दुबई में कंपनी ने जॉब से निकाला था उसी लड़के ने कुछ साल बाद अपनी कंपनी शुरू कर दी , फिर जो हुआ

पूरी लंबी कहानी: आरिफ खान की प्रेरणादायक यात्रा
लखनऊ की गलियों में पला-बढ़ा आरिफ खान बचपन से ही अपने पिता की एक सीख को जीवन का मंत्र मानता था—”जिंदगी में सबसे बड़ी दौलत तुम्हारी शिक्षा और ईमानदारी है।” सरकारी स्कूल में शिक्षक पिता ने बड़ी मुश्किलों से बेटे को पढ़ाया, आरिफ ने भी मेहनत से सिविल इंजीनियरिंग में गोल्ड मेडल हासिल किया। उसके सपनों की मंजिल थी—दुबई की चमचमाती इमारतों में अपना नाम बनाना।
कैंपस प्लेसमेंट में ही उसे दुबई की प्रतिष्ठित कंपनी ‘गल्फ रॉयल कंस्ट्रक्शंस’ में नौकरी मिल गई। परिवार ने जश्न मनाया, पिता की आंखें गर्व से नम थीं। आरिफ ने वादा किया कि वह सबका कर्ज चुकाएगा और उन्हें बेहतर जिंदगी देगा।
दुबई पहुंचकर आरिफ ने नए जोश के साथ काम शुरू किया। उसकी सबसे बड़ी खूबी थी—काम की गहराई में जाना, हर प्रोजेक्ट को इतिहास, भूगोल और भविष्य की दृष्टि से देखना। मजदूरों के साथ समय बिताना, उनकी समस्याएं समझना और गुणवत्ता सुधारना उसका जुनून था। उसकी लगन और काबिलियत ने जल्द ही कंपनी के बड़े अधिकारियों का ध्यान खींचा।
लेकिन जहां तारीफें मिलती हैं, वहां जलन भी होती है। प्रोजेक्ट मैनेजर अफजल खान, जो भारत से ही था, लेकिन चापलूसी और राजनीति के दम पर पद तक पहुंचा था, आरिफ की बढ़ती लोकप्रियता से डरने लगा। अफजल ने आरिफ को रास्ते से हटाने की साजिशें शुरू कर दीं। वह आरिफ के अच्छे कामों का श्रेय खुद लेता, उसकी छोटी गलतियों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करता।
इसी दौरान कंपनी को दुबई मरीना बीच पर सेवन-स्टार होटल बनाने का बड़ा प्रोजेक्ट मिला। अफजल को प्रोजेक्ट हेड बनाया गया, आरिफ उसकी टीम में प्रमुख इंजीनियर था। आरिफ ने पूरी जान लगा दी। इसी प्रोजेक्ट में उसकी मुलाकात हुई शेख अलहादी से—दुबई के सम्मानित अरब व्यापारी, प्रोजेक्ट के मुख्य निवेशक। शेख साहब ने आरिफ की काबिलियत, उसकी सच्चाई और मेहनत को पहचाना। उन्होंने आरिफ को अपना पर्सनल कार्ड देते हुए कहा—”अगर कभी अन्याय हो तो मुझे फोन करना।”
एक रात आरिफ ने प्रोजेक्ट डिजाइन में एक खतरनाक खामी देखी, जिससे हजारों लोगों की जान खतरे में पड़ सकती थी। वह अफजल के पास भागा, लेकिन अफजल डर गया—क्योंकि यह वही डिजाइन था जिसे उसने बिना जांचे मंजूरी दी थी। अफजल ने रात में ऑफिस जाकर आरिफ के चेतावनी वाले सारे ईमेल डिलीट कर दिए और नकली दस्तावेज तैयार किए, जिससे आरिफ को दोषी साबित किया जा सके।
अगली सुबह मैनेजमेंट मीटिंग में अफजल ने आरिफ पर आरोप लगा दिए। आरिफ के पास अपनी बेगुनाही का कोई सबूत नहीं था। उसे तत्काल नौकरी से निकाल दिया गया, फ्लैट खाली करने का नोटिस मिला, वीजा रद्द। वह दुबई की सड़कों पर बेसहारा हो गया। कई जगह नौकरी ढूंढी, लेकिन कोई उसे काम देने को तैयार नहीं था। पैसे खत्म होने लगे, भारत लौटने की सोचने लगा।
एक रात टूटे मन से अपने बटुए में पड़े शेख अलहादी के कार्ड को देखा, एक आखिरी उम्मीद। कांपते हाथों से फोन मिलाया। शेख साहब ने तुरंत गाड़ी भेजी, आरिफ को अपने ऑफिस बुलाया। उन्होंने कहा, “अब चिंता मत करो, मैं जानता हूं तुम बेकसूर हो। अपनी कंपनी में सीनियर इंजीनियर का पद देता हूं, तनख्वाह दोगुनी होगी।”
आरिफ की आंखों में कृतज्ञता के आंसू थे, लेकिन उसने कहा—”अब मैं किसी और के लिए काम नहीं करना चाहता। मैं खुद की कंपनी शुरू करना चाहता हूं, जो ईमानदारी, गुणवत्ता और इंसानियत के उसूलों पर चले।” शेख साहब मुस्कुराए, बोले—”मैं तुम्हारे सपने में भागीदार बनना चाहता हूं। हम दोनों मिलकर नई कंपनी शुरू करेंगे—’अल अमीन कंस्ट्रक्शंस’।”
शेख साहब ने पैसा और अनुभव लगाया, आरिफ ने मेहनत और काबिलियत। छोटे-छोटे प्रोजेक्ट्स से शुरुआत की, लेकिन गुणवत्ता और समय की पाबंदी ने कंपनी को दुबई की सबसे भरोसेमंद कंपनियों में शामिल कर दिया। मजदूरों का परिवार जैसा ख्याल रखा जाता। दो साल में कंपनी ने बड़ी-बड़ी कंपनियों को टक्कर देना शुरू कर दिया।
उधर गल्फ रॉयल कंस्ट्रक्शंस का पतन शुरू हो गया—अक्षम मैनेजरों के कारण। आखिरकार अफजल खान को भी एक घोटाले में निकाल दिया गया।
चर्मोत्कर्ष तब आया जब दुबई सरकार ने साइंस म्यूजियम के वैश्विक टेंडर के लिए दो कंपनियां चुनीं—गल्फ रॉयल और अल अमीन। फाइनल प्रेजेंटेशन में जब गल्फ रॉयल के मालिकों ने अल अमीन के सीईओ की कुर्सी पर आरिफ को बैठे देखा तो उनके होश उड़ गए। आरिफ ने विज़न और ईमानदारी से प्रेजेंटेशन दिया, टेंडर जीत लिया। गल्फ रॉयल के मालिकों ने माफी मांगी, आरिफ ने विनम्रता से कहा—”अगर आपने मुझे उस दिन ना निकाला होता, तो मैं आज यहां तक कभी नहीं पहुंच पाता।”
इस तरह आरिफ खान ने अपनी सबसे बड़ी हार को अपनी सबसे बड़ी जीत में बदल दिया। उसकी कहानी हमें सिखाती है कि साजिशें और अन्याय आपको कुछ समय के लिए रोक सकते हैं, लेकिन अगर आपकी काबिलियत और नियत में दम है, तो आपको मंजिल तक पहुंचने से कोई नहीं रोक सकता।
अगर यह कहानी आपको प्रेरणा देती है, तो इसे जरूर शेयर करें और बताएं—आपके अनुसार सफलता के लिए सबसे जरूरी चीज क्या है? काबिलियत या अवसर?
धन्यवाद!
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