कुली बनकर भाई ने अनाथ बहन को बनाया डॉक्टर , बहन ने डॉक्टर बनकर दिया ऐसा तोहफा की सब लोग रो पड़े

त्याग का अनमोल तोहफा – प्रेम और पूजा की कहानी

मध्य प्रदेश के छोटे से कस्बे इटारसी की तंग गलियों में, रेलवे पटरियों के शोर के बीच, दो अनाथ भाई-बहन रहते थे – प्रेम और पूजा।
दो साल पहले एक सड़क हादसे में उनके माता-पिता का साया सिर से उठ गया। उस वक्त प्रेम सिर्फ 18 साल का था और पूजा 16 की।
रिश्तेदारों ने कुछ दिन हमदर्दी दिखाई, फिर सबने अपना पल्ला झाड़ लिया। अब प्रेम ही अपनी छोटी बहन का सबकुछ था – मां भी, बाप भी।

उनके पिता एक मामूली सरकारी क्लर्क थे, जो बस एक छोटा सा कच्चा मकान और थोड़ी सी बचत छोड़ गए थे।
प्रेम पढ़ाई में बहुत होशियार था, इंजीनियर बनकर गरीबी दूर करना चाहता था।
पर हालात बदल चुके थे – अब उसकी अपनी पढ़ाई से ज्यादा जरूरी थी पूजा की पढ़ाई।

पूजा अपने स्कूल की सबसे होशियार लड़की थी, उसकी आंखों में डॉक्टर बनने का सपना था।
वह कहती थी, “भैया, मैं डॉक्टर बनकर गरीबों का मुफ्त इलाज करूंगी, ताकि पैसे की कमी से किसी की जान ना जाए। जैसे हमारे मां-बाप की चली गई।”
अब पूजा का सपना ही प्रेम का मकसद बन गया।

प्रेम ने फैसला किया – अपनी पढ़ाई छोड़ देगा, कोई भी काम करेगा ताकि पूजा की पढ़ाई में रुकावट ना आए।
पूजा ने 12वीं अच्छे नंबरों से पास की और भोपाल के बड़े मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिल गया।
यह खबर खुशी के साथ-साथ चिंता लेकर आई – मेडिकल की पढ़ाई बहुत महंगी थी।
फीस, किताबें, हॉस्टल – सब मिलाकर बड़ी रकम थी, जिसका इंतजाम करना प्रेम के बस में नहीं था।

पूजा ने भाई की परेशानी समझी, कहा “भैया, मैं पढ़ाई छोड़ देती हूं, हम दोनों मिलकर घर चलाएंगे।”
प्रेम का दिल टूट गया। उसने पूजा के आंसू पोंछे, “नहीं पगली, तू डॉक्टर जरूर बनेगी। यह सिर्फ तेरा नहीं, मां-बाबूजी का भी सपना है। मैं हूं ना, सब संभाल लूंगा।”

प्रेम ने कस्बा छोड़ दिया, पूजा के साथ भोपाल आ गया।
बड़े शहर में बिना डिग्री के कोई ढंग का काम नहीं मिला।
जो पैसे थे, पूजा के दाखिले और कुछ महीने की फीस में ही खत्म हो गए।
अब खाने-रहने का संकट खड़ा हो गया।

प्रेम ने रेलवे स्टेशन के पास एक छोटी सी खोली किराए पर ले ली।
वह सुबह से शाम तक काम की तलाश में भटकता, हर जगह से निराशा मिलती।
एक दिन स्टेशन पर बैठा था, लाल वर्दी पहने कुलियों को देखा – भारी सामान उठाकर पैसे कमा रहे थे।
प्रेम ने अपनी इज्जत-शर्म को एक तरफ रखा, कुली का काम शुरू कर दिया।
जो लड़का इंजीनियर बनने का सपना देखता था, अब अपनी पीठ पर लोगों का बोझ उठा रहा था।

यह बात उसने पूजा से छिपाई।
रोज सुबह पूजा के कॉलेज जाने के बाद लाल वर्दी पहनकर स्टेशन चला जाता, उसके आने से पहले वापस आ जाता।
पूजा से कहता – “मुझे ऑफिस में चपरासी का काम मिल गया है।”

प्रेम की जिंदगी अब कठिन संघर्ष बन चुकी थी।
सुबह सूरज निकलने से पहले उठता, पूजा के लिए नाश्ता बनाता, फिर स्टेशन की ओर दौड़ पड़ता।
दिनभर ट्रेनों की भीड़, लोगों की धक्का-मुक्की, भारी सूटकेसों का बोझ।
कभी कोई यात्री प्यार से बात करता, कभी दुत्कार देता।
शाम को थका-हारा लौटता, शरीर दर्द से टूटता।
मुलायम हाथ अब कठोर हो गए थे, पीठ में हर वक्त दर्द रहता।

पर जब पूजा के चेहरे पर पढ़ाई का संतोष और आंखों में डॉक्टर बनने की चमक देखता, सारी तकलीफें भूल जाता।
दिनभर की कमाई से पाई-पाई जोड़ता, ताकि पूजा की फीस जमा हो सके।
अक्सर खुद भूखा सो जाता, पर पूजा के लिए फल या दूध लाना नहीं भूलता।

कभी पूजा पूछती – “भैया, आप इतने थके क्यों लगते हैं?”
वह हंसकर कहता – “ऑफिस में काम बहुत है ना, इसलिए।”

पूजा को अपने भाई पर गर्व था, पर उसके मौन त्याग से अनजान थी।
वह अपनी पढ़ाई में डूब गई थी, उसे भाई के चेहरे की थकान और हाथों की कठोरता पर ध्यान देने का वक्त नहीं मिला।

5 साल बीत गए।
यह 5 साल प्रेम के लिए पांच युगों जैसे थे।
उसकी जवानी स्टेशन की पटरियों पर बोझ उठाते हुए गुजर गई।

पर उसकी तपस्या सफल हुई।
पूजा अब डॉक्टर बन चुकी थी।
क्लास में गोल्ड मेडल जीता, दिल्ली के बड़े अस्पताल में नौकरी मिल गई।

आज वह दिन था जब पूजा को दिल्ली के लिए रवाना होना था।
प्रेम अपनी बहन की कामयाबी पर बहुत खुश था।
कई महीनों की बचत से पूजा के लिए नया सूटकेस और कपड़े खरीदे थे।

भोपाल का वही रेलवे स्टेशन, जहां प्रेम ने 5 साल गुजारे थे, आज एक नई कहानी का गवाह बनने वाला था।
प्लेटफार्म नंबर एक पर दिल्ली जाने वाली ट्रेन लगी थी।
प्रेम अपनी कुली की लाल वर्दी – बिल्ला नंबर 786 – पहने, बहन के साथ खड़ा था।
आज पहली बार वह पूजा के सामने अपनी असली पहचान के साथ था।

कुछ दिन पहले जब पूजा को उसकी सच्चाई पता चली, वह कई दिनों तक रोती रही।
अपने भाई के पैरों पर गिर पड़ी – “मेरी वजह से भैया ने अपनी जिंदगी बर्बाद कर ली।”
प्रेम ने समझाया – “मेरी जिंदगी बर्बाद नहीं, आबाद हुई है। मैंने अपनी आंखों से अपना सपना पूरा होते देखा है।”

स्टेशन पर प्रेम के कुली दोस्त भी खड़े थे।
वे सब पूजा को अपनी बेटी मानते थे, उसकी कामयाबी पर गर्व महसूस कर रहे थे।

ट्रेन की सीटी बजी, विदाई का समय आ गया।
पूजा अपने भाई के गले लगकर फूट-फूट कर रो रही थी – “भैया, अपना ख्याल रखना। मुझे छोड़कर आप अकेले कैसे रहोगे?”
प्रेम का दिल भी रो रहा था, पर उसने आंखों में आंसू नहीं आने दिए।
“पगली, तू रो क्यों रही है? तुझे खुश होना चाहिए। देख, आज तू कितनी बड़ी डॉक्टर बन गई है। और मैं अकेला कहां हूं? तेरी यादें और तेरी कामयाबी हमेशा मेरे साथ रहेंगी।”

पूजा ट्रेन में चढ़ने के लिए आगे बढ़ी, पर अचानक रुकी।
वापस भाई के पास आई, आंखों में आंसू थे, पर चेहरे पर निश्चय।
“भैया, मैं हमेशा आपसे लेती ही आई हूं। आज मैं आपको एक छोटा सा तोहफा देना चाहती हूं – मेरी पहली तनख्वाह।”

प्रेम ने मना कर दिया – “नहीं पूजा, मुझे कुछ नहीं चाहिए। तेरा डॉक्टर बनना ही मेरा सबसे बड़ा तोहफा है।”
पूजा ने कहा – “नहीं भैया, यह तोहफा आपको लेना ही पड़ेगा। यह मामूली नहीं है।”

उसने बैग से एक पैकेट निकाला, खोला।
अंदर एक बिल्कुल नया डॉक्टर का कोट था – वही कोट जिसे पहनकर डॉक्टर मरीजों का इलाज करते हैं।
प्रेम कुछ समझ नहीं पाया – “यह क्या है पूजा?”

पूजा ने कोट लिया और अपने भाई प्रेम को उसकी पसीने से भीगी कुली की वर्दी के ऊपर ही पहना दिया।
फिर उसने जो किया और कहा, उसे सुनकर वहां मौजूद हर इंसान रो पड़ा।

पूजा ने उस कोट की जेब पर लगी नेमप्लेट की ओर इशारा किया।
उस पर नाम लिखा था – “डॉक्टर प्रेम कुमार कुली, 786”

प्रेम की आंखें फटी रह गईं, वह कांप उठा।
पूजा ने भाई का हाथ पकड़ा और कांपती, पर बुलंद आवाज में सैकड़ों यात्रियों के सामने बोलना शुरू किया।
“आप सब लोग शायद मुझे डॉक्टर पूजा के नाम से जानते हैं। पर आज मैं आप सबको अपने असली डॉक्टर से मिलवाना चाहती हूं।
यह हैं मेरे असली डॉक्टर – मेरे भैया डॉक्टर प्रेम कुमार।
यह वह डॉक्टर हैं जिन्होंने मेरी टूटी उम्मीदों का इलाज किया।
इन्होंने अपनी हर सांस, हर पसीने की बूंद से मेरी पढ़ाई की फीस भरी।
यह सिर्फ कुली नहीं हैं – इन्होंने मेरी पीठ पर सिर्फ सामान नहीं, मेरे भविष्य और सपनों का बोझ उठाया है।
आज से मैं जिस भी मरीज का इलाज करूंगी, जिस भी इंसान की जान बचाऊंगी, उसका पुण्य, उसका श्रेय इस नाम को जाएगा – डॉक्टर प्रेम कुमार कुली, 786
यह डिग्री, यह कोट सब इनका है। मैं तो बस इनकी प्रतिनिधि हूं।”

प्रेम खुद को रोक नहीं सका।
वह प्लेटफार्म पर बैठकर बच्चों की तरह रोने लगा।
उसके कुली दोस्त, जिन्होंने उसे दिन-रात मेहनत करते देखा था, वे भी अपने आंसू नहीं रोक पाए।
ट्रेन में बैठे और प्लेटफार्म पर खड़े हर यात्री की आंखें नम थीं।

उस दिन उस स्टेशन पर एक अजीब सा माहौल था।
कोई शोर नहीं था, सिर्फ सिसकियां थीं – एक भाई के लिए बहन के अटूट प्यार और सम्मान की खामोश दास्तान।

ट्रेन धीरे-धीरे चलने लगी।
पूजा हाथ जोड़कर अपने भाई को देख रही थी।
प्रेम अपनी लाल वर्दी के ऊपर पहने उस सफेद कोट को देख रहा था।
उस पर लिखा अपना नाम पढ़ रहा था – “डॉक्टर प्रेम कुमार”
आज उसे वह सब कुछ मिल गया था, जो उसने खो दिया था – नाम, सम्मान, पहचान।

उसकी बहन ने उसे ऐसा तोहफा दिया था, जो दुनिया की हर दौलत से ज्यादा कीमती था।

सीख:
त्याग कभी व्यर्थ नहीं जाता।
भाई-बहन का रिश्ता दुनिया का सबसे अनमोल और पवित्र रिश्ता है।

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समाप्त