छोटे बच्चे ने अनजान औरत को पानी पिलाया, फिर जब उसकी सच्चाई सामने आयी तो पैरों तले जमीन खिसक गयी
एक गिलास पानी
कानपुर की गलियों से एक उम्मीद की शुरुआत
कानपुर की तंग गलियों में जहाँ चाट की खुशबू और बच्चों की खिलखिलाहट हमेशा गूंजती रहती थी, वहीं एक छोटी सी रेहड़ी पर एक सात साल का बच्चा, राजू, अपनी माँ के साथ चाय बेचता था। फटे कपड़े, नंगे पैर और तपती दोपहर—ये उसकी दिनचर्या थी। फिर भी उसके चेहरे की मासूम मुस्कान कभी फीकी नहीं पड़ती थी।
उसका पूरा नाम था राजकुमार, लेकिन मोहल्ले वाले उसे प्यार से “राजू” कहते थे। उसके पिता रामलाल एक फैक्ट्री में काम करते थे, लेकिन पाँच साल पहले एक हादसे में उनकी मौत हो गई। तब से उसकी माँ विमला ने अकेले ही बेटे को पाला। सुबह से शाम तक वह चाय बनाती, बेचती और घर का खर्च चलाती।
एक दिन की बात है—मई की तपती दोपहर, सूरज जैसे आग बरसा रहा था। विमला और राजू की रेहड़ी के पास एक थकी हुई औरत आई। उसकी साड़ी फटी हुई थी, चेहरा धूल से सना और आंखों में गहरी थकान थी। कांपती आवाज़ में उसने कहा, “बेटा, थोड़ा पानी मिलेगा?”
राजू ने बिना झिझक अपनी बोतल बढ़ा दी, “लो आंटी, यह ठंडा है।”
उस औरत ने धीरे-धीरे पानी पिया, जैसे हर घूंट में जीवन की एक नई उम्मीद घुल रही हो। पानी पीने के बाद उसने चुपचाप रेहड़ी पर एक छोटा सा कागज़ रखा और बिना कुछ कहे चली गई।
एक कागज़, एक सच, और एक अनकहा रिश्ता
राजू ने कागज़ उठाया और माँ को दिया। विमला ने पढ़ा, तो उसके चेहरे का रंग बदल गया। उस कागज़ पर लिखा था:
“मेरे बेटे को ढूंढ दो। उसका नाम राजकुमार है। वह कानपुर में है।”
नीचे एक पुरानी तस्वीर लगी थी—जिसमें एक औरत और एक छोटा बच्चा था। उस बच्चे की मुस्कान हूबहू राजू जैसी थी।
विमला घबरा गई। कहीं राजू ही तो नहीं…?
विमला ने उस औरत को ढूंढने की ठानी। अगली सुबह दोनों गंगा घाट पहुँचे और मंदिरों के पास ढूंढा। आखिरकार वही औरत एक पेड़ के नीचे बैठी मिली। विमला ने उसे तस्वीर दिखाई और पूछा, “ये बच्चा कौन है?”
औरत की आंखों से आंसू झरने लगे, “ये मेरा बेटा है, राजकुमार। पाँच साल पहले एक हादसे में मैं उसे खो बैठी थी।”
राजू चौंका, “आंटी, क्या मैं ही आपका बेटा हूँ?”
विमला और उस औरत की आंखें भर आईं। औरत का नाम था सरिता, और उसने बताया कि रामलाल उसका पति था। विमला तब कांप गई, क्योंकि उसके पति का नाम भी रामलाल था। और राजू… वह बच्चा उस हादसे वाली रात विमला को सड़क पर मिला था।
सरिता फूट-फूट कर रो पड़ी, “वो मेरा राजकुमार है।” विमला ने कहा, “मैंने इसे अपने बेटे की तरह पाला है, अगर यह तेरा है, तो मैं इसे वापस कर दूँगी।”
सरिता ने विमला का हाथ थाम लिया, “नहीं बहन, तूने इसे ज़िंदगी दी। हम इसे साथ पालेंगे।”
दो माँएं, एक बेटा, और एक नई शुरुआत
उस दिन से तीनों ने साथ जीने का फैसला किया। सरिता ने बताया कि उसके पति की बीमा राशि से एक छोटा सा घर था। वह विमला और राजू को वहाँ ले आई। दोनों महिलाओं ने अपनी चाय की रेहड़ी को मिलाकर “राजू की चाय” नाम से एक छोटी दुकान खोली।
राजू अब स्कूल जाने लगा। उसकी पढ़ाई का ज़िम्मा सरिता ने लिया, और दुकान का काम विमला ने संभाला। राजू की मुस्कान ही दुकान की पहचान बन गई। लोग कहते, “राजू की चाय में प्यार का स्वाद है।”
एक अधूरा राज़ — रानी
लेकिन सरिता की आंखों में अभी भी कोई अधूरापन था। एक रात विमला ने पूछा, “तू कुछ छिपा रही है ना बहन?”
सरिता ने आँसू पोछे और बताया, “जब राजू मुझसे बिछड़ा, तब मेरी दो साल की बेटी रानी भी थी। मैं उसे एक अनाथालय में छोड़ आई थी। मैं दोनों को नहीं पाल सकती थी।”
विमला स्तब्ध रह गई। उन्होंने अगले ही दिन अनाथालय जाकर पता लगाया। पता चला कि रानी को दो साल पहले एक दंपत्ति ने गोद ले लिया था। नाम और पता नहीं बताया जा सकता था।
सरिता का दिल टूट गया। लेकिन राजू ने कहा, “माँ, मैं अपनी बहन को ज़रूर ढूंढूंगा।”
एक संयोग या नियति?
एक दिन “राजू की चाय” पर एक दंपत्ति अपनी बेटी के साथ आया। बच्ची की मुस्कान राजू जैसी थी। उसका नाम था—रानी। सरिता उसे पहचान गई।
पूरी कहानी जानकर उस दंपत्ति ने कहा, “हम रानी को बहुत प्यार करते हैं, लेकिन अगर आप उसकी माँ हैं, तो हम आपसे मिलने से नहीं रोकेंगे।”
अब हर रविवार रानी, सरिता और राजू से मिलने आती। परिवार फिर से जुड़ गया।
नेकी की जीत और एक नई रोशनी
समय बीता। “राजू की चाय” इतनी मशहूर हो गई कि दूसरी दुकान खोलनी पड़ी। राजू स्कूल में अव्वल छात्र बन गया। विमला, सरिता, रानी और राजू—चारों मिलकर एक नई दुनिया बसा चुके थे।
एक शाम एक बूढ़ा आदमी दुकान पर आया और कहा, “बेटा, थोड़ा पानी पिला दे।”
राजू ने मुस्कराकर बोतल दी।
बूढ़ा बोला, “तूने एक बार पहले भी किसी को पानी पिलाया था ना? और उस दिन से तेरी ज़िंदगी बदल गई।”
राजू ने कहा, “हाँ बाबा, अब मैं सबको पानी पिलाऊंगा।”
सीख:
कभी-कभी एक छोटी सी नेकी—जैसे किसी प्यासे को पानी पिलाना—किसी की पूरी ज़िंदगी बदल सकती है। राजू की मासूमियत और इंसानियत ने न सिर्फ एक बिछड़ा हुआ परिवार जोड़ा, बल्कि सैकड़ों लोगों के लिए एक मिसाल बन गई।
“राजू की चाय” अब सिर्फ एक दुकान नहीं थी—वो प्यार, त्याग और उम्मीद की सबसे खूबसूरत कहानी बन चुकी थी।” 🌸
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