नर्स ने अनजान मरीज़ की सेवा की… लेकिन जब उसने होश में आकर जो दिया सबको हिला

जिस बेटी को खोया, उसी के नाम से मिली पहचान
परिचय: एक थकी हुई रात
कभी-कभी किसी की मदद करना महज़ एक काम नहीं, एक किस्मत बदलने वाली दुआ बन जाती है। आज की कहानी ऐसी ही एक नर्स की है जिसने एक अनजान मरीज़ की सेवा करते-करते अपनी ज़िंदगी की सबसे बड़ी पहचान पाई।
रात के करीब 12:30 बजे थे। दिल्ली के सिटी जनरल हॉस्पिटल की गलियारों में अजीब सी खामोशी पसरी थी। बस मॉनिटर की बीप-बीप की आवाज़ और बीच-बीच में चलती नर्सों के कदमों की हल्की आहट।
वार्ड नंबर सात में ड्यूटी पर थी नर्स मीरा शर्मा। उम्र लगभग 28 साल। अपने काम में ईमानदार, लेकिन चेहरे पर हमेशा एक हल्की थकान। दिनभर की ड्यूटी के बाद अब रात की पाली उसकी जिम्मेदारी थी।
एक अजनबी का आगमन
अचानक इमरजेंसी रूम के बाहर एक स्ट्रेचर आया, साथ में दो पुलिसकर्मी। स्ट्रेचर पर एक अजनबी आदमी था, लगभग 60 साल का। सफेद बाल, झुर्रियों वाला चेहरा, कपड़े खून से सने हुए।
पुलिसकर्मियों ने जल्दी में कहा, “मैडम, यह आदमी सड़क किनारे घायल मिला था। किसी पहचान का कागज़ नहीं मिला। शायद एक्सीडेंट हुआ है।” डॉक्टर ने तुरंत उसे आईसीयू में ले जाने को कहा।
मीरा ने झट से स्ट्रेचर संभाला। उसने बिना एक सेकंड गँवाए ऑक्सीजन लगाया और डॉक्टर माथुर को बुलाया। डॉक्टर माथुर ने जाँच की और बोले, “गंभीर चोटें हैं। लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत… इन्हें बहुत खून बह चुका है। अभी ब्लड ट्रांसफ्यूजन शुरू करना होगा।”
मीरा ने सिर हिलाया और अगले ही पल वह आईसीयू में सब तैयार कर रही थी। आदमी बेहोश था। चेहरा शांत था, लेकिन उस शांति में दर्द की लकीरें साफ दिख रही थीं। मीरा ने धीरे से उनका हाथ पकड़ा। ठंडा था। वह अपने अंदर एक अजीब सी करुणा महसूस कर रही थी।
वह खुद से बड़बड़ाई, “भगवान करे यह आदमी बच जाए। यह किसी का पिता होगा, किसी का अपना।”
सेवा की रात
घंटे गुज़र गए। सुबह के 5:00 बजने वाले थे। बाकी स्टाफ थकान से ऊंघ रहा था, लेकिन मीरा अभी भी आईसीयू में थी। उसने सारी रात उस अजनबी मरीज़ के सिर पर ठंडी पट्टी रखी, इंजेक्शन बदले और हर पाँच मिनट में उसका ब्लड प्रेशर देखा।
डॉ. माथुर अंदर आए और बोले, “मीरा, तुम अब तक यहीं हो? नाइट शिफ्ट खत्म हो गई।”
मीरा ने थकी मुस्कान के साथ कहा, “सर, मरीज़ की हालत स्थिर नहीं थी। मैं चाहती थी कि जब तक साँसें ठीक न हों, मैं यहीं रहूँ।”
डॉक्टर कुछ पल उसे देखते रहे। “तुम्हारे जैसी नर्स ही अस्पताल की रीढ़ हैं। अगर भगवान ने चाहा तो यह आज शाम तक होश में आ जाएगा।”
पहली पहचान
सुबह 8:00 बजे। मीरा अब तक जाग रही थी। उसने देखा मॉनिटर की बीप अब नियमित हो गई है। साँसें स्थिर हैं। वह बाहर जाने ही वाली थी कि अचानक उसने एक हल्की आवाज़ सुनी: “पानी।”
मीरा पलटी। वही अजनबी मरीज़ अब आँखें खोल रहा था। उसने दौड़कर गिलास में पानी लिया और धीरे-धीरे उसके होंठों से लगाया। आदमी की आँखों में उलझन थी, जैसे कुछ याद करने की कोशिश कर रहे हों।
मीरा ने मुस्कुरा कर कहा, “आप सुरक्षित हैं। चिंता मत कीजिए, आप अस्पताल में हैं।”
वह आदमी कुछ देर तक उसे देखता रहा, फिर उसकी आँखें भर आईं। धीरे से बोला, “तुमने पूरी रात मेरी सेवा की?”
मीरा ने सिर हिलाया। “हाँ, आपकी हालत बहुत खराब थी।”
वह कुछ कहना चाहता था, लेकिन गला भारी था। आँखों से आँसू निकल पड़े। मीरा ने समझा, शायद वह दर्द के कारण रो रहा है। उसने पूछा, “आपका नाम क्या है? हम आपके परिवार से संपर्क कर सकते हैं।”
आदमी ने धीमी आवाज़ में कहा, “नाम राघव मेहता।” मीरा ने नोट किया और मुस्कुरा कर कहा, “ठीक है। अब आपको आराम करना चाहिए। हम आपके परिवार को ढूँढ़ने की कोशिश करेंगे।”
जैसे ही वह मुड़ने लगी, उस आदमी ने कमज़ोर आवाज़ में कहा, “मीरा… तुम्हारा नाम मीरा है ना?”
मीरा ठिठक गई। “हाँ, लेकिन आपको कैसे पता?”
वह आदमी मुस्कुराया। उसकी आँखों में नमी और अपनापन दोनों थे। “क्योंकि मैं तुम्हें जानता हूँ।”
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मीरा चौंक गई। उसके कदम ठिठक गए। वह पीछे मुड़ी। “आप मुझे जानते हैं? लेकिन हम तो कभी मिले भी नहीं।”
राघव की साँसें थोड़ी तेज़ हुईं। उसने फुसफुसाकर कहा, “नहीं मीरा, तुम मुझे नहीं जानती, पर मैंने तुम्हारा नाम सालों पहले सुना था… जब मेरी ज़िंदगी ने सब कुछ खो दिया था।”
मीरा का चेहरा सख्त पड़ गया। वह हक्की-बक्की थी। “क्या मतलब?” उसने पूछा।
राघव ने आँखें बंद की। “तुम्हारा नाम… मेरी बेटी का नाम है।”
मीरा कुछ पल वहीं खड़ी रही। उसकी उँगलियाँ काँप रही थीं। उसने धीरे से पूछा, “आपकी बेटी का नाम भी मीरा था?”
राघव की आँखों में नमी तैर गई। उसने सिर हिलाया और बहुत धीमे स्वर में बोला, “हाँ, लेकिन मैंने उसे खो दिया था… 15 साल पहले।”
मीरा के भीतर कुछ टूटने जैसा हुआ। कमरे की हवा भारी हो गई। वह धीरे से पास की कुर्सी खींचकर बैठ गई। “क्या हुआ था आपकी बेटी को?”
राघव ने गहरी साँस ली। “वो मेरी ज़िंदगी की सबसे बड़ी गलती थी और वही आज मुझे इस हालत में यहाँ तक ले आई। मैं एक सरकारी अधिकारी था। सख्त और नियमों वाला। मेरी बेटी मीरा… वो बहुत भावुक थी। बचपन से ही दूसरों की मदद करने में आगे रहती थी। एक दिन वह कॉलेज से घर लौटी और बोली कि उसने एक गरीब लड़के से शादी करने का फैसला किया है। मैं उस वक़्त अपने ओहदे, अपने नाम और अपने अहंकार में अंधा था।”
उसने गला साफ़ किया। “मैंने कहा, ‘मेरे घर में ऐसा रिश्ता कभी नहीं होगा।’ वह रोती रही, गिड़गिड़ाती रही, लेकिन मैं नहीं माना। वो घर छोड़कर चली गई। वो आख़िरी बार था जब मैंने उसे देखा था। कुछ सालों बाद पता चला कि उसकी शादी हुई, पर उसका पति बीमार हो गया। उसने अपने पति का इलाज करने के लिए हॉस्पिटल में नर्स की नौकरी की, और फिर एक दिन ख़बर आई… वह भी नहीं रही।”
मीरा की आँखें भीग चुकी थीं। “आपने उसे ढूँढ़ने की कोशिश की थी?”
राघव की आँखें खुलीं और उनमें पछतावे की गहराई थी। “हर दिन करता था मीरा। पर क़िस्मत ने मुझे इजाज़त नहीं दी। जब तक मैं उसे ढूँढ़ पाता, वो जा चुकी थी। मेरी ज़िंदगी का हर दिन उसी अपराधबोध में बीता। मैं लोगों की मदद करने लगा ताकि शायद भगवान मुझे माफ़ कर दे।”
अंतिम विदाई
राघव ने फीकी मुस्कान दी। “शायद किसी मोड़ पर ज़िंदगी ने फिर मुझ पर तरस खाया। मैं भोपाल जा रहा था। सड़क पर एक्सीडेंट हो गया। किसी ने नहीं रोका… सब निकल गए। लेकिन तुम रुकी। तुमने मेरे लिए वही किया जो मेरी बेटी ने लोगों के लिए किया था। जब मैंने पहली बार आँखें खोलीं तो तुम्हारे बैज पर लिखा था ‘नर्स मीरा शर्मा’, और मुझे लगा, शायद मेरी मीरा ने मुझे माफ़ कर दिया है।”
मीरा के आँसू अब रुक नहीं रहे थे। उसने धीरे से कहा, “शायद भगवान कभी देर करता है लेकिन ग़लत नहीं करता, राघव जी। आपकी बेटी ने किसी रूप में आपको माफ़ कर दिया। तभी आपको मेरी सेवा मिली।”
राघव ने आँखें बंद कर दीं। “मीरा, मैं अब जाना चाहता हूँ, लेकिन शांति से। मुझे लगा था कि मैं अपनी बेटी को कभी नहीं देख पाऊँगा। पर अब लगता है वह मेरे सामने खड़ी है।”
मीरा ने धीरे से उनका हाथ थाम लिया। “आपकी बेटी आज भी आप में ज़िंदा है, सर। और जब तक इंसानियत ज़िंदा है, वह कहीं नहीं गई।”
अचानक मॉनिटर पर हल्का अलार्म बजा। डॉ. माथुर दौड़े आए। राघव की साँसें कमज़ोर पड़ रही थीं। राघव की आँखों में अब सुकून था। उनके होंठ हिले। “मीरा… अब सब ठीक है।”
और उनकी हथेली, जो मीरा के हाथ में थी, धीरे-धीरे ढीली पड़ गई।
विरासत
राघव मेहता के देहांत की ख़बर पूरे अस्पताल में फैल गई। कुछ घंटों बाद अस्पताल के रिसेप्शन पर उनका परिवार पहुँचा—उनकी पत्नी सुजाता और दो बेटे। उनके चेहरे पर गहरा दुख था।
मीरा वहीं बैठी थी, दिल में एक अजीब सी शांति थी, जैसे कोई अधूरा रिश्ता अब पूरा हो गया हो। डॉ. माथुर ने धीरे से उसके कंधे पर हाथ रखा।
“मीरा, तुम्हें पता है? उन्होंने आख़िरी फ़ॉर्म पर साइन करने से पहले कुछ कहा था। उन्होंने कहा था, ‘अगर मैं न रहूँ तो मेरी बेटी को बता देना… मैं उसे हमेशा याद करता रहा।’ और एक बात और… उन्होंने मरने से पहले एक लिफ़ाफ़ा दिया था, कहा था कि इसे मीरा को देना।”
मीरा हैरान रह गई। उसके हाथ काँपते हुए बढ़े और उसने लिफ़ाफ़ा लिया। उस पर राघव की लिखावट में लिखा था: ‘मेरी मीरा के नाम।‘
वह बाहर आकर धीरे से बैठी और लिफ़ाफ़ा खोला। अंदर एक पुराना फोटो था—एक छोटी लड़की और उसके पिता का, दोनों हँसते हुए।
फोटो के पीछे लिखा था: “जिस दिन तुम किसी अनजान की सेवा करोगी, उस दिन मुझे लगेगा मेरी बेटी फिर ज़िंदा है।”
और साथ में एक छोटा सा नोट: “अगर यह लिफ़ाफ़ा तुम्हारे हाथों में पहुँचे, तो समझ लेना मीरा। मैं तुम्हें पा चुका हूँ।”
मीरा की आँखों से आँसू बहे, लेकिन उसके होंठों पर हल्की मुस्कान थी। उसने आसमान की ओर देखा और कहा, “हाँ अंकल, आपने अपनी मीरा को पा लिया।”
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