जब DM मैडम से सुनार ने की बदतमीजी ; फिर DM मैडम ने सुनार के साथ जो किया …

“माँ की इज्जत – डीएम सुरभि कुमारी और ज्वेलरी शॉप का सच”
भाग 1: अपमान की दुकान
लखनऊ जिले की सबसे बड़ी अधिकारी, डीएम सुरभि कुमारी की मां एक साधारण, फटे-पुराने लेकिन साफ कपड़े पहने, थकी-थकी चाल से एक आलीशान ज्वेलरी शॉप में दाखिल होती हैं। उनके चेहरे पर मासूमियत, आंखों में बरसों की तपस्या और संघर्ष झलकता है। शॉप में मौजूद ग्राहक, स्टाफ और मैनेजर सबकी नजरें उस बूढ़ी औरत पर टिक जाती हैं। कोई अंदाजा नहीं लगा सकता कि वह जिले की डीएम की मां हैं।
कुछ लोग आपस में फुसफुसाते हैं – “कोई भिखारी घुस आई है, किसने अंदर आने दिया?” बूढ़ी मां सब महसूस करती हैं, मगर नजरअंदाज कर आगे बढ़ती हैं। हिम्मत जुटाकर काउंटर पर पहुंचती हैं और विनम्रता से एक सेल्समैन से कहती हैं, “बेटा, मुझे एक अच्छा और महंगा डायमंड नेकलेस दिखा दो।”
सेल्समैन ठहाका मारता है, फिर गुस्से में कहता है, “ए बुढ़िया! तुझे किसने अंदर आने दिया? यह भीख मांगने की जगह नहीं है। निकल यहां से, वरना सिक्योरिटी को बुलाकर बाहर फेंकवा दूंगा।”
बूढ़ी मां चुपचाप सुनती रहती हैं, फिर धीरे से बोलती हैं, “बेटा, मैं भिखारी नहीं हूं। मुझे ज्वेलरी खरीदनी है। मेरे पास पैसे हैं, बस मेरे कपड़ों को देखकर मुझे जज मत करो।”
दूसरा स्टाफ बीच में कूदता है, “चल हट यहां से, वरना ऐसा मारूंगा कि चलने लायक नहीं रहेगी। भाग यहां से वरना चप्पल से पीटूंगा।”
अब बूढ़ी मां की आंखों में शर्म नहीं, दर्द उतरने लगता है। फिर भी मजबूती से कहती हैं, “मैं सच कह रही हूं, मैं किसी की मां हूं और नेकलेस खरीदने ही आई हूं।”
ग्राहक अब खुलकर हंसते हैं, “यह बुढ़िया तो पगला गई है! डायमंड नेकलेस खरीदेगी!”
तभी एक कर्मचारी मालिक को बुला लाता है। मालिक आते ही गुस्से में फट पड़ता है, “यह कौन भिखारिन घुस आई है? निकालो इसे बाहर!”
बूढ़ी मां हाथ जोड़कर कहती हैं, “भाई साहब, मैं वाकई में ज्वेलरी खरीदने आई हूं। मेरे पास पूरे पैसे हैं।”
मालिक आपा खो बैठता है, “बकवास बंद कर! यहां से निकल जा वरना खुद तमाचा मारकर बाहर फेंक दूंगा।”
वह सचमुच एक जोरदार थप्पड़ उस बूढ़ी औरत के गाल पर जड़ देता है। सिक्योरिटी गार्ड बेरहमी से उन्हें दुकान से बाहर निकाल देते हैं।
पूरा दृश्य सीसीटीवी कैमरे में रिकॉर्ड हो रहा होता है, पर किसी को अंदाजा नहीं था कि यही वीडियो उनके भविष्य का सबसे बड़ा पछतावा बनेगा।
भाग 2: माँ की पीड़ा और बेटी का आक्रोश
बूढ़ी मां गली में अकेली बैठकर रोती हैं। फूट-फूटकर घर लौटती हैं। मन ही मन बुदबुदाती हैं, “मैंने अपनी बेटी को भीख मांगकर पढ़ाया, पेट काटकर डीएम बनाया। अगर उसे पता चला कि उसकी मां के साथ ऐसी बेइज्जती हुई, पता नहीं उसके दिल पर क्या बीतेगी।”
घर लौटकर सारी रात करवटें बदलती हैं। अपमान की याद दिल पर चाकू की तरह चलती है। आखिरकार फोन उठाती हैं और बेटी सुरभि को कॉल कर देती हैं।
सुरभि ऑफिस में बैठी थी, मां का नाम देखते ही मुस्कान खिल उठती है। “हां मां, कैसी हो आप? सब ठीक है ना?”
मां अपनी आवाज संभालते हुए कहती हैं, “ठीक हूं बेटा।”
लेकिन आंखों से आंसू बहने लगते हैं। सुरभि के दिल में आग लग जाती है, “मां, आप रो क्यों रही हैं? क्या हुआ है? मुझे बताइए ना।”
मां चुप रहती हैं, दिल में तूफान है, लेकिन बेटी को बोझ नहीं देना चाहती।
सुरभि जिद करती है, “आपको मेरी कसम है, सब बताना ही होगा।”
मां मजबूर होकर थरथराती आवाज में सब कुछ बता देती हैं – कैसे उन्हें भिखारिन समझा गया, कैसे स्टाफ ने धक्के मारकर बाहर निकाला, कैसे मालिक ने थप्पड़ मारा।
सुरभि कांप उठती है, “मेरी मां के साथ इतनी हिम्मत किसने की? मैं इतनी बड़ी अफसर हूं और मेरी मां के साथ इतना बड़ा अपमान? इसका बदला जरूर लिया जाएगा।”
भाग 3: माँ-बेटी की वापसी
सुरभि मां को ढांढस बंधाती है, “अब आप चिंता मत कीजिए, मैं कल ही छुट्टी लेकर घर आ रही हूं। आपको घुमाने ले जाऊंगी और वह डायमंड नेकलेस भी लेकर ही लौटूंगी।”
अगले दिन सुरभि घर पहुंचती है। दरवाजा खुलते ही मां-बेटी गले लगकर रोती हैं। बरसों की तकलीफ, मेहनत और जुदाई घुल जाती है।
थोड़ा वक्त बीतने के बाद दोनों खाना खाते हैं। फिर सुरभि कहती है, “मां, अब वही करेंगे जो करना चाहिए।”
सुरभि अलमारी से एक लाल रंग का सलवार-सूट निकालती है, मां सफेद साड़ी पहनती हैं। दोनों साधारण कपड़ों में तैयार होकर उसी ज्वेलरी शॉप की ओर निकल पड़ती हैं, जहां मां का अपमान हुआ था।
भाग 4: सच्चाई का सामना
शॉप में दाखिल होते ही फिर से लोग घूरते हैं, कानफूसी होती है – “आज बेटी को भी ले आई, लगता है फिर तमाशा करेगी।”
सुरभि ने मां का हाथ मजबूती से थाम रखा है। सीधी डायमंड नेकलेस सेक्शन की ओर बढ़ती है।
स्टाफ लड़की झुंझलाकर बोलती है, “फिर आ गई? कल तमाशा कर गई थी, आज बेटी को भी ले आई। तुम दोनों में इतनी औकात नहीं कि ज्वेलरी खरीद सको। निकल जाओ!”
सुरभि शांत स्वर में जवाब देती है, “हमारी औकात का अंदाजा कपड़ों से मत लगाइए। शायद आप जानती नहीं कि आप किससे बात कर रही हैं। बस नेकलेस दिखाइए।”
स्टाफ हंसते हुए कहती है, “आप जैसी गांव की लोग तो सिर्फ देखने आते हैं, खरीदने की औकात नहीं होती।”
सुरभि की आंखों में गुस्से की आग भड़क उठती है, “बस अब बहुत हो गया। हमारी औकात इतनी है कि चाहें तो आपका पूरा शॉप खरीद लें। बकवास बंद कीजिए और ज्वेलरी दिखाइए।”
तभी मालिक बाहर आता है, “यह वही बुढ़िया है ना, जिसे कल धक्के मारकर निकाला था। आज फिर आ गई, मां-बेटी दोनों गवार हैं।”
सुरभि ने ठंडी लेकिन दृढ़ आवाज में कहा – “बोलने से पहले सोचिए, मैं इस जिले की डीएम सुरभि कुमारी हूं। और अगर दोबारा मेरी मां के लिए या मेरे लिए ऐसे शब्द बोले तो पछताना पड़ेगा।”
मालिक और स्टाफ जोर-जोर से हंसने लगते हैं, “डीएम? तुम्हारी औकात है इतनी कि पुलिस की नौकरी भी मिल जाए? तुम तो यहां सफाई करने के भी लायक नहीं लगती।”
भाग 5: असली पहचान और इंसाफ
सुरभि ने अपना सरकारी पहचान पत्र निकालकर मालिक के हाथ में दे मारा – “जिला मजिस्ट्रेट सुरभि कुमारी” पढ़ते ही मालिक का चेहरा सफेद पड़ गया, हाथ कांपने लगे।
“माफ कीजिए मैडम, हमें बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि आप डीएम हैं। हम तो समझे कोई साधारण लड़की होंगी।”
सुरभि का गुस्सा अब शांत नहीं हो रहा था, “मुझे ज्वेलरी नहीं चाहिए। पहले बताइए, किस हक से आपने मेरी मां को थप्पड़ मारा, धक्के मारकर बाहर किया, सबके सामने अपमानित किया?”
मालिक झूठ गढ़ने लगा, “ना मैडम, ऐसा कुछ नहीं हुआ। आपकी मम्मी गलत समझ गई होंगी।”
सुरभि ने कहा, “झूठ बोलना बंद कीजिए। मुझे सब पता है, मेरे पास सबूत भी है। इंसान की औकात कपड़ों से नहीं, उसके कर्मों से होती है।”
सुरभि ने कहा, “चलिए, आपकी दुकान में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं। फुटेज चेक कीजिए। अगर मेरी मां के साथ बदतमीजी नहीं हुई तो मैं यहीं से चली जाऊंगी।”
फुटेज स्क्रीन पर चलने लगी। सब देख रहे थे – मालिक ने थप्पड़ मारा, धक्के देकर बाहर निकाला, अपमानित किया।
भाग 6: इंसानियत का पाठ
सुरभि की आंखों में आंसू आ गए, फिर गुस्से की आग धधक उठी। “आप लोगों ने मेरी मां के साथ ऐसा सलूक सिर्फ इसलिए किया क्योंकि उनके कपड़े साधारण थे? आपको क्या लगता है, इंसान की औकात कपड़ों से तय होती है?”
पूरी दुकान में सन्नाटा छा गया। सब सिर झुकाए खड़े थे।
“आप लोगों ने जो किया वह माफी के लायक नहीं है। मेरी मां के साथ बदतमीजी, थप्पड़ मारना, धक्के देकर बाहर निकालना – यह कानूनन अपराध है। मैं आप सब पर केस दर्ज कराऊंगी। महिला के साथ दुर्व्यवहार के लिए आप सबको जेल भेजा जाएगा।”
मालिक घुटनों के बल गिरकर हाथ जोड़ने लगा, “मैडम, प्लीज हमें माफ कर दीजिए। हमें बिल्कुल पता नहीं था कि यह आपकी मां है।”
सुरभि ने बीच में टोका, “अगर वह मेरी मां नहीं होती तो क्या तब उनका अपमान करना ठीक था? इंसान को इज्जत उसके रिश्ते या पद से नहीं, उसके इंसान होने की वजह से मिलनी चाहिए।”
मालिक रोता रहा, “हमें अपनी गलती का एहसास हो गया है। आगे से ऐसा कभी नहीं होगा। हर ग्राहक के साथ सम्मान से पेश आएंगे।”
सुरभि ने गहरी सांस ली, “ठीक है, मैं अभी केस दर्ज नहीं कराऊंगी। लेकिन सुन लो, अगर दोबारा किसी ग्राहक के साथ ऐसा हुआ तो व्यक्तिगत रूप से आकर आप सबको जेल भेजूंगी। तब माफी का कोई मौका नहीं मिलेगा।”
भाग 7: बदलाव की शुरुआत
उस दिन के बाद से उस ज्वेलरी शॉप का माहौल बदल गया। हर ग्राहक का स्वागत मेहमान की तरह होने लगा। कोई भी व्यक्ति अब कपड़ों या चेहरे से नहीं आंका जाता।
सुरभि और उनकी मां जब दुकान से बाहर निकलीं, तो पूरी दुकान के लोग उन्हें आदर से सलाम करते हुए खड़े रहे।
सुरभि ने मां का हाथ पकड़ा और कहा, “मां, अब कोई भी आपको या किसी और को इस तरह अपमानित नहीं कर पाएगा। यह मेरा वादा है।”
सीख
इंसान की इज्जत उसके कपड़ों, चेहरे या पद से नहीं, उसके इंसान होने की वजह से होती है। हर किसी के साथ सम्मान से पेश आइए।
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