किसान ने बाढ़ में फंसे डॉक्टर की जान बचाई, कुछ माह के बाद किसान अपने बेटे को लेकर हॉस्पिटल गया तो

सेवा का फल: पंजाब के किसान और डॉक्टर की कहानी

प्रस्तावना

क्या होता है जब आप किसी की जान बचाने के लिए अपनी जान दांव पर लगा देते हैं और बदले में एक शुक्रिया तक की उम्मीद नहीं करते? क्या नेकी का फल सच में मिलता है? और अगर मिलता है तो क्या वह उस रूप में मिलता है जिसकी हम कल्पना करते हैं? यह कहानी है पंजाब के एक किसान गुरवचन सिंह की, जिसके लिए सेवा और इंसानियत उसके खून में थी। उसने उफती सतलुज नदी की लहरों से एक अजनबी शहरी बाबू की जान तो बचा ली, पर उसे नहीं पता था कि कुछ महीनों बाद किस्मत उसे उसी शहरी बाबू के आलीशान हॉस्पिटल के दरवाजे पर एक फरियादी बनाकर खड़ा कर देगी। जब उसके अपने बेटे की सांसे दांव पर लगी थीं और हॉस्पिटल का लाखों का बिल एक पहाड़ बनकर उसके सामने खड़ा था।

भाग 1: पंजाब की मिट्टी और गुरवचन सिंह

पंजाब, पांच नदियों की धरती। यहां की मिट्टी में सिर्फ गेहूं और धान ही नहीं, बल्कि मेहनत, हिम्मत और इंसानियत की फसल भी लहलहाती है। सतलुज नदी के किनारे बसा एक छोटा सा गांव था – पिंड हरबंसपुरा। इसी गांव में 40 साल का गुरवचन सिंह अपनी छोटी सी दुनिया में मग्न रहता था। उसकी पहचान उसकी ऊंची पगड़ी, चौड़े कंधे और खेतों की मिट्टी में रचे बसे हाथों से थी। वह एक सच्चा और खरा जाट था, जिसके लिए उसकी जमीन उसकी मां थी और उसकी पगड़ी उसकी इज्जत।

गुरवचन सिंह की पत्नी कुछ साल पहले लंबी बीमारी के बाद चल बसी थी। अब उसकी जिंदगी का एक ही सहारा और मकसद था – उसका 10 साल का बेटा जसप्रीत, जिसे सब प्यार से जस्सा कहते थे। जस्सा अपने बाबा की परछाई था। उसकी आंखों में वही चमक और बातों में वही सच्चाई थी। गुरवचन अपनी पूरी दुनिया अपने जस्से पर लुटाता था। उसका सपना था कि वह अपने बेटे को खूब पढ़ाएगा, ताकि उसे खेतों में हाड़तोड़ मेहनत न करनी पड़े।

गुरवचन के पास 15 एकड़ जमीन थी, जिस पर वह दिन-रात मेहनत करता। उसकी मेहनत और गांव वालों के प्रति उसके सेवाभाव के कारण पूरे इलाके में उसकी बहुत इज्जत थी। गांव में किसी के घर कोई मुश्किल हो, बेटी की शादी हो या किसी को खून की जरूरत हो, गुरवचन सिंह हमेशा सबसे आगे खड़ा मिलता। उसके लिए सेवा प्रमो धर्म सिर्फ कहने की बात नहीं, बल्कि जीने का तरीका था।

भाग 2: बाढ़ का कहर और सेवा का धर्म

उस साल मानसून जैसे आसमान से कहर बनकर बरसा था। लगातार तीन दिनों की बारिश ने सतलुज का सीना चीर दिया था। नदी का पानी विकराल रूप लेकर आसपास के गांवों में घुसने लगा था। हरबंसपुरा भी बाढ़ की चपेट में आ गया था। चारों तरफ पानी ही पानी था। लोगों के घर डूब रहे थे, मवेशी बह रहे थे और जिंदगी बचाने की चीख-पुकार मची हुई थी।

ऐसे मुश्किल समय में गुरवचन सिंह एक फरिश्ता बनकर सामने आया। उसने अपने पुराने पर मजबूत ट्रैक्टर को एक नाव की तरह बना लिया था। वह अपनी जान की परवाह किए बिना पानी के तेज बहाव में ट्रैक्टर चलाकर लोगों को, उनके बच्चों को और उनके मवेशियों को सुरक्षित ऊंची जगहों पर पहुंचा रहा था। उसने अपने घर के सारे अनाज और जमा पूंजी को गांव वालों के लिए खोल दिया था।

भाग 3: साहस की परीक्षा

बाढ़ का तीसरा दिन था। पानी का स्तर खतरनाक हद तक बढ़ चुका था। गुरवचन सुबह से ही बचाव के काम में लगा हुआ था। शाम ढल रही थी जब उसे गांव के बाहर शहर को जोड़ने वाली मुख्य सड़क की तरफ से किसी के चिल्लाने की आवाज आई। उसने देखा कि एक महंगी सी कार पानी के बहाव में फंसी हुई थी और तेजी से नदी की तरफ बही जा रही थी। कार के अंदर कोई था जो मदद के लिए हाथ-पैर मार रहा था।

यह देखकर गुरवचन के खून में उबाल आ गया। उसने एक पल भी नहीं सोचा। अपने ट्रैक्टर के पीछे बंधी मोटी रस्सी को कमर में लपेटा और ट्रैक्टर को पानी में उतार दिया। बहाव बहुत तेज था, ट्रैक्टर डगमगा रहा था। पर गुरवचन ने हिम्मत नहीं हारी। वह किसी तरह उस डूबती हुई कार के पास पहुंचा। कार का शीशा तोड़कर अंदर फंसे अधेड़ उम्र के व्यक्ति को बाहर निकाला। वह शहरी बाबू लग रहा था, कपड़े कीमती थे, सिर पर चोट लगी थी और लगभग बेहोश था।

गुरवचन ने उसे अपनी पीठ पर लादा, किसी तरह ट्रैक्टर तक पहुंचा, ट्रैक्टर पर लिटाया और खुद कमर तक पानी में चलकर ट्रैक्टर को धकेलता हुआ सुरक्षित जगह की ओर बढ़ने लगा। कई घंटों की मशक्कत के बाद जब वह उसे गांव के स्कूल की ऊंची इमारत में पहुंचा, जहां राहत शिविर लगा था, तो वह भी थकान से चूर हो चुका था।

गांव की औरतों ने उस शहरी बाबू की देखभाल की, सिर पर पट्टी बांधी, गर्म कपड़े दिए। गुरवचन ने अपने हिस्से का सूखा गुड़-चना उसे खिलाया। घंटे भर बाद उस व्यक्ति को होश आया। उसका नाम था डॉ. आशीष गौरव – चंडीगढ़ के सबसे बड़े और सबसे महंगे प्राइवेट हॉस्पिटल गौरव हार्ट इंस्टट्यूट का मालिक और देश का जाना-माना कार्डियक सर्जन।

भाग 4: कृतज्ञता और वादा

डॉ. गौरव पास के गांव में एक मेडिकल कैंप लगाने जा रहे थे, जब बाढ़ ने उन्हें घेर लिया। उन्होंने अपने चारों तरफ गरीब, बेबस गांववालों को देखा और फिर गुरवचन सिंह के साफ और नेक दिल चेहरे को देखा। उसकी आंखों में कृतज्ञता के आंसू आ गए। “भाई साहब, मैं आपका नाम नहीं जानता, पर आज आप नहीं होते तो मैं भी नहीं होता। आपने मेरी जान बचाई है। मैं आपका यह एहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगा।”

गुरवचन ने सादगी से कहा, “डॉक्टर साहब, एहसान कैसा? हम पंजाबी हैं। मुसीबत में फंसे किसी की मदद करना हमारा धर्म है। वाहेगुरु ने हमें आपकी जान बचाने का मौका दिया, यह हमारी खुशकिस्मती है।”

डॉक्टर गौरव जो हमेशा पैसे और हैसियत से चीजें तौलते थे, आज इस अनपढ़ किसान की बातों के सामने निशब्द थे। अगले दिन जब बचाव दल गांव पहुंचा तो डॉक्टर गौरव ने जाने से पहले अपना विजिटिंग कार्ड गुरवचन को दिया, “भाई साहब, यह मेरा कार्ड है। अगर जिंदगी में कभी भी कोई भी जरूरत पड़े तो बेझिझक फोन करना। मैं आपके लिए हमेशा खड़ा रहूंगा।”

गुरवचन ने वह कार्ड फटी हुई कमीज की जेब में रख लिया, सोचते हुए कि मुझ जैसे किसान को इतने बड़े डॉक्टर की क्या जरूरत पड़ेगी?

भाग 5: बाढ़ के बाद की जद्दोजहद

बाढ़ चली गई, पर अपने पीछे तबाही का निशान छोड़ गई। गुरवचन और गांववालों की जिंदगी फिर से पटरी पर लौटने की जद्दोजहद करने लगी। छह महीने बीत चुके थे। हरबंसपुरा के लोग धीरे-धीरे अपनी जिंदगी समेटने की कोशिश कर रहे थे। गुरवचन भी अपनी बर्बाद हुई फसल देखकर निराश तो हुआ, पर हिम्मत नहीं हारी। फिर से कर्ज लिया, नए बीज खरीदे और अपनी जमीन मां को फिर से हराभरा करने में जुट गया।

उसकी दुनिया अब भी जस्सा के इर्द-गिर्द घूमती थी। जस्सा गांव के बच्चों के साथ खेल रहा था, गुरवचन पास ही ट्रैक्टर की मरम्मत कर रहा था। अचानक बच्चों के चिल्लाने की आवाज आई, “गुरवचन चाचा, जस्सा गिर गया!” गुरवचन भागा, देखा जस्सा खेत की मेड पर बेहोश पड़ा था, शरीर नीला पड़ रहा था, सांसे बहुत धीमी चल रही थी।

भाग 6: चिंता, संघर्ष और उम्मीद

गुरवचन ने जस्सा को गोद में उठाया, गांव के हकीम के पास भागा। हकीम ने नब्ज देखी, “मामला गंभीर है, दिल की धड़कन बहुत कमजोर है, फौरन शहर के बड़े अस्पताल ले जा।” गुरवचन के पैरों तले जमीन खिसक गई। सरकारी अस्पताल गया, डॉक्टरों ने जांच की और बताया जस्से के दिल में जन्म से छेद है, अब बढ़ने लगा है, इलाज सिर्फ ओपन हार्ट सर्जरी और यह सर्जरी यहां नहीं हो सकती।

“चंडीगढ़ या लुधियाना के बड़े हॉस्पिटल जाना होगा, खर्चा बहुत आएगा, कोई 10-12 लाख का इंतजाम करके चलना।”
यह रकम सुनकर गुरवचन को लगा कानों में पिघला हुआ शीशा डाल दिया हो। बाढ़ के बाद पहले ही कर्ज में डूबा था, घर में ₹10,000 भी नहीं थे। पर यह बेटे की जिंदगी का सवाल था।

गांव लौटकर अपनी पगड़ी सरपंच के पैरों में रख दी, जमीन का बड़ा हिस्सा जमींदार के पास गिरवी रख दिया, प्रिय गाय बेच दी, रिश्तेदारों से उधार लिया, दिन-रात एक करके किसी तरह ₹ लाख इकट्ठा किए। पता था यह रकम ऊंट के मुंह में जीरे के बराबर है, पर वाहेगुरु पर भरोसा था। जस्सा को लेकर चंडीगढ़ के लिए निकल पड़ा।

भाग 7: शहर की चौखट पर किसान

चंडीगढ़ पहुंचकर शहर के सबसे अच्छे हार्ट हॉस्पिटल – गौरव हार्ट इंस्टट्यूट पहुँचा। शीशे की बनी आलीशान इमारत देखकर ही घबरा गया। हॉस्पिटल किसी पांच सितारा होटल जैसा लग रहा था। अंदर एयर कंडीशन की ठंडी हवा, साफ गलियारे, महंगे कपड़ों में अमीर लोग। अपनी फटी कमीज और टूटी जूतियों पर शर्माने लगा। बीमार बेटे को गोद में लिए एक कोने में सहमा खड़ा था।

लंबे इंतजार, कई काउंटरों पर धक्के खाने के बाद एक जूनियर डॉक्टर ने देखा। रिपोर्ट देखकर बोला, “बच्चे को फौरन भर्ती करना होगा, ऑपरेशन कल ही करना पड़ेगा। काउंटर नंबर चार पर जाकर ₹5 लाख जमा करवा दीजिए।”

गुरवचन के हाथ-पैर ठंडे पड़ गए, “साहब, मेरे पास तो सिर्फ ₹ लाख हैं, मैं गरीब किसान हूं।”
“तो अपने बेटे को सरकारी अस्पताल ले जाओ, यहां अमीरों का इलाज होता है, गरीबों का नहीं।”
काउंटर पर क्लर्क ने बेरुखी से जवाब दिया।

गुरवचन की आंखों के आगे अंधेरा छा गया। बेटे को मरने के लिए नहीं छोड़ सकता था। गिड़गिड़ाया, मिन्नतें कीं, पर पत्थर की इमारत में किसी का दिल नहीं पसीजा। थक-हारकर बेटे को गोद में लिए हॉस्पिटल के गलियारे में बेंच पर बैठ गया। आंसू बह रहे थे, वाहेगुरु को याद कर रहा था।

भाग 8: किस्मत का कार्ड

अपनी जेब में हाथ डालकर पगड़ी का कपड़ा ठीक कर रहा था, तभी हाथ में एक पुराना कार्ड आया। वही विजिटिंग कार्ड, जो बाढ़ में फंसे डॉक्टर ने दिया था। महीनों से संभाल कर रखा था। कार्ड पर लिखा – “डॉ. आशीष गौरव, चीफ कार्डियाक सर्जन, गौरव हार्ट इंस्टट्यूट, चंडीगढ़।”

गुरवचन की आंखें फटी की फटी रह गईं। यही तो वही डॉक्टर साहब हैं, यही उनका अस्पताल है। उम्मीद की नई किरण जागी। बेटे को वही बेंच पर लिटाकर, कार्ड को हाथ में लिए पागलों की तरह हॉस्पिटल के सबसे बड़े कैबिन की तरफ भागा, जहां “डॉ. आशीष गौरव” की नेमप्लेट लगी थी।

भाग 9: मिलन, पहचान और इंसानियत

केबिन के बाहर सेक्रेटरी ने रोकने की कोशिश की, “किससे मिलना है? अपॉइंटमेंट है?”
“नहीं है जी, पर मिलना बहुत जरूरी है। मुझे डॉक्टर साहब को सिर्फ यह कार्ड दिखाना है।”

सेक्रेटरी भगाने ही वाली थी, तभी कैबिन का दरवाजा खुला और डॉक्टर आशीष गौरव खुद बाहर निकले। आज वह बाढ़ में फंसे लाचार आदमी नहीं, बल्कि आत्मविश्वास से भरे चीफ सर्जन लग रहे थे। उन्होंने गुरवचन को देखा, शायद पहचाना नहीं।

गुरवचन ने पूरी हिम्मत जुटाई, “डॉक्टर साहब, बाढ़, सतलुज नदी, मेरा ट्रैक्टर…”
यह तीन शब्द सुनकर डॉक्टर गौरव के कदम वहीं जम गए। गुरवचन की पगड़ी, दाढ़ी, आंखों की वही सच्चाई। उन्हें सब याद आ गया।

“गुरवचन सिंह, तुम… तुम यहां इस हालत में…”
उनकी आवाज में हैरानी और शर्मिंदगी थी। गुरवचन की आंखों से आंसू बह निकले, “साहब, मेरा बेटा, मेरा जस्सा…”
डॉक्टर गौरव ने उसकी बात पूरी होने से पहले ही उसका हाथ पकड़ लिया, “कहां है वो?”

गुरवचन ने बेंच पर लेटे जस्से को दिखाया। डॉक्टर गौरव का दिल बैठ गया। जस्से की सांसे और धड़कनें चेक कीं, मामला गंभीर था। तुरंत स्टाफ को आवाज दी, “इस बच्चे को फौरन मेरे प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट करो। सारे टेस्ट दोबारा करो, मैं खुद केस देखूंगा।”

हॉस्पिटल का पूरा स्टाफ हैरान था कि चीफ सर्जन खुद एक गरीब किसान के बेटे में इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहे हैं। कुछ ही मिनटों में जस्सा हॉस्पिटल के सबसे अच्छे कमरे में था, डॉक्टरों की पूरी टीम उसकी जांच में लगी थी।

भाग 10: सेवा का सौदा

डॉक्टर गौरव ने गुरवचन को अपने कैबिन में ले जाकर पानी पिलाया, कंधे पर हाथ रखा। “गुरवचन सिंह, तुमने उस दिन मुझसे कहा था कि तुम सौदा नहीं करते, पर आज मैं तुमसे एक सौदा करना चाहता हूं। उस दिन तुमने मेरी जान बचाई थी, आज मैं तुम्हारे बेटे की जान बचाऊंगा। यह सौदा मंजूर है?”

गुरवचन कुछ बोल नहीं पाया, बस हाथ जोड़कर रोता रहा। उस रात डॉक्टर आशीष गौरव ने खुद अपनी टीम के साथ मिलकर जस्से का ऑपरेशन किया। बहुत ही जटिल और लंबा ऑपरेशन था, लगभग 8 घंटे चला। गुरवचन बाहर गुरुद्वारे के कोने में बैठकर वाहेगुरु से बेटे की जिंदगी की अरदास कर रहा था।

सुबह 4 बजे ऑपरेशन थिएटर की लाइट बंद हुई, डॉक्टर गौरव बाहर निकले, चेहरे पर थकान के साथ मुस्कान थी। “मुबारक हो गुरवचन सिंह, तुम्हारा जस्सा अब खतरे से बाहर है। वाहेगुरु ने हमारी सुन ली।”

भाग 11: कृतज्ञता, गांव और नई सुबह

जस्सा धीरे-धीरे ठीक होने लगा। डॉक्टर गौरव और उनकी पत्नी रोज मिलने आते, खिलौने और फल लाते, गुरवचन के साथ बातें करते। हॉस्पिटल के गेस्ट हाउस में रुकवाया, पूरा ख्याल रखा। एक हफ्ते बाद जब जस्से को हॉस्पिटल से छुट्टी मिलने वाली थी, अकाउंट्स डिपार्टमेंट से क्लर्क बिल लेकर आया – ₹1,65,000।

गुरवचन का दिल फिर बैठने लगा, समझ नहीं आया कैसे चुकाएगा। तभी डॉक्टर गौरव आए, क्लर्क से बिल लिया, फाड़कर कूड़ेदान में फेंक दिया।

“साहब, यह आपने क्या किया?”
“गुरवचन, मैंने तुमसे कहा था ना, यह एक सौदा है। एक जान के बदले एक जान, हिसाब बराबर।”

“नहीं साहब, आपने मेरे बेटे का इलाज किया, यह बहुत बड़ा एहसान है। मैं अपनी जमीन बेचकर आपका पैसा…”
आशीष ने बीच में रोक दिया, “गुरवचन, उस दिन बाढ़ के पानी में तुमने मुझे सिर्फ डूबने से नहीं बचाया था, तुमने मुझे अपनी इंसानियत के समंदर में डूबने से बचाया था। मैं अपनी जिंदगी में इतना मशगूल हो गया था कि भूल गया पैसे और शोहरत से बढ़कर भी कुछ होता है। तुमने मुझे फिर से इंसान बनाया। मैं तुम्हारा कर्जदार हूं, तुम मेरे नहीं।”

भाग 12: सेवा का विस्तार और गांव की खुशहाली

डॉक्टर गौरव ने एक फाइल गुरवचन के हाथ में दी, “यह तुम्हारी गिरवी रखी जमीन के कागज हैं। मैंने जमींदार को रकम चुकाकर जमीन छुड़ा ली है, आज से यह फिर से तुम्हारी हुई।”

गुरवचन की आंखों से अविरल धारा बह निकली, डॉक्टर गौरव के पैरों पर गिर पड़ा। “उठो गुरवचन सिंह, पंजाबी किसी के पैरों पर नहीं गिरते, वे लोगों को गले लगाते हैं।”
गले लगाया, पर कहानी यहीं नहीं रुकी।

डॉक्टर गौरव ने घोषणा की, “गुरवचन, तुमने जो सेवा का रास्ता दिखाया है, मैं उसे आगे बढ़ाना चाहता हूं। आज से गौरव हार्ट इंस्टट्यूट हर साल तुम्हारे गांव हरबंसपुरा में मुफ्त मेडिकल कैंप लगाएगा और गांव के किसी भी बच्चे के दिल का इलाज यहां मुफ्त में किया जाएगा।”

गुरवचन को लगा जैसे आज उसे दुनिया की सारी दौलत मिल गई हो। उसकी एक छोटी सी निस्वार्थ सेवा ने ना सिर्फ उसके बेटे की जान बचाई, बल्कि पूरे गांव के हजारों बच्चों का भविष्य सुरक्षित कर दिया था।

भाग 13: गांव की वापसी और संतोष

गुरवचन स्वस्थ बेटे जस्से के साथ वापस गांव लौटा, पूरा गांव स्वागत के लिए उमड़ पड़ा। वह सिर्फ किसान नहीं, पूरे गांव का हीरो था। उसने अपनी जमीन पर फिर से हल चलाना शुरू किया, पर अब दिल में कोई बोझ नहीं था, सिर्फ संतोष और शुक्राना था।

सीख और समापन

गुरवचन सिंह की कहानी हमें सिखाती है कि जब आप बिना स्वार्थ के किसी की मदद करते हैं, तो कायनात किसी ना किसी तरीके से आपकी मदद करने के लिए आगे आती है। नेकी का फल हमेशा मीठा होता है, भले ही उसे पकने में थोड़ा वक्त लग जाए। सेवा और इंसानियत ही असली दौलत है, जो हर मुश्किल में साथ देती है।

अगर इस कहानी ने आपके दिल में उम्मीद की एक नई रोशनी जलाई है तो इसे जरूर साझा करें। सेवा का यह संदेश हर इंसान तक पहुंचे।

धन्यवाद!