छोटा सा बच्चा कोर्ट में चुप खड़ा था.. जैसे ही उंगली उठाई पूरा कोर्ट हिल गया – फिर जो हुआ

“सच्चाई की जीत – केशव की कहानी”
नीलगढ़ शहर के कोर्ट रूम में आज एक छह साल के मासूम बच्चे की आवाज गूंज रही थी। “मां कहती हैं भगवान यहीं बैठते हैं।” केशव की यह बात सुनते ही जज तेजस वर्मा की आंखें नम हो गईं। लेकिन अगले ही पल जो उन्होंने देखा, वह उनकी रूह तक कंपा गया। केशव की गर्दन पर नीले निशान थे, आंखों में अजीब सा डर था, जो किसी बच्चे की आंखों में नहीं होना चाहिए।
जज तेजस वर्मा पिछले 25 सालों से न्याय दे रहे थे, लेकिन आज जो केस उनके सामने था, वह उनकी जिंदगी का सबसे जटिल और दिल दहला देने वाला केस था। मामला था नीलगढ़ के सबसे अमीर खन्ना परिवार का—अर्नव खन्ना, शहर का बड़ा बिल्डर, और उनकी पत्नी शिवानी, एक जानीमानी सोशल वर्कर। बाहर से देखने पर यह परिवार परफेक्ट था, लेकिन अंदर से एक ऐसा अंधेरा छुपा था जिसकी कल्पना भी मुश्किल थी।
केशव इसी परिवार का बेटा था और आज अपने माता-पिता के खिलाफ गवाही देने आया था। जज तेजस ने केशव को पास बुलाया। केशव धीरे-धीरे कांपते कदमों से उनकी तरफ बढ़ा। उसने मैली सी शर्ट पहनी थी, बाल बिखरे थे। जज साहब ने प्यार से पूछा, “बेटा, तुम्हारा नाम क्या है?” केशव ने धीमी आवाज में कहा, “केशव खन्ना।” उसकी आवाज में खौफ था। “तुम यहां क्यों आए हो?” जज ने पूछा। केशव ने अपनी मां की तरफ देखा, जो कोर्ट के कोने में खड़ी थी, चेहरे पर कोई भाव नहीं था। फिर पिता अर्नव की तरफ देखा, जो महंगे वकील के साथ बैठे थे। उनकी आंखों में चेतावनी थी। केशव ने नजरें झुका ली और कहा, “मां कहती हैं भगवान यहीं बैठते हैं।”
कोर्ट रूम में सन्नाटा छा गया। जज तेजस ने केशव के चेहरे को गौर से देखा। बच्चे की आंखों में आंसू थे, लेकिन वह रो नहीं रहा था, जैसे उसने रोना भूल गया हो। “बेटा, तुम मुझे सच बताओगे?” जज ने पूछा। केशव ने सिर हिलाया, “हां। लेकिन… अगर मैं सच बताऊंगा तो पापा मुझे फिर से तहखाने में बंद कर देंगे।”
कोर्ट रूम में हड़कंप मच गया। वकीलों ने एक-दूसरे की तरफ देखा, मीडिया वाले कैमरे संभालने लगे। अर्नव खन्ना का चेहरा लाल हो गया और उन्होंने कुर्सी पर मुट्ठी मारी। जज तेजस ने हथौड़ा बजाया, “शांति। कोर्ट में शांति।” फिर उन्होंने केशव की तरफ देखा और कहा, “बेटा, यहां तुम्हें कोई नहीं छू सकता। मैं वादा करता हूं, तुम बिना डरे सच बताओ।”
केशव ने गहरी सांस ली। उसके छोटे-छोटे हाथ कांप रहे थे। “जज साहब, क्या मैं आपसे एक सवाल पूछ सकता हूं?” “हां बेटा, पूछो।” “अगर भगवान सच में यहां बैठते हैं, तो वह मेरी बहन को क्यों नहीं बचा पाए?”
जज तेजस का दिल बैठ गया। “तुम्हारी बहन?” “दिव्या, मेरी छोटी बहन। वह 3 साल की थी।” अर्नव खन्ना के वकील तुरंत खड़े हो गए, “योर ऑनर, यह बच्चा कोई काल्पनिक कहानी बना रहा है। मेरे मुवकिल के सिर्फ एक ही बच्चा है।” लेकिन जज तेजस ने वकील को चुप रहने का इशारा किया। “बेटा, दिव्या कहां है?” केशव की आंखों से आंसू बहने लगे। “वो… हमारे घर के पीछे वाले बगीचे में है। एक पुराने पीपल के पेड़ के नीचे… पापा ने उसे वहीं दफना दिया था।”
पूरा कोर्ट रूम सन्नाटे में डूब गया। शिवानी खन्ना की आंखों से पहली बार आंसू निकले। अर्नव खन्ना उठने लगे, लेकिन पुलिस वालों ने उन्हें रोक लिया। जज तेजस ने तुरंत फॉरेंसिक टीम को बुलाने का आदेश दिया। लेकिन केशव अभी रुका नहीं था। “जज साहब, दिव्या अकेली नहीं है। उस पेड़ के नीचे तीन और बच्चे दफन हैं।”
अब कोर्ट रूम में चीख पुकार मच गई। जज तेजस ने फिर से हथौड़ा बजाया। “केशव, तुम यह क्या कह रहे हो?” “जी हां। एक लड़का था आयुष, 7 साल का। एक लड़की थी पिया, 4 साल की। और एक बहुत छोटा बच्चा था, उसका नाम मुझे याद नहीं।” “यह बच्चे कौन थे?” “पापा उन्हें अनाथालय से लाते थे। मां कहती थी हम उनकी देखभाल करेंगे…”
केशव रुक गया। उसकी आवाज गले में अटक गई। जज तेजस ने धीरे से कहा, “लेकिन क्या हुआ बेटा?” केशव ने अपनी शर्ट के बटन खोले और अपनी पीठ दिखाई। उसकी पूरी पीठ पर जलने के निशान थे। “पापा हम पर एक्सपेरिमेंट करते थे। वह देखना चाहते थे कि बच्चे कितना दर्द सह सकते हैं। वह कहते थे कि वह साइंटिस्ट हैं और ह्यूमन एंडोरेंस पर रिसर्च कर रहे हैं।”
अरनव खन्ना चिल्लाए, “यह झूठ है! यह बच्चा पागल है!” लेकिन जज तेजस ने उन्हें चुप करवा दिया। केशव आगे बोलता रहा, “आयुष सबसे पहले मरा। पापा ने उस पर कुछ इंजेक्शन लगाए थे। वह रात भर चिल्लाता रहा, लेकिन सुबह तक वह चुप हो गया। फिर पिया की बारी आई। मां ने उसे तहखाने में बंद कर दिया था, बिना खाने-पानी के। तीन हफ्ते बाद जब मैंने उसे देखा, तो वह सिर्फ हड्डियों का ढांचा बची थी।”
शिवानी खन्ना जमीन पर गिर पड़ी, बेहोश हो गई। लेकिन सबकी नजरें केशव पर थीं। “और दिव्या… वह सबसे मासूम थी। वह मुझे बहुत प्यार करती थी। रोज रात को जब मुझे तहखाने में बंद किया जाता था, तो वह रोती रहती थी। एक दिन उसने पापा से कहा कि वह मुझे मारना बंद कर दें। उस दिन के बाद मैंने उसे फिर कभी नहीं देखा।”
केशव ने अपनी जेब से एक छोटी सी डायरी निकाली। “यह दिव्या की डायरी है। इसमें सब लिखा है। हर बच्चे के बारे में। कब आया, कब गया और कैसे गया।” जज तेजस ने डायरी ली और खोली। पहले पेज पर बच्चों की हैंडराइटिंग में लिखा था, “मदद करो। हमें यहां से निकालो। प्लीज।” अगले पेजों पर तारीखें, नाम, और हर बच्चे के साथ क्या हुआ था—उसका ब्यौरा था।
जज तेजस के हाथ कांप रहे थे। 25 साल की अपनी पूरी करियर में उन्होंने ऐसा कुछ नहीं देखा था। केशव ने कहा, “जज साहब, मैं तब बच गया क्योंकि मैं पापा का असली बेटा हूं। बाकी सब अनाथ थे। लेकिन दिव्या… वह भी उनकी असली बेटी थी, फिर भी उन्होंने उसे नहीं छोड़ा।”
“तुम्हें कैसे पता चला इन सबके बारे में?” “मैं रात को तहखाने की खिड़की से देखता था और जब पापा-मां सोते थे तो मैं बाहर निकल जाता था। मैंने उन्हें बच्चों को दफनाते देखा है।” “तुमने किसी को बताया नहीं?” “किसको बताता? पापा शहर के सबसे ताकतवर आदमी हैं। पुलिस, स्कूल की प्रिंसिपल सब उनकी दोस्त हैं। मैंने एक बार अपनी टीचर को बताने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने मां को फोन कर दिया। उस दिन मुझे एक हफ्ते तक खाना नहीं मिला।”
जज तेजस की आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने केशव को गले लगा लिया। “बेटा, अब तुम सुरक्षित हो। अब कोई तुम्हें नहीं सताएगा।” लेकिन केशव ने कहा, “जज साहब, अभी मेरी बात खत्म नहीं हुई।” “और क्या बाकी है बेटा?” केशव ने गहरी सांस ली और बोला, “मेरे पापा अकेले नहीं थे। उनके साथ तीन और लोग थे जो यह सब करते थे।”
कोर्ट रूम में मौत जैसा सन्नाटा छा गया। केशव के आखिरी शब्द हवा में गूंज रहे थे। “तीन और लोग थे…” जज तेजस ने कांपती आवाज में पूछा, “कौन थे वह तीन लोग?” केशव ने अपनी छोटी सी उंगली से कोर्ट रूम में मौजूद लोगों की तरफ इशारा किया। “वो… वहां बैठे हैं।” सबकी नजरें उस दिशा में घूमी। वहां तीन लोग बैठे थे—डॉक्टर मेहता, प्रोफेसर रघुवंशी, और मिसेज कपूर।
तीनों के चेहरे सफेद हो गए। डॉक्टर मेहता तुरंत बोले, “यह बकवास है! यह बच्चा झूठ बोल रहा है। मैं पिछले 30 सालों से बच्चों की सेवा कर रहा हूं।” प्रोफेसर रघुवंशी ने चेहरा हाथों में छुपा लिया। मिसेज कपूर की आंखें फटी की फटी रह गईं। जज तेजस ने हथौड़ा बजाया, “डॉक्टर मेहता बैठ जाइए। केशव, तुम आराम से बताओ, यह तीनों लोग कैसे शामिल थे?”
केशव ने अपनी डायरी के पन्ने पलटे, “मिज कपूर अनाथालय से बच्चों को चुनती थी। ऐसे बच्चों को जिनका कोई नहीं होता था, जिनके रिकॉर्ड भी ठीक से नहीं होते थे। जिन्हें कोई ढूंढने नहीं आएगा।” मिसेज कपूर रोने लगीं। “मैंने सोचा था कि वह बच्चों को अच्छे घर में रख रहे हैं। अर्नव ने मुझसे कहा था कि वह बच्चों को अडॉप्ट करना चाहते हैं। उन्होंने मुझे बहुत पैसे दिए थे। मुझे नहीं पता था कि…”
“आपको पता था!” केशव ने जोर से कहा। “आप एक बार हमारे घर आई थी। आपने तहखाना देखा था। आपने आयुष को चीखते हुए सुना था। लेकिन आपने कुछ नहीं कहा। पापा ने आपको एक बैग भरकर पैसे दिए थे और आप चली गई थीं।” मिसेज कपूर जमीन पर गिर पड़ी। पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया।
“डॉक्टर मेहता बच्चों पर दवाइयों का टेस्ट करते थे। उन्होंने ही आयुष को वह इंजेक्शन लगाए थे जिससे वह मर गया।” डॉक्टर मेहता बोले, “यह एक साइंटिफिक रिसर्च था। हम नई दवाइयां बना रहे थे जो लाखों बच्चों की जान बचा सकती थी। कुछ नुकसान तो होता है प्रोग्रेस के लिए।”
“नुकसान?” जज तेजस गुस्से से चिल्लाए, “आप मासूम बच्चों को नुकसान कह रहे हैं? आप एक डॉक्टर हैं। आपकी कसम थी जाने बचाने की, छीनने की नहीं।” डॉक्टर मेहता चुप हो गए।
केशव ने प्रोफेसर रघुवंशी की तरफ देखा, “प्रोफेसर साहब, वह सबसे खतरनाक थे। वह हमें मानसिक यातना देते थे। अंधेरे कमरों में बंद करते थे। डराते थे। वह देखना चाहते थे कि बच्चे कितना डर सह सकते हैं, कब टूट जाते हैं।”
प्रोफेसर रघुवंशी ने बेशर्मी से कहा, “चाइल्ड साइकोलॉजी को समझने के लिए यह जरूरी था।” जज तेजस ने मेज पर मुक्का मारा, “बस बहुत हो गया। पुलिस इन तीनों को तुरंत गिरफ्तार करो।” जैसे ही पुलिस आगे बढ़ी, प्रोफेसर रघुवंशी ने अपनी जेब से एक छोटी शीशी निकाली और उसे पी लिया। कुछ ही सेकंड में वह जमीन पर गिर गए। उनके मुंह से झाग निकलने लगा। “जहर!” कोई चिल्लाया। डॉक्टर मेहता दौड़कर उनके पास गए, लेकिन बहुत देर हो चुकी थी। प्रोफेसर रघुवंशी की मौत हो चुकी थी।
कोर्ट रूम में भगदड़ मच गई। जज तेजस ने केशव को सुरक्षित जगह पर ले जाने को कहा। लेकिन केशव ने कहा, “जज साहब, अभी मेरी बात पूरी नहीं हुई।” “बेटा, अब बाकी बातें बाद में हो सकती हैं।” “नहीं जज साहब, अभी एक बात और बतानी है, सबसे जरूरी बात।”
जज तेजस ने गहरी सांस ली, “ठीक है बेटा, बताओ।” केशव ने डायरी का आखिरी पेज खोला। वहां एक नाम लिखा था। एक ऐसा नाम जिसे देखकर पूरे कोर्ट रूम में सनसनी फैल गई। जज तेजस का चेहरा सफेद पड़ गया। उनके हाथों से डायरी छूट गई। “यह… यह नहीं हो सकता।”
“जज साहब, यह सच है,” केशव ने कहा, “इस पूरे नेटवर्क का असली मास्टरमाइंड कोई और है। पापा, डॉक्टर मेहता, प्रोफेसर रघुवंशी, मिज कपूर… यह सब तो बस मोहरे थे। असली खेल कोई और खेल रहा था।” “कौन?” जज ने कांपती आवाज में पूछा। “जस्टिस विक्रम सूद।”
पूरा कोर्ट रूम सन्नाटा छा गया। जस्टिस विक्रम सूद—हाई कोर्ट के सबसे सीनियर जज, बच्चों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले, देश के सबसे ईमानदार जज माने जाते थे।
“केशव, यह बहुत गंभीर आरोप है। तुम्हारे पास सबूत है?” केशव ने अपनी शर्ट के अंदर से एक छोटी सी पेनड्राइव निकाली। “इसमें सब कुछ है। रिकॉर्डिंग्स, वीडियोस, ईमेल्स। जस्टिस सूद ही इस पूरे ऑपरेशन को चला रहे थे। वह हर महीने हमारे घर आते थे। सबसे ज्यादा पैसे लेते थे।”
“लेकिन क्यों? वह तो पहले से ही अमीर और ताकतवर हैं।” “पैसे के लिए नहीं, जज साहब। पावर के लिए। उन्हें लगता था कि वह भगवान हैं। वह तय कर सकते हैं कि कौन जिएगा और कौन मरेगा।”
जज तेजस के हाथों में पेनड्राइव थी। वह सोच रहे थे कि अगर केशव सच कह रहा है तो यह देश के इतिहास का सबसे बड़ा स्कैंडल होगा। “जज साहब, एक बात और है। जस्टिस सूद को पता है कि मैं यहां हूं और उन्हें पता है कि मेरे पास यह सबूत है।” “तुम्हें कैसे पता?” “क्योंकि कल रात किसी ने मेरे फोस्टर होम में घुसने की कोशिश की थी। अगर सिक्योरिटी गार्ड ने मुझे नहीं बचाया होता तो मैं आज यहां नहीं होता।”
जज तेजस ने तुरंत सीबीआई चीफ को बुलाने और हाई कोर्ट में सिक्योरिटी अलर्ट करने का आदेश दिया। लेकिन उसी समय कोर्ट रूम का दरवाजा खुला। एक शख्स अंदर आया—काले कोर्ट में, सफेद बाल, चेहरे पर मुस्कान। जस्टिस विक्रम सूद। पूरा कोर्ट रूम स्तब्ध।
जस्टिस सूद धीरे-धीरे केशव की तरफ बढ़े। “अरे केशव बेटा, कैसे हो?” उनकी आवाज में प्यार था, लेकिन आंखों में धमकी। केशव पीछे हट गया। जज तेजस केशव के सामने खड़े हो गए। “जस्टिस सूद, आप यहां क्या कर रहे हैं?” “मैं तो बस सुनने आया था कि यह छोटा सा बच्चा क्या-क्या कहानियां बना रहा है।”
“कहानियां?” जज तेजस ने पेनड्राइव दिखाई, “इसमें सब सबूत हैं।” “सबूत?” जस्टिस सूद हंस पड़े, “आप इस बच्चे की बातों पर यकीन कर रहे हैं? यह बच्चा मानसिक रूप से बीमार है। इसका इलाज चल रहा है।” “मैं बीमार नहीं हूं!” केशव चिल्लाया। “आप झूठ बोल रहे हैं।”
जस्टिस सूद ने अपनी जेब से कुछ कागजात निकाले, “यह देखिए डॉक्टर मेहता की रिपोर्ट। इसमें लिखा है कि केशव को स्किजोफ्रेनिया है।” “यह फर्जी रिपोर्ट है!” केशव ने कहा, “डॉक्टर मेहता आपके साथ मिले हुए थे।”
जज तेजस ने पेनड्राइव अपने कंप्यूटर में लगाई। पहली फाइल खोली। स्क्रीन पर एक वीडियो चलने लगा। वीडियो में जस्टिस सूद थे—अर्नव खन्ना के घर के तहखाने में, एक बच्चे को देख रहे थे जो केज में बंद था। वीडियो में जस्टिस सूद कह रहे थे, “यह स्पेसिमेन अगले एक्सपेरिमेंट के लिए बिल्कुल सही है।”
पूरे कोर्ट रूम में सन्नाटा छा गया। जस्टिस सूद का चेहरा सफेद पड़ गया। उनकी मुस्कान गायब हो गई। आंखों में अब दयालु भाव नहीं था, बल्कि नफरत और गुस्सा था। “तुमने बड़ी गलती की केशव।” उन्होंने धीमी आवाज में कहा, “बहुत बड़ी गलती।”
जज तेजस ने तुरंत सिक्योरिटी को बुलाया, “इन्हें गिरफ्तार करो।” लेकिन जस्टिस सूद ने अपनी जेब से एक रिमोट निकाला, “एक कदम भी आगे बढ़े तो मैं इस बटन को दबा दूंगा।” “यह क्या है?” “इस कोर्ट रूम के नीचे 5 किलो का बम है। एक क्लिक और हम सब उड़ जाएंगे।”
कोर्ट रूम में दहशत फैल गई। लोग भागने लगे, लेकिन सिक्योरिटी ने दरवाजे बंद कर दिए थे। जस्टिस सूद ने जोर से हंसना शुरू किया, “तुम लोग सोचते हो न्याय मिल जाएगा? कभी नहीं। इस सिस्टम में न्याय जैसी कोई चीज नहीं होती। सिर्फ पावर होती है और पावर मेरे पास है।”
केशव आगे बढ़ा। उसकी आंखों में अब डर नहीं था। “आपके पास पावर नहीं है। आपके पास सिर्फ बीमार दिमाग है।” “चुप!” जस्टिस सूद चिल्लाए। “तुम क्या जानते हो? मैंने इस देश को 30 साल दिए। हजारों केस सुने लेकिन क्या मिला? कुछ नहीं। तब मैंने फैसला किया कि मैं खुद का रास्ता बनाऊंगा। वह बच्चे तो वैसे भी अनाथ थे। किसी को उनकी परवाह नहीं थी। कम से कम उनकी मौत किसी काम तो आई।”
“वो बच्चे थे!” जज तेजस चिल्लाए, “जीते-जागते इंसान। उनका हक था जीने का।” “हक?” जस्टिस सूद हंसे, “इस दुनिया में किसी का कोई हक नहीं होता। सब कुछ झूठ है। न्याय, कानून, इंसानियत—सब झूठ।”
लेकिन उसी वक्त केशव ने अपनी जेब से कुछ निकाला। एक और रिमोट। “यह क्या है?” “जैमर,” केशव ने शांति से कहा, “मैंने सोचा था कि आप कुछ ऐसा ही करेंगे, इसलिए मैंने तैयारी कर ली थी। आपका रिमोट अब काम नहीं करेगा।”
जस्टिस सूद ने घबराकर बटन दबाया। एक बार, दो बार, तीन बार। लेकिन कुछ नहीं हुआ। “नहीं, यह नहीं हो सकता।” पुलिस ने तुरंत जस्टिस सूद को पकड़ लिया। उन्होंने हथकड़ी लगाई। जस्टिस सूद चीखते रहे, “छोड़ो मुझे। तुम नहीं जानते मैं कौन हूं। मैं जस्टिस विक्रम सूद हूं।” “आप कोई जस्टिस नहीं हैं,” केशव ने कहा, “आप सिर्फ एक मर्डरर हैं।”
जैसे ही पुलिस जस्टिस सूद को ले जाने लगी, शिवानी खन्ना अपनी बेहोशी से उठी। उन्होंने केशव को देखा और रोते हुए उसके पास आईं, “केशव, मेरे बेटे, मुझे माफ कर दे। मैं नहीं रोक पाई। मैं बहुत कमजोर थी।” केशव ने अपनी मां को देखा। उसकी आंखों में अब भी दर्द था, लेकिन थोड़ी सी नरमी भी थी। “मां, आप दिव्या को क्यों नहीं बचा पाईं?” शिवानी फूट-फूट कर रोने लगी, “मैंने कोशिश की थी बेटा। लेकिन तुम्हारे पापा जस्टिस सूद के कंट्रोल में थे। उन्होंने धमकी दी थी कि अगर मैंने किसी को बताया तो वह तुम्हें भी मार देंगे। मैं तुम्हें बचाना चाहती थी। लेकिन दिव्या की कीमत पर…”
केशव के आंसू रुक नहीं रहे थे। शिवानी के पास कोई जवाब नहीं था। वह बस रोती रही। जज तेजस ने केशव के कंधे पर हाथ रखा, “बेटा, तुमने बहुत बहादुरी दिखाई। तुमने ना सिर्फ खुद को बचाया, बल्कि और कितने ही बच्चों को बचा लिया जो शायद इनका अगला शिकार बन जाते।”
उसी समय फॉरेंसिक टीम का फोन आया। “सर, हमें चार बच्चों के शव मिले हैं। उम्र तीन से सात साल के बीच। रिपोर्ट के मुताबिक इन बच्चों के साथ बेहद क्रूरता हुई थी।” पूरा कोर्ट रूम सुन रहा था। कई लोग रो रहे थे। जज तेजस की आंखें भी नम थीं। “और एक बात सर, हमें एक छोटी सी डायरी मिली है—दिव्या की। उसने अपनी आखिरी रात में लिखा था, ‘भैया अगर मैं नहीं रही तो मेरी बात जरूर सुनाना। सबको बताना कि यहां क्या होता है। प्लीज भैया और बच्चों को बचा लेना।’”
केशव की हिचकियां बंध गईं, “दिव्या, मैंने तेरा वादा पूरा कर दिया।”
अगले कुछ घंटों में बहुत कुछ हुआ। अर्नव खन्ना, शिवानी खन्ना, डॉक्टर मेहता, मिसेज कपूर और जस्टिस विक्रम सूद सबको गिरफ्तार कर लिया गया। सीबीआई ने केस संभाल लिया। पूरे देश में इस मामले की चर्चा होने लगी। मीडिया ने इसे “नीलगढ़ चाइल्ड हॉरर केस” नाम दिया।
लेकिन केशव के लिए यह सिर्फ एक केस नहीं था। यह उसकी जिंदगी थी, उसका दर्द था, उसके भाई-बहनों की आखिरी चीख थी। तीन महीने बाद फैसला आया—अर्नव खन्ना को उम्रकैद, शिवानी खन्ना को 10 साल की सजा, डॉक्टर मेहता और मिसेज कपूर को 20-20 साल की सजा, और जस्टिस विक्रम सूद को मौत की सजा।
लेकिन सजा से केशव को शांति नहीं मिली। वह अब एक नए फोस्टर होम में रहता था अच्छे लोगों के साथ। लेकिन रात को अब भी उसे बुरे सपने आते थे। दिव्या की आवाज सुनाई देती थी, आयुष की चीखें गूंजती थीं, पिया का रोना सुनाई देता था।
एक दिन जज तेजस केशव से मिलने आए। “कैसे हो बेटा?” “ठीक हूं जज साहब,” केशव ने कहा, लेकिन उसकी आंखों में अब भी वही दर्द था।
“केशव, तुमने बहुत बड़ा काम किया। तुम एक हीरो हो।” “मैं हीरो नहीं हूं जज साहब। अगर मैं हीरो होता तो दिव्या को बचा लेता, आयुष को बचा लेता, पिया को बचा लेता।” “बेटा, तुम सिर्फ 6 साल के हो। तुमसे जितना हो सकता था, तुमने किया।”
केशव चुप रहा। फिर उसने पूछा, “जज साहब, आपने उस दिन कहा था कि भगवान कोर्ट में बैठते हैं। क्या यह सच है?” जज तेजस ने गहरी सांस ली, “बेटा, भगवान कोर्ट में नहीं बैठते। भगवान हर उस जगह होते हैं जहां सच्चाई होती है। और तुमने सच्चाई की लड़ाई लड़ी, तो शायद भगवान तुम्हारे साथ थे।”
केशव ने पहली बार मुस्कुराने की कोशिश की, “जज साहब, मैं बड़ा होकर जज बनूंगा।” “क्यों बेटा?” “ताकि मैं सच में भगवान की तरह न्याय दे सकूं, ताकि कोई और बच्चा यह सब ना झेले, ताकि दिव्या, आयुष, पिया और वह नाम ना जाने वाला छोटा बच्चा सबको न्याय मिल सके।”
जज तेजस ने केशव को गले लगा लिया, “तुम जरूर बनोगे बेटा और तुम सबसे अच्छे जज बनोगे।”
उस दिन के बाद केशव ने अपनी जिंदगी फिर से शुरू की। पढ़ाई में तेज हो गया, काउंसलिंग ली, धीरे-धीरे उसके घाव भरने लगे। लेकिन निशान हमेशा के लिए रह गए। 15 साल बाद केशव खन्ना ने अपनी लॉ की डिग्री पूरी की, टॉप रैंक के साथ, और आज वह एक जज है—जस्टिस केशव खन्ना। वही कोर्ट रूम, जहां कभी उसने अपनी कहानी सुनाई थी, आज उसी कोर्ट में वह बैठता है, हर दिन, हर केस में।
सीख:
यह कहानी हमें बताती है कि सच्चाई की लड़ाई कठिन होती है, लेकिन अंत में जीत उसी की होती है। इंसानियत, न्याय और बच्चों की सुरक्षा समाज की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। हर दर्द, हर घाव अपने पीछे एक सबक छोड़ जाता है—कभी हार मत मानो, क्योंकि हर सच के पीछे भगवान होते हैं।
अगर आपको यह कहानी पसंद आई हो तो जरूर बताएं कि आपने इससे क्या सीखा।
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