जूते पोलिश करने वाले बच्चे ने कहा साहब मै पढ़ना चाहता हूँ , तो करोड़पति ने जो किया उसने हैरान कर

करोड़पति और मोची की प्रेरणादायक कहानी

मुंबई की दो दुनिया

मुंबई, वो शहर जो कभी सोता नहीं। जहां समंदर की लहरें अमीरों के कदम चूमती हैं, वहीं उसी शहर के एक कोने में 10 साल का राजू अपने लकड़ी के बक्से के पास बैठा, जूते पॉलिश करता है। राजू की दुनिया उसके पुराने बक्से, जूते पॉलिश की डिब्बियां, फटे कपड़े और कुछ पुरानी किताबों तक सिमटी थी। वो यतीम था – मां-बाप दोनों एक बीमारी और ग़म में उसे छोड़कर चले गए थे।

राजू दिनभर अमीर साहबों के जूते चमकाता, रात में रेलवे स्टेशन के खाली कोने में अखबार ओढ़कर सो जाता। लेकिन उसकी आंखों में एक सपना था – पढ़ने का, कुछ बनने का। उसके पिता ने सिखाया था, “विद्या ही असली धन है।” राजू अपनी कमाई से पेट काटकर हर हफ्ते रद्दी की दुकान से कोई पुरानी किताब खरीदता। जब ग्राहक नहीं होते, वो किताबों में खो जाता।

एक अनोखी मुलाकात

एक दोपहर, एक काली Mercedes आकर रुकी। उसमें से उतरे बृजमोहन खन्ना – देश के सबसे बड़े टेक्सटाइल उद्योगपति, जिनके लिए दुनिया सिर्फ बाजार थी। उनके महंगे इटालियन जूतों पर किसी ने पान की पीक थूक दी थी। गुस्से से उन्होंने राजू को बुलाया, “ए लड़के, इधर आ!” राजू अपनी विज्ञान की किताब छुपाकर दौड़ा।

“यह जूते शीशे की तरह चमकने चाहिए,” खन्ना साहब बोले। राजू लगन से जूते चमकाने लगा। तभी हवा का झोंका आया, कपड़ा उड़ गया और राजू की किताब जमीन पर गिर पड़ी। खन्ना साहब ने पूछा, “क्या पढ़ रहे हो?” राजू डरते-डरते बोला, “साहब, डॉक्टर बनने की पहली किताब है।”

खन्ना साहब ने उसकी आंखों में झांका। वो सिर्फ किताब नहीं, सपना था। “तुम डॉक्टर बनना चाहते हो?” राजू बोला, “मेरे मां-बाप बिना इलाज के मर गए। मैं बड़ा होकर गरीबों का मुफ्त इलाज करना चाहता हूं, ताकि कोई और बच्चा मेरी तरह अनाथ न हो।”

खन्ना साहब भीतर तक हिल गए। उन्होंने राजू को 2000 रुपये दिए और अपना विजिटिंग कार्ड देते हुए कहा, “कल सुबह 10 बजे इस पते पर आ जाना, अपने बक्से और किताबों के साथ।”

सपना साकार होने की शुरुआत

राजू अगले दिन डरते-डरते खन्ना ग्रुप के ऑफिस पहुंचा। खन्ना साहब ने उसे अपने पास बैठाया, बोले, “सपने देखना अच्छी बात है, लेकिन उन्हें पूरा करने के लिए मेहनत, लगन और सही रास्ता चाहिए। मैं तुम्हें वो रास्ता दूंगा।”

उन्होंने ऐलान किया कि आज से राजू की पढ़ाई, रहने और हर जरूरत की जिम्मेदारी उनकी है। राजू का दाखिला शहर के सबसे अच्छे बोर्डिंग स्कूल में कराया गया, बेहतरीन ट्यूटर मिले। राजू ने दिन-रात मेहनत की, 10वीं और 12वीं में शहर में टॉप किया। खन्ना साहब को राजू में वह बेटा मिल गया, जिसकी चाहत सगे बेटों में कभी पूरी नहीं हुई थी।

ईर्ष्या और संघर्ष

खन्ना साहब के बेटे समीर और सुधीर राजू से जलते थे। वे बिगड़ैल, घमंडी थे, राजू को ताने देते, “आ गया मोची, आज किसके जूते चमकाएगा?” लेकिन राजू सब सह लेता, क्योंकि उसका सपना इन सब बातों से बड़ा था।

समय बीतता गया। 15 साल बाद राजू अब 27 साल का आत्मविश्वासी युवक था। वह अब डॉक्टर राजू था, जिसने देश के सबसे प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेज से गोल्ड मेडल के साथ सर्जरी की पढ़ाई पूरी की थी।

सपना पूरा हुआ

डिग्री मिलते ही राजू किसी बड़े अस्पताल में नौकरी ढूंढने नहीं गया, बल्कि सीधे खन्ना साहब के पास पहुंचा। उनके पैरों में गिर पड़ा, “पापा, आज आपका सपना पूरा हो गया। आपका मोची डॉक्टर बन गया।”
खन्ना साहब ने उसे गले लगाकर कहा, “बेटे, आज मेरा नहीं, तुम्हारा सपना पूरा हुआ है।”

खन्ना साहब ने शहर के बीचोंबीच एक बड़ा चैरिटेबल हॉस्पिटल बनवाया, डायरेक्टर बनाया डॉक्टर राजू को। अस्पताल का नाम था “मां-बाप चैरिटेबल हॉस्पिटल”, जहां हर गरीब का इलाज मुफ्त था।

राजू दिन-रात गरीबों की सेवा में जुट गया। उसकी नेकी और प्रतिभा की वजह से वह पूरे शहर में मसीहा कहलाने लगा।

बृजमोहन खन्ना की दुनिया बिखरती है

समीर और सुधीर ने पिता की मेहनत की कमाई को शराब, सट्टे और फिजूलखर्ची में उड़ा दिया। बिजनेस में दिलचस्पी नहीं दिखाई। आखिरकार, जब खन्ना साहब की सेहत गिरने लगी, दोनों बेटों ने धोखे से बिजनेस और सारी प्रॉपर्टी के कागजातों पर दस्तखत करवा लिए। सारी सल्तनत अपने नाम कर ली और अपने बूढ़े, बीमार पिता को बंगले से बाहर निकाल दिया।

“अब आपकी यहां कोई जरूरत नहीं है। जाइए अपने मोची बेटे के पास रहिए।”

सच्चे बेटे का सहारा

बृजमोहन खन्ना टूटे हुए, थके हुए मां-बाप चैरिटेबल हॉस्पिटल पहुंचे। डॉक्टर राजू ने अपने पिता को देखा, दौड़कर उनके पैरों में गिर पड़ा। “पापा, आप इस हालत में?”
राजू ने उन्हें सहारा देकर केबिन में ले गया। फिर शहर के सबसे बड़े वकीलों को बुलाया, पिता के धोखेबाज बेटों के खिलाफ मुकदमा दायर किया।
राजू ने अपने पिता को अपने घर ले जाकर कहा, “आज से दादाजी हमारे साथ रहेंगे। यह घर, यह इज्जत, यह जिंदगी सब इन्हीं की देन है। सेवा करना ही हमारा धर्म है।”

कानून ने अपना काम किया। समीर और सुधीर को सजा मिली, खन्ना साहब को सल्तनत वापस मिली। लेकिन उन्होंने सब कुछ एक ट्रस्ट के नाम कर दिया, चेयरमैन बनाया डॉक्टर राजू को।

अंतिम सीख

बृजमोहन खन्ना ने अपनी बाकी जिंदगी बेटे, बहू, पोते-पोतियों के साथ प्यार और सुकून से बिताई। वे अक्सर बच्चों को कहते,
“जिंदगी में सबसे बड़ा निवेश पैसों में नहीं, इंसान के सपने में होता है। वही निवेश आपको दुनिया का सबसे अमीर इंसान बना देता है।”

यह कहानी सिखाती है कि नेकी का एक छोटा सा बीज सही जमीन पर बोया जाए, तो वह एक दिन घना पेड़ बन जाता है जो आपको हर धूप से बचा सकता है। बृजमोहन खन्ना ने एक बच्चे के सपने को सींचा और उस सपने ने उनके बुढ़ापे को सहारा दिया।