गरीब लड़की ने अपनी किताबें अनजान बच्चे को दे दीं, जिसने जिंदगी बदल दी , फिर जो हुआ यकीन नहीं करेंगे

कोलकाता की तंग गलियों में माया की कहानी

कोलकाता की तंग गलियों में जहां हावड़ा ब्रिज की छाया और ट्राम की खटपट हर दिन की कहानी बुनती थी, वहीं एक गरीब लड़की अपनी मेहनत और सपनों के बल पर जिंदगी से जूझ रही थी। उसका नाम था माया। उसके पास ना नए कपड़े थे, ना पेट भर खाना। फिर भी उसका दिल इतना बड़ा था कि वह हर किसी की मदद को तैयार रहती थी। वह दिन-रात ढाबे पर काम करती और रात को मोमबत्ती की रोशनी में पढ़ाई करती ताकि एक दिन अपने परिवार को गरीबी से निकाल सके।

माया के परिवार में उसके माता-पिता, छोटा भाई गोपाल और बीमार दादी कमला थी। पिता हरनाथ रिक्शा चलाते थे और मां शांति पड़ोसियों के घरों में बर्तन साफ करती थी। परिवार की कमाई इतनी कम थी कि कई रातें भूखे पेट गुजरती थीं। लेकिन माया ने कभी हार नहीं मानी। वह दिन में ढाबे पर बर्तन धोती और रात को अपनी पुरानी किताबों से पढ़ाई करती, ताकि एक दिन स्कूल टीचर बन सके।

माया की किताबें उसके लिए सबसे कीमती थी। वे पुरानी थीं, किनारे फटे हुए, मगर हर पन्ने पर उसने अपने सपनों को नोट किया था। पड़ोस की एक मैडम ने उसे अपनी बेटी की पुरानी किताबें दी थीं और माया उन्हें अपने सीने से लगाकर रखती थी। वह हर रात मोमबत्ती की रोशनी में पढ़ती और उसकी दादी कमला उसे देखकर कहती, “माया, तू एक दिन हमारे लिए रोशनी लाएगी।”

बारिश भरी शाम की शुरुआत

सितंबर की एक बारिश भरी शाम थी। कोलकाता की सड़कें कीचड़ से सनी थीं और हावड़ा ब्रिज के नीचे भीड़ छंट रही थी। माया ढाबे पर काम खत्म करके घर लौट रही थी। उसकी झोली में उसकी किताबें थीं, जिन्हें उसने एक पुराने कपड़े में लपेट रखा था ताकि बारिश से बची रहें। वह तेजी से चल रही थी, जब अचानक एक छोटा सा बच्चा उसके सामने आया। उसकी उम्र सात-आठ साल होगी। उसके कपड़े भीगे थे और चेहरा उदास। उसकी आंखें माया की किताबों पर टिकी थीं।

“दीदी, वो किताबें क्या मैं देख सकता हूं?” उसने धीमी आवाज में पूछा।

माया ने उसे गौर से देखा। बच्चे की हालत देखकर उसका दिल पसीज गया। “तू कौन है बेटा? और बारिश में यहां क्या कर रहा है?” माया ने पूछा।

बच्चे ने सिर झुकाया, “मेरा नाम रवि है। मैं स्कूल जाना चाहता हूं, मगर मेरे पास किताबें नहीं हैं।”

माया का मन बेचैन हो गया। उसने अपनी किताबें खोली। वे गणित, विज्ञान और अंग्रेजी की किताबें थीं, जो उसकी मेहनत की गवाह थीं। मगर रवि की आंखों में जो भूख थी, वह किताबों के लिए थी। माया ने एक पल सोचा और फिर अपनी झोली रवि की ओर बढ़ा दी, “लो बेटा, ये रख ले।”

रवि की आंखें चौड़ी हो गईं। “दीदी, ये तो तुम्हारी किताबें हैं!”

माया ने मुस्कुरा कर कहा, “कोई बात नहीं, मैं और किताबें ले लूंगी। तू पढ़ाई कर और बड़ा आदमी बन।”

रवि ने किताबें ली और उसे गले लगाया, “दीदी, मैं तुम्हें कभी नहीं भूलूंगा।” फिर वह बारिश में गायब हो गया।

माया घर लौटी। उसका मन भारी था। किताबें देना आसान नहीं था, मगर रवि की मुस्कान ने उसे सुकून दिया। उसने अपनी मां शांति को सारी बात बताई। शांति ने उसका माथा चूमा, “माया, तूने जो किया, वह बहुत बड़ा काम था। मगर अब तू पढ़ाई कैसे करेगी?”

माया ने हंसकर कहा, “मां, मैं ढाबे पर और घंटे काम करूंगी। नई किताबें ले लूंगी।”

उस रात दादी ने माया का हाथ पकड़ा, “बेटी, तेरी नेकी तुझे जरूर फल देगी।”

अगली सुबह की सौगात

अगली सुबह माया ढाबे पर पहुंची। वह बर्तन धो रही थी, जब ढाबे का मालिक रामू चाचा उसके पास आया, “माया, कोई तुझसे मिलने आया है।”

माया ने हैरानी से बाहर देखा। वहां एक अधेड़ उम्र की औरत खड़ी थी। उसकी साड़ी साधारण थी, मगर चेहरा गंभीर। उसके साथ रवि था, जिसे माया ने कल किताबें दी थीं।

“तू माया है?” औरत ने पूछा।

“हां मैडम,” माया ने सावधानी से जवाब दिया।

“मैं राधा बोस हूं। रवि मेरा बेटा है। तूने उसे अपनी किताबें दी। मैं तुझसे मिलना चाहती थी।”

माया ने सिर झुकाया, “मैडम, मैंने बस वही किया जो सही था।”

राधा की आंखें नम हो गईं, “नहीं माया, तूने जो किया, वह कोई साधारण इंसान नहीं कर सकता। मैं तुझसे कुछ कहना चाहती हूं।”

राधा ने शुरू किया, “मैं एक स्कूल की प्रिंसिपल हूं। मगर रवि मेरा असली बेटा नहीं है। मैंने उसे सड़क से उठाया था, जब वह भूखा और अकेला था। मैं उसे पढ़ाना चाहती थी, मगर उसका मन नहीं लगता था। कल जब वह घर लौटा तो उसने मुझे तेरी किताबें दिखाई। उसने कहा कि वह अब पढ़ेगा क्योंकि एक दीदी ने उसे अपनी किताबें दी।”

माया की आंखें भर आईं, “मैडम, रवि बहुत अच्छा बच्चा है।”

राधा ने मुस्कुरा कर कहा, “माया, मैंने तेरे बारे में पूछा। मुझे पता चला कि तू दिन-रात मेहनत करती है, फिर भी पढ़ाई नहीं छोड़ती। मैं चाहती हूं कि तू मेरे स्कूल में पढ़े। तेरी सारी फीस और किताबों का खर्च मैं उठाऊंगी।”

माया की सांस रुक गई, “मैडम, यह… मैं नहीं ले सकती।”

राधा ने उसका कंधा पकड़ा, “माया, यह मेरा धन्यवाद है। और एक बात, मैं चाहती हूं कि तू मेरे स्कूल में बच्चों को पढ़ाए। तुझ में वह जज्बा है जो दूसरों को प्रेरणा दे सकता है।”

माया का गला भर आया। उसने राधा के पैर छुए, “मैडम, मैं आपका जिंदगी भर एहसान नहीं भूलूंगी।”

उस दिन माया जब घर लौटी तो उसकी झोपड़ी में एक नई रोशनी थी। उसने अपने परिवार को सारी बात बताई। शांति ने उसे गले लगाया, “माया, तूने जो बोया वह आज फल दे रहा है।” दादी ने कमजोर आवाज में कहा, “बेटी, तू हमारी शान है।”

कहानी में नया मोड़

मगर कहानी अभी खत्म नहीं हुई थी। राधा की कहानी में एक और राज था। और माया की नेकी का इनाम अभी पूरा नहीं हुआ था। रवि की सच्चाई क्या थी? और माया का सपना कैसे सच होगा?

माया की एक छोटी सी नेकी ने कोलकाता की बारिश भरी गलियों में एक नया सवेरा ला दिया था। रवि को अपनी किताबें देकर उसने ना सिर्फ एक बच्चे के सपनों को पंख दिए बल्कि राधा बोस के रूप में एक नया रास्ता भी पाया। राधा की पेशकश, मुफ्त पढ़ाई और स्कूल में बच्चों को पढ़ाने का मौका, माया के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था। उसकी झोपड़ी जो कभी मोमबत्ती की टिमटिमाती रोशनी में सिमटी थी, अब सपनों की चमक से भर रही थी।

मगर राधा की कहानी में एक अनकहा राज अभी बाकी था। रवि की सच्चाई और माया की नेकी का इनाम क्या और बड़ा होने वाला था? क्या माया का सपना सचमुच पूरा होगा या कोई नया मोड़ उसका इंतजार कर रहा था?

स्कूल में नई शुरुआत

अगली सुबह माया राधा के स्कूल पहुंची। स्कूल हावड़ा के पास एक पुरानी इमारत में था, जिसके आंगन में बच्चे हंसते-खेलते थे। राधा ने माया का स्वागत किया, “माया, यह तेरा नया घर है। आज से तू यहीं पढ़ेगी और बच्चों को पढ़ाएगी।”

माया ने हाथ जोड़े, “मैडम, मैं आपकी जिंदगी भर आभारी रहूंगी।”

राधा ने मुस्कुराकर कहा, “माया, आभार मुझे तुझसे है। तूने रवि को नई जिंदगी दी।”

माया ने स्कूल में पढ़ाई शुरू की। उसकी मेहनत और लगन ने शिक्षकों का दिल जीत लिया। वह दिन में कक्षाएं लेती और शाम को बच्चों को गणित और अंग्रेजी पढ़ाती। रवि भी उसी स्कूल में पढ़ता था और माया को देखकर उसकी आंखें चमक उठती थीं, “दीदी, तूने मुझे किताबें दी। अब मैं बहुत पढूंगा।”

माया का परिवार भी इस बदलाव से खुश था। शांति और हरनाथ ने ढाबे और रिक्शे का काम कम कर दिया, क्योंकि माया की छोटी सी तनख्वाह से घर का खर्च चलने लगा था। दादी की सेहत में सुधार हो रहा था और माया का छोटा भाई गोपाल अब नियमित स्कूल जाने लगा।

माया की झोपड़ी अब प्यार और उम्मीद से भरी थी।

राधा का राज और माया का सपना

एक दिन राधा ने माया को अपने ऑफिस में बुलाया। उसका चेहरा गंभीर था।

“माया, मुझे तुझसे कुछ कहना है… रवि के बारे में।”

माया का दिल धक से रह गया, “मैडम, रवि ठीक है ना?”

राधा ने गहरी सांस ली, “हां माया, मगर मैंने तुझसे पूरी सच्चाई नहीं बताई। रवि सड़क पर नहीं मिला था। वह मेरे भाई का बेटा है।”

माया की आंखें चौड़ी हो गईं, “आपके भाई का?”

राधा ने बताया, “मेरा भाई अरुण एक व्यापारी था। उसकी पत्नी की मौत के बाद वह शराब में डूब गया। रवि को उसने एक अनाथालय भेज दिया था। जब तूने रवि को अपनी किताबें दी तो उसने मुझे बताया कि वह अब पढ़ना चाहता है ताकि एक दिन अपनी दीदी की तरह बन सके। तूने ना सिर्फ उसे प्रेरणा दी, बल्कि मुझे भी हिम्मत दी कि मैं उससे सच कह सकूं।”

माया की आंखें नम हो गईं, “मैडम, रवि बहुत अच्छा बच्चा है। वो आपको जरूर समझेगा।”

राधा ने माया का हाथ पकड़ा, “माया, मैंने अरुण से बात की। वो सुधर रहा है। वो रवि से मिलना चाहता है और मैं चाहती हूं कि तू उस वक्त मेरे साथ रहे।”

माया ने सिर हिलाया, “मैडम, मैं आपके साथ रहूंगी।”

कुछ दिन बाद राधा ने रवि और अरुण की मुलाकात कराई। माया भी वहां थी। अरुण ने रवि को गले लगाया, “बेटा, मुझे माफ कर दे। मैं कायर था।”

रवि ने रोते हुए कहा, “पापा, आप अब मेरे पास हो। मैं आपको नहीं छोड़ूंगा।”

माया चुपचाप खड़ी थी। उसकी नेकी ने न सिर्फ रवि को प्रेरणा दी, बल्कि एक बाप-बेटे को फिर से मिला दिया।

राधा ने माया की ओर देखा, “माया, तूने मेरे परिवार को जोड़ा। मैं तुझसे एक और वादा करना चाहती हूं।”

माया ने हैरानी से पूछा, “कैसा वादा मैडम?”

राधा ने कहा, “मैं एक नया स्कूल खोल रही हूं, जहां गरीब बच्चे मुफ्त पढ़ेंगे। मैं चाहती हूं कि तू उसकी प्रिंसिपल बने।”

माया की सांस रुक गई, “मैडम, मैं… मैं तो अभी पढ़ रही हूं।”

राधा ने हंसकर कहा, “माया, तुझ में वह जज्बा है जो बच्चों को रास्ता दिखा सकता है। तू पढ़ाई पूरी कर और फिर स्कूल संभाल। मैं तुझ पर भरोसा करती हूं।”

माया की आंखें भर आईं। उसने राधा के पैर छुए, “मैडम, मैं पूरी कोशिश करूंगी।”

सपनों की उड़ान

अगले कुछ सालों में माया ने अपनी पढ़ाई पूरी की। वह राधा के नए स्कूल की प्रिंसिपल बनी। स्कूल में सैकड़ों बच्चे पढ़ने लगे, जिनके लिए किताबें एक सपना थी। माया हर बच्चे को अपनी कहानी सुनाती – कैसे उसने अपनी किताबें एक अनजान बच्चे को दी और उसकी वह नेकी ने उसकी जिंदगी बदल दी।

राधा का परिवार अब पूरा था। अरुण ने शराब छोड़ दी और रवि के साथ रहने लगा। रवि अब स्कूल में सबसे होशियार बच्चों में था और माया को अपनी दीदी मानता था। माया का परिवार भी अब एक पक्के घर में रहता था और दादी की सेहत ठीक हो गई थी।

एक सांझ जब माया स्कूल बंद कर रही थी, एक छोटी सी लड़की उसके पास आई, “दीदी, मेरे पास किताबें नहीं हैं। क्या तुम मेरी मदद करोगी?”

माया ने मुस्कुराकर अपनी बैग से एक किताब निकाली, “लो बेटा, पढ़ाई कर और बड़ा आदमी बन।”

लड़की ने उसे गले लगाया, “दीदी, मैं तुम्हें कभी नहीं भूलूंगी।”

माया की आंखें नम हो गईं। उसकी एक छोटी सी नेकी ने ना सिर्फ उसकी जिंदगी बदली, बल्कि कोलकाता की गलियों में सैकड़ों बच्चों के सपनों को पंख दिए।

यह कहानी हमें सिखाती है कि एक किताब, एक छोटा सा त्याग किसी की पूरी जिंदगी बदल सकता है। माया ने सिर्फ अपनी किताबें दीं, मगर उसकी वह नेकी एक परिवार को जोड़ गई और हावड़ा की गलियों में एक नई उम्मीद की रोशनी जला गई।

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समाप्त