दुबई की धुप में चक्कर खाकर गिर पड़ा था लेबर लड़का ,अरब इंजिनियर ने उठाया , और उसकी किस्मत बदल गयी

रेगिस्तान की रेत पर उम्मीद का नकलिस्तान – सुल्तान खान की प्रेरणादायक कहानी
भाग 1: सूखे गाँव से सपनों की उड़ान
आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले के एक छोटे से गाँव में जन्मा सुल्तान खान, बचपन से ही गरीबी और संघर्ष की आग में तपता रहा। उसके पिता एक मेहनती किसान थे, जो कर्ज के बोझ तले दबकर दुनिया छोड़ गए। घर में अब सिर्फ उसकी मां आमना और छोटी बहन जहरा थी। सुल्तान पढ़ाई में होशियार था, अंग्रेज़ी में उसकी पकड़ कमाल की थी। उसका सपना था – एक दिन बड़ा इंजीनियर बनकर मां को खेतों में मजदूरी से छुटकारा दिलाना और बहन को अच्छी शिक्षा देना।
लेकिन 12वीं के बाद गरीबी ने उसके सपनों पर ताला लगा दिया। आगे की पढ़ाई का खर्च उठाना नामुमकिन था। तभी गाँव में एक एजेंट आया, जिसने दुबई में सुपरवाइजर की नौकरी का सपना दिखाया। एजेंट ने लाख रुपये मांगे। मां ने गहने बेचे, जहरा ने शादी के पैसे दे दिए, जमीन गिरवी रखी – जैसे-तैसे रकम जुटाई। सुल्तान ने वादा किया – “मां, देखना मैं बहुत पैसे कमाकर लाऊंगा।”
भाग 2: धोखे की चिलचिलाती धूप
दुबई पहुंचते ही सुल्तान के सपने टूट गए। सुपरवाइजर की नौकरी की जगह उसे मजदूर बना दिया गया। पासपोर्ट एजेंट ने ले लिया। वह लेबर कैंप में 100 से ज्यादा मजदूरों के साथ गंदगी और हताशा के बीच रहने लगा। 50 डिग्री की गर्मी में सीमेंट की बोरियां उठाना, रेत ढोना – उसका नाजुक शरीर टूटने लगा। तनख्वाह का बड़ा हिस्सा कंपनी वाले काट लेते, जो बचता वह घर भेज देता।
भाग 3: किस्मत की दस्तक – अल राशिद की रहमदिली
एक दिन सुल्तान तपती धूप में बेहोश होकर गिर पड़ा। फॉर्मन ने उसे नजरअंदाज किया, लेकिन तभी साइट पर अल राशिद – कंपनी के मालिक – पहुंचे। उन्होंने सुल्तान को अपनी गाड़ी में अस्पताल पहुंचाया। इलाज हुआ, जान बच गई। अल राशिद ने सुल्तान से उसकी कहानी सुनी – टूटी-फूटी हिंदी नहीं, धाराप्रवाह अंग्रेज़ी में। वे उसकी प्रतिभा से प्रभावित हुए। बोले, “तुम्हारे जैसा लड़का सीमेंट की बोरियां उठाने के लिए नहीं बना है।”
भाग 4: मेहनत की सीढ़ी – ऑफिस बॉय से मैनेजर तक
अल राशिद ने सुल्तान को अपने ऑफिस में ऑफिस बॉय की नौकरी दी। सुल्तान ने ईमानदारी और लगन से काम किया। कंप्यूटर सीखने की जिज्ञासा में उसने आईटी डिपार्टमेंट के समीर से दोस्ती कर ली। ऑफिस के बाद कंप्यूटर सीखा, फाइलें पढ़ीं, कंपनी के सिस्टम को समझा। उसकी दिलचस्पी खरीद विभाग में थी।
एक दिन परचेसिंग मैनेजर मिस्टर जोसेफ को तीन महीने के लिए जाना पड़ा। सुल्तान ने हिम्मत करके अल राशिद से कहा – “सर, मैं परचेसिंग डिपार्टमेंट संभाल सकता हूं।” सबको शक था, लेकिन सुल्तान ने अपनी मेहनत और स्मार्टनेस से सबका भरोसा जीत लिया। नए सप्लायर ढूंढे, बेहतर डील की, एक्सेल में ट्रैकिंग सिस्टम बनाया। एक रात सीमेंट की कमी हो गई, सुल्तान ने रातभर फोन करके सुबह तक ट्रक पहुंचा दिए।
भाग 5: सफलता का नकलिस्तान
तीन महीने बाद मिस्टर जोसेफ ने रिटायरमेंट ले लिया। अल राशिद ने सुल्तान को बुलाया – “तुम इस पद के असली हकदार हो।” अपॉइंटमेंट लेटर दिया – अब सुल्तान खान स्थाई परचेसिंग मैनेजर था। पहली बड़ी तनख्वाह से मां और बहन को दुबई बुलाया। जब वे आलीशान ऑफिस में बेटे को करोड़ों के सौदे करते देखीं, उनकी आंखों से खुशी के आंसू बह निकले।
भाग 6: कहानी का संदेश
सुल्तान की कहानी बताती है – कोई काम छोटा नहीं, कोई इंसान मामूली नहीं। हुनर, ईमानदारी और मेहनत से किस्मत भी सलाम करती है। अगर आपको यह कहानी पसंद आई, तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें। मेहनत और उम्मीद का यह संदेश हर उस इंसान तक पहुंचे जो संघर्ष कर रहा है।
धन्यवाद!
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