गरीब समझकर काँलेज की लड़कियां मजाक उड़ाती थी सच सामने आया तो पूरा कॉलेज हिल गया
गरीबी का ताना, अमीरी का राज़
गरीब समझकर कॉलेज की लड़कियां रोज-रोज़ मजाक उड़ाती थीं, लेकिन जब सच सामने आया, तो पूरा कॉलेज हिल गया। यह कहानी है आरव सिंह की, जिसने अपनी सादगी के पीछे एक ऐसा राज़ छिपा रखा था, जिसने समाज के दिखावे भरे नजरिए को पूरी तरह से बदल दिया।
पहला दिन और पहला अपमान
सेंट्रल यूनिवर्सिटी का विशाल परिसर अपनी हरियाली और छात्रों की चहल-पहल से हमेशा जीवंत रहता था। इसी भीड़ में एक लड़का था, आरव सिंह, जिसके कदम धीमे थे और वह सोच में डूबा हुआ था। यह कॉलेज में उसका पहला दिन था, लेकिन वह किसी और की तरह महंगे कपड़े या चमकदार मोबाइल फोन लिए नहीं था। उसकी सादगी ही उसकी पहचान थी। पीठ पर एक पुराना फटा हुआ बैग और काले रंग की एक साधारण टीशर्ट, जिसे उसने कई बार पहना था। जैसे ही वह कॉलेज में दाखिल हुआ, छात्रों की नज़रें तुरंत उस पर टिक गईं।
लड़कियों की एक टोली, जिसमें रिया, काव्या और नेहा थीं, ने एक-दूसरे की तरफ देखते हुए फुसफुसाना शुरू कर दिया। “देखो, यह कौन नया लड़का है? ऐसे कपड़े कहीं किसी पुरानी फैक्ट्री से तो नहीं निकला।” नेहा ने तंज कसा। “इसको देखकर तो लगता है कि हॉस्टल के खाने का भी शौक नहीं होगा।” काव्या ने मज़ाक उड़ाया। रिया ने आरव की तरफ देखते हुए कहा, “लगता है हमारी दुनिया में यह फिट नहीं होगा।” वे तीनों ठहाका मारकर आगे बढ़ गईं, लेकिन उनकी बातें कॉलेज की गलियों में गूंजने लगीं। यह पहला झटका था जो आरव ने महसूस किया था।
आरव ने उन बातों को सुना, लेकिन उसकी प्रतिक्रिया बिल्कुल शांत थी। उसने खुद को समेटा और एक कोने की सीट पर बैठ गया। उसके दिल में एक अजीब सी पीड़ा थी, लेकिन वह उसे बाहर नहीं आने दे रहा था। क्लास के बाकी छात्र भी उसे देखकर अजीब सी प्रतिक्रियाएं दे रहे थे, कुछ ने उसे देखने लगे तो कुछ ने अपने समूहों में उसके बारे में बातें करना शुरू कर दिया। आरव को पता था कि उसे खुद को साबित करना होगा।
लगातार ताने और बढ़ता धैर्य
दिन बीतते गए, लेकिन लड़कियों की टिप्पणियां नहीं रुकीं। हर दिन एक नया मज़ाक, एक नया ताना। आरव ने सोचा, “अगर मैं भी जवाब दूँ तो शायद लड़कियां और लड़के मुझसे दूर हो जाएंगे। मुझे चुप रहना होगा और खुद को बेहतर बनाना होगा।” उसने खुद से वादा किया कि वह हार नहीं मानेगा। वह अपनी पढ़ाई में पूरी लगन से जुड़ जाएगा और एक दिन सबको दिखा देगा कि असली कीमत पैसों से नहीं, बल्कि इंसान के कर्मों से होती है।
कॉलेज के दूसरे सप्ताह में, आरव को यह एहसास होने लगा कि उसके लिए यहाँ की जिंदगी आसान नहीं है। जहाँ कुछ छात्र नए दोस्त बना रहे थे और पार्टियों में व्यस्त थे, वहीं आरव अकेला और चुपचाप अपने दिन बिता रहा था। रिया, काव्या और नेहा हर दिन नए तानों के साथ उसका स्वागत करतीं। “ओह, आज फिर वही पुरानी टीशर्ट पहन ली?” रिया ने कैंटीन में चुटकी ली। लड़कों के बीच भी स्थिति अलग नहीं थी। एक दिन जब वह लाइब्रेरी जा रहा था, तो कॉलेज के कुछ लड़कों ने उसे रोक लिया। “अरे, यह तो वही लड़का है जो हमेशा अकेला रहता है। क्या भाई, घर पर मम्मी-पापा ने पैसे नहीं दिए नए कपड़े खरीदने के लिए?” यह सुनकर आरव की आँखों में आँसू आ गए, लेकिन उसने उन्हें दबा लिया।
एक दिन प्रोफेसर ने घोषणा की कि अगले सप्ताह एक बड़ी प्रतियोगिता होगी और हर किसी को टीम बनानी होगी। सभी छात्रों ने अपनी-अपनी टीमें बना लीं, लेकिन आरव को किसी ने नहीं बुलाया। यह और भी ज्यादा दर्दनाक था। वह एक बार फिर अकेला रह गया। तभी अनुज, जो आरव की तरह शांत और गंभीर स्वभाव का छात्र था, उसके पास आया। “आरव, अगर तुम चाहो तो मेरी टीम में शामिल हो जाओ।” आरव के चेहरे पर पहली बार हल्की मुस्कान आई। उसने खुशी से स्वीकार किया।
काबिलियत की पहचान
कॉलेज के तीसरे सप्ताह में आरव का दिनचर्या लगभग एक जैसी ही थी: सुबह जल्दी उठना, समय पर क्लास जाना, और शाम को लाइब्रेरी में घंटों बैठकर पढ़ाई करना। उसे पता था कि केवल मेहनत से ही वह अपने सपनों को पूरा कर सकता है। लेकिन कॉलेज के बाकी छात्रों के लिए आरव का यही व्यवहार और चुप्पी एक पहेली बन गई थी।
एक दिन प्रोफेसर ने एक कंप्यूटर प्रोजेक्ट असाइन किया, जो ग्रुप में करना था। रिया, काव्या और नेहा की टीम को प्रोजेक्ट का एक हिस्सा समझ नहीं आ रहा था। हार मानकर, रिया ने सुझाव दिया कि किसी की मदद लेनी होगी। काव्या ने सुझाया, “क्यों न हम आरव से मदद माँगें? वैसे भी वह तो क्लास में ज्यादा बोलता नहीं, पर शायद वह इस चीज में अच्छा हो।”
वे आरव के पास गईं। आरव अपनी किताबों में डूबा हुआ था। लड़कियों ने उससे मदद माँगी। आरव ने शांत आवाज़ में कहा, “बताइए क्या समस्या है?” रिया ने सारी परेशानी बताई। आरव ने अपने लैपटॉप पर प्रोजेक्ट की कोडिंग खोलकर उन्हें समझाने लगा। कुछ ही मिनटों में उसने सारी समस्या का समाधान निकाल दिया। लड़कियां हैरान रह गईं। “तुमने यह सब खुद किया है?” काव्या ने उत्सुकता से पूछा। “हाँ, मैं इससे पहले भी ऐसे प्रोजेक्ट पर काम कर चुका हूँ।” आरव ने सिर हिलाया। लड़कों ने यह दृश्य देखा और तंज कसना शुरू कर दिया, “वाह, आरव तो असल में किसी बड़े कोडर से कम नहीं।” पर लड़कियों ने फिर तंज उड़ाया, “क्यों? क्या ट्यूशन में पढ़ाई करवा रहे हो?” आरव ने खुद को रोककर कोई जवाब नहीं दिया। प्रोफेसर ने आगे आकर कहा, “आरव, तुमने बहुत अच्छा काम किया है। तुम दूसरों की मदद कर रहे हो। यह सराहनीय है।” इस तारीफ़ से क्लास में कुछ लोगों की सोच बदलने लगी।
जब सच सामने आया
कॉलेज में दो महीने बीत चुके थे। आरव अब भी सबसे अलग था, लेकिन उसकी मेहनत प्रोफेसरों की नज़र में आ चुकी थी। वह हर सवाल का जवाब देता और लाइब्रेरी का सबसे नियमित छात्र था। एक दिन कॉलेज की डीन ने घोषणा की कि अगले हफ्ते स्कॉलरशिप अचीवर्स मीट होगा, जिसमें उन छात्रों का सम्मान किया जाएगा जिन्हें राष्ट्रीय स्तर पर छात्रवृत्ति मिली है।
इस खबर ने पूरे कॉलेज में हलचल मचा दी। रिया, काव्या और नेहा को जब पता चला कि आरव को भी इस मीट में बुलाया गया है, तो वे चौंक गईं। “क्या? उस गरीब लड़के को?” रिया लगभग चिल्ला उठी। “हाँ, मैंने लाइब्रेरी में नोटिस देखा था,” नेहा ने धीमी आवाज़ में कहा। वे तीनों सोच में पड़ गईं। कैसे एक लड़का, जो उनके लिए हर दिन का मज़ाक बन चुका था, अब कॉलेज का गर्व बन रहा था?
अगले दिन जब प्रोफेसर क्लास में आए, उन्होंने औपचारिक घोषणा की। “हम सबको गर्व है कि हमारे कॉलेज से आरव सिंह को भारत सरकार की प्रतिष्ठित राष्ट्रीय प्रतिभा छात्रवृत्ति मिली है। इसके लिए पूरे देश से केवल 25 छात्र चुने गए हैं।” क्लास में एक क्षण के लिए सन्नाटा छा गया। लोग एक-दूसरे को देखने लगे। आरव की तरफ निगाहें उठीं। इस बार मज़ाक नहीं, बल्कि हैरानी और सम्मान था।
कॉलेज का सभागार खचाखच भरा हुआ था। हर चेहरा उत्सुक था। मंच पर नाम बुलाए जा रहे थे, और फिर उद्घोषक ने आरव का नाम पुकारा। “हम उस छात्र को बुलाना चाहेंगे जिसने बहुत साधारण हालातों से निकलकर असाधारण सफलता हासिल की है… मिस्टर आरव सिंह।”
पूरा कॉलेज तालियों से गूँज उठा। रिया, काव्या और नेहा एकदम सन्न थीं। उनकी आँखों के सामने एक नया आरव खड़ा था, गर्व और आत्मविश्वास से भरा हुआ। आरव ने मंच पर कदम रखा। उसके कपड़े अब भी साधारण थे, लेकिन उसकी चाल में एक ठहराव और गरिमा थी। माइक पर पहुँचकर उसने जो कहा, वह पूरा कॉलेज जिंदगी भर नहीं भूल पाया।
“नमस्ते। मैं आरव सिंह। आप सभी ने मुझे पिछले दो महीनों में देखा है। बहुत से लोगों ने मेरे कपड़े देखे, मेरे फटे बैग पर हँसे और मेरी चुप्पी को कमज़ोरी समझा। लेकिन आज मैं एक सच बताना चाहता हूँ।” आरव ने गहरी साँस ली और कहा, “मैं गरीब नहीं हूँ। हाँ, आपने सही सुना। मैं उस शहर के सबसे बड़े उद्योगपति विक्रांत सिंह का बेटा हूँ।”
सभा में सनसनी फैल गई। लड़कियों हैरानी से एक-दूसरे को देखने लगीं।
“मेरे पिता के पास करोड़ों की संपत्ति है। लेकिन मैं जानना चाहता था कि इस देश में एक साधारण दिखने वाला इंसान, एक ब्रांडेड कपड़े पहनने वाले जितना सम्मान पाता है या नहीं। मैंने अपनी पहचान छिपाई ताकि मैं असली दुनिया को देख सकूँ, और मैं यह देखकर दुखी हूँ कि यहाँ व्यक्तित्व नहीं, पहनावा और मोबाइल का मॉडल देखा जाता है।” “आपने मुझे गरीब समझकर ठहाके लगाए, मुझे तानों से नवाजा। लेकिन आपने मेरे हुनर को कभी जानने की कोशिश नहीं की। पर मैं आपसे नाराज नहीं हूँ, क्योंकि मैंने यहाँ आकर सीखा कि सच्चा इंसान वह होता है जो चुप रहकर भी दुनिया जीत सके।”
तालियों की गड़गड़ाहट इतनी जोर से गूँजी कि सभागार के शीशे तक काँप उठे। लड़कियों की आँखें शर्म से झुक गईं। रिया, जो आरव को सबसे अधिक ताने मारती थी, अब उसकी सच्चाई से घायल थी। काव्या और नेहा को भी अपनी गलती का एहसास हुआ।
एक नई शुरुआत
सभा के बाद जब आरव मंच से नीचे उतरा, तो बहुत से छात्र और प्रोफेसर उसे बधाई देने आए। रिया तीनों में सबसे पहले उसके पास आई। “मुझे माफ़ करना, आरव,” उसने काँपती आवाज़ में कहा। “मैंने तुम्हें कभी समझने की कोशिश नहीं की।” आरव ने मुस्कुराकर जवाब दिया, “गलतियाँ सभी से होती हैं, लेकिन उन्हें स्वीकार करना साहस की निशानी है।”
उस दिन के बाद कॉलेज में बहुत कुछ बदल गया। जो लड़कियां उसे देखना तक नहीं चाहती थीं, अब उसके साथ एक फोटो के लिए भी उत्सुक थीं। लेकिन आरव अब सबको बराबरी की नज़र से देखता था, न कोई नफरत, न कोई घमंड। कॉलेज का माहौल अब पूरी तरह बदल चुका था। जो छात्र पहले फैशन और स्टाइल को ही सब कुछ मानते थे, वे अब मेहनत और प्रतिभा की कदर करने लगे थे।
कॉलेज के स्थापना दिवस पर आरव को ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ का खिताब मिला। समारोह में उसके पिता विक्रांत सिंह भी आए, लेकिन सादे कपड़ों में, बिल्कुल आरव की तरह। उन्होंने मंच से कहा, “मुझे गर्व है कि मेरा बेटा बिना नाम और पैसे के पहचान बना पाया।”
एक नया सेमेस्टर शुरू हुआ। अब रिया, काव्या और नेहा आरव के अच्छे मित्रों में गिनी जाती थीं। उनकी बातें, पहनावा, सोच सब बदल गया था। एक दिन रिया ने कहा, “काश, हम तुम्हें पहले समझ पाते।” आरव ने मुस्कुराकर जवाब दिया, “देर से ही सही, पर आपने सीखा, यही काफी है।”
आरव अब सिर्फ एक छात्र नहीं, बल्कि प्रेरणा का प्रतीक बन चुका था। उसके संघर्ष, सहनशीलता और सच्चाई ने सबका दिल जीत लिया था। जहाँ लोग पहले ‘गरीब’ कहकर मज़ाक उड़ाते थे, वहीं अब उसी नाम से मिसाल दी जाती थी। वह लड़का जिसे सबने छोटा समझा, आज सबसे बड़ा बन गया।
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