पत्नी ने ग़रीब पति को सबके सामने मारा थप्पड़ लेकिन पति ने पत्नी को दिया तलाक फिर जो हुआ ||

रघु की इज्जत – एक लंबी कहानी

गांव के कोने में मिट्टी का एक छोटा सा घर था, जिसमें रघु अपनी पत्नी सविता और बेटी रीना के साथ रहता था। रघु तीस साल का था, मेहनती और ईमानदार। उसकी आंखों में सपने थे, हाथों में छाले और दिल में अपार मोहब्बत। रोज खेतों में मजदूरी करता, ईंट भट्टे पर पसीना बहाता या फिर रिक्शा खींचकर दो वक्त की रोटी का इंतजाम करता। उसकी हालत गरीब थी, लेकिन दिल की दौलत सबसे बड़ी थी।

हर सुबह रघु जब घर से निकलता, सविता की तरफ प्यार से देखता और कहता, “तू फिक्र मत कर, आज थोड़ा ज्यादा मेहनत करूंगा। तुझे और रीना के लिए कुछ अच्छा लाऊंगा।” लेकिन अफसोस, उसका प्यार कभी लौटकर नहीं मिला। सविता उलट स्वभाव की थी, उम्र करीब 25 साल, खूबसूरत चेहरा लेकिन दिल में घमंड। उसे लगता था कि उसका पति उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी रुकावट है। “क्या रखा है इस गरीबी में? ना अच्छे कपड़े, ना अच्छा खाना। लोग हंसते हैं मुझ पर कि मैं एक मजदूर की बीवी हूं।”

रघु उसकी बातों को सुनकर भी चुप रहता, मुस्कुरा कर कह देता, “अभी वक्त हमारा नहीं है सविता, मेहनत करूंगा, एक दिन हालात बदलेंगे।” लेकिन सविता को उसकी मेहनत और उम्मीदों पर विश्वास नहीं था। उसके लिए पति का गरीब होना ही सबसे बड़ा गुनाह था। गांव वाले भी अक्सर ताने मारते – “अरे यह वही रघु है ना, दिन-रात खटता है, फिर भी घर में फाके चलते हैं। बीवी तो इसे छोड़कर किसी अमीर के साथ भाग जाएगी।”

एक दिन रघु यह सब सुनता और भीतर से टूट जाता, लेकिन अपनी बेटी रीना के लिए वह सब सह लेता। उसकी मासूम हंसी ही उसकी ताकत थी। दूसरी तरफ सविता का घमंड दिन-ब-दिन बढ़ता गया। वह औरतों के बीच बैठकर कहती, “मेरी किस्मत खराब है जो ऐसे आदमी से शादी हो गई। अगर अमीर घर में होती तो आज मैं रानी की तरह जी रही होती।” औरतें हंस देतीं, लेकिन रघु जब यह बातें सुनता तो दिल के भीतर कहीं गहरी चोट लगती।

वह सोचता, “मैं भले गरीब हूं, लेकिन क्या प्यार और इज्जत का हकदार भी नहीं हूं?” गांव में उस दिन मेले जैसा माहौल था। हफ्तावार बाजार लगा था, चारों ओर भीड़, दुकानों की आवाजें, बच्चों की खिलखिलाहट। रघु अपनी बीवी और बेटी के साथ बाजार आया था। हाथ में थोड़े पैसे थे, सोचा था रीना के लिए खिलौना खरीदेगा। सविता भी साथ थी, लेकिन उसके चेहरे पर तिरस्कार साफ झलक रहा था।

भीड़ के बीच उसकी सहेली ने मजाक में कहा, “सविता तेरा मर्द तो हमेशा गरीब ही रहेगा। कभी सोच मत लेना कि अमीर बनेगा।” भीड़ में लोग हंसने लगे। सविता को लगा जैसे उसके आत्मसम्मान पर चोट हुई हो। उसने बिना सोचे समझे सबके सामने चिल्ला दिया, “हां, सही कहती हो! यह आदमी कभी कुछ नहीं कर सकता। बस गधे की तरह दिन-रात खटता है, पर हमारी हालत नहीं बदलती।” इतना कहकर उसने गुस्से में सबके सामने रघु को एक जोरदार थप्पड़ मार दिया।

बाजार में अचानक खामोशी छा गई। हवा तक जैसे थम गई हो। लोगों की आंखों के सामने एक गरीब मजदूर पति को उसकी ही बीवी ने तमाचा जड़ दिया था। कुछ लोग ठहाका लगाकर हंसने लगे, “देखो बीवी भी अब इससे तंग आ गई।” अपमान ही तो नसीब है। कुछ ने ताने कस दिए, कुछ ने अफसोस भरी नजरों से रघु को देखा। लेकिन सबसे बड़ा दर्द था – उसकी छोटी बेटी रीना सब देख रही थी। वह डर के मारे मां की साड़ी पकड़ कर रोने लगी, “मां पापा को मत मारो।”

रघु की आंखें लाल हो गईं, लेकिन उसने गुस्सा नहीं किया। वह बस चुपचाप खड़ा रहा। उसके गाल पर थप्पड़ का निशान था, लेकिन दिल पर पड़ा घाव कहीं गहरा था। उसने भीड़ की ओर नहीं देखा, बस सिर झुका कर धीरे से बोला, “चलो घर चलते हैं।” सविता अब भी तिरस्कार से भरी हुई थी। “घर इस गरीबी खाने में अब और कितने दिन रहना है? मुझे तो अपनी किस्मत पर रोना आता है कि मैं तेरे जैसी नाकाम इंसान की बीवी हूं।”

रघु ने कुछ नहीं कहा। वह जानता था कि शब्दों से ज्यादा खामोशी गूंजती है। उस रात का सन्नाटा घर पहुंचने के बाद रीना जल्दी सो गई। शायद वह दिन का दर्द सह नहीं पाई थी। रघु चारपाई पर लेटा लेकिन नींद उसकी आंखों से कोसों दूर थी। पत्नी का ताना, भीड़ की हंसी, बेटी की मासूम चीख, सब उसके कानों में गूंज रहे थे। उसके अंदर कुछ टूट चुका था।

“मैंने इस औरत से मोहब्बत की, उसकी हर ख्वाहिश पूरी करने की कोशिश की, लेकिन उसने मेरे प्यार और मेहनत की कोई कदर नहीं की। उसने मेरे सबसे बड़े खजाने, मेरी इज्जत को सबके सामने रौंद दिया।”

आधी रात को वह उठा। टेबल पर पड़ा एक पुराना पन्ना उठाया। हाथ कांप रहे थे लेकिन दिल में अजीब सी मजबूती थी। उसने कलम उठाई और सिर्फ एक लाइन लिखी – “मैं तुम्हें तलाक देता हूं।” पन्ना उसने चारपाई के पास रख दिया। फिर धीरे-धीरे अलमारी खोली, उसमें से अपनी पुरानी शर्ट और एक फटा बैग निकाला। उसमें सिर्फ एक तौलिया, एक जोड़ी कपड़े और बेटी की मुस्कुराती हुई एक छोटी सी तस्वीर रखी।

रघु ने सोती हुई बेटी के माथे पर चुपचाप हाथ फेरा। आंखों से आंसू टपक पड़े। “बिटिया, तू ही मेरी असली ताकत है। आज मैं तुझे छोड़कर जा रहा हूं, लेकिन सिर्फ इसलिए ताकि एक दिन लौट कर तुझे वह जिंदगी दे सकूं जिसकी तू हकदार है।”

फिर उसने दरवाजे पर एक आखिरी नजर डाली। भीतर उसकी पत्नी चैन की नींद सो रही थी। जैसे दिन की सारी कड़वाहट निकालकर अब उसे कोई फर्क ही ना पड़ता हो। रघु ने गहरी सांस ली और घर से बाहर निकल गया। उस रात चांदनी भी जैसे उदास थी। उसकी परछाई लंबी होकर मिट्टी के रास्तों में खोती जा रही थी।

सुबह जब सविता की नींद खुली तो उसने कागज पर लिखी वह पंक्ति देखी – “मैं तुम्हें तलाक देता हूं।” वह पहले तो हंस पड़ी। “हां, यही तो चाहती थी मैं। अब इस गरीब से छुटकारा मिला। अब मैं अपनी जिंदगी अपनी तरह जी पाऊंगी।” उसकी आंखों में चमक थी, लेकिन उसे अंदाजा भी नहीं था कि यह फैसला उसकी पूरी किस्मत बदलने वाला है।

रघु घर छोड़ चुका था। उस रात उसने सिर्फ अपनी इज्जत को साथ रखा था और एक वादा – “अब मुझे खुद को साबित करना है।”

सुबह होते ही वह पास के कस्बे में पहुंच गया। जेब में पैसे नाम मात्र थे। पेट में भूख थी लेकिन आंखों में उम्मीद थी। उसने मजदूरी तलाशनी शुरू की। पहले दिन ही एक ढाबे पर बर्तन मांझने का काम मिल गया। लोग उसे देख हंसते – “अरे वो तो गांव का रिक्शा वाला है, अब यहां बर्तन धो रहा है।” लेकिन रघु ने किसी की परवाह नहीं की। उसने मन ही मन ठान लिया था कि अब उसके लिए हर दिन हर पल एक इम्तिहान है।

दिन गुजरते गए। वह ढाबे पर दिन-रात मेहनत करता। बर्तन धोने से लेकर ग्राहकों को पानी देने तक, जो भी काम दिया जाता बिना शिकायत करता। मालिक ने उसकी ईमानदारी देखी तो उसे चाय बनाने का काम दे दिया। धीरे-धीरे उसने पैसे जोड़ने शुरू किए। कुछ महीनों बाद रघु ने सोचा – अगर मैं दूसरों के लिए इतना कर सकता हूं तो क्यों ना खुद का छोटा सा ठेला लगाऊं।

उसने अपनी बचत से एक चाय-नाश्ते का ठेला खरीद लिया। सुबह से शाम तक वह ठेले पर खड़ा रहता। गर्म समोसे, चाय और साथ में उसकी मीठी बोली। जल्द ही लोग उसे पहचानने लगे – “चलो रघु की चाय पीते हैं। यहां ईमानदारी और स्वाद दोनों मिलते हैं।” रघु का नाम फैलने लगा। उसकी मेहनत और सच्चाई ने ठेले को दुकान में बदल दिया। एक साल के भीतर वह कस्बे के बीचोंबीच एक छोटी सी किराने की दुकान खोल चुका था।

लोग कहते – “देखो वही रघु है जिसे उसकी बीवी ने गरीब समझकर छोड़ दिया था। आज उसका खुद का कारोबार है।” रघु मुस्कुराता लेकिन भीतर से सोचता – “यह सब मेरी बेटी रीना के लिए है। जिस दिन वो मुझसे मिलेगी मैं उसे सीना तान कर कहूंगा कि उसके पापा नाकाम नहीं है।”

जैसे-जैसे समय बीतता गया, उसकी मेहनत रंग लाने लगी। दुकान अब बढ़कर एक होलसेल गोदाम बन चुकी थी। कस्बे के बड़े व्यापारी भी उससे सामान लेने लगे। लोग जो कभी उसे तिरस्कार से देखते थे, अब उसके सामने सिर झुकाते। “राम-राम रघु भाई, आपकी दुकान से ही माल लेंगे। आप जैसे ईमानदार लोग कम ही मिलते हैं।”

रघु की आंखों में चमक लौट आई। अब वह साधारण मजदूर नहीं बल्कि सम्मानित व्यापारी बन चुका था।

दूसरी तरफ गांव में सविता का हाल बदल चुका था। शुरू में उसने सोचा था कि रघु के बिना उसे अमीर घर मिल जाएगा। लेकिन सच उलट था। उसके मायके वालों ने भी ताने मारने शुरू कर दिए – “तूने अपने घर को खुद तोड़ा, अब तेरा बोझ कौन उठाएगा?” धीरे-धीरे लोग उससे दूरी बनाने लगे। वह अकेली पड़ गई। जो अहंकार कभी उसकी आंखों में चमकता था, अब उसी आंखों में शर्म और लाचारी उतर आई थी।

एक दिन जब रघु की दुकान पर ग्राहकों की भीड़ लगी थी, अचानक भीड़ को चीरती हुई एक औरत आई। उसकी हालत खराब थी, कपड़े अस्त-व्यस्त, चेहरा मुरझाया हुआ, आंखों में थकान और पश्चाताप। वह और कोई नहीं, सविता थी। भीड़ में हलचल मच गई – “अरे यह तो वही औरत है जिसने रघु को थप्पड़ मारा था, आज यह उसी के सामने खड़ी है, भीख मांग रही है।”

सविता दुकान के सामने झुक गई, आंसू बहाते हुए बोली – “रघु, मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। मैंने तेरी इज्जत का मजाक उड़ाया। मुझे माफ कर दे, मुझे फिर से अपना ले।” भीड़ ने सांसे रोक ली, अब सबकी निगाहें रघु पर थीं। दुकान के बाहर सन्नाटा छा गया। सविता मिट्टी में बैठी आंसू बहाते हुए रघु से रहम की भीख मांग रही थी। भीड़ चारों ओर खड़ी थी, सबकी नजरें रघु पर टिक गई थीं।

रघु ने कुछ पल चुपचाप अपनी बीवी को देखा। कभी वही औरत थी जिसके लिए वह दिन-रात मेहनत करता था, जिसकी मुस्कान के लिए वह पसीना बहाता था। और आज वही औरत उसके पैरों में गिड़गिड़ा रही थी। उसकी आंखों में आंसू थे लेकिन आवाज दृढ़ थी – “सविता, जब तू मेरी पत्नी थी, मैंने तुझे कभी कमी महसूस नहीं होने दी। गरीब था लेकिन दिल से तुझे रानी की तरह रखा। और तूने क्या किया? सबके सामने मेरा अपमान, थप्पड़ और मेरी बेटी की आंखों के सामने मेरी इज्जत मिट्टी में मिला दी।”

भीड़ में खुसुर-फुसुर होने लगी – “सच कह रहा है रघु, इज्जत से बड़ा कुछ नहीं होता।” सविता रोते हुए बोली, “मुझसे गलती हो गई थी। मैंने गुस्से में सब कहा, तू चाहे तो मुझे सजा दे, लेकिन मुझे छोड़ मत।”

रघु ने गहरी सांस ली – “सविता, मैं तुझे माफ कर सकता हूं क्योंकि तेरे साथ मेरी जिंदगी के कई साल जुड़े हैं। लेकिन तुझे अपनाना अब मेरे बस की बात नहीं। बीवी होते हुए तूने मेरा सबसे बड़ा धन, मेरी इज्जत छीन लिया था। और आज अगर मैं तुझे वापस ले लूं तो अपने आप से धोखा करूंगा।”

उसकी आवाज गूंज उठी – “प्यार के बिना घर टूटता नहीं लेकिन सम्मान के बिना इंसान टूट जाता है।” सविता ने सिर झुका लिया, उसके पास कोई जवाब नहीं था। भीड़ ने ताली बजाना शुरू कर दिया। कई लोग भावुक हो गए। रघु ने सबके सामने कहा – “दुनिया वालों सुन लो, गरीब होना गुनाह नहीं है लेकिन किसी को अपमानित करना सबसे बड़ा पाप है। मेहनत और ईमानदारी से इंसान सब कुछ पा सकता है, लेकिन खोई हुई इज्जत वापस नहीं आती।”

उसकी यह बात हवा में गूंज गई। लोगों की आंखों में आंसू थे और कईयों ने वहीं खड़े होकर प्रण लिया कि अब किसी गरीब का मजाक नहीं उड़ाएंगे।

अंतिम दृश्य:
रघु ने अपनी बेटी रीना को स्कूल से लिया और दुकान पर बैठाया। उसने बेटी के सिर पर हाथ रखकर कहा, “बिटिया, तेरी हंसी ही मेरी असली जीत है। आज तेरे पापा ने सबको दिखा दिया कि गरीबी कमजोरी नहीं, बल्कि मेहनत सबसे बड़ी ताकत है।” रीना ने मासूम मुस्कान दी और भीड़ की तालियों की गूंज में वह दृश्य हमेशा के लिए लोगों के दिलों पर छप गया।

सीख:
इंसान की असली दौलत उसकी इज्जत और मेहनत है। पैसा, शोहरत, सब वक्त के साथ बदल जाते हैं, लेकिन जो सम्मान खो जाए, वह कभी वापस नहीं आता। मेहनत करो, ईमानदारी से जियो, और कभी किसी की इज्जत मत छीनो। यही जीवन की सबसे कीमती चीज है।