गरीब समझ कर पत्नी ने शोरूम से भगाया | तलाकशुदा पति खड़े -खड़े खरीदा पूरा शोरूम, फिर जो हुआ,Patiपत्नी

टूटे भरोसे का मोल
भाग 1: एक छोटे घर के बड़े सपने
रवि और नेहा की शादी को पाँच साल हो चुके थे। उनका जीवन साधारण था, एक छोटे से फ्लैट में, जहाँ खुशियाँ भले ही छोटी थीं, पर सच्ची थीं। रवि एक सामान्य नौकरी करता था और महीने के अंत में जब कभी पैसे कम पड़ जाते, तो वह नेहा से कहता, “थोड़ा इंतजार करो नेहा, मैं और मेहनत करूँगा। हमारे सपने बहुत बड़े हैं।”
नेहा शुरुआत में तो समझदार थी, लेकिन धीरे-धीरे उसे रवि की सादगी खलने लगी। वह पड़ोसी की नई कार, सहेलियों के ब्रांडेड कपड़े और सोशल मीडिया पर चमकती अमीर ज़िंदगी देखकर कुंठित होने लगी। रवि का ईमानदार प्रयास उसे “सस्ती ईमानदारी” लगने लगा।
एक शाम, जब रवि ने चाय बनाते हुए उसे गले लगाना चाहा, तो नेहा ने खुद को झटका दिया। “मुझे यह छोटी ज़िंदगी नहीं चाहिए रवि। तुम बस सपनों की बातें करते हो, हकीकत नहीं देखते। मैं थक गई हूँ तुम्हारे साथ गरीबी में जीते हुए।”
रवि ने शांत स्वर में कहा, “नेहा, मैं अमीर नहीं हूँ, पर सच्चा हूँ। मैं तुम्हारे सपनों को पूरा करने की कोशिश कर रहा हूँ।”
नेहा की आँखों में तिरस्कार था। उसने ताना मारते हुए कहा, “कोशिश से पेट नहीं भरता रवि। मुझे अब यह शादी नहीं चाहिए।”
उसने तलाक के कागज़ रवि के सामने रख दिए। रवि के हाथ काँप गए। “तुम यह कर कैसे सकती हो?”
नेहा बोली, “क्योंकि मुझे स्टेटस चाहिए और तुम मुझे वो नहीं दे सकते। मुझे बड़ा सपना देखने वाला नहीं, बड़ा स्टेटस वाला आदमी चाहिए।”
रवि खिड़की के पास खड़ा रह गया। नेहा बिना पीछे देखे बाहर चली गई। दरवाज़ा बंद हुआ और उसी आवाज़ के साथ रवि का दिल भी चकनाचूर हो गया। अगले दिन रवि के पास कुछ नहीं था—न पत्नी, न सहारा, न पैसा, लेकिन उसके पास एक चीज़ थी: बदलने की ज़िद।
भाग 2: मिट्टी से सोना
तलाक के बाद रवि शहर छोड़कर एक अनजान जगह आ गया। उसने एक छोटी सी गैराज में काम शुरू किया। दिन में वह मैकेनिक था, जिसके हाथों में तेल लगता और कपड़े गंदे हो जाते, और रात में डिलीवरी बॉय। लोग उसका मज़ाक उड़ाते, “अरे, यह वही रवि है जिसे उसकी बीवी छोड़कर गई थी क्योंकि वह लूज़र था।” रवि सिर्फ मुस्कुरा देता क्योंकि वह जानता था, “हँसी वहीं उड़ाई जाती है जहाँ से डर लगता है।”
उसके इरादे अब कांच की तरह साफ थे। वह सिर्फ गाड़ियाँ नहीं ठीक कर रहा था, बल्कि अपने नसीब को ठीक कर रहा था।
एक दिन, सड़क किनारे एक महंगी कार खराब हो गई। कई मैकेनिक आए पर कोई ठीक न कर सका। रवि वहाँ पहुँचा, अपना छोटा सा टूलबॉक्स लेकर। उसने 20 मिनट में इंजन खोला और गाड़ी स्टार्ट कर दी।
गाड़ी का मालिक, जो एक बड़ी कंपनी का डायरेक्टर था, सामने आया। वह रवि के काम से प्रभावित हुआ। “तुम जैसे हुनरमंद लोग कम मिलते हैं। अगर कभी अपनी सर्विस स्टेशन खोलना चाहो, तो मुझसे मिलना।”
वो शब्द रवि के सीने में आग बनकर जल उठे। उसी दिन से उसने हर दिन को युद्ध की तरह जिया। छोटे-छोटे इन्वेस्टर्स जुटाए, रात-दिन मेहनत की, और अपनी पहली वर्कशॉप खोली—रवि मोटर्स। वो गैराज धीरे-धीरे शोरूम बन गया, फिर ब्रांच और अंत में एक बड़ा ब्रांड।
अब उसके पास वो सब था जो नेहा चाहती थी—महँगी गाड़ियाँ, बड़ा घर, बैंक बैलेंस, और रिस्पेक्ट। पर उसके चेहरे पर कभी घमंड नहीं आया। वह अब भी वही साधारण कपड़े पहनता था, क्योंकि उसे याद था: “कपड़ों से नहीं, इरादों से आदमी बड़ा होता है।”
भाग 3: रॉयस मोटर्स का सौदा (चरम सीमा)
सुबह का वक्त था। शहर के सबसे महंगे इलाके में बनी रॉयस मोटर्स नाम की एक लग्जरी कार शोरूम में आज भी वैसी ही चहल-पहल थी। महंगे सूट पहने सेल्सपर्सन और चमकती कारें।
उसी चकाचौंध के बीच एक आदमी साधारण से कपड़ों में, धूल भरे जूतों के साथ, धीरे-धीरे शोरूम के दरवाजे से अंदर आया। यह रवि था। उसके चेहरे पर थकान नहीं, अब गहराई थी।
“एक्सक्यूज मी, यह वाली कार कितने की है?” रवि ने पास खड़ी सेल्स गर्ल से पूछा।
सेल्स गर्ल ने पलटकर देखा, और जैसे ही उसकी नज़र रवि के चेहरे पर पड़ी, उसका चेहरा एक पल को सख्त पड़ गया। वह उसकी तलाकशुदा पत्नी, नेहा थी।
नेहा ने तिरस्कार भरी नज़र से उसे देखा। “ओह, रवि, तुम क्यों आए हो यहाँ? हमारे शोरूम में? तुम्हारे बस की यह कार नहीं है।”
रवि धीमी आवाज़ में मुस्कुराया। “मैंने सोचा देख लूँ, क्या सच में इतनी महँगी होती हैं?”
नेहा की हँसी ताना थी। “इन कारों की कीमत तुम्हारी सालों की कमाई से ज़्यादा है। तुम अब भी वैसे ही हो। वही सस्ते कपड़े, वही पुराना चेहरा।”
सारे स्टाफ की निगाहें उन दोनों पर थीं। नेहा को अपने ग्राहकों के सामने यह सब अपमानजनक लगा।
रवि ने एक गहरी साँस ली। “नेहा, तुम्हें याद है? कभी इसी तरह मैं तुम्हारे लिए बाइक शोरूम में फाइनेंस लेने गया था। तब तुमने कहा था कि मुझे बड़ा स्टेटस वाला आदमी चाहिए। शायद आज वही स्टेटस तुम्हें बहुत बड़ा लग रहा है।”
नेहा झुंझलाते हुए चिल्लाई, “बस करो यह ड्रामा। मेरे पास तुम्हारी पुरानी बातें सुनने का टाइम नहीं है! जाओ यहाँ से। तुमने सोचा क्या था कि तुम यहाँ आकर अपनी पुरानी कहानी सुनाओगे और मैं पिघल जाऊँगी? तुम हमेशा से एक लूज़र थे और आज भी वही हो। तुम इस शोरूम में झाड़ू लगाने के भी लायक नहीं हो, कार खरीदना तो बहुत दूर की बात है!”
रवि चुपचाप उसकी आँखों में देखता रहा। उसके चेहरे पर फैली थकान अब गहरे संकल्प में बदल गई थी। उसने नेहा की आँखों में देखा और बहुत ही शांत, लेकिन अटल आवाज़ में कहा, “ठीक है नेहा, मैं तुम्हारी बात समझ गया।”
फिर उसने अपने जैकेट की अंदरूनी जेब से एक छोटा सा चमड़े का बटुआ निकाला और बटुए से एक चांदी का मोटा कॉर्पोरेट कार्ड निकाला।
उसने पास खड़े मैनेजर को आवाज़ दी। “एक्सक्यूज मी मैनेजर साहब, मैं आपके मालिक या रॉयस मोटर्स के मुख्य डीलर से बात करना चाहता हूँ।”
मैनेजर हिचकिचाया। रवि ने मैनेजर के हाथ में अपना बिज़नेस कार्ड थमाया, जिस पर एक बड़ी अंतर्राष्ट्रीय कंपनी के सीईओ का पद और रवि का नाम लिखा था।
नेहा का रंग अचानक पीला पड़ गया। उसके हाथ काँपने लगे।
रवि ने बिना पलक झपकाए कहा, “मैं इस शोरूम की कीमत जानना चाहता हूँ। यह इमारत, इसमें खड़ी सारी इन्वेंटरी, और इसकी डीलरशिप—सब कुछ। मुझे अभी के अभी इसका फेयर मार्केट वैल्यू जानना है।”
मैनेजर ने मालिक को फोन लगाया। कुछ ही मिनटों में, मैनेजर ने डरते-डरते एक बहुत बड़ी राशि रवि को बताई।
रवि ने बिना हिचके अपने असिस्टेंट को फोन मिलाया, अपनी आवाज़ को और सख्त करते हुए। “संजय, मैं रॉयस मोटर्स के सामने खड़ा हूँ। मुझे इस पूरी प्रॉपर्टी और बिज़नेस की खरीद-फरोख्त अभी के अभी पूरी करवानी है। जो रकम मैंने बताई है, वो तुरंत एस्क्रो अकाउंट में डालो। मुझे अगले आधे घंटे में सारे लीगल पेपरवर्क यहाँ चाहिए।”
पूरे शोरूम में सन्नाटा छा गया। स्टाफ, ग्राहक और नेहा, सब स्तब्ध थे।
करीब 45 मिनट बाद, जब सारे कानूनी कागज़ात हस्ताक्षरित हो चुके थे और रवि रॉयस मोटर्स का नया मालिक बन चुका था, उसने मैनेजर की तरफ देखा।
रवि ने शांत स्वर में घोषणा की, “मेरी पहली कार्रवाई यह है कि मैं इस शोरूम को यहाँ से बंद कर रहा हूँ। यह जमीन कल से एक नए प्रोजेक्ट के लिए इस्तेमाल होगी। मैं यह शोरूम तुड़वाने का आदेश देता हूँ।”
भाग 4: अंतिम निर्णय
नेहा अब तक ज़मीन पर गड़ी हुई थी, आँसुओं से भरी आँखों से उसे देख रही थी। उसका घमंड चूर-चूर हो चुका था। वह भागकर रवि के पास आई, हाथ जोड़कर फूट-फूट कर रोने लगी।
“रवि, मुझे माफ कर दो। प्लीज़, मुझे माफ कर दो! मैंने तुम्हें पहचाना नहीं। यह सब मैंने किस घमंड में आकर किया! मुझे पता नहीं था कि तुम… तुम इतने बड़े बन चुके हो। प्लीज़ मुझे एक मौका दे दो। हम फिर से शुरुआत कर सकते हैं।”
रवि ने अपने चेहरे पर कोई भाव नहीं आने दिया। उसने नेहा के हाथ धीरे से हटाए और एक पत्थर-सी ठंडी निगाहों से उसे देखा।
“तुम माफी क्यों मांग रही हो नेहा?”
“मैंने तुम्हारी बेइज्जती की। मैंने तुम्हें लूज़र कहा। मुझे माफ कर दो।”
“नहीं,” रवि ने अपनी आवाज़ को और सख्त किया, “तुम मुझसे इसलिए माफी नहीं मांग रही हो क्योंकि मैंने तुम्हारे अपमान को सहा। तुम मुझसे इसलिए माफी मांग रही हो क्योंकि मैंने यह शोरूम खरीद लिया।“
“तुम माफी मांग रही हो क्योंकि तुमने आज देखा कि तुम्हारा बड़े ‘स्टेटस’ वाला आदमी बनने का सपना मेरी एक फोन कॉल पर टूट गया।”
उसने एक कदम पीछे लिया। “मुझे तुम्हारी माफी की ज़रूरत नहीं है नेहा, क्योंकि तुमने मेरे अपमान के लिए माफी नहीं मांगी है। तुमने अपने खोए हुए मुनाफे के लिए माफी मांगी है, और इस तरह की माफी मेरे लिए बेईमानी है।”
रवि ने अपनी जेब से अपनी कार की चाबी निकाली, अपने नए मैनेजर को शोरूम बंद करने का आदेश दिया, और फिर बिना नेहा की तरफ देखे, जो अब भी ज़मीन पर घुटनों के बल बैठी रो रही थी, मुड़ा और उस शोरूम से हमेशा के लिए बाहर चला गया।
उपसंहार
कुछ समय बाद, नेहा को पछतावे की आग में जलते हुए, रवि मोटर्स के विशाल कॉर्पोरेट मुख्यालय का पता मिला। वह काँपते कदमों से रवि के केबिन में दाखिल हुई।
कमरे में लकड़ी की खुशबू थी, और रवि, अब पहले से कहीं ज़्यादा कठोर और सफल, कुर्सी पर बैठा था।
नेहा ने आँसू भरी आँखों से कहा, “रवि, मैं जानती हूँ मुझे तुमसे यह कहने का हक़ नहीं, लेकिन मैं बहुत पछता रही हूँ। तुम्हें याद है जब तुम रोज़ मेरे लिए सुबह का नाश्ता बनाते थे? तुमने मुझसे सिर्फ प्यार माँगा था, और मैंने बदले में तुम्हारी इज़्ज़त छीन ली।”
रवि धीरे से मुस्कुराया, लेकिन उस मुस्कान में नरमी नहीं थी। “हाँ, याद है मुझे। मैं कुछ बनकर दिखाऊंगा—शायद उस दिन का वादा मैंने पूरा किया। लेकिन तुम अब मेरे साथ नहीं हो।”
नेहा उठकर उसके पास आई। “रवि, मुझे एक मौका दे दो। मैं अब भी तुमसे सच्चा प्यार करती हूँ।”
रवि ने उसकी आँखों में देखा। फिर उसने बहुत धीमे स्वर में, जैसे किसी पुरानी बात को दफना रहा हो, कहा, “प्यार वही था जो मैंने किया था। जो तुमने छोड़ा, वो मेरा भरोसा था। और अब वो दोनों मर चुके हैं।“
इतना कहकर रवि ने अपनी कोट उठाई और धीरे-धीरे दरवाजे की ओर चला गया। नेहा फूट-फूट कर रो पड़ी, “रवि! एक बार पलटकर देखो!” लेकिन रवि नहीं रुका।
दरवाज़ा बंद हुआ और उसकी आहट भी खो गई। नेहा वहीं गिरकर ज़मीन पर बैठ गई। काश… थोड़ा वक्त और रुक जाती।
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