चलती ट्रेन से कूदने जा रही थी… अजनबी लड़के ने बचाया, फिर जो हुआ |

ट्रेन की पटरी पर जिंदगी का फैसला”

शाम के समय एक ट्रेन तेज रफ्तार से पटरी पर दौड़ रही थी। हवा को चीरती हुई जैसे कोई अनजाना सफर तय कर रही हो। और उसके डिब्बों में मुश्किल से कुछ ही यात्री बिखरे हुए बैठे थे। हर कोई अपनी दुनिया में खोया हुआ था। लेकिन उसी ट्रेन के एक डिब्बे के गेट पर खड़ी थी एक लड़की, जिसका नाम था रिया।

उसके चेहरे पर इतनी गहरी उदासी छाई हुई थी कि देखने वाला भी सहम जाए। आंखों में आंसुओं का सैलाब था जो रुकने का नाम नहीं ले रहा था और मन में जैसे तूफान उठा हुआ था जो सब कुछ तबाह करने पर तुला था। वो बार-बार नीचे की तरफ झांक रही थी, पटरी पर नजरें गड़ाए हुए जैसे बस अब एक पल में सब कुछ खत्म करने का फैसला कर चुकी हो। और वह फैसला था खुद को उस दौड़ती ट्रेन से नीचे फेंक देना ताकि सारे दर्द, सारी तकलीफें हमेशा के लिए मिट जाएं।

रिया का दिल इतनी तेज धड़क रहा था कि लगता था कहीं बाहर ना निकल आए। उसके दिमाग में बस एक ही ख्याल घूम रहा था। बार-बार वही आवाज गूंज रही थी कि अब और नहीं सहेगा। बस एक छलांग और सब खत्म। कोई दुख नहीं, कोई आंसू नहीं, कोई धोखा नहीं, बस शांति। और वह धीरे-धीरे अपने कदम गेट के बाहर की तरफ बढ़ा रही थी। लोहे की रड को इतनी कसकर पकड़ लिया था कि हाथों की नसें उभर आई थीं। हवा उसके बालों को उड़ा रही थी और नीचे पटरी की आवाज जैसे उसे बुला रही थी।

लेकिन ठीक उसी पल जैसे किस्मत ने कोई खेल रचा हो। डिब्बे के पीछे खड़ा एक लड़का, जो रोज की तरह ट्रेन में घूम-घूम कर स्नैक्स बेच रहा था। वो फुर्ती से आगे बढ़ा। उसका नाम था विजय। पतला दुबला लेकिन मेहनती, चेहरे पर एक सादगी भरी मुस्कान जो हमेशा रहती थी। वो बस चंद सेकंड में रिया के पास पहुंच गया और ठीक समय पर उसका हाथ पकड़ लिया। इतनी जोर से खींचा कि रिया अंदर की तरफ गिरते-गिरते बची और वह झटका इतना अचानक था कि रिया का गुस्सा भड़क उठा।

वो कांपते हुए पीछे हटी, आंसू पोंछते हुए विजय को घूर कर बोली, “तुम कौन होते हो मुझे छूने वाले, मेरा हाथ पकड़ने वाले? छोड़ो मुझे। मुझे अपना काम करने दो। तुम्हें क्या हक है रोकने का?”

विजय ने उसकी आंखों में गहराई से देखा। जहां दर्द की परतें छिपी हुई थीं और दृढ़ लेकिन नरम आवाज में कहा, “नहीं, मैं तुम्हें ऐसा करने नहीं दूंगा। चाहे कितनी भी बड़ी परेशानी हो, उसका कोई ना कोई हल जरूर निकलता है। जिंदगी यूं बर्बाद करने के लिए नहीं बनी है। वह तो एक तोहफा है जो हमें मिला है और इसे खत्म करना कोई बहादुरी नहीं है।”

रिया ने छटपटाते हुए कहा, “तुम क्या जानते हो मेरी जिंदगी के बारे में? मेरी तकलीफों के बारे में तुम्हें क्या पता कितना दर्द है यहां। कोई समाधान नहीं है। बस सब कुछ खत्म हो जाए। यही बेहतर है।”

लेकिन विजय की आवाज अब और ज्यादा नरम हो गई। जैसे कोई बड़ा भाई समझा रहा हो, “मुझे नहीं पता तुम्हारा दर्द कितना गहरा है। लेकिन इतना तो जानता हूं कि कोई समस्या इतनी बड़ी नहीं होती कि उसके लिए अपनी सांसे रोक ली जाए। अगर तुम चाहो तो मुझे बताओ। शायद मैं कुछ मदद कर सकूं। या कम से कम सुन तो लूं क्योंकि कभी-कभी बात करने से ही बोझ हल्का हो जाता है।”

रिया एक पल को ठिठक गई। उसके होठ कांप रहे थे। आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। लेकिन दिल के किसी कोने में पहली बार लगा कि कोई अजनबी भी उसके दर्द को सच में समझना चाहता है। जैसे कोई किरण अंधेरे में चमकी हो।

लेकिन फिर भी वह इतनी टूट चुकी थी कि गेट के बाहर भागती पटरी को देखकर मन में वही मौत का ख्याल लौट आया। काश सब यही थम जाए हमेशा के लिए।

विजय ने कुछ सोचकर रिया का हाथ फिर से पकड़ा। लेकिन इस बार नरमी से और उसे गेट से दूर अंदर की तरफ ले आया। एक खिड़की वाली सीट पर बैठाया जहां से बाहर का नजारा दिखता था। खुद उसके सामने वाली सीट पर बैठ गया और धीरे से बोला, “देखो, चुप रहना तुम्हारे दर्द को और बढ़ा देगा। अगर आज किसी को नहीं बताओगी तो यह बोझ तुम्हें अंदर से खोखला कर देगा। मुझे अपना दोस्त समझो या बस एक अनजान साथी और बता दो कि आखिर क्यों इतना बड़ा कदम उठाने जा रही थी? क्या हुआ है जो तुम्हें इतना तोड़ दिया?”

रिया की पलकों से आंसू टपकने लगे, गालों पर बहते हुए और उसने धीमी कांपती आवाज में कहा, “दोस्त जैसे शब्द मत कहो क्योंकि जिस पर मैंने सबसे ज्यादा भरोसा किया था उसी ने मुझे छल लिया है। अब किसी पर भरोसा करने लायक कुछ बचा ही नहीं। सब कुछ बिखर चुका है।”

विजय चुपचाप उसकी तरफ देखता रहा, उसके चेहरे पर कोई जजमेंट नहीं था, बस सच्ची चिंता। और उसने नरम लहजे में पूछा, “धोखा किसने दिया रिया? बताओ, शायद बात करने से मन हल्का हो जाए।”

रिया ने हंठ भीच लिए, कुछ पल चुप रही जैसे अंदर का तूफान बाहर आने से डर रहा हो। फिर अचानक जैसे सब कुछ टूट गया, वो सिसकियां भरते हुए बोल पड़ी, “मेरा नाम रिया है। मैं दिल्ली से भाग कर आई हूं क्योंकि जिस लड़के से मैंने सच्चा प्यार किया था, उसी ने मुझे बीच रास्ते में छोड़ दिया। उसने वादा किया था कि हमेशा साथ रहेगा, शादी करेगा। लेकिन जब मैंने सब कुछ छोड़कर उसका साथ चुना, घर छोड़ा, परिवार से दूर हुई तो उसी ने मुझे धोखा देकर मेरा नंबर ब्लॉक कर दिया। अब मैं कहीं की नहीं रही। घर लौट नहीं सकती क्योंकि वहां सिर्फ ताने मिलेंगे, अपमान मिलेगा और बाहर दुनिया में कोई जगह नहीं मेरे लिए।”

विजय ध्यान से उसकी हर बात सुन रहा था। जैसे हर शब्द को दिल में उतार रहा हो। उसने गहरी सांस ली और कहा, “रिया, अगर किसी ने तुम्हें छोड़ दिया तो इसका मतलब यह नहीं कि तुम्हारी पूरी जिंदगी ही खत्म हो गई। जो इंसान सच्चा होता है वो कभी बीच में नहीं छोड़ता। शायद वह तुम्हारे लायक था ही नहीं। और तुम्हें इससे बेहतर मिलना लिखा है। लेकिन खुद को मारकर क्या मिलेगा? सिर्फ दर्द और अफसोस उन लोगों को जो तुम्हें चाहते हैं।”

रिया ने गुस्से से जवाब दिया, लेकिन उसकी आवाज में अब दर्द ज्यादा था, “नहीं, तुम नहीं समझ सकते। मैंने उसे अपनी पूरी दुनिया मान लिया था। अपना सब कुछ सौंप दिया था। अब जब वह चला गया तो मेरे पास क्या बचा? कुछ नहीं। बस खालीपन और अकेलापन।”

विजय ने उसकी ओर झुककर दृढ़ स्वर में कहा, “तुम्हारे पास जिंदगी बची है रिया। और यह सबसे कीमती चीज है। सोचो अगर आज तुम हार मान लोगी तो कल का वह सुंदर मौका कभी नहीं आएगा जहां खुशियां इंतजार कर रही हो। हो सकता है भगवान ने मुझे तुम्हारे रास्ते में इसलिए भेजा हो ताकि मैं तुम्हें यह सब समझा सकूं और तुम्हें गिरने से रोक सकूं।”

रिया ने पहली बार बिना रोए उसकी तरफ देखा। उसकी आंखों में दर्द तो था लेकिन कहीं एक छोटी सी उम्मीद की चिंगारी भी जल रही थी जो धीरे-धीरे फैल रही थी। वो धीरे बोली, “तुम कह रहे हो कि कल खूबसूरत हो सकता है। लेकिन मैं कल तक पहुंचूंगी कैसे? घर जाने की हिम्मत नहीं। वहां अपमान मिलेगा। ताने मिलेंगे। और जिसने प्यार का वादा किया था उसी ने मुझे रास्ते में छोड़ दिया। अब मेरे लिए क्या बचा है? बताओ।”

विजय उसकी बातें सुन रहा था, हर शब्द को महसूस करते हुए और नरम आवाज में बोला, “रिया, घर वाले गुस्सा करेंगे, डांटेंगे, लेकिन वो गुस्सा हमेशा नहीं रहता। मैंने देखा है मां-बाप कितने भी नाराज हो, आखिर में अपने बच्चे की खुशी और सलामती चाहते हैं। हो सकता है अभी तुम्हारे पापा गुस्से में हों, लेकिन जब वह तुम्हें सुरक्षित देखेंगे तो शायद वही तुम्हारे सबसे बड़े सहारे बन जाएं और तुम्हें गले लगा लें।”

रिया की आंखों से आंसू फिर बहने लगे। लेकिन अब वो इतने कड़वे नहीं लग रहे थे। उसने भारी आवाज में कहा, “तुम मेरे पापा को नहीं जानते। छोटी-छोटी बातों पर वो डांटते हैं, धमकाते हैं। उसी दिन उनका गुस्सा मुझ पर टूट पड़ा था। मैंने गुस्से में घर छोड़ दिया और सीधे अपने बॉयफ्रेंड के पास पहुंची। उसने कहा था कि रेलवे स्टेशन आ जाओ, सब ठीक हो जाएगा। मैंने उस पर यकीन किया। अपना फोन घर पर छोड़ दिया ताकि पापा ट्रैक ना कर सकें। लेकिन स्टेशन पर घंटों इंतजार किया तो पता चला कि उसने तो मेरा नंबर ही ब्लॉक कर दिया है। सोचो जिस पर मैंने सब कुछ दांव पर लगा दिया, उसी ने मुझे अपनाने से इंकार कर दिया। अब मैं घर नहीं लौट सकती और दुनिया में कोई जगह नहीं मेरे लिए। बस मौत ही सहारा लग रही है।”

विजय ने उसका दर्द सुना। दिल में एक पीस महसूस की और गहरी सांस लेकर बोला, “रिया, दुनिया में हर धोखा अंत नहीं होता। कभी-कभी धोखे ही हमें सिखाते हैं कि असली इंसान कौन है और क्या चाहिए जिंदगी में। अगर वह तुम्हें सच में प्यार करता तो आज तुम्हें अकेला नहीं छोड़ता। तुम्हारा दर्द सच्चा है लेकिन उसका प्यार झूठा था और अब तुम्हें खुद पर भरोसा करना होगा।”

रिया ने कांपते होठों से कहा, “लेकिन मैं इतनी टूट चुकी हूं कि अब किसी पर भरोसा करने का मन ही नहीं करता। सब कुछ डरावना लगता है।”

विजय ने उसकी आंखों में देखते हुए दृढ़ स्वर में कहा, “अगर भरोसा नहीं करोगी तो जीना और मुश्किल हो जाएगा। भरोसा मत करो उस पर जिसने धोखा दिया। लेकिन भरोसा करना सीखो खुद पर और उस भगवान पर जिसने तुम्हें इस पल गिरने से बचा लिया। क्या पता तुम्हारे लिए कोई और रास्ता लिखा हो। कोई बेहतर साथी, कोई नई शुरुआत जो इस धोखे से कहीं ज्यादा मजबूत हो।”

रिया चुप हो गई। उसके आंसू थमने लगे थे। विजय के शब्द उसके दिल में धीरे-धीरे उतर रहे थे। जैसे कोई मरहम लग रहा हो। वो खिड़की से बाहर देखने लगी। लेकिन इस बार चेहरे पर वह निराशा नहीं थी बल्कि एक नई सोच की शुरुआत हो रही थी।

विजय चुपचाप सामने बैठा रहा। उसके चेहरे पर सच्चाई थी, आंखों में अपनापन और ट्रेन तेजी से आगे बढ़ रही थी। लेकिन अब रिया का मन मौत की जिद से हटकर जिंदगी की तरफ मुड़ रहा था।

धीरे-धीरे शाम ढल रही थी। अंधेरा फैलने लगा था। रिया कुछ देर चुप रही। बाहर भागते पेड़ों को देखती रही। फिर अचानक विजय की तरफ मुड़ी और धीमी आवाज में उसका नाम लिया। “विजय।”

विजय ने चौंक कर उसकी तरफ देखा, “हां बोलो।”

रिया थोड़ी हिचकिचाई जैसे कोई बड़ा फैसला ले रही हो। फिर कांपती आवाज में बोली, “अगर… अगर मेरी किस्मत तुम्हारे साथ जुड़ी हो। अगर भगवान ने सच में तुम्हें मेरे रास्ते में इसलिए भेजा हो कि तुम मेरे साथी बनो तो…”

विजय उसकी बात सुनकर स्तब्ध रह गया। कुछ पल उसे घूरता रहा जैसे समझ ही नहीं पा रहा हो कि क्या सुना है। “तुम क्या कह रही हो रिया? ठीक से बताओ।”

रिया ने सीधे उसकी आंखों में देखा और बोली, “क्या तुम मुझसे शादी करोगे? अगर तुमने यहां कहा तो मुझे जिंदगी से लड़ने की हिम्मत मिल जाएगी। मैं दोबारा कभी मौत का ख्याल नहीं करूंगी।”

विजय को जैसे बिजली का झटका लगा। उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। हाथ से स्नैक्स का बैग गिर पड़ा और मुंह से शब्द नहीं निकले। “क्या कहा तुमने?” उसने दोबारा पूछा।

रिया की आंखों से आंसू निकल आए। लेकिन अब उनमें डर कम और उम्मीद ज्यादा थी। “हां विजय, मैं पूछ रही हूं। क्या तुम मुझसे शादी करोगे? अगर तुमने मुझे अपना लिया तो मैं टूटना बंद कर दूंगी। लेकिन अगर मना किया तो शायद मैं खुद को रोक ना पाऊं।”

विजय का सिर घूम गया। वो घबराकर चारों तरफ देखने लगा कि कहीं कोई सुन तो नहीं रहा। लेकिन डिब्बा अब भी खाली और शांत था। उसने धीरे से कहा, “रिया, तुम समझ भी रही हो क्या कह रही हो। हम एक दूसरे को जानते तक नहीं। तुम किसी अच्छे घर से लगती हो, अमीर लगती हो और मैं तो बस ट्रेन में स्नैक्स बेचकर गुजारा करता हूं। मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं। यह सब इतना आसान नहीं है।”

रिया ने दृढ़ स्वर में जवाब दिया, “लायक कौन है और कौन नहीं? यह वक्त तय करता है विजय। जिसने मुझे धोखा दिया वह पढ़ा लिखा, अच्छे घर का था। लेकिन उसने मेरा साथ नहीं निभाया। और तुम। तुमने मुझे मौत से खींच कर जिंदगी दी है। अगर कोई मेरा हकदार है तो वह तुम हो। बस तुम।”

विजय ने माथे पर हाथ रख लिया। उसकी आंखों में असमंजस था, डर था। लेकिन कहीं एक भावना भी जाग रही थी। “लेकिन रिया, तुम्हें अपने घर वालों के बारे में सोचना चाहिए। तुम्हारे मां-पापा क्या कहेंगे? उनका क्या होगा अगर वह जान गए?”

रिया का चेहरा सख्त हो गया। कांपती आवाज में बोली, “घर वालों से ही तो भाग कर आई हूं विजय। अगर लौटूंगी तो वही पुराने ताने, गुस्सा, अपमान मिलेगा। अब मेरे पास कोई रास्ता नहीं या तो मौत चुनूं या किसी ऐसे का सहारा जो मुझे सच में थाम सके और अभी इस दुनिया में मुझे सिर्फ तुम दिख रहे हो, तुम्हारा साथ।”

विजय के दिल में कशमकश मची हुई थी। एक तरफ उसका गरीब परिवार था जो मुश्किल से गुजर-बसर करता, रोज की मेहनत से जीता था। दूसरी तरफ उसके सामने बैठी यह टूटी हुई लड़की जो उसे अपनी आखिरी उम्मीद मान चुकी थी। थोड़ी देर वो खामोश रहा। सोचता रहा कि क्या करें? क्या यह सही है?

फिर धीरे से बोला, “अगर मैं तुमसे शादी के लिए हां कर दूं, तो क्या तुम यकीन करोगी कि आगे सब ठीक होगा? क्या तुम फिर कभी मौत के बारे में नहीं सोचोगी? कभी हार नहीं मानोगी?”

रिया ने तुरंत कहा, “हां विजय, मैं कसम खाती हूं। अगर तुमने मेरा हाथ थाम लिया तो मैं मौत का ख्याल हमेशा के लिए छोड़ दूंगी और जिंदगी से लड़ूंगी।”

विजय ने उसकी आंखों में देखा, जहां टूटा दिल था। लेकिन जिंदगी थामने की जिद भी। उसने गहरी सांस ली और गंभीर आवाज में कहा, “ठीक है रिया। अगर तुम्हारी जिंदगी बचाने के लिए मुझे यह कदम उठाना पड़े तो मैं तैयार हूं। मैं तुमसे शादी करूंगा।”

रिया के चेहरे पर पहली बार मुस्कान आई। आंसू बह रहे थे लेकिन अब खुशी के। वो सीट से उठी और विजय का हाथ कसकर पकड़ लिया। जैसे जिंदगी से दोबारा दोस्ती कर ली हो।

ट्रेन तेजी से आगे बढ़ रही थी। लेकिन अब उनके लिए जिंदगी ने एक नया मोड़ ले लिया था। हालांकि विजय अभी भी सोच में डूबा था। क्या यह सही फैसला है? क्या मैं इसे संभाल पाऊंगा? लेकिन रिया की पकड़ इतनी मजबूत थी कि लग रहा था वह अब कभी नहीं टूटेगी।

ट्रेन अगले स्टेशन पर रुकी, जो मुंबई के पास एक छोटा सा स्टेशन था। डिब्बे में थोड़ी हलचल हुई। लोग उतरने-चढ़ने लगे। विजय ने धीरे से कहा, “उतरना होगा रिया। आगे क्या करना है, सोचने के लिए हमें कहीं ठहरना पड़ेगा। चलो।”

दोनों ट्रेन से उतर गए। प्लेटफार्म पर पीली रोशनी में लोग भागदौड़ कर रहे थे। लेकिन उनके लिए जैसे सब कुछ धुंधला हो गया था। सिर्फ एक दूसरे का साथ साफ दिख रहा था।

विजय ने रिया को पास के एक नल से पानी लाकर दिया। रिया ने कांपते हाथों से पिया और पहली बार राहत की सांस ली। जैसे बोझ हल्का हो गया हो।

विजय ने गंभीर स्वर में कहा, “रिया, रात हो रही है। मुझे अपनी चाची के घर ले चलना होगा। वही ठहरोगी तो मैं सोच पाऊंगा कि आगे क्या करें, शादी कैसे करें, परिवार को कैसे बताएं?”

रिया ने सिर हिलाकर हामी भरी और चुपचाप उसके साथ चल दी। कुछ देर बाद दोनों विजय की चाची के छोटे से घर पहुंचे जो मुंबई की एक तंग गली में था। ईंटों की दीवारें, बाहर एक छोटा सा तुलसी का पौधा और अंदर पीली रोशनी से चमकता आंगन।

चाची ने दरवाजा खोला और विजय को देखकर चौंक गई। “अरे बेटा, इतनी रात को… और यह लड़की कौन है तुम्हारे साथ?”

विजय झिझकते हुए बोला, “चाची, यह रिया है। ट्रेन में मिली थी। इसके साथ बड़ा हादसा होने वाला था। मैंने रोक लिया। फिर इसने मुझसे शादी करने की जिद कर दी। मैं मना नहीं कर सका।”

चाची हतप्रब रह गईं। उन्होंने रिया को गौर से देखा। उसके कपड़े और चेहरा बता रहे थे कि वह किसी अमीर घर से है। उन्होंने विजय को अलग ले जाकर धीरे से कहा, “बेटा, तूने सही किया जो इसे बचा लिया। लेकिन शादी… क्या तू समझता है यह इतना आसान है? इसका घर परिवार होगा। तेरे मां-बाप को क्या जवाब देगा? और हमारी हालत…”

विजय ने भारी मन से कहा, “चाची, मुझे पता है। लेकिन यह लड़की इतनी टूट चुकी है कि अगर मैंने मना किया तो खुद को मार डालेगी। मैं इसे अकेला नहीं छोड़ सकता। यह मेरी जिम्मेदारी बन गई है।”

चाची ने गहरी सांस ली और चुपचाप दोनों को अंदर बुला लिया। “ठीक है बेटा। अभी के लिए इसे यहां ठहरने दे। सुबह आगे सोचेंगे। रात में कुछ मत सोचना।”

उस रात रिया आंगन के एक कोने में बैठी रही। आंखें लाल थीं। लेकिन मन में अब एक अजीब सी शांति थी। जैसे तूफान थम गया हो।

विजय दूर बैठा उसे देख रहा था। सोच रहा था कि जिंदगी ने अचानक इतना बड़ा मोड़ क्यों ला दिया? क्या यह सही है? क्या मैं इसे खुश रख पाऊंगा?

सुबह होते ही चाची ने विजय को उसके पिता से फोन पर बात कराई। उधर से पिता की आवाज आई, “बेटा, तू चाची के घर है। चाची ने बताया कि तू किसी लड़की को ले आया है। क्या यह सच है?”

विजय घबराया लेकिन सच बोल दिया, “हां बाबूजी, मैंने उससे शादी करने का फैसला कर लिया है। उसके पास लौटने की कोई जगह नहीं थी। अगर मैं छोड़ देता तो वह अपनी जान दे देती।”

कुछ देर सन्नाटा रहा। फिर पिता बोले, “बेटा, तूने कोई गुनाह नहीं किया। अगर किसी की जिंदगी बचाने के लिए यह कदम उठाया है तो हम तेरे साथ हैं। उसे लेकर घर आजा। हम सब मिलकर देखेंगे।”

विजय की आंखें भर आईं। उसने रिया की तरफ देखा और कहा, “चलो रिया, अब डरने की जरूरत नहीं। मेरा परिवार हमें अपनाएगा।”

दोनों घर पहुंचे जो मुंबई की एक छोटी बस्ती में था। मां ने दहलीज पर दीपक जलाया और रिया को बहू मानकर गले लगा लिया। बोली, “बेटी, अब यह तुम्हारा घर है। रोना मत, सब ठीक हो जाएगा।”

लेकिन एक डर अब भी सबके दिल में था। रिया के पिता जो दिल्ली के बड़े व्यापारी थे। बेटी के गायब होने पर पुलिस में रिपोर्ट कर चुके थे और अब वह गुस्से में थे। जब रिया ने आखिरकार पिता से फोन पर संपर्क किया और सारी बात बताई तो पहले तो वो गुस्से से कांप उठे। “रिया, तूने हमारी इज्जत मिट्टी में मिला दी। एक स्नैक्स बेचने वाले से शादी… यह क्या पागलपन है?”

रिया रो पड़ी लेकिन हिम्मत जुटाकर बोली, “पापा, जिसने मुझे धोखा दिया वो आपके समाज के बराबर का था। पढ़ा लिखा, अमीर, लेकिन उसने मेरा साथ नहीं निभाया। और विजय ने मुझे मौत से बचाया। आज अगर मैं जिंदा हूं तो सिर्फ उसी की वजह से। प्लीज समझिए।”

लेकिन अगले दिन पुलिस की मौजूदगी में जब पूरा मामला सामने आया, सबूतों के साथ रिया की कहानी, उसके दर्द की गहराई तो पिता का गुस्सा धीरे-धीरे पिघलने लगा। उन्होंने रिया की ओर देखा। उसकी आंसू भरी आंखों में अब डर नहीं था, बल्कि एक नई ताकत थी।

“अगर तू खुश है तो मुझे कोई आपत्ति नहीं।” पिता ने भारी स्वर में कहा। “लेकिन याद रख, यह रास्ता आसान नहीं होगा। बहुत मुश्किलें आएंगी। गरीबी, संघर्ष।”

रिया ने विजय का हाथ पकड़ते हुए दृढ़ता से कहा, “मुश्किलें आएंगी तो हम मिलकर झेल लेंगे पापा। मैं अब पीछे नहीं हटूंगी। यह मेरा फैसला है।”

विजय ने उसकी तरफ देखा। उसके चेहरे पर आत्मविश्वास देखकर उसे पहली बार लगा कि शायद यही उसका मकसद था। किसी टूटी जिंदगी को नया सहारा देना।

और इस तरह एक साधारण स्नैक्स बेचने वाला लड़का और दिल्ली के अमीर घर की टूटी बेटी ने जिंदगी का नया सफर शुरू किया। जहां हर कदम पर चुनौतियां थीं, लेकिन प्यार और भरोसा उनका साथी बन गया।

सीख:
कभी-कभी एक अजनबी भी हमारी जिंदगी बदल सकता है। भरोसा, हिम्मत और प्यार, हर दर्द से बड़ी ताकत है।
अगर आप विजय की जगह होते, क्या आप किसी टूटे इंसान का सहारा बनते?
अपनी राय जरूर बताएं।

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जय हिंद!