइंटमेंट है?”
“नहीं है जी, पर मिलना बहुत जरूरी है। मुझे डॉक्टर साहब को सिर्फ यह कार्ड दिखाना है।”
सेक्रेटरी उसे भगाने ही वाली थी कि तभी कैबिन का दरवाजा खुला और डॉक्टर आशीष गौरव खुद बाहर निकले। आज वह उस बाढ़ में फंसे लाचार आदमी नहीं, बल्कि आत्मविश्वास से भरे चीफ सर्जन लग रहे थे। उन्होंने गुरवचन को देखा, पर शायद पहचाना नहीं।
गुरवचन ने अपनी पूरी हिम्मत जुटाई और आगे बढ़कर बोला, “डॉक्टर साहब… बाढ़… सतलुज नदी… मेरा ट्रैक्टर…”
यह तीन शब्द सुनकर डॉक्टर आशीष गौरव के कदम वहीं जम गए। उन्होंने गुरवचन के चेहरे को गौर से देखा—पगड़ी, दाढ़ी, आंखों की वही सच्चाई। उन्हें सब कुछ याद आ गया।
“गुरवचन सिंह! तुम… तुम यहां इस हालत में?” उनकी आवाज में हैरानी और शर्मिंदगी का मिलाजुला भाव था।
गुरवचन की आंखों से आंसू बह निकले, “साहब, मेरा बेटा… मेरा जस्सा… उसके दिल में…”
डॉक्टर गौरव ने उसकी बात पूरी होने से पहले ही उसका हाथ पकड़ लिया, “कहां है वो?”
जब गुरवचन ने उसे बेंच पर लेटे हुए जस्से को दिखाया, तो डॉक्टर गौरव का दिल बैठ गया। उन्होंने जस्से की सांसें और धड़कनें चेक कीं—मामला सच में गंभीर था। उन्होंने तुरंत अपने स्टाफ को आवाज दी, “इस बच्चे को फौरन मेरे प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट करो। सारे टेस्ट दोबारा करो। मैं खुद इस केस को देखूंगा।”
हॉस्पिटल का पूरा स्टाफ हैरान था कि चीफ सर्जन खुद एक गरीब किसान के बेटे में इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहे हैं। कुछ ही मिनटों में जस्सा हॉस्पिटल के सबसे अच्छे कमरे में था और डॉक्टरों की पूरी टीम उसकी जांच में लगी हुई थी।
नेकी का फल: इंसानियत की जीत
डॉक्टर गौरव गुरवचन को अपने कैबिन में ले गए। उसे पानी पिलाया और कंधे पर हाथ रखा, “गुरवचन सिंह, तुमने उस दिन मुझसे कहा था कि तुम सौदा नहीं करते, पर आज मैं तुमसे एक सौदा करना चाहता हूं।”
गुरवचन ने हैरानी से उनकी तरफ देखा।
“उस दिन तुमने मेरी जान बचाई थी। आज मैं तुम्हारे बेटे की जान बचाऊंगा। यह सौदा मंजूर है?”
गुरवचन कुछ बोल नहीं पाया। वह बस हाथ जोड़कर रोता रहा।
उस रात डॉक्टर आशीष गौरव ने खुद अपनी टीम के साथ मिलकर जस्से का ऑपरेशन किया। वह एक बहुत ही जटिल और लंबा ऑपरेशन था, जो लगभग आठ घंटे तक चला। गुरवचन बाहर गुरुद्वारे के कोने में बैठकर वाहेगुरु से अपने बेटे की जिंदगी की अरदास कर रहा था।
सुबह के चार बजे जब ऑपरेशन थिएटर की लाइट बंद हुई और डॉक्टर गौरव बाहर निकले, तो उनके चेहरे पर थकान के साथ-साथ एक गहरी मुस्कान थी। उन्होंने गुरवचन को गले लगा लिया, “मुबारक हो गुरवचन सिंह। तुम्हारा जस्सा अब खतरे से बाहर है। वाहेगुरु ने हमारी सुन ली।”
गुरवचन की जिंदगी में वह सुबह एक नई जिंदगी लेकर आई थी। जस्सा धीरे-धीरे ठीक होने लगा। डॉक्टर गौरव और उनकी पत्नी रोज उससे मिलने आते, खिलौने और फल लाते और गुरवचन के साथ घंटों बातें करते। गुरवचन को उन्होंने हॉस्पिटल के गेस्ट हाउस में रुकवाया था, जहां उसका पूरा ख्याल रखा जा रहा था।
कृतज्ञता का असली अर्थ
एक हफ्ते बाद जब जस्से को हॉस्पिटल से छुट्टी मिलने वाली थी, तो अकाउंट्स डिपार्टमेंट से एक क्लर्क बिल लेकर गुरवचन के पास आया—बिल की रकम थी ₹1,65,000। गुरवचन का दिल एक बार फिर बैठने लगा। तभी डॉक्टर गौरव वहां आए। उन्होंने क्लर्क से बिल लिया और उसे फाड़कर कूड़ेदान में फेंक दिया।
गुरवचन हैरान रह गया, “साहब, आपने ये क्या किया?”
आशीष मुस्कुराए, “गुरवचन, मैंने तुम्हें कहा था ना—यह एक सौदा है। एक जान के बदले एक जान। हिसाब बराबर।”
“नहीं साहब, यह सही नहीं है। आपने मेरे बेटे का इलाज किया, यह बहुत बड़ा एहसान है। मैं अपनी जमीन बेचकर आपका पैसा…”
आशीष ने उसे बीच में ही रोक दिया, “गुरवचन, उस दिन बाढ़ के पानी में तुमने मुझे सिर्फ डूबने से नहीं बचाया था। तुमने मुझे अपनी इंसानियत के समंदर में डूबने से बचाया था। मैं अपनी जिंदगी में इतना मशगूल हो गया था कि मैं यह भूल ही गया था कि पैसे और शोहरत से बढ़कर भी कुछ होता है। तुमने मुझे फिर से इंसान बनाया। मैं तुम्हारा कर्जदार हूं, तुम मेरे नहीं।”
पर वह यहीं नहीं रुके। उन्होंने एक फाइल गुरवचन के हाथ में दी, “यह तुम्हारी गिरवी रखी हुई जमीन के कागज हैं। मैंने जमींदार को उसकी रकम चुकाकर यह जमीन छुड़ा ली है। आज से यह फिर से तुम्हारी हुई।”
यह देखकर गुरवचन की आंखों से अविरल धारा बह निकली। वह डॉक्टर गौरव के पैरों पर गिर पड़ा।
“उठो गुरवचन सिंह। पंजाबी किसी के पैरों पर नहीं गिरते, वे लोगों को गले लगाते हैं।”
उन्होंने गुरवचन को उठाया और कसकर गले से लगा लिया।
कहानी का अंत और संदेश
पर कहानी अभी खत्म नहीं हुई थी। डॉक्टर गौरव ने एक और घोषणा की, “गुरवचन, तुमने जो सेवा का रास्ता दिखाया है, मैं उसे आगे बढ़ाना चाहता हूं। आज से गौरव हार्ट इंस्टिट्यूट हर साल तुम्हारे गांव हरबंसपुरा में एक मुफ्त मेडिकल कैंप लगाएगा और गांव के किसी भी बच्चे के दिल का इलाज यहां मुफ्त में किया जाएगा।”
यह सुनकर गुरवचन को लगा जैसे आज उसे दुनिया की सारी दौलत मिल गई हो। उसकी एक छोटी सी निस्वार्थ सेवा ने न सिर्फ उसके बेटे की जान बचाई, बल्कि उसके पूरे गांव के हजारों बच्चों का भविष्य सुरक्षित कर दिया था।
जब गुरवचन अपने स्वस्थ बेटे जस्से के साथ वापस गांव लौटा, तो पूरा गांव उसके स्वागत के लिए उमड़ पड़ा था। अब वह सिर्फ एक किसान नहीं, पूरे गांव का हीरो था। उसने अपनी जमीन पर फिर से हल चलाना शुरू किया, पर अब उसके दिल में कोई बोझ नहीं था—सिर्फ एक गहरा संतोष और शुक्राना था।
सीख
गुरवचन सिंह की यह कहानी हमें सिखाती है कि जब आप बिना किसी स्वार्थ के किसी की मदद करते हैं, तो कायनात किसी न किसी तरीके से आपकी मदद करने के लिए आगे आती है। नेकी का फल हमेशा मीठा होता है, भले ही उसे पकने में थोड़ा वक्त लग जाए। सेवा और इंसानियत ही वह असली दौलत है, जो हर मुश्किल में हमारा साथ देती है।
समाप्त
News
अमीर आदमी ने गरीब बच्चे को गोद लिया, लेकिन उसके हाथ के निशान ने ऐसा राज खोला कि सब कुछ बदल गया!
अमीर आदमी ने गरीब बच्चे को गोद लिया, लेकिन उसके हाथ के निशान ने ऐसा राज खोला कि सब कुछ…
बीमार मां-बाप को छोड़ा था बेसहारा फिर किस्मत ने पलटी ऐसी बाज़ी, जानकर रूह कांप जाएगी!
बीमार मां-बाप को छोड़ा था बेसहारा फिर किस्मत ने पलटी ऐसी बाज़ी, जानकर रूह कांप जाएगी! “परिवार की विरासत –…
गरीब बुजुर्ग को एयरपोर्ट से धक्के देकर बाहर निकाला लेकिन फिर जो हुआ उसने सबको
गरीब बुजुर्ग को एयरपोर्ट से धक्के देकर बाहर निकाला लेकिन फिर जो हुआ उसने सबको “इंसानियत की उड़ान – रामदीन…
बुजुर्ग ने शादी में जाकर सिर्फ एक मिठाई ली… लोगों ने ताना मारा, लेकिन जब स्टेज पर
बुजुर्ग ने शादी में जाकर सिर्फ एक मिठाई ली… लोगों ने ताना मारा, लेकिन जब स्टेज पर “एक रसगुल्ले की…
जिस Bank में अपमान हुआ उसी बैंक को खरीदने पहुंच गया गरीब मजदूर सबके होश उड़ गए..
जिस Bank में अपमान हुआ उसी बैंक को खरीदने पहुंच गया गरीब मजदूर सबके होश उड़ गए.. कचरे से करोड़पति…
डाकिया हर महीने चिट्ठी लाता था – पर भेजने वाला कोई नहीं था – फिर जो हुआ
डाकिया हर महीने चिट्ठी लाता था – पर भेजने वाला कोई नहीं था – फिर जो हुआ “रिवाना सैनी –…
End of content
No more pages to load






