कॉलेज की अधूरी मोहब्बत… सड़क किनारे जलेबी बेचती मिली… आगे जो हुआ, रुला देगा

कॉलेज की अधूरी मोहब्बत – सड़क किनारे जलेबी

जयपुर, गुलाबी शहर। हलचल भरी शाम थी, सड़क किनारे ठेले पर जलेबी की खुशबू हवा में घुल रही थी। रवि, एक सफल बिजनेसमैन, अपनी चमचमाती गाड़ी में बैठा देसी खाने की तलाश में था। उसकी नजर एक छोटे से ठेले पर गई, जहां एक लड़की सादे कपड़ों में, सिर पर दुपट्टा लिए, बड़ी सादगी से ग्राहकों को जलेबी परोस रही थी। उसकी मुस्कान में जैसे कोई अनकही कहानी छुपी थी – वो अपने जीवन का एक हिस्सा परोस रही थी।

रवि ने गाड़ी रोकी, स्टूल पर बैठ गया और मुस्कुराकर बोला, “मैडम, एक प्लेट जलेबी बना दीजिए, जल्दी।” लड़की ने सिर हिलाया, गरमा गरम जलेबी को चाशनी में डुबोते हुए प्लेट में सजाने लगी। रवि उसकी सादगी में खो गया। जैसे ही उसकी नजर लड़की के चेहरे पर पड़ी, उसका दिल धक से रह गया। वो चेहरा… वही चेहरा जिसने कॉलेज के दिनों में उसकी हर सुबह को रंगीन बना दिया था। रवि की सांसें थम सी गईं। कॉलेज की कैंटीन, उसकी हंसी, उसकी बातें – सब यादें तैरने लगीं।

खुद को संभालते हुए रवि ने धीरे से पूछा, “माफ कीजिए मैडम, मुझे लगता है मैं आपको जानता हूं। क्या आपका नाम प्रिया है?” लड़की के हाथ एक पल के लिए रुक गए। उसकी आवाज में हल्का सा डर था, जैसे कोई पुराना जख्म फिर से हरा होने वाला हो। “साहब, मैं तो साधारण लड़की हूं, आप कैसे जान सकते हैं?” रवि ने फिर पूछ लिया, “क्या आपका नाम प्रिया है?” लड़की ने धीमी आवाज में कहा, “जी, मेरा नाम प्रिया ही है। लेकिन आप कौन हैं?”

रवि ने मुस्कुराकर कहा, “मैं रवि हूं। तुम्हारी ही क्लास में पढ़ता था। वही रवि जो तुम्हें चुपके-चुपके देखा करता था।” प्रिया की आंखें चौड़ी हो गईं, उसने अपना चेहरा दुपट्टे से छुपाया। ठेले की चीजें ठीक करने लगी, लेकिन उसकी कांपती उंगलियां बेचैनी बयान कर रही थीं।

रवि ने नरम स्वर में पूछा, “प्रिया, तुम इस हाल में कैसे? कॉलेज में तो तुम सपनों में जीती थी। आज सड़क किनारे जलेबी बेचते देख मेरा दिल कांप रहा है। तुम्हारे साथ क्या हुआ?” प्रिया की आंखों से आंसू छलक पड़े। वो फूट-फूट कर रोने लगी। रवि ने धीरे से उसे संभाला, “प्रिया, प्लीज मुझे सब सच बता दो।”

प्रिया ने कांपती आवाज में कहा, “कॉलेज के बाद मेरे पिताजी ने मेरी शादी कर दी थी। मैं अपने पति के साथ बहुत खुश थी, लेकिन दो साल बाद उनकी बीमारी ने उन्हें मुझसे छीन लिया। उनके जाने के बाद ससुराल वालों ने मुझे घर से निकाल दिया, कहते थे – मेरा कोई बच्चा नहीं, मेरा वहां कोई काम नहीं। मायके लौटी, लेकिन वहां भैया-भाभी मुझे बोझ समझने लगे। पिताजी ने जयपुर ले आकर अपनी जमा पूंजी से यह जलेबी का ठेला लगवा दिया। अब पिताजी इतने बूढ़े हैं कि कुछ कर नहीं सकते। पांच साल से मैं यही ठेला चला रही हूं। यही मेरी दुनिया है, रवि।”

रवि की आंखें भी नम हो गईं। उसने प्रिया को देखा – टूटे सपनों के बीच भी उसके चेहरे पर एक अजीब सी ताकत थी। प्रिया ने जबरन मुस्कुराकर कहा, “छोड़ो रवि, ये सब बीती बातें हैं। तुम बताओ, तुम्हारी जिंदगी कैसी है? शादी हो गई ना?” रवि ने गंभीर होकर कहा, “मैंने आज तक शादी नहीं की।” प्रिया चौकी, “तुम तो कॉलेज में स्मार्ट थे, सब लड़कियां तुम्हें पसंद करती थीं!” रवि हंसकर बोला, “जिससे प्यार करता था, वो किसी और की हो गई थी।”

प्रिया ने उसकी आंखों में देखा, “कौन थी वो?” रवि ने गहरी सांस ली, “वो तुम थी, प्रिया। जिसके लिए मैंने आज तक किसी और को अपने दिल में जगह नहीं दी।” प्रिया का चेहरा सन्न रह गया, उसकी आंखों से आंसू टपकने लगे। कांपती आवाज में बोली, “रवि, क्या सचमुच मुझसे प्यार करते थे? मेरी वजह से शादी नहीं की?” रवि ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “कॉलेज के पहले दिन से तुमसे प्यार किया था। लेकिन एक बार तुमने मुझे डांट दिया था – क्यों घूरते हो? उस दिन के बाद हिम्मत ही नहीं हुई दिल की बात कहने की। कॉलेज खत्म होने के बाद सोचा था, मेहनत करूंगा, कुछ बनूंगा, तुम्हारे घर जाकर तुम्हारा हाथ मांगूंगा। विदेश चला गया, मेहनत की, लेकिन लौटकर पता चला तुम्हारी शादी हो चुकी है। उस दिन लगा मेरी दुनिया खत्म हो गई। मां से कह दिया, अब कभी शादी नहीं करूंगा।”

प्रिया ने खुद को संभालते हुए कहा, “रवि, अगर उस दिन तुमने दिल की बात कह दी होती, तो शायद मैं भी हां कह देती। शायद मैं भी तुम्हें मन ही मन चाहती थी।” यह सुनकर रवि की आंखों में चमक आ गई, “तो क्या अब बहुत देर हो गई है, प्रिया? क्या मैं अब भी तुम्हें अपना नहीं बना सकता?” प्रिया झट से बोली, “पागल हो गए हो रवि! तुम जानते हो तुम कौन हो, मैं कौन। तुम बड़े घर के हो, तुम्हारे पास पैसा, इज्जत – सब कुछ है। मैं तो सड़क किनारे जलेबी बेचती हूं, मेरे पास तुम्हें देने को कुछ नहीं।”

रवि ने तुरंत कहा, “मुझे कुछ नहीं चाहिए, प्रिया। मुझे सिर्फ तुम चाहिए। मैं तुम्हें अपने घर ले जाना चाहता हूं, अपनी पत्नी बनाना चाहता हूं।” प्रिया ने चेहरा छुपाते हुए कहा, “नहीं रवि, तुम किसी और से शादी कर लो। मैं तुम्हारे लायक नहीं। जिस लड़की को सबने बोझ समझा, ठुकरा दिया – मैं तुम्हारा भविष्य बर्बाद नहीं कर सकती।” रवि ने धीरे से उसका हाथ पकड़ा, “प्रिया, तुम मेरी किस्मत हो। तुम्हारे बिना मेरा कोई भविष्य नहीं। तुम आज भी मेरे दिल में वैसी ही हो जैसी कॉलेज में थी – तुम्हारी सादगी, तुम्हारी हिम्मत, सब मेरे लिए मायने रखते हैं।”

प्रिया ने गुस्से में हाथ छुड़ाया, “यह सब फिल्मी बातें छोड़ो। रवि जाओ, अपनी गाड़ी में बैठो और घर चले जाओ। और हां, जलेबी खाकर जाना। तुमने कहा था ना भूख लगी है।” रवि मुस्कुराया, “खा लूंगा प्रिया, और कल फिर आऊंगा – अपनी मां के साथ। तुम्हें अपनी दुल्हन बनाकर ले जाऊंगा।” प्रिया चौंक गई, “रवि, सचमुच पागल हो गए हो!” रवि ने उसके कान में धीरे से कहा, “तुम्हें मुझसे शादी करनी ही होगी। और हां, कल मेरे लिए एक प्लेट जलेबी बचा कर रखना।”

रवि जलेबी खाकर, प्रिया को देखकर मुस्कुराया और अपनी गाड़ी में बैठकर चला गया। प्रिया वहीं ठहरी रही, उसकी आंखें उस रास्ते को देखती रही – क्या सचमुच रवि आएगा? क्या वह मुझे अपनाएगा? क्या मैं इस लायक हूं?

अगले दिन की सुबह – रवि का फैसला

रवि घर पहुंचते ही अपनी मां शांता देवी के सामने खड़ा हो गया। मां ने बेटे की आंखों में उसके प्यार की सच्चाई पढ़ ली। रवि ने सारी कहानी खोल दी – कॉलेज की मोहब्बत, प्रिया की शादी, उसका दर्द, और सड़क किनारे जलेबी बेचती प्रिया। मां ने रवि के सिर पर हाथ रखा, “बेटा, अगर तेरा दिल सच्चा है, तुझे तेरा प्यार जरूर मिलेगा। मैं तेरे साथ हूं। हम प्रिया को अपनी बहू बनाएंगे।”

रवि की आंखों में चमक आ गई, “मां, क्या मैं आपको आज ही प्रिया के पास ले चलूं?” मां मुस्कुराकर बोली, “चल बेटा, आज तेरा सपना पूरा करने का वक्त है।”

रवि अपनी मां को लेकर प्रिया के ठेले पर पहुंचा। प्रिया जैसे सुबह से रवि का इंतजार कर रही थी। रवि ने हंसकर कहा, “मैडम, एक प्लेट जलेबी बनाइए, लेकिन आज थोड़ा स्पेशल – मेरी मां भी आपके ठेले पर आई है।” प्रिया की नजर मां की तरफ उठी। शांता देवी ने प्रिया का हाथ पकड़ा, “बेटी, तुमने कल मेरे बेटे को मना किया। लेकिन मैं तुम्हें मनाने नहीं, अपनी बहू बनाने आई हूं।”

प्रिया का दिल जोर से धड़कने लगा, उसकी आंखों से आंसू टपकने लगे। “मां जी, मैं सड़क किनारे जलेबी बेचती हूं, आपके घर की बहू बनने लायक नहीं।” मां ने सिर पर हाथ रखकर कहा, “बेटी, इंसान की कीमत उसका दिल तय करता है, हालात नहीं। तुम्हारी मेहनत, तुम्हारी सच्चाई, तुम्हारी हिम्मत – यही तुम्हें सबसे खास बनाती है। रवि ने तुम्हें चुना है, मैंने तुम्हें अपनी बहू मान लिया है।”

प्रिया ने रवि की तरफ देखा, “रवि, क्या सचमुच मुझसे शादी करना चाहते हो? अपनी जिंदगी बर्बाद करने को तैयार हो?” रवि ने तुरंत कहा, “प्रिया, मेरी जिंदगी तब बर्बाद होती अगर तुम मेरी जिंदगी में ना आती। तुम मेरी दुनिया हो।”

मां ने प्रिया के बूढ़े पिता को बुलाया, जो पास ही एक छोटे से कमरे में रहते थे। मां ने हाथ जोड़कर कहा, “भाई साहब, आज से आपकी बेटी मेरी बहू है। हम इसे धूमधाम से अपने घर ले जाएंगे।” प्रिया के पिताजी की आंखें भर आईं, “बहन जी, आपने मेरी बेटी को इज्जत दी, नई जिंदगी दी। आप भगवान जैसी हैं।” मां ने उन्हें गले लगाया, “अब आपकी बेटी हमारी बेटी है। कल से शादी की तैयारियां शुरू होंगी।”

शादी – इज्जत और नई जिंदगी

अगले दिन रवि, प्रिया को जयपुर के सबसे बड़े बाजार ले गया। उसके लिए लाल साड़ी, सोने के गहने, चमचमाती चप्पलें खरीदीं। ब्यूटी पार्लर ले जाकर कहा, “कल तुम जयपुर की सबसे खूबसूरत दुल्हन बनोगी।” शादी की तैयारियां जोरों पर थीं। रवि ने कोई कसर न छोड़ी।

अगले दिन बारात के साथ रवि का पूरा परिवार प्रिया के छोटे से घर पहुंचा। जयपुर की गलियां इस अनोखी शादी की चर्चा से गूंज रही थीं – एक अमीर लड़का सड़क किनारे जलेबी बेचने वाली लड़की से शादी कर रहा है। शादी धूमधाम से हुई। प्रिया दुल्हन के जोड़े में ऐसी लग रही थी जैसे कोई राजकुमारी।

रवि ने प्रिया के पिताजी को भी अपने घर ले लिया, “यह मेरे भी पिताजी हैं, मैं इनकी सेवा करूंगा।” रवि का परिवार प्रिया को सर आंखों पर बिठाने लगा। रवि ने जयपुर में अपना बिजनेस और बड़ा किया, प्रिया ने उसके साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम शुरू किया। कुछ साल बाद प्रिया ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया। रवि ने बेटी को गोद में उठाकर कहा, “अब मेरा परिवार पूरा हो गया, मेरी दुनिया पूरी हो गई।”

पुरानी ससुराल की मुलाकात – इज्जत का जवाब

लेकिन प्रिया के दिल में एक सवाल था। एक दिन उसने रवि से कहा, “क्या मैं अपनी पुरानी ससुराल जा सकती हूं, जहां मुझे बेइज्जत करके निकाला गया था?” रवि ने मुस्कुराकर कहा, “तुम्हारी हर ख्वाहिश मेरे लिए हुकुम है, कल वहां जरूर जाएंगे।”

अगले दिन रवि, प्रिया और उनकी बेटी उस गांव पहुंचे। प्रिया के कदम भारी थे, लेकिन दिल मजबूत था। दरवाजा खुला, ससुराल वालों के चेहरों पर पहले हैरानी थी, फिर शर्मिंदगी। प्रिया ने बेटी को गोद में संभालते हुए कहा, “याद है, तुमने कहा था – मेरा इस घर में क्या काम? जिसका कोई नहीं, उसका यहां कोई मतलब नहीं। उस दिन मैं सचमुच अकेली थी। लेकिन आज मेरे पास सब कुछ है – एक पति जो मुझे दिल से चाहता है, एक बेटी जो मेरी जान है, एक घर जहां मुझे इज्जत और प्यार मिला।”

ससुराल वालों की नजरें झुकी हुई थीं। प्रिया ने शांत स्वर में कहा, “मैं यहां बदला लेने नहीं आई। बस दिखाना चाहती थी – वक्त बदलता है। जिसे तुमने मिट्टी समझा, वही आज किसी की दुनिया बन गई।”

रवि ने प्रिया का हाथ थामा, “चलो प्रिया, अब तुम्हें कुछ साबित करने की जरूरत नहीं। जो तुम्हारे अपने हैं, वो तुम्हारे साथ हैं।” प्रिया ने अपनी बेटी को चूमा और बिना किसी गिले-शिकवे के अपने पुराने दर्द को उसी दरवाजे पर छोड़ दिया। वो रवि के साथ लौट गई। उनकी मुस्कुराहट उनकी जिंदगी बन चुकी थी। उनकी रूह को सुकून मिल चुका था।

सीख और संदेश

सच यही है – वक्त देर से ही सही, हर किसी को उसका हक देता है। सच्चा प्यार चाहे कितना भी समय बीत जाए, मुकम्मल होकर रहता है। यह थी रवि और प्रिया की कहानी – अधूरी थी, लेकिन पूरी होने से कोई रोक न सका।

क्या आज भी लोग किसी को उनके हालात देखकर ठुकराते हैं? क्या इंसान की पहचान उसके हालात से होती है या उसके दिल से?

अगर आपको कभी हालात की वजह से ठुकराया गया हो, तो कमेंट में जरूर बताएं।
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जय हिंद! जय भारत!