कुली बनकर भाई ने अनाथ बहन को बनाया डॉक्टर , बहन ने डॉक्टर बनकर दिया ऐसा तोहफा की सब लोग रो पड़े

शुरुआत: भाई की ममता, बहन का सपना

एक भाई अपनी बहन के सपनों को सच करने के लिए कितनी दूर जा सकता है? क्या वह अपनी खुशी, अपनी जवानी, अपना अस्तित्व भी दांव पर लगा सकता है? यह कहानी है प्रेम की — एक ऐसे अनाथ युवक की, जिसने अपनी छोटी बहन पूजा के डॉक्टर बनने के सपने को जिंदा रखने के लिए अपनी सारी आकांक्षाओं का गला घोंट दिया, और खुद कुली बन गया। उसने पांच साल तक सिर्फ सामान ही नहीं, अपनी बहन के भविष्य का बोझ भी अपने कंधों पर उठाया।

मध्यप्रदेश के एक छोटे-से कस्बे, इटारसी की तंग गलियों में प्रेम और पूजा रहते थे। दो साल पहले एक सड़क हादसे में उनके माता-पिता का साया सिर से उठ गया था। उस वक्त प्रेम महज 18 और पूजा 16 की थी। कुछ दिनों तक रिश्तेदारों ने सहानुभूति दिखाई, पर जल्द ही वे अकेले रह गए। अब प्रेम की जिम्मेदारी थी — सिर्फ भाई ही नहीं, मां बाप दोनों का फर्ज उठाना।

उनके पिता मामूली सरकारी क्लर्क थे; पीछे बस एक टूटा-फूटा मकान और कुछ रुपयों की बचत छोड़ गये थे। प्रेम खुद होशियार था, इंजीनियर बनकर घर की गरीबी मिटाना चाहता था। मगर अब बहन पूजा की पढ़ाई उससे ज्यादा जरूरी थी। पूजा के दिल में डॉक्टर बनने का सपना था, जिससे वह गरीबों का इलाज मुफ्त में कर सके — ताकि पैसों के आगे किसी की जान न जाए, जैसा कि उनके माता-पिता के साथ हुआ।

सपनों के लिए संघर्ष

प्रेम ने फैसला किया कि वह अपनी पढ़ाई छोड़ देगा। पूजा ने बार-बार मना किया, बोली—”मैं भी पढ़ाई छोड़ देती हूँ, दोनों मिलकर कोई काम करेंगे।” लेकिन प्रेम ने उसे समझाया – “तू डॉक्टर बनना ही मां-बाबूजी और मेरा सपना भी है, मैं संभाल लूंगा।”

पूजा ने 12वीं अच्छे अंकों से पास की और भोपाल के प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिल गया। पर अब परेशानी थी – बड़ी फीस, किताबें, हॉस्टल का खर्चा… इतनी बड़ी रकम का इंतजाम प्रेम के बस से बाहर था। सारे पैसे एडमिशन और कुछ महीनों की फीस में खत्म हो गए, खाने-रहने का संकट खड़ा हो गया।

एक भाई की तपस्या

प्रेम, पूजा के साथ भोपाल आ गया। बिना डिग्री काम मिलना नामुमकिन था। हर कोशिश नाकाम होती रही। एक दिन स्टेशन पर बैठा वह कुलियों को देखता रहा—लाल वर्दी में, सिर झुकाए, लोगों का बोझ उठाते। प्रेम ने सारी शर्म छोड़ दी और कुली बन गया। वह पूजा से छिपाकर रोज़ कुली का काम करता, पूजा से कहता—”ऑफिस में चपरासी हूँ।”

सुबह भोर में उठकर वह पूजा के लिए खाना बनाता, फिर स्टेशन चला जाता। दिनभर भीड़, धक्का-मुक्की, भारी सामान और ताने सुनते-सुनते उसकी जवानी गुजरने लगी। हाथ कठोर हो गए, पीठ दुखने लगी। मगर जब पूजा के चेहरे पर पढ़ाई की चमक देखता, सारी थकन मिट जाती। पैसे जोड़ता रहा, कभी खुद भूखा सो जाता, पूजा के लिए दूध-फल लाना नहीं भूलता।

पूजा को पता नहीं था कि उसका भाई क्या संघर्ष कर रहा है। उसे बस एक मेहनती, प्यार करने वाला भाई नजर आता था।

पूजा की कामयाबी का दिन

पांच साल गुजर गए। प्रेम के लिए वो पांच साल किसी युग से कम नहीं थे। उसकी मेहनत रंग लाई – पूजा डॉक्टर बन गई, क्लास में गोल्ड मेडल मिला और दिल्ली के नामी अस्पताल में नौकरी लग गई।

जाने का दिन आया—भोपाल रेलवे स्टेशन। प्रेम लाल वर्दी पहनकर, बिल्ला नंबर 786 लगाए, पहली बार अपनी सच्चाई के साथ पूजा के साथ खड़ा था। कुछ दिन पहले जब पूजा को उसकी सच्चाई पता चली, तो वो फूट फूटकर रो पड़ी—”भैया, आपने मेरी वजह से अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर ली।” प्रेम ने कहा — “पगली! मैंने सब पा लिया, तेरा डॉक्टर बनना ही मेरा सपना था। यही असली खुशी है।”

स्टेशन पर उसके कुली दोस्त खड़े थे, सब गर्वित थे कि उनकी बेटी डॉक्टर बन गई।

एक बहन का खास तोहफा

ट्रेन चली, विदाई का वक्त आया। पूजा रोते हुए प्रेम को गले लगाकर बोली—”आप अकेले कैसे रहेंगे, भैया?” प्रेम भी रोना चाहता था, पर खुद को संभाला—”खुश हो! तेरी कामयाबी मेरे साथ है।”

पूजा ट्रेन में चढ़ने लगी, फिर रुकी। भाई के पास आई। आंखों में आंसू, होंठों पर दृढ़ता—”मैं हमेशा आपसे लेती रही…आज मेरी बारी है… मेरी पहली तनख्वाह का तोहफा!” उसने अपने बैग से एक पैकेट निकाला—नया, सफेद डॉक्टर का कोट। प्रेम हैरान। पूजा ने कोट प्रेम को उसकी कुली की पुरानी वर्दी के ऊपर पहना दिया।

फिर उसने जेब पर लगी नेमप्लेट की ओर इशारा किया। पढ़ा— “डॉक्टर प्रेम कुमार”

पूजा ने सबके सामने घोषणा की— “आज मैं अपने असली डॉक्टर से आपको मिलवा रही हूँ। इन्होंने मेरी टूटती उम्मीदों का इलाज किया, ये कुली नहीं — मेरे डॉक्टर हैं। मैंने जो भी इलाज किया, उसकी खुशी, उसका पुण्य मेरे डॉक्टर भैया के नाम रहेगा।”

यह सुनकर, पूरा स्टेशन सुबक उठा। प्रेम प्लेटफॉर्म पर बैठकर बच्चों की तरह रो पड़ा। उसके कुली दोस्त भी बहन के असली तोहफे पर रोने लगे। ट्रेन का हर यात्री भावुक हो गया। प्रेम अपने नाम वाले कोट को देखता रहा—जो इज़्ज़त, नाम, पहचान उसने खो दी थी, आज बहन ने सारा लौटाया। दुनिया की सारी दौलत उस कोट के सामने छोटी थी।

सीख

त्याग कभी व्यर्थ नहीं जाता। भाई-बहन का रिश्ता दुनिया का सबसे अनमोल रिश्ता है। अगर कहानी ने आपके दिल में प्यार, सम्मान जगाया तो लाइक व शेयर करें। आपको कहानी का सबसे खूबसूरत पल कौन सा लगा? जरूर बताएं!

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