दोस्त से उधार पैसे लेकर शहर गया था, दस साल बाद करोड़पति बनकर गाँव में दोस्त का क़र्ज़ चुकाने वापस

“दोस्ती का कर्ज: रवि और शंकर की अमर कहानी”

प्रस्तावना

क्या दोस्ती का कोई मोल होता है?
क्या एक सच्चा दोस्त आपकी जिंदगी के अंधेरे में रोशनी बन सकता है, जब आपके अपने भी साथ छोड़ दें?
क्या टूटी झोपड़ी में आँसुओं के बीच किया गया वादा दस साल बाद भी अपनी अहमियत रखता है?

यह कहानी है रवि की, जिसके सपने आसमान छूने के थे, लेकिन जेब में एक रुपया भी नहीं था।
यह कहानी है शंकर की, जिसने दोस्ती के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया।
यह कहानी है उस वादे की, जो रवि को गांव की धूल भरी गलियों से मुंबई के आलीशान पेंटहाउस तक ले गया।
और जब 10 साल बाद रवि करोड़पति बनकर हेलीकॉप्टर से गांव लौटा, उसका पहला सवाल था—”मेरा दोस्त शंकर कहाँ है?”

रामपुर: सपनों और संघर्ष का गांव

उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में घाघरा नदी के किनारे बसा पिछड़ा हुआ गांव रामपुर।
यहां के लोग अपनी किस्मत, अपनी फसल और अपने सपनों को मौसम के भरोसे छोड़ देते थे।
यहीं रहता था 20 साल का रवि—दुबला-पतला, पर आंखों में आग और कुछ कर गुजरने का जुनून।

रवि के पिता राम भरोसे दो बीघा जमीन के छोटे किसान, मां शारदा दिनभर घर और खेत में लगी रहती।
रवि पढ़ाई में तेज था, 12वीं प्रथम श्रेणी से पास की, आगे पढ़ना चाहता था, पर पैसे नहीं थे।
उसका एक ही दोस्त था—शंकर।
शंकर पढ़ाई में कमजोर, पर दिल का राजा। अपने पिता की छोटी परचून दुकान में बैठता, छोटी सी दुनिया में खुश रहता, लेकिन दोस्ती में जान छिड़कता।

मुसीबत की घड़ी और दोस्ती की मिसाल

रवि के पिता बीमार पड़े, इलाज के लिए शहर जाना जरूरी था, लेकिन पैसे नहीं थे।
रवि ने ठाकुर हरबन सिंह से मदद मांगी, पर ताने सुनने पड़े—”तेरी औकात यही है, खेतों में मजदूरी कर।”
गांव के बाकी लोग भी मुंह फेर गए।

उदास रवि रात को शंकर की दुकान पर बैठा था।
शंकर ने सब सुना, चुप रहा, फिर दुकान के गल्ले और पत्नी के घर खर्च से ₹5,000 निकाले—”यह ले, दोस्ती का भरोसा है।”
रवि ने मना किया, शंकर बोला—”अगर तूने मना किया, तो हमारी दोस्ती की कसम तुझे।”

शंकर को लगा पैसे कम हैं।
वह घर गया, पत्नी गीता से माँ के दिए हुए सोने के झुमके मांगे, गिरवी रखकर ₹5,000 और लाया।
रवि के हाथ में कुल ₹10,000 रखे।
रवि ने वादा किया—”एक दिन बड़ा आदमी बनूंगा, सबसे पहले तेरा कर्ज चुकाऊंगा।”

मुंबई: सपनों की जंग

रवि मुंबई पहुंचा, जहां ₹10,000 ऊंट के मुंह में जीरा थे।
पहले ही दिन ठगी हो गई, पैसे कम हो गए।
धारावी की झुग्गी में एक अंधेरी खोली किराए पर मिली।
रवि ने मजदूरी की, होटल में बर्तन मांजे, अखबार बेचे, गाड़ियों के शीशे साफ किए।
कई दिन सिर्फ पानी या लंगर में खाना मिलता।
शारीरिक रूप से टूट रहा था, पर हौसला जिंदा था—शंकर का चेहरा, दोस्ती का वादा उसे सोने नहीं देता था।

इसी बीच खबर मिली—पिता चल बसे।
रवि टूट गया, लेकिन पिता का सपना याद आया—”बड़ा आदमी बनना है।”
आंसुओं को ताकत बनाया, अब खोने को कुछ नहीं था, पाने को दुनिया थी।

पहला मौका और मेहनत का फल

एक दिन सेठ के बगीचे में पौधे सूख रहे थे।
रवि ने हिम्मत करके कहा—”साहब, मैं ठीक कर सकता हूं।”
कुछ दिनों में बगीचा हराभरा हो गया।
सेठ ने ऑफिस में चपरासी की नौकरी दी।

रवि ने कंप्यूटर चलाना, अंग्रेजी बोलना सीखा।
ऑफिस के बाद आईटी कंपनी में पार्ट टाइम काम किया, कोडिंग सीखी।
दिमाग तेज था, छोटे व्यापारियों के लिए सरल, सस्ता अकाउंटिंग सॉफ्टवेयर बनाने का सपना देखा।

तीन साल तक दिन में चार घंटे सोया, बाकी समय काम और सीखने में लगा दिया।
आखिरकार खुद का सॉफ्टवेयर बना लिया।
सेठ ने आईडिया पसंद किया, पैसे दिए, बिजनेस शुरू करने को कहा।

रवि ने अपनी नौकरी छोड़ी, खोली में पुराने कंप्यूटर पर “मित्र सॉल्यूशंस” की शुरुआत की—नाम अपने दोस्त शंकर को समर्पित।

सफलता की उड़ान

शुरुआत मुश्किल थी, कोई भरोसा नहीं करता था।
दुकान-दुकान घूमता, समझाता, ज्यादातर लोग भगा देते।
एक बड़े होलसेलर ने सॉफ्टवेयर लिया, काम आसान हुआ, उसने दूसरों को बताया।
धीरे-धीरे नाम फैलने लगा, ग्राहक बढ़े, कंपनी मुंबई के बिजनेस सर्किल में मशहूर हो गई।

5 साल में रवि करोड़पति बन गया।
पेंटहाउस, महंगी गाड़ियाँ, सैकड़ों कर्मचारी—लेकिन गांव, मिट्टी और दोस्त शंकर नहीं भूला।

10 साल बाद वादा निभाने की घड़ी

10 साल बाद रवि ने फैसला किया—अब वादा निभाना है।
हेलीकॉप्टर से गांव पहुंचा, पूरा गांव तमाशा देखने जमा।
सूट-बूट में रवि को पहचानना मुश्किल, पर चश्मा उतारा तो सब पहचान गए—”राम भरोसे का बेटा रवि!”

रवि सीधा शंकर की दुकान पर गया, वहां टूटी झोपड़ी थी।
बूढ़े काका से पूछा, “शंकर कहाँ है?”
काका बोले, “तू चला गया, उसके बाद शंकर पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। दुकान में आग, खेत की फसल बर्बाद, ठाकुर ने जमीन हड़प ली। अब मजदूरी करके परिवार पालता है।”

रवि का कलेजा फट गया।
झोपड़ी में गया, शंकर फटे कपड़ों में, कमजोर, बूढ़ा सा।
पहचान नहीं पाया।
रवि दौड़कर पैरों पर गिर पड़ा—”शंकर, मैं हूँ तेरा दोस्त रवि!”
दोनों दोस्त 10 साल बाद बच्चों की तरह रो पड़े।

दोस्ती का कर्ज चुकाया

रवि ने ठाकुर को बुलाया, शंकर के कर्ज का हिसाब पूछा, दुगनी रकम दी, जमीन के कागज शंकर के नाम करवाए।
गांव के सबसे अच्छे हिस्से में शंकर का सुंदर घर बनवाया, पत्नी गीता का इलाज करवाया, बच्चों की पढ़ाई की जिम्मेदारी ली।
मित्र सॉल्यूशंस की 10% हिस्सेदारी शंकर को दी—”अब तू मेरा बिजनेस पार्टनर है!”

रवि यहीं नहीं रुका, पूरे गांव की तकदीर बदलने का फैसला किया।
पंचायत बुलाई, पिता के नाम पर आधुनिक स्कूल, माँ के नाम पर अस्पताल, मित्र सॉल्यूशंस की ब्रांच, कॉल सेंटर, सॉफ्टवेयर यूनिट, किसानों के लिए कोल्ड स्टोरेज और फूड प्रोसेसिंग यूनिट का वादा किया।

गांव में जय-जयकार, सबकी आंखों में गर्व और सम्मान।

एक साल बाद रामपुर बदल चुका था—पक्की सड़कें, पक्के मकान, हर बच्चा स्कूल, हर किसी के पास रोजगार।

अंतिम संदेश

एक शाम रवि और शंकर नदी किनारे बैठे, शंकर बोला—”तूने गांव को स्वर्ग बना दिया।”
रवि मुस्कुराया—”यह सब तुम्हारी दोस्ती का कर्ज है। अगर उस रात तूने भरोसा ना किया होता, तो आज भी मैं मुंबई की किसी गली में भटक रहा होता।”

यह कहानी सिखाती है कि सच्ची दोस्ती दुनिया की सबसे बड़ी दौलत है।
एक किया हुआ वादा अगर नेक नियत से निभाया जाए, तो वह दो लोगों ही नहीं, पूरे समाज की किस्मत बदल सकता है।

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धन्यवाद।