जिसे लड़की ने अनपढ़ समझ कर मजाक उड़ाया, सच्चाई पता चलते ही रोने लगी। फिर जो हुआ,

रांची की अनीता और गांव के राहुल की कहानी

रांची की अनीता एक मल्टीनेशनल कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर थी। उसकी जिंदगी एसी ऑफिस, बड़ी गाड़ी और पांच सितारा होटलों के इर्द-गिर्द घूमती थी। एक दिन कंपनी के काम से उसे झारखंड के एक छोटे कस्बे जाना पड़ा, जहां कंपनी को किसानों से जमीन खरीदनी थी। जैसे ही अनीता वहां पहुंची, उसका मन खिन्न हो गया। टूटी सड़कें, धूल भरे रास्ते और छोटी-छोटी दुकानें देखकर उसे घिन आ रही थी। उसने गेस्ट हाउस पहुंचकर मैनेजर शर्मा को फोन पर खूब सुनाया—”मिस्टर शर्मा, यह कहां भेज दिया आपने मुझे? यहां तो चूहे भी शर्म से भाग जाए। कमरे में एसी नहीं, बाथरूम देखा है आपने?”

शर्मा ने विनती की, “मैडम, सिर्फ तीन दिन का काम है। प्लीज मैनेज कर लीजिए।” अनीता ने झुझलाकर फोन काट दिया।

पहली मुलाकात

अगली सुबह दरवाजे पर दस्तक हुई। “कौन है?” अनीता ने चिड़चिड़ा कर पूछा।
“मैडम, मैं राहुल। आपको गांव ले जाना है।”
अनीता ने दरवाजा खोला। सामने एक साधारण सा लड़का खड़ा था—फीकी शर्ट, पुरानी जींस और साइकिल के पास खड़ा।
“तुम? साइकिल?”
“मैडम, गांव तक साइकिल या मोटरसाइकिल से ही जा सकते हैं। रास्ता कच्चा है।”
“मैं साइकिल पर बैठूंगी? तुम्हारा दिमाग खराब है क्या?”
“मैडम, मेरे पास मोटरसाइकिल भी है, लेकिन वो भी नहीं चलेगी।”
“मुझे कार चाहिए।”
“मैडम, कार नहीं जा सकती उस रास्ते पर।”

दो घंटे बहस के बाद मजबूरी में अनीता मोटरसाइकिल पर बैठ गई। पूरे रास्ते वह शिकायतें करती रही—”धीरे चलाओ, इतनी धूल क्यों उड़ा रहे हो, मेरे बाल खराब हो रहे हैं।” राहुल चुपचाप गाड़ी चलाता रहा।

किसानों से पहली मीटिंग

गांव पहुंचकर किसानों से मीटिंग शुरू हुई। अनीता ने अपनी प्रेजेंटेशन दी—”देखिए, हमारी कंपनी आपको अच्छे पैसे देगी। एक करोड़ रुपए। आपकी पूरी जिंदगी बदल जाएगी।”
एक बूढ़े किसान बोले, “बेटी, यह जमीन हमारे बाप-दादाओं की है। हम इसे बेच नहीं सकते।”
अनीता ने झुझलाकर कहा, “अंकल, आप लोग पुरानी सोच में जी रहे हो। पैसा है तो सबकुछ है। जमीन से क्या करोगे?”
किसान बोले, “बेटी, जमीन ही हमारी असली दौलत है।”
अनीता ने ताना मारा, “ओह गॉड, आप लोग नहीं समझोगे। पढ़े-लिखे तो हो नहीं।”
सब चुप हो गए। राहुल ने धीरे से कहा, “मैडम, ऐसे नहीं…”
अनीता ने बीच में टोकते हुए कहा, “तुम्हारा काम क्या है? बस गाड़ी चलाना, वही करो।”

मीटिंग बुरी तरह फेल हो गई। किसानों ने साफ मना कर दिया। वापसी में अनीता गुस्से में थी—”यह सब तुम्हारी वजह से हुआ। तुमने मुझे सही एडवाइस नहीं दी।”
राहुल बोला, “मैडम, वे लोग भावुक हैं अपनी जमीन के लिए। जरा प्यार से बात करें तो…”
“प्यार से? अब तुम मुझे सिखाओगे डील कैसे करनी है?”
राहुल चुप हो गया।

दूसरी कोशिश, वही नतीजा

अगले दिन फिर वही हुआ। अनीता देर से उठी, राहुल इंतजार करता रहा। मीटिंग में भी अनीता का रवैया वैसा ही रहा। “आप लोग समझदार नहीं हो, मैं अपना टाइम बर्बाद कर रही हूं यहां।”
किसान बोले, “बेटी, हम बेवकूफ नहीं हैं। हमें पता है जमीन की कीमत क्या है।”
अनीता बोली, “तो तुम लोग मोलभाव करना चाहते हो?”
किसान बोले, “बात पैसों की नहीं है, बेटी।”
राहुल बोला, “मैडम, अगर हम इनकी भावनाओं को…”
“बस एक शब्द और बोले तो तुम्हें निकलवा दूंगी।”

परिस्थिति का बदलना

तीसरे दिन अचानक अनीता को फोन आया—उसकी मां का एक्सीडेंट हो गया था। अनीता घबरा गई, “मुझे तुरंत रांची जाना है।”
राहुल बोला, “चलिए मैं छोड़ देता हूं।”
रांची 120 किमी दूर था, लेकिन राहुल बिना रुके उसे अस्पताल लेकर पहुंचा। अनीता भागकर अंदर गई, तीन घंटे बाद बाहर आई। आंखें लाल थीं, लेकिन चेहरे पर राहत थी। राहुल अभी भी वहीं खड़ा था, ना पानी पिया, ना कुछ खाया।
“तुम अब तक यही थे?”
“हां, सोचा शायद आपको जरूरत पड़े। मां कैसी है?”
“ठीक है। सिर में चोट लगी थी।”
राहुल मुस्कुराया, “थैंक गॉड।”

अनीता को अपने तीन दिन के सारे शब्द याद आने लगे। जिसे उसने कुछ नहीं समझा, आज वही उसके साथ खड़ा था।
“राहुल, मुझे माफ कर दो।”
राहुल ने कुछ नहीं कहा। जेब से बाइक की चाबी निकालते हुए बोला, “चले मैडम, देर हो रही है।”

सफर में बदलाव

दोनों मोटरसाइकिल पर बैठे, पूरे रास्ते सन्नाटा रहा। आधे रास्ते में राहुल ने गाड़ी रोकी, “मैडम, कुछ चाय-पानी पी लेते हैं।”
अनीता ने पानी की बोतल ली, हिम्मत करके पूछा, “राहुल, तुम इतने अच्छे हो, फिर भी मैंने तुम्हारे साथ इतना बुरा किया, तुमने एक बार भी गुस्सा नहीं किया?”
राहुल बोला, “गुस्सा करने से क्या होता है, लोग अपनी सोच के हिसाब से बोलते हैं। शहरी लोगों को लगता है गांव के लोग अनपढ़ होते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि उन्हें भले ही किताबी ज्ञान कम हो, लेकिन उन्होंने जीवन में सब कुछ देखा होता है।”
अनीता बोली, “मैंने तुम्हें इतना नीचा दिखाया…”
“कोई बात नहीं, आपको नहीं पता था मेरे बारे में, अब पता चल गया ना।”

अनीता ने पूछा, “तुम यहां क्यों हो? तुम तो पढ़े-लिखे लगते हो।”
राहुल ने गहरी सांस ली, “मैं दिल्ली में था, एक अच्छी कंपनी में इंजीनियर था। लेकिन तीन साल पहले पापा को हार्ट अटैक आया, वो नहीं रहे। मां अकेली पड़ गई, उन्हें मेरी जरूरत थी। मैं वापस आ गया। छोटे-मोटे काम करता हूं, गाइड का काम करता हूं। बहन मेडिकल की पढ़ाई कर रही है। उसका सपना डॉक्टर बनने का है।”
अनीता का गला भर आया, “तुमने अपना सब कुछ छोड़ दिया?”
“छोड़ा नहीं मैडम, मैंने यह चुना है। परिवार मेरे लिए नौकरी से बड़ा था। अब भी है।”
अनीता रो पड़ी, “माफ करना राहुल, मैं कितनी गलत थी।”
“बीती बातें हैं मैडम, जाने दीजिए।”

असली बदलाव

गांव पहुंचकर अनीता सीधे गेस्ट हाउस चली गई। रात भर उसे नींद नहीं आई। राहुल की बातें बार-बार याद आ रही थीं। सुबह 8 बजे अनीता नीचे उतरी, राहुल बाहर खड़ा था।
“मैडम, सोचा आज किसानों से फिर बात करें, अगर आप चाहें तो।”
“राहुल, आज मैं सही तरीके से बात करूंगी।”

दोनों गांव पहुंचे। अनीता ने आगे बढ़कर हाथ जोड़े, “नमस्ते काका, मुझे माफ कर दीजिए। मैंने कल बहुत गलत बात की थी। मैं समझती हूं आपकी जमीन आपके लिए क्या मायने रखती है। यह सिर्फ मिट्टी नहीं, आपकी पहचान है। आपके बाप-दादाओं की निशानी है।”
किसानों ने एक दूसरे की तरफ देखा।
“मैं आपसे विनती करती हूं, अगर आप इस डील में राजी हो तो हम आपको पूरा सम्मान देंगे, आपकी शर्तों पर। और अगर नहीं तो कोई बात नहीं।”

एक किसान बोला, “क्या बात है, आज दिन में चांद कैसे निकल गया?”
अनीता ने राहुल की तरफ देखा, “किसी ने मुझे सिखाया है कि इंसानियत क्या होती है।”

तीन घंटे की बातचीत हुई। इस बार अनीता ने धैर्य से सुना, समझा, किसानों की बात मानी। आखिरकार एक डील हो गई जिसमें किसानों को भी फायदा था और कंपनी को भी। किसान खुश हो गए।

विदाई और एहसास

वापसी में अनीता खुश थी लेकिन दिल भारी था। कल उसे रांची जाना था। राहुल से दूर।
“राहुल, थैंक यू। तुमने मुझे बहुत कुछ सिखाया।”
“मैंने कुछ नहीं किया मैडम, आपने अपनी समझदारी से सब कुछ किया।”
“नहीं राहुल, तुम नहीं होते तो मैं आज भी वही घमंडी अनीता होती।”

गेस्ट हाउस पहुंचकर अनीता अपना सामान पैक करने लगी। शाम को जब राहुल विदाई देने आया, तो अनीता ने कांपते हाथों से उसे एक लिफाफा दिया।
“यह क्या है मैडम?”
“तुम्हारी फीस।”
राहुल ने वापस कर दिया, “मैडम, मुझे कंपनी पैसे दे देगी।”
अनीता की आंखों में आंसू आ गए, “तुम सच में अलग हो राहुल। आप खुश रहिएगा मैडम, यही काफी है।”

गाड़ी आ गई। अनीता उठी, राहुल ने उसका बैग उठाया, गाड़ी के दरवाजे तक छोड़ने आया।
“राहुल, मैं तुम्हें कभी नहीं भूलूंगी।”
“मैं भी नहीं भूलूंगा मैडम। आप पहली शहरी हो जिसने गांव की कीमत समझी।”

गाड़ी चल पड़ी। अनीता ने पीछे मुड़कर देखा, राहुल हाथ हिला रहा था। उसके दिल में एक अजीब सी पीड़ा थी। रास्ते भर वह रोती रही। उसे पता नहीं था कि यह आंसू किस बात के थे—शर्म के, पछतावे के या फिर किसी और एहसास के।

नई शुरुआत

रांची लौटकर अनीता अपनी पुरानी जिंदगी में वापस आ गई। लेकिन कुछ बदल गया था। ऑफिस जाती, मीटिंग करती, लेकिन मन कहीं और भटकता रहता। उसकी सहेली नेहा ने पूछा, “तू ठीक है ना? आजकल बहुत चुप रहती है।”
“हां, बस थक गई हूं थोड़ा।”
पार्टी में गई, महंगे कपड़े, ब्रांडेड शराब, बड़ी-बड़ी बातें, लेकिन सब खोखला लग रहा था। उसे राहुल की सादगी याद आ रही थी।

एक महीना बीत गया। अनीता ने कई बार राहुल को फोन करने की सोची, लेकिन हिम्मत नहीं हुई। एक शाम मां के पास बैठी थी, मां ने पूछा, “क्या बात है बेटा?”
अनीता ने सब कुछ बता दिया—राहुल के बारे में, अपनी गलतियों के बारे में, उस एहसास के बारे में।
मां बोली, “बेटा, अच्छे लोग जिंदगी में कम मिलते हैं। अगर मिल गए हैं तो हाथ से जाने मत देना। डर के जीने से अच्छा है कोशिश करके हारना।”

फैसला

अगले दिन अनीता ने ऑफिस से छुट्टी ली। सीधे उसी कस्बे के लिए निकल गई। दोपहर को गांव पहुंची, गेस्ट हाउस के मैनेजर से राहुल के बारे में पूछा।
“राहुल, वो तो आजकल खेतों में काम कर रहा है।”
अनीता राहुल को ढूंढती हुई खेत पहुंची। राहुल मिट्टी से सने कपड़े, चेहरे पर पसीना।
“राहुल!”
राहुल ने मुड़कर देखा, “अनीता मैडम आप यहां?”
“हां, मुझे तुमसे बात करनी थी।”
दोनों पास के एक पेड़ के नीचे चले गए।
“राहुल, मैं एक महीने से परेशान हूं। तुम्हारी यादें मुझे चैन नहीं लेने देती।”
राहुल ने मजाक में कहा, “क्यों, इतना बुरा हूं क्या मैं?”
लेकिन अनीता बस उसे देख रही थी, “मुझे लगता है मैं तुमसे…”
“मैडम, आप ठीक हैं?”
“नहीं राहुल, मैं ठीक नहीं हूं। मैं तुमसे प्यार करने लगी हूं।”

राहुल ने गहरी सांस ली, “मैडम, यह सही नहीं है। आपकी और मेरी दुनिया अलग है। आप रांची में रहती हैं, बड़े ऑफिस में काम करती हैं। मैं यहां एक साधारण आदमी हूं।”
“तो क्या हुआ? मैं यहां रह सकती हूं, या तुम मेरे साथ चल सकते हो।”
“मैडम, मैं अपनी मां और बहन को छोड़कर नहीं जा सकता, और आप यहां नहीं रह सकतीं। यह जिंदगी आसान नहीं है।”
“मैं कोशिश कर सकती हूं राहुल, प्लीज।”
“अगर आप बाद में पछताएं, अगर आपको यह जिंदगी पसंद नहीं आई तो?”
“ऐसा नहीं होगा, मुझे विश्वास है।”
“मैडम, मुझे सोचने का वक्त दीजिए।”

अनीता ने उसका हाथ पकड़ लिया, “राहुल, मैं इंतजार करूंगी। जितना भी वक्त चाहिए।”

तीन दिन अनीता वहीं रुकी। राहुल की मां और बहन से मिली। सबको अपनी सच्चाई बताई। राहुल की मां ने कहा, “बेटी, मैं तुम्हारी भावनाओं की कदर करती हूं, लेकिन यह जिंदगी तेरे लिए मुश्किल होगी।”
“आंटी, मैं तैयार हूं। बस राहुल को समझाइए।”

असली इम्तिहान

चौथे दिन राहुल ने अपना फैसला सुनाया, “अनीता, मैं तुम्हारे साथ रांची नहीं आ सकता। लेकिन अगर तुम यहां रहना चाहती हो तो मैं तुम्हारा साथ दूंगा।”
अनीता की आंखों में खुशी के आंसू आ गए, “सच में?”
“हां, लेकिन एक शर्त है—तुम्हें कुछ महीने यहां रहना होगा। अगर तुम्हें यहां का जीवन पसंद आया तो हम आगे की सोचेंगे।”
“मंजूर है।”

नई जिंदगी की शुरुआत

अनीता ने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और उस छोटे से कस्बे में आकर बस गई। शुरुआत मुश्किल थी—बिजली की कटौती, पानी की समस्या, सुविधाओं की कमी। लेकिन राहुल का साथ था, उसकी मां का प्यार था, प्रिया की दोस्ती थी। अनीता गांव का काम तो नहीं कर सकती थी, लेकिन पढ़ी-लिखी थी। उसने किसानों को गवर्नमेंट और प्राइवेट सेक्टर की कंपनियों से लीज पर जमीन दिलाने में मदद करनी शुरू की। लेकिन इस बार वो किसानों को ज्यादा से ज्यादा फायदा दिलाती थी।

छह महीने बाद राहुल ने पूछा, “कैसा लग रहा है यहां?”
अनीता मुस्कुराई, “यहां मुझे असली खुशी मिली है राहुल। वो सुकून मिला है जो रांची में कभी नहीं मिला। गांव के सीधे-साधे लोग, ना दिखावे की जिंदगी। इतना संघर्ष करने के बाद भी सब मुस्कुराते रहते हैं। मुझे भी यहां अब अपनापन लगता है।”

राहुल ने उसका हाथ पकड़ लिया, “तो क्या हम आगे बढ़ सकते हैं?”
“हां राहुल, हमेशा के लिए।”

अंतिम सुखद मोड़

एक साल बाद दोनों की शादी हुई। शादी सरल लेकिन खुशियों से भरी थी। अनीता ने सीखा—असली जिंदगी महंगे कपड़ों में नहीं, सच्चे रिश्तों में होती है। असली अमीरी बैंक बैलेंस में नहीं, दिल की अमीरी में होती है। और राहुल जैसा इंसान उसे मिला था, जिसने उसे जिंदगी का असली मतलब सिखाया।

सीख

जिन लोगों को लगता है गांव के लोग शहर के लोगों से कम समझदार, कम पढ़े-लिखे होते हैं; असल में देखा जाए तो समझदार वह लोग नहीं हैं जो ऐसी सोच रखते हैं। राहुल ने अनीता का दिल जीता, और अगर उनकी कहानी ने आपका दिल जीता हो तो कमेंट करके जरूर बताएं।

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जय हिंद।