पति को मजदूरी करते देख पत्नी ने घर आकर अलमारी खोली, सामने था रुला देने वाला सच!

“सड़क किनारे का सच: सीमा और राजीव की आस्था और प्रेम की कहानी”
भाग 1: तपती दोपहर और एक झटका
दिल्ली की चौड़ी सड़कों पर दोपहर की तेज धूप मानो सब कुछ निगल रही थी। सीमा मल्होत्रा अपनी लग्जरी कार में बैठी थी, खरीदारी करके लौट रही थी। उसके चेहरे पर संतुष्टि थी, जैसे दुनिया में कोई कमी नहीं। तभी उसकी नजर सड़क किनारे चल रहे मजदूरों पर पड़ी। धूल, पसीना, थकी कमरें—ये सब उसकी दुनिया से बहुत दूर थे।
अचानक एक मजदूर पर उसकी नजर ठहर गई। सीमा का दिल रुक गया। वो शख्स… राजीव! उसका पति, जो मल्टीनेशनल कंपनी में मैनेजर था, आज यहां मजदूरी कर रहा था। सीमा को यकीन नहीं हुआ। उसने ड्राइवर से गाड़ी रोकने को कहा, पर जब तक वह सड़क पार करती, राजीव वहां से गायब हो चुका था।
भाग 2: बीते वक्त की परछाई
सीमा घर लौटी तो उसकी आंखों के सामने कॉलेज के दिन घूमने लगे। कैसे उसने अपने पिता की मर्जी के खिलाफ राजीव से शादी की थी। राजीव ने उसे कभी किसी चीज की कमी महसूस नहीं होने दी थी। मेहनत से उन्होंने अपना घर बसाया था। सीमा को अपने फैसले पर गर्व था। लेकिन आज, सड़क किनारे मजदूर बने राजीव को देखकर उसके पिता के शब्द सच लगने लगे—”जब हकीकत सामने आएगी, तुम पछताओगी।”
सीमा का दिल सवालों से घिर गया। क्या राजीव की नौकरी चली गई? क्या वो कुछ छिपा रहा है? क्या उसका प्यार इतना कमजोर है कि वो मुश्किल वक्त में साथ नहीं खड़ी हो सकती?
भाग 3: शक और बेचैनी
शाम को राजीव रोज की तरह मुस्कुराता हुआ घर आया। सीमा ने उसके चेहरे को गौर से देखा, कोई थकान या धूल का निशान नहीं था। राजीव ने पूछा, “क्या हुआ सीमा?” सीमा ने झूठ बोल दिया—”बस सिर में हल्का दर्द है।”
उस रात सीमा सो नहीं पाई। राजीव के शांत चेहरे को देखती रही। उसकी बेचैनी बढ़ती गई। आखिर उसने तय किया कि सच जानना जरूरी है, लेकिन सीधे-सीधे पूछना नहीं चाहती थी। उसे डर था कि कहीं राजीव का आत्मसम्मान आहत न हो जाए।
भाग 4: सच की तलाश
अगली सुबह राजीव ऑफिस के लिए तैयार हुआ। सीमा ने साधारण सूट पहना, ड्राइवर से कहा—”राजीव साहब की कार का पीछा करो, लेकिन दूर से।”
राजीव की कार कॉर्पोरेट टावर पर रुकी, जहां उसका ऑफिस था। सीमा को राहत मिली, शायद कल का दृश्य उसका वहम था। लेकिन रास्ते में फिर वही कंस्ट्रक्शन साइट आई। सीमा ने गाड़ी रुकवाई, मजदूरों के बीच जाकर मुंशी से बात की। सीमा ने राजीव का हुलिया बताया।
मुंशी बोला, “हां मैडम, आप शायद राजीव की बात कर रही हैं। दोपहर के तीन-चार घंटे आता है, खूब मेहनत करता है, चुपचाप अपनी दिहाड़ी लेकर चला जाता है।”
सीमा सन्न रह गई। इसका मतलब राजीव सुबह ऑफिस और दोपहर में मजदूरी करता है। क्यों?
भाग 5: छुपा हुआ राज
सीमा घर लौटी, राजीव की अलमारी टटोली। सूट के पीछे एक पुराना लोहे का बक्सा था। ताला खोलकर देखा—पुरानी मेडिकल फाइलें, जिनमें बच्चा न होने की वजह से डॉक्टरों की रिपोर्ट थी। नीचे एक डायरी का पन्ना था—राजीव की लिखावट:
“हे माता रानी, हमारी शादी को 5 साल हो गए। सब कुछ मिला, पर घर सुना है। सीमा बाहर से मुस्कुराती है, पर मैं जानता हूं उसका तकिया आंसुओं से भीग जाता है। अब बस आपका ही सहारा है। अगले 41 दिनों तक अपनी नौकरी के बाद मजदूरी करूंगा, पसीने की कमाई से जागरण करवाऊंगा। यह राज मेरे और आपके बीच रहेगा।”
सीमा की आंखों से आंसू बह निकले। यह दुख या शक के नहीं, सम्मान और गर्व के आंसू थे। राजीव की मेहनत पैसे के लिए नहीं, आस्था के लिए थी।
भाग 6: खामोश साथी
सीमा ने राजीव का राज जान लिया था। उसने ठान लिया कि वह राजीव की मन्नत खंडित नहीं करेगी, बल्कि उसकी शक्ति बनेगी। अब सीमा खुद रसोई में पौष्टिक खाना बनाती, राजीव के लिए लड्डू, गर्म पानी, तेल की मालिश—सब कुछ करती। राजीव को यह प्यार महसूस होता, लेकिन असली वजह वह नहीं जानता था।
रात में जब राजीव सो जाता, सीमा मंदिर के सामने खड़ी होकर प्रार्थना करती—”हे मां, मैं आपके यज्ञ की खामोश सहयात्री बनूंगी। मैं पर्दे के पीछे से अपने पति की शक्ति बनूंगी।”
भाग 7: मन्नत का पूरा होना
41वें दिन राजीव बेहद थका हुआ घर लौटा, जेब में 41 दिनों की मेहनत की कमाई थी। उसने सोचा सीमा को सब बताएगा। लेकिन घर में कदम रखते ही देखा—पूरा घर सजाया हुआ, माता के भजन, आरती की थाली सजाए सीमा।
सीमा ने राजीव की जेब से पोटली निकाली, देवी मां के चरणों में रख दी। उसकी आंखों में सिर्फ प्रेम, सम्मान और समझ थी। राजीव की आंखें भर आईं। उसने सीमा को गले लगा लिया।
आज उनका रिश्ता टूटने की कगार से एक अटूट बंधन में बदल गया था। उनका प्यार अब सिर्फ प्यार नहीं, एक-दूसरे की आस्था का सम्मान भी बन गया था।
भाग 8: घर में उम्मीद और प्रेम
जागरण की रात सीमा और राजीव हाथ में हाथ डाले बैठे रहे। घर की खामोशी माता के भजनों और घंटियों की ध्वनि से टूट चुकी थी। उनका घर अब सच में एक घर बन गया था—उम्मीद, विश्वास और निस्वार्थ प्रेम की नींव पर बना।
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अब एक सवाल:
क्या प्यार में एक-दूसरे से रखे गए राज हमेशा धोखा होते हैं? या कभी-कभी वह त्याग और सम्मान का सबसे बड़ा रूप भी हो सकते हैं?
अपनी राय नीचे कमेंट्स में जरूर बताएं।
धन्यवाद।
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