चप्पल बेचने वाली निकली करोड़ों की कंपनी की मालकिन | अगली सुबह जो हुआ उसने सबको रुला दिया

संघर्ष से शिखर तक: सरला त्रिपाठी की कहानी

मुंबई की भागदौड़ भरी और भीड़ भरी सड़कों पर, जहाँ हर कदम एक नए सपने की ओर बढ़ता था, वहाँ एक साठ वर्ष से अधिक उम्र की महिला, सरला देवी, सड़क किनारे बैठी थी। उनके चेहरे पर उम्र और जीवन के संघर्षों की गहरी झुर्रियाँ थीं। उनके कपड़े धूल और पसीने से सने हुए थे, और उनके पास एक पुरानी, टूटी हुई टोकरी में कुछ बेहद सस्ती, हाथ से सिली हुई चप्पलें थीं, जिन्हें देखकर लगता था कि शायद ही कोई उन्हें खरीदना चाहेगा।

लोग रोज़ उसके पास से गुज़रते थे—कुछ अपनी व्यस्तता में खोए हुए, कुछ दया भरी निगाहों से देखते हुए, तो कुछ मज़ाक उड़ाते हुए। किसी को क्या पता था कि जिस औरत को देखकर लोग तरस खा रहे थे, जिसके हालात पर लोग हँस रहे थे, वही औरत दरअसल इस शहर की सबसे बड़ी फुटवियर कंपनी की असली मालकिन थी? किसी को नहीं पता था कि अगले ही दिन उसकी सच्चाई सामने आने वाली थी जो न सिर्फ़ मुंबई के व्यापार जगत को, बल्कि हर गुज़रने वाले इंसान को हिला कर रख देगी।

अतीत की चमक और वर्तमान का अंधेरा

सुबह का समय था। मुंबई लोकल ट्रेनों की चिर-परिचित आवाज़ें, गाड़ियों का निरंतर शोर और सड़कों पर भागते-दौड़ते लोग—शहर अपनी पूरी रफ़्तार पकड़ चुका था। इस भागमभाग के बीच, एक पुराने, नीले त्रिपाल पर सरला देवी बैठी थीं। उनकी उम्र 70 के करीब थी। चेहरे पर गहरी थकान थी, मगर उनकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी—एक ऐसी चमक जो टूटे हुए सपनों की याद दिलाती थी, पर उम्मीद की लौ को भी जलाए रखती थी।

वह रोज़ अपनी छोटी सी टोकरी लेकर आतीं, जिसमें कुछ हाथ से मरम्मत की हुई चप्पलें होतीं। कभी-कभी दिन में दो बिकतीं, और कभी एक भी नहीं। फिर भी, वह बिना किसी शिकायत या शिकन के सुबह से शाम तक बैठी रहतीं। आसपास के दुकानदार उन्हें ‘बूढ़ी अम्मा’ कहकर पुकारते। कोई उन्हें देखकर हँस देता, तो कोई कहता, “अरे अम्मा, अब इस उम्र में क्या कमाई कर लोगी?” सरला बस एक शांत मुस्कान के साथ जवाब देतीं।

दिन ढलता, सूरज डूब जाता, और सरला अपनी बची हुई चप्पलें समेटकर वापस उसी टूटी-फूटी झोपड़पट्टी में चली जातीं, जहाँ वह पिछले कई सालों से अकेली रह रही थीं। न कोई परिवार, न कोई साथी, बस यादें और कुछ अधूरे क़िस्से।

कभी यही सरला देवी, एक संभ्रांत परिवार की बहू थीं। उनके पति, रमेश त्रिपाठी, मुंबई में एक छोटे से फुटवियर स्टार्टअप के मालिक थे। रमेश ने अपने जुनून और सरला के डिज़ाइन के दम पर उस छोटे से बिज़नेस को एक बड़ी कंपनी में बदलने का सपना देखा था। सरला हर कदम पर उनके साथ थीं, वह डिज़ाइन बनाती थीं, ग्राहकों से मिलती थीं, और अपने पति के साथ हर संघर्ष में मज़बूती से खड़ी रहती थीं।

लेकिन ज़िंदगी कब किसे पलट दे, कोई नहीं जानता। एक भयानक एक्सीडेंट में रमेश की दुखद मृत्यु हो गई। उनके जाने के बाद, उनके पार्टनर, मोहित कपूर, ने रमेश के अधूरे सपनों और कंपनी पर कब्ज़ा कर लिया। सरला के पास अपने हक़ का कोई कानूनी कागज़ नहीं था, बस अपने पति की कुछ पुरानी नोटबुक्स और कुछ अधूरे सपने। वह सड़कों पर आ गईं।

कंपनी, जिसका नाम ‘आरएस फुटवियर प्राइवेट लिमिटेड’ था (आरएस यानी रमेश और सरला), अब ‘एमके फुटवियर’ (मोहित कपूर) बन चुकी थी, और सरला का नाम हमेशा के लिए मिटा दिया गया। जिस चप्पल के डिज़ाइन कभी सरला बनाती थीं, आज उन्हीं जैसी सस्ती चप्पलें वह सड़क पर बेच रही थीं। लोगों को क्या पता, वह औरत जो धूल-मिट्टी में बैठी चप्पलें बेचती है, कभी उन्हीं चप्पलों की ब्रांडिंग करती थी। जब-जब वह एमके फुटवियर के चमकते बिलबोर्ड्स को देखतीं, उनकी आँखों में कुछ जलने लगता। यह वही कंपनी थी जो उनके पति के नाम से शुरू हुई थी और अब किसी और के नाम से चमक रही थी।

सीईओ और सरला अम्मा

फिर भी, सरला ने हार नहीं मानी। वह हर दिन अपनी टोकरी लेकर निकलतीं, सड़क किनारे बैठतीं और ग्राहकों का इंतज़ार करतीं। उस दिन भी सब कुछ सामान्य था।

तभी एक काली, चमकदार कार उनके सामने आकर रुकी। उसमें से एक नौजवान उतरा—करीब 30 साल का, फ़ॉर्मल कपड़ों में, हाथ में लैपटॉप बैग लिए हुए। यह था आदित्य कपूर, एमके फुटवियर का नया और युवा सीईओ, मोहित कपूर का बेटा।

आदित्य अपनी कंपनी का निरीक्षण करने निकला था। सिग्नल पर रुकी कार से उसकी नज़र सड़क किनारे बैठी उस शांत, थकी हुई औरत पर पड़ी। वह कुछ देर तक उसे देखता रहा। वह बेहद शांत तरीके से अपनी चप्पलें बेच रही थी, मानो दुनिया के शोर से उसका कोई वास्ता न हो।

आदित्य को पता नहीं क्यों, पर उसकी आँखें उस औरत पर टिक गईं। इतनी उम्र में भी यह औरत रोज़ सड़क पर मेहनत करती होगी। वह कार से उतरा और उसके पास गया। उसने कुछ नहीं कहा, बस एक जोड़ी चप्पल उठाई और पूरे पैसे वहीं रख दिए।

सरला मुस्कुराई और बोली, “भगवान तुम्हें ख़ूब खुश रखे, बेटा।”

आदित्य ने सिर हिलाया और चला गया। लेकिन उस रात मुंबई में भयंकर बारिश हुई। लोग अपने घरों में थे, मगर सरला उसी गीले त्रिपाल के नीचे सिकुड़ी बैठी थी। चप्पलों की टोकरी भीग गई थी, कई ख़राब हो गईं। फिर भी, वह टोकरी को छाती से लगाए बैठी थी, जैसे कोई अनमोल ख़ज़ाना हो। वह धीरे से बुदबुदाई, “रमेश, तुम्हारे सपने अब भी ज़िंदा हैं।”

उस रात, आदित्य की नींद उड़ गई। उसे उस बूढ़ी औरत की आवाज़ बार-बार याद आ रही थी, “भगवान खुश रखे बेटा।”

सच की दस्तक

अगले दिन, आदित्य अपनी कंपनी के पुराने दस्तावेज़ देख रहा था। उसके पिता ने जो पुराने रिकॉर्ड रखे थे, उनमें एक पुरानी, दबी हुई फ़ाइल मिली: “आरएस फुटवियर ओरिजिनल पार्टनरशिप एग्रीमेंट 1991”

फ़ाइल खोलते ही उसने देखा: फाउंडर: रमेश त्रिपाठी एंड सरला त्रिपाठी

आदित्य की आँखें फैल गईं। यह नाम उसने पहले कभी नहीं सुना था। उसने झट से अपने असिस्टेंट को बुलाया और पूछा, “यह सरला त्रिपाठी कौन थी?”

असिस्टेंट ने बताया, “सर, यह तो पुराने पार्टनर रमेश त्रिपाठी की पत्नी थीं। एक्सीडेंट के बाद कंपनी के सारे दस्तावेज़ और उनके नाम का रिकॉर्ड अचानक ‘ग़ायब’ हो गया था।”

आदित्य को उस बूढ़ी औरत की तस्वीर याद आई जो सड़क पर चप्पल बेच रही थी, और जिसका नाम सरला था। उसे लगा जैसे उसके अंदर कुछ टूट गया हो। क्या यह वही औरत है जिसका नाम इस फ़ाइल में लिखा है? वह रात भर यही सोचता रहा।

अगली सुबह, आदित्य सबसे पहले उसी जगह पहुँचा जहाँ सरला देवी चप्पलें बेचती थीं। सरला पहले से बैठी थीं, थोड़ी उदास, क्योंकि रात की बारिश में उनकी कई चप्पलें ख़राब हो चुकी थीं।

आदित्य धीरे-धीरे उनके पास आया। इस बार बिना किसी जल्दी के। उसने देखा—वही त्रिपाल, वही झुर्रियों से भरा चेहरा और वही मुस्कान जो हर मुश्किल में भी क़ायम थी।

सरला ने मुस्कुरा कर कहा, “बेटा, फिर से चप्पल लेनी है क्या?”

आदित्य ने जवाब नहीं दिया। वह बस झुक कर बोला, “अम्मा, आपका नाम सरला है, है न?”

वह थोड़ी चौंकी, फिर बोली, “हाँ बेटा, सरला हूँ। पर तू कैसे जानता है मेरा नाम?”

आदित्य की निगाहें उनकी पुरानी टोकरी पर पड़ीं, जिसके एक कोने में एक पुरानी नोटबुक रखी थी, जिस पर पेंसिल से लिखा था: “आरएस फुटवियर डिज़ाइन्स बाई सरला त्रिपाठी”

आदित्य की साँसें थम गईं। यही वह नाम था जो उसने कल फ़ाइल में देखा था।

“अम्मा,” उसने धीमे से पूछा, “क्या आप कभी रमेश त्रिपाठी जी को जानती थीं?”

उनकी आँखें भर आईं। धीरे से बोलीं, “वो मेरे पति थे, बेटा। वो बहुत बड़े सपने देखते थे। चप्पलों की कंपनी बनाना चाहते थे ताकि हर ग़रीब आदमी भी अच्छे जूते पहन सके… लेकिन उनकी मौत के बाद सब कुछ छिन गया।” बोलते-बोलते उनकी आँखें नम हो गईं, पर आवाज़ में एक दृढ़ता थी।

आदित्य बिल्कुल शांत था। उसे समझ आ गया था कि सामने खड़ी औरत ही आरएस फुटवियर की असली सह-संस्थापक है।

हक की वापसी

आदित्य वापस ऑफ़िस गया और उस रात उसने अपने पिता के पुराने ईमेल्स, फ़ाइलें और अकाउंट्स खँगालने शुरू किए। वहाँ उसे वह सब मिला जो उसे नहीं देखना चाहिए था। रमेश त्रिपाठी की मौत के बाद, उनके पार्टनर मोहित कपूर ने उनके सिग्नेचर फ़र्ज़ी तरीक़े से इस्तेमाल किए थे और कंपनी के शेयर धीरे-धीरे अपने नाम पर ट्रांसफ़र कर लिए थे।

आदित्य की आँखों में आँसू आ गए। उसने फ़ाइलें बंद करके बस इतना बोला, “पापा, आपने किसी का हक़ छीन लिया।” उसने तुरंत तय किया, अब जो होगा, सही होगा। वह सरला देवी को उनका हक़ लौटाएगा।

अगली सुबह, आदित्य फिर उसी जगह पहुँचा। सरला देवी को देखकर उसने कहा, “अम्मा, आज आपको मेरे साथ कहीं चलना है।”

सरला हँस पड़ीं, “बेटा, मेरे पास तो बस यह टोकरी है, और कहाँ जाना?”

वह बोले, “बस मुझ पर भरोसा रखिए।”

उसने उनके लिए एक कार मंगवाई। लोग हैरान थे। सड़क पर बैठी चप्पल बेचने वाली औरत को सीईओ अपनी गाड़ी में क्यों बैठा रहा है? पर किसी को नहीं पता था कि कहानी का असली मोड़ अभी बाक़ी है।

कार सीधे पहुँची एमके फुटवियर प्राइवेट लिमिटेड के हेड ऑफ़िस पर। यह वही जगह थी जहाँ कभी सरला और उनके पति ने अपने सपनों की शुरुआत की थी।

जैसे ही वे अंदर पहुँचे, सिक्योरिटी गार्ड्स ने रोकने की कोशिश की, “मैडम, यह जगह आम लोगों के लिए नहीं है।”

लेकिन आदित्य ने हाथ उठाया, “यह कंपनी की असली मालकिन हैं। रास्ता दीजिए।”

सारा स्टाफ़ एक पल के लिए सन्न रह गया। वह औरत जो सड़क पर चप्पल बेचती थी, आज उसी कंपनी के गेट के अंदर खड़ी थी!

वह धीमे-धीमे कदम रखती अंदर गईं। हर दीवार, हर टेबल, हर कोना उन्हें अपने पुराने दिनों की याद दिला रहा था। वह एक टेबल के पास जाकर बोलीं, “यहीं बैठकर रमेश डिज़ाइन बनाते थे।” उनकी आँखें भीग गईं।

आदित्य ने सबके सामने वह पुरानी फ़ाइल निकाली और बोला, “यह कंपनी मेरी नहीं, इनकी है। इन्होंने और इनके पति ने इसे बनाया था। मेरे पिता ने सिर्फ़ इससे फ़ायदा उठाया।”

ऑफ़िस में सन्नाटा छा गया। सबके चेहरों पर शर्म थी।

सरला देवी कुछ देर तक कुछ नहीं बोलीं। फिर, उसी दृढ़ता से बोलीं, “बेटा, मुझे अब कंपनी नहीं चाहिए। बस इतना चाहती हूँ कि कोई ग़रीब औरत फिर अपने सपनों से वंचित न रहे। इसे एक ऐसे नेक काम में लगाओ।”

आदित्य ने तुरंत घोषणा की, “आज से एमके फुटवियर का नाम बदला जाएगा। अब इसका नाम होगा ‘आरएस फुटवियर फाउंडेशन’ और इसकी 50% इनकम, ग़रीब और ज़रूरतमंद औरतों की मदद में जाएगी।”

पूरा ऑफ़िस तालियों से गूँज उठा। सरला की आँखों में आँसू थे—पर ये आँसू दर्द के नहीं, गर्व और संतोष के थे।

सम्मान और प्रेरणा

शाम होते-होते यह ख़बर सोशल मीडिया पर आग की तरह फैल गई: “सड़क किनारे चप्पल बेचने वाली निकली करोड़ों की कंपनी की असली मालकिन!” न्यूज़ चैनल्स, अख़बार—सब जगह एक ही चेहरा था, सरला त्रिपाठी का।

लोग जो कल तक उन्हें दया से देखते थे, आज उनके कदमों में झुककर सलाम कर रहे थे। वह अब भी उसी सादगी से मुस्कुरा रही थीं।

उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा, “लोगों ने मेरे कपड़े देखे, मेरा दिल नहीं। पर अब शायद कोई किसी के हालात से नहीं, मेहनत से पहचानेगा।”

अगले ही महीने, मुंबई नगर निगम ने उन्हें ‘इंस्पिरेशन ऑफ़ द ईयर’ अवार्ड से सम्मानित किया। मंच पर जब उन्होंने ट्रॉफ़ी ली, तो पूरा हॉल एक स्वर में गूँज उठा: “जय सरला अम्मा!”

वह मंच से नीचे उतरीं और उन मजदूर औरतों के बीच जाकर बैठ गईं जिन्हें फाउंडेशन ने मदद के लिए बुलाया था। वह बोलीं, “मैं आज भी वही सरला हूँ जो कल सड़क पर बैठती थी। फ़र्क़ बस इतना है—कल मेरे पास सिर्फ़ मेहनत थी, आज मेरे पास इज़्ज़त भी है।”

रात को सरला देवी फिर उसी जगह पहुँची, जहाँ वह सालों तक चप्पलें बेचती थीं। अब वह जगह सुनसान थी, मगर उनकी पुरानी टोकरी वहीं रखी थी। उन्होंने उसे उठाकर देखा, मुस्कुराईं, और प्यार से कहा, “अब तू आराम कर। तेरी मेहनत अब नाम बन गई है।”

वह त्रिपाल और टोकरी को कार में रख लेती हैं। दूर जाती कार के शीशे में उनकी परछाईं गायब हो जाती है।

कहानी यहीं थम जाती है, पर जो सबक छोड़ जाती है, वह हमेशा याद रहेगा। कभी किसी को उसके हालात से मत आँकिए, क्योंकि जिस औरत को दुनिया ने ठुकरा दिया, उसी ने दुनिया को सिखाया कि सच्ची अमीरी दौलत से नहीं, ईमानदारी और मेहनत से होती है। ज़िंदगी चाहे जितनी कठिन क्यों न लगे, अगर आप सच्चे हैं, तो एक दिन पूरा शहर आपके आगे झुकेगा।