जिसे लड़की ने अपनी दुकान से निकाला, वह बना पांच महीने में मालिक, फिर जो हुआ

मुंबई के जूहू इलाके में एक बुटीक था रंगीला। इसकी मालकिन थी आरोही।

सिर्फ 19 साल की उम्र में ही आरोही ने अपनी मां के बुटीक की जिम्मेदारी संभाल ली थी। ब्रांडेड कपड़े, डिजाइनर गहने, फिल्मी कलाकारों के ऑर्डर—आरोही की दुनिया रोशनी और रुतबे से भरी थी। उसकी हर बात में एक घमंड झलकता था। बुटीक में काम करने वाले कारीगरों को वह हमेशा नीची नजर से देखती थी। उसके लिए वह सिर्फ मजदूर थे, इंसान नहीं।

कारीगरों में एक लड़का था नयन।

नयन छोटे शहर से आया हुआ था। सिंपल कपड़े पहनता, कम बोलता, टूटी-फूटी अंग्रेजी बोलता था। इसी वजह से लोग उसे कमजोर समझते थे। लेकिन उसके हाथों में जादू था। जो भी कढ़ाई वह करता, देखने वाले दंग रह जाते। फिल्म इंडस्ट्री के लोग उसके डिजाइन की तारीफ करते थकते नहीं थे। असल में रंगीला की पहचान नयन के काम की वजह से थी। यह सब जानते थे, लेकिन आरोही को यह मानना मंजूर नहीं था।

एक दिन बड़ा ऑर्डर आया।

आरोही को एक बड़े बिजनेसमैन की पत्नी का फोन आया। उन्होंने अपनी बेटी की सगाई के लिए 30 लहंगे का ऑर्डर दिया। सिर्फ 20 दिन का समय। आरोही ने खुशी से हां कर दी। उसे लगा यह उसकी बड़ी कामयाबी होगी। लेकिन उसने एक गलती कर दी—नयन से पूछे बिना ही पूरे डिजाइन फाइनल कर दिए।

अगले दिन जब नयन को ऑर्डर के बारे में पता चला तो वह घबरा गया। उसने आरोही से कहा, “मैडम, 20 दिन में 30 लहंगे मुमकिन नहीं है। कम से कम 45 दिन चाहिए।”
आरोही का चेहरा लाल हो गया। “तुम मुझे सिखाओगे कि क्या हो सकता है और क्या नहीं? मैं मालकिन हूं यहां की। तुम बस काम करो। और हां, अगर ऑर्डर पूरा नहीं हुआ तो तुम्हें नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा।”

नयन चुपचाप वर्कशॉप में चला गया।

अगले 20 दिन उसने और उसकी टीम ने दिन-रात एक कर दिया। सोने का वक्त नहीं, खाने का वक्त नहीं, बस काम। किसी तरह उन्होंने सारे लहंगे तैयार किए। लेकिन जल्दबाजी में कुछ लहंगों की क्वालिटी उतनी अच्छी नहीं थी। जब ऑर्डर डिलीवर हुआ तो ग्राहक ने तीन-चार लहंगों में कमी निकाली।

आरोही ने फौरन नयन को बुलाया और सबके सामने उसे बुरी तरह डांटा। “तुम्हारी वजह से मेरी इज्जत मिट्टी में मिल गई। अगर अब भी सुधर गए तो ठीक वरना बाहर का रास्ता खुला है।”
नयन कुछ नहीं बोला। उसकी आंखों में दर्द था। उसने रात भर काम करके वे लहंगे दोबारा तैयार किए। परफेक्ट। ग्राहक खुश हो गए। लेकिन आरोही ने एक शब्द भी शुक्रिया का नहीं कहा।

उस दिन के बाद नयन बदल गया।

उसके अंदर का जोश खत्म हो गया। वह अब बस मशीन की तरह काम करता था, दिल से नहीं। उसकी आंखों में वह चमक नहीं रही जो पहले थी।

दो महीने बाद…

बुटीक में ऑर्डर कम आने लगे। पुराने ग्राहक शिकायत करने लगे कि पहले जैसा काम नहीं मिल रहा। आरोही को समझ नहीं आया कि समस्या क्या है। उसे लगा शायद बाजार में कंपटीशन बढ़ गया है।

तीन महीने बाद…

नयन ने खुद ही इस्तीफा दे दिया। एक छोटी सी चिट्ठी लिखी और चला गया। आरोही ने सोचा कोई बात नहीं, दूसरे कारीगर मिल जाएंगे। लेकिन उसे क्या पता था कि असली काम तो नयन ही करता था।

छह महीने में रंगीला की हालत बिगड़ गई।

नए कारीगर उतना अच्छा काम नहीं कर पाए। ग्राहक एक-एक करके दूसरी जगह जाने लगे। आरोही की मां ने उसे जिम्मेदारी से हटाने की धमकी दी। आरोही तनाव में आ गई। उसकी नींदें उड़ गईं।

एक शाम…

आरोही की सहेली ने उसे घर से बाहर निकलने को कहा। “चल एक नई जगह चलते हैं। सुना है वहां बहुत अच्छा काम होता है। तुझे भी अच्छा लगेगा।” आरोही मना नहीं कर पाई। वो अपनी सहेली के साथ ‘सितारा’ नाम के बुटीक में पहुंची। जैसे ही उसने अंदर कदम रखा, उसे लगा जैसे वो किसी और ही दुनिया में आ गई है। इतनी भीड़, इतनी रौनक। हर ग्राहक के चेहरे पर संतोष।

सहेली ने एक लहंगा दिखाया। आरोही ने जैसे ही उसे देखा, उसकी सांस अटक गई। यह काम तो नयन की कढ़ाई जैसा लग रहा था। वही बारीकी, वही खूबसूरती। उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। उसने काउंटर पर जाकर लड़की से पूछा, “यह डिजाइन किसने बनाया?”
“हमारे हेड डिजाइनर नयन साहब ने। वो इस बुटीक के पार्टनर भी हैं। उन्होंने 6 महीने में इस जगह को शहर का नंबर वन बुटीक बना दिया।”

आरोही के पैरों तले जमीन खिसक गई।

नयन पार्टनर? उसका दिमाग घूम गया। उसने पूछा, “क्या मैं उनसे मिल सकती हूं?”
“वो अभी वर्कशॉप में हैं। आप चाहे तो मिल सकती हैं।”

आरोही बिना कुछ सोचे सीधे वर्कशॉप की तरफ बढ़ गई। दरवाजा खोला तो नयन सामने था। वो अपनी टीम को कुछ समझा रहा था। उसके चेहरे पर आत्मविश्वास था, उसकी आवाज में अधिकार था। वह अब वह नयन नहीं था जो रंगीला में काम करता था। वह एक सफल इंसान था।

नयन…
आरोही ने धीरे से आवाज दी। नयन ने मुड़कर देखा। एक पल के लिए उसकी आंखों में कुछ चमका, फिर सब शांत हो गया। “हां, बोलिए।” उसने बेहद सपाट लहजे में कहा।

आरोही के गले में कांटा अटक गया। उसकी आंखों में आंसू आ गए। वह कुछ बोलना चाहती थी, लेकिन शब्द नहीं निकल रहे थे। सामने वही नयन खड़ा था, जिसके हाथों ने कभी उसके सपनों को कढ़ाई में उतारा था। जिसकी आंखों की चमक को उसने कभी ना समझा। आज वही नयन उसके सामने था, पर अब उसकी आंखों में एक ठहराव था, एक सुकून।

आरोही ने कांपती आवाज में कहा, “नयन, मैं तुमसे बात करना चाहती हूं।”
नयन ने अपनी टीम को इशारा किया। सब चुपचाप बाहर चले गए। वर्कशॉप में अब बस सिलाई मशीनों की हल्की सी गंध बची थी और उनके बीच सन्नाटा।

नयन ने बिना किसी भाव के कहा, “बोलिए।”
आरोही की आंखें भीग चुकी थी। उसने खुद को संभालने की कोशिश की, पर शब्दों ने साथ नहीं दिया। फिर धीमे से बोली, “मुझे तुमसे माफी मांगनी है। मैंने तुम्हारे साथ बहुत गलत किया।”

नयन ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। बस चुपचाप उसकी तरफ देखता रहा।
आरोही ने हिम्मत जुटाई। “मैंने तुम्हारी काबिलियत को कभी नहीं समझा। मुझे लगा मैं सब जानती हूं। पर असल में मेरे बुटीक की जान तो तुम थे। तुम्हारे जाने के बाद सब बिखर गया। ग्राहक चले गए। मेरी मां नाराज हो गई। अब समझ में आया कि नाम सिर्फ मेरा था, काम तुम्हारा।”

नयन ने हल्की मुस्कान दी, जो ज्यादा देर नहीं टिक पाई। उसने धीमे से कहा, “आरोही, तुम्हें पता है तुम्हारे एक-एक शब्द का असर क्या हुआ था? जब तुमने सबके सामने मुझे डांटा था, उस दिन मैंने खुद पर भरोसा खो दिया था। मुझे लगा शायद मैं सच में एक मजदूर ही हूं जिसकी कोई कीमत नहीं।”

आरोही का सिर झुक गया। उसके हंठ कांप रहे थे। वो कुछ कहना चाहती थी, मगर कुछ भी नहीं कह सकी।

नयन आगे बोला, “मैंने कई रातें जागकर अपने आप से लड़ाई की। सोचता था क्यों किया इतना मेहनत उस जगह के लिए जहां इज्जत नहीं। फिर मैंने फैसला किया कि अब खुद के लिए काम करूंगा। किसी और की पनाह पर नहीं, अपनी काबिलियत पर भरोसा रखूंगा।”

आरोही की आंखों से आंसू बह निकले। उसने धीरे से कहा, “और तुमने कर दिखाया। यह जगह, यह बुटीक सब तुम्हारी मेहनत का सबूत है। मैं गर्व महसूस करती हूं। सच में।”

नयन ने उसकी आंखों में झांका। उसमें पछतावा साफ दिख रहा था। उसने नरम आवाज में कहा, “मुझे खुशी है कि तुमने यह महसूस किया। पर जो बीत गया उसे बदल नहीं सकते।”

आरोही ने थोड़ा आगे बढ़कर कहा, “मैं कुछ नहीं चाहती नयन। बस इतना कि तुम मुझे माफ कर दो। शायद तभी मैं चैन से सांस ले पाऊंगी।”

नयन ने एक पल के लिए आंखें बंद की। फिर बोला, “आरोही, माफ करना मुश्किल नहीं होता। मुश्किल होता है भूलना। मैं तुम्हें माफ करता हूं, पर भूल नहीं सकता कि कभी मेरे साथ कैसा व्यवहार हुआ था।”

आरोही ने सिर हिलाया। “मुझे भूलने की उम्मीद भी नहीं। बस इतना चाहती हूं कि जब कभी मेरा नाम आए, तुम नफरत से नहीं दया से याद करो।”

नयन की आंखें नरम पड़ गई। उसने कहा, “नफरत नहीं, अब बस दूरी है।”

वर्कशॉप की खिड़की से हल्की शाम की रोशनी अंदर गिर रही थी। आरोही ने चारों तरफ देखा। दीवारों पर नयन की बनाई डिजाइनें टंगी थी। हर एक में मेहनत और सच्चाई झलक रही थी।

आरोही ने धीरे से कहा, “कभी सोचा नहीं था कि तुम इतना आगे निकल जाओगे। शायद तुम्हारी जगह कोई और होता तो टूट जाता।”

नयन हल्का सा मुस्कुराया। “टूटना जरूरी था आरोही। तभी तो मैं खुद को जोड़ पाया। अगर तुमने वह सब नहीं किया होता तो शायद मैं आज भी किसी के नीचे काम कर रहा होता। तुमने मुझे दर्द दिया, पर उसी दर्द ने मुझे पहचान दी।”

आरोही की आंखें फिर भर आई। उसने कहा, “शायद यही फर्क है तुम में और मुझ में। तुमने दर्द से ताकत बनाई और मैंने अहंकार से अपनी दुनिया तोड़ ली।”

थोड़ी देर दोनों चुप रहे। माहौल में सिर्फ मशीनों की हल्की गूंज थी।

आरोही ने धीरे से पूछा, “क्या कभी ऐसा वक्त आएगा जब मैं फिर से तुम्हारा भरोसा जीत सकूं?”

नयन ने शांत स्वर में कहा, “भरोसा कमाया जाता है, माफी से नहीं। वक्त शायद जवाब देगा।”

आरोही ने सिर झुकाया। उसकी उंगलियां कांप रही थी। उसने पर्स से एक छोटा सा लिफाफा निकाला। “यह मेरे बुटीक की चाबियां हैं। मैं चाहती हूं तुम इसे संभालो। मैं अब थक गई हूं। तुम्हारे अलावा और कोई नहीं जो इसे फिर से खड़ा कर सके।”

नयन ने चौंक कर उसकी तरफ देखा। “नहीं आरोही, मैं दो नाव में सवार नहीं हो सकता। मेरा रास्ता अब अलग है।”

आरोही ने कहा, “मुझे मालूम है तुम ना कहोगे। पर यह मेरा तरीका है खुद को सजा देने का। और तुम्हारे हुनर को सलाम करने का।”

नयन ने चुपचाप वो लिफाफा वापस उसकी हथेली में रख दिया। बोला, “सजा मत दो खुद को। बस इतना करो—आगे जब किसी के साथ काम करो तो उसे इंसान समझो। बस इतना काफी है।”

आरोही ने सिर उठाया। उसकी आंखों में अब दर्द नहीं बल्कि सच्चाई थी। वो मुस्कुराई, फीकी लेकिन सच्ची मुस्कान। बोली, “शायद यही मेरी सबसे बड़ी सीख थी। देर से मिली लेकिन सच्ची।”

नयन ने कहा, “सीख कभी देर से नहीं आती। बस समझने की हिम्मत चाहिए।”

दोनों के बीच लंबा सन्नाटा छा गया। फिर आरोही ने धीरे से कहा, “अलविदा नयन। उम्मीद है अगली बार जब मिलूं तो शर्मिंदगी नहीं, सम्मान लेकर मिलूं।”

नयन ने सिर झुकाया और कहा, “उम्मीद अच्छी है, उसे जिंदा रखना।”

आरोही ने पलट कर आखिरी बार वर्कशॉप को देखा। दीवारों पर टंगे डिजाइन, कढ़ाई में जड़ी चमक—सब कुछ जैसे उसे उसकी पुरानी गलतियों का आईना दिखा रहे थे। वो बाहर निकल आई। बाहर की हवा ठंडी थी। लेकिन उसके भीतर कुछ हल्कापन था। जैसे किसी बोझ से मुक्ति मिली हो।

सड़क पर चलते हुए उसने मन ही मन कहा, “अगर किसी दिन फिर मौका मिला तो मैं सब कुछ नए सिरे से शुरू करूंगी। बिना अहंकार, सिर्फ इज्जत के साथ।”

उसी पल वर्कशॉप की खिड़की से नयन ने उसे जाते देखा। उसकी आंखों में नफरत नहीं थी। बस एक हल्की मुस्कान थी। शायद एक अधूरी कहानी के पूरे होने की मुस्कान।

और यूं दो जिंदगियों की राहें फिर अलग हो गई। एक ने माफ कर दिया। दूसरी ने समझ लिया।
पर दोनों ही अब पहले जैसे नहीं थे।

सीख:
दुनिया में ज्यादातर लोग अपने अहंकार के चक्कर में बर्बाद हुए हैं। जब वक्त अच्छा होता है तो लगता है हम सबसे बड़े हैं। लेकिन वक्त कभी भी बदल सकता है। इसलिए जब आपका वक्त अच्छा हो, दूसरों को नीचा नहीं दिखाएं, बल्कि उन्हें प्रोत्साहित करें और साथ दें। तभी लोग आपसे जुड़े रहते हैं और आप हमेशा कामयाबी प्राप्त करते हैं।

अगर आप नयन की जगह होते तो क्या आरोही को माफ करने के बाद उसके साथ काम करने को तैयार हो जाते?
आपको नयन का निर्णय कैसा लगा, कमेंट करके जरूर बताएं।

वीडियो को लाइक जरूर करें और हमारे चैनल ‘आओ सुनाऊं’ को सब्सक्राइब करना ना भूलें।

[संगीत]