पहलगाम जा रहे थे केरला के लोग खाने में नमक तेज होने के कारण रुके , फिर जो हुआ उसने हिलाकर रख दिया
एक चुटकी नमक ने बचाई नायर परिवार की जिंदगी – कश्मीर की सच्ची कहानी
कोच्ची से कश्मीर का सफर
तटकोच्ची के एडपल्ली इलाके में बसा था नायर परिवार –
अलबी जॉर्ज (40, सॉफ्टवेयर इंजीनियर),
पत्नी लावण्या (36, गृहिणी),
तीन बच्चे – मियां (15, फोटोग्राफी व डांस), अर्जुन (12, क्रिकेट व गेम्स), अनिका (8, मासूम सवालों की रानी)।
अलबी के माता-पिता शीला (65) और रामचंद्रन (68) भी साथ रहते थे।
लावण्या की बहन रंजना, उसके पति श्याम और बेटी रिया (10) छुट्टियों पर कोच्ची आए थे।
हर साल गर्मियों में नायर परिवार घूमने जाता था।
इस बार अप्रैल 2025 में अलबी ने सबको डिनर टेबल पर बुलाया –
“इस बार हम कश्मीर चलेंगे! डल झील, गुलमर्ग और पहलगाम…”
बच्चों की खुशी –
मियां: “पापा, मैं बेताब वैली देखूंगी!”
अर्जुन: “मैं स्नोबॉल फाइट करूंगा!”
कश्मीर की ओर रवाना
अलबी ने Mahindra Scorpio सर्विस करवाई और श्रीनगर में रहने वाले अनुभवी ड्राइवर अब्दुल को किराए पर लिया।
अब्दुल ने कहा – “साहब, कश्मीर की वादियां आपको जन्नत का एहसास कराएंगी।”
सामान पैक हुआ – कपड़े, कैमरा, बच्चों के खिलौने, लावण्या के बने इडली-सांभर-नारियल चटनी।
मियां ने डायरी और पेन साथ रखे।
कोच्ची से दिल्ली, फिर श्रीनगर की फ्लाइट।
श्रीनगर एयरपोर्ट पर अब्दुल ने स्वागत किया।
पुरानी मारुति वैन में सामान रखा – “अब कश्मीर की सैर शुरू होती है।”
डल झील, हरे-भरे चिनार, ठंडी हवा – बच्चे मंत्रमुग्ध।
अनिका: “मम्मी, क्या यह स्वर्ग है?”
लावण्या: “हां बेटा, इसे जन्नत कहते हैं।”
श्रीनगर में कश्मीर वैली लॉज गेस्ट हाउस – मालिक मुस्तफा भट्ट ने कश्मीरी कहवा और मेवे से स्वागत किया।
बच्चों को बादाम-काजू – “कश्मीर का स्वाद है।”
शिकारा वाला राशिद ने झील की कहानियां सुनाईं।
मियां ने डायरी में लिखा – “आज मैंने पानी पर तैरती जिंदगी देखी।”
मुगल गार्डन्स, शालीमार बाग, बाजार में कश्मीरी शॉल-हस्तशिल्प।
दुकानदार यासिर ने केसर मुफ्त दी – “यह हमारे प्यार का तोहफा है।”
अलबी: “टीवी पर कश्मीर विवादों में दिखता है, पर यहां के लोग दिल से दिल तक जाते हैं।”
एक चुटकी नमक – किस्मत का खेल
20 अप्रैल 2025 – परिवार पहलगाम के लिए रवाना।
रास्ते में 5 किमी पहले एक छोटा सा रेस्टोरेंट मून वॉक दिखा।
दो दिन से लंच स्किप किया था, बच्चे भूखे।
अर्जुन: “पापा, मुझे भूख लगी है!”
अनिका: “मुझे चावल चाहिए!”
अलबी: “अब्दुल, गाड़ी रोक दो।”
रेस्टोरेंट साफ-सुथरा, कश्मीरी कढ़ाई के चित्र, कहवा की खुशबू।
मालिक जुनैद ने स्वागत किया – “आप हमारे मेहमान हैं, क्या खाएंगे?”
लावण्या: “मटन रोगन जोश, दम आलू, चावल। बच्चों के लिए फ्राइड राइस।”
20 मिनट बाद खाना आया।
पहला निवाला – बहुत ज्यादा नमक!
लावण्या: “अरे, यह तो बहुत नमकीन है!”
अलबी: “नमक का ढेर लग गया है।”
बच्चे भी शिकायत करने लगे।
लावण्या ने जुनैद को बुलाया – “इतना नमक डाला है, क्या आप खाना बनाना नहीं जानते?”
जुनैद ने माफी मांगी – “गलती हो गई, अभी दूसरा खाना बनवाता हूं।”
लावण्या का गुस्सा कम नहीं हुआ।
रंजना भी भड़क गई – “यह कश्मीरी खाना बस दिखावे का है।”
जुनैद चुपचाप सुनता रहा, फिर नया खाना बनवाने चला गया।
रामचंद्रन: “लावण्या, शांत हो जाओ। गलती हो गई, अब सुधार रहे हैं।”
शीला: “थोड़ा सब्र करो, बच्चे भूखे हैं।”
रेस्टोरेंट में सन्नाटा, बाकी ग्राहक देख रहे थे।
मियां डायरी में कुछ लिख रही थी, अर्जुन- अनिका खामोश।
हादसा – किस्मत से बचाव
खाना बनने में समय लग रहा था।
अलबी ने घड़ी देखी – 1:30 बज चुके थे।
अगर जल्दी निकलते तो होटल ढूंढने में देर होती।
तभी रेस्टोरेंट के बाहर हलचल हुई।
एक स्थानीय व्यक्ति तेजी से अंदर आया, जुनैद से फुसफुसाया।
जुनैद का चेहरा पीला पड़ गया।
टीवी चालू किया – ब्रेकिंग न्यूज़: पहलगाम में आतंकी हमला, कई पर्यटकों की मौत, इलाका सील।
परिवार स्तब्ध!
लावण्या ने बच्चों को गले लगाया – “भगवान का शुक्र है हम यहां रुक गए।”
न्यूज़ – 22 अप्रैल 2025, दोपहर 2:30 बजे, बाईसारण वैली में अंधाधुंध गोलीबारी, 26 पर्यटक मारे गए।
रामचंद्रन: “अगर हम समय पर खाना खाकर निकल जाते, तो हम भी वहीं होते।”
शीला की आंखें नम – “यह भगवान की कृपा है।”
मियां: “पापा, क्या हम सुरक्षित हैं?”
अलबी: “हां बेटा, हम बिल्कुल सुरक्षित हैं।”
जुनैद नए खाने के साथ आया – “साहब, मुझे बहुत दुख है इस हादसे का। आप लोग सही सलामत हैं, यही बड़ी बात है।”
लावण्या शर्मिंदा – “जुनैद भाई, हमें माफ कर दीजिए। आपके खाने में नमक ज्यादा होने की वजह से हमारी जान बच गई।”
जुनैद मुस्कुराया – “कोई बात नहीं, मेहमान हमारे लिए भगवान।”
कश्मीरी मेहमान नवाजी
परिवार ने खाना खाया – इस बार स्वाद लाजवाब था।
लावण्या ने तारीफ की – “भाई, आपका खाना तो जन्नत का स्वाद है।”
जुनैद: “आपका प्यार ही मेरा इनाम है।”
अलबी ने जुनैद को गले लगाया – “तुमने सिर्फ खाना नहीं परोसा, हमारी जिंदगी बचाई।”
रेस्टोरेंट से निकलने से पहले परिवार ने न्यूज़ देखा – मारे गए पर्यटकों की तस्वीरें।
रंजना रो पड़ी – “यह लोग भी हमारे जैसे ही थे, छुट्टियां मनाने आए थे। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे।”
अर्जुन: “मम्मी, अगर हम वहां होते तो?”
लावण्या: “उस नमक ने हमें बचा लिया।”
परिवार ने तय किया – पहलगाम नहीं जाएंगे।
अलबी ने अब्दुल से कहा – “हमें वापस श्रीनगर ले चलो।”
अब्दुल: “साहब, आप सही फैसला ले रहे हैं। बच्चे डरे हुए हैं, श्रीनगर में सुरक्षित रहेंगे।”
रास्ते में अब्दुल बोला – “कश्मीरी लोग इस हादसे से दुखी हैं। हमारा कश्मीर जन्नत है, लेकिन कुछ लोग इसे बदनाम करना चाहते हैं। हम मेहमानों की हिफाजत जान से ज्यादा करते हैं।”
घर वापसी और एक नई सीख
श्रीनगर पहुंचकर मुस्तफा भट्ट ने राहत की सांस ली – “शुक्र है आप लोग सही सलामत हैं।”
बच्चों को गर्म चाय और कश्मीरी रोटी दी।
शीला: “भाई, तुम लोग इतना प्यार देते हो। हमने कश्मीर को सिर्फ खबरों में देखा था, लेकिन तुम्हारी मेहमान नवाजी ने दिल जीत लिया।”
मुस्तफा: “पहलगाम का हादसा हमारे लिए बड़ा धक्का है। लेकिन हम कश्मीरी अपने मेहमानों को परिवार मानते हैं।”
परिवार ने दो दिन श्रीनगर में बिताए।
स्थानीय लोगों से मिले – सब हमले की निंदा कर रहे थे।
दुकानदार फारूक: “यह हमला इंसानियत के खिलाफ है, हम सब आपके साथ हैं।”
25 अप्रैल को परिवार कोच्ची लौटा।
मुस्तफा और स्टाफ ने गर्मजोशी से विदा किया – “फिर आना, कश्मीर आपका इंतजार करेगा।”
मियां ने मुस्तफा को गले लगाया – “अंकल, आप बहुत अच्छे हो।”
कहानी का संदेश
लौटने के बाद नायर परिवार ने दोस्तों और रिश्तेदारों को यह कहानी सुनाई –
कैसे एक ज्यादा नमक वाला खाना उनकी जिंदगी का तारणहार बन गया।
कश्मीरी लोगों की मेहमान नवाजी की तारीफ की – “कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है।”
लावण्या: “हमें न्यूज़ पर भरोसा करने से पहले खुद वहां जाकर देखना चाहिए। कश्मीरी लोग हमारे अपने हैं।”
परिवार ने तय किया – भविष्य में फिर कश्मीर जाएंगे।
अलबी: “कश्मीर हमारा है। कोई भी हमें वहां जाने से नहीं रोक सकता। हमारी फौज और कश्मीरी भाई-बहन इसे और खूबसूरत बनाएंगे।”
मियां ने डायरी में लिखा – “छोटी-छोटी चीजें भी बड़े चमत्कार कर सकती हैं। एक चुटकी नमक ने हमें नई जिंदगी दी।”
अंतिम संदेश
पहलगाम का हादसा हर भारतीय के लिए दुखद था।
इसने दिल तोड़े, लेकिन हौसला नहीं।
हमें एक दूसरे के साथ खड़े रहना है, नफरत फैलाने वालों के खिलाफ आवाज उठानी है।
कश्मीरी लोग हमारे अपने हैं – उनकी रोजी-रोटी पर्यटकों पर टिकी है, और वे हमें अपने मेहमान मानते हैं।
दोस्तों, पहलगाम की घटना ने हमें झकझोर दिया, लेकिन हम डरेंगे नहीं। हम कश्मीर जाते रहेंगे, क्योंकि कश्मीर हमारा है। आइए, एक दूसरे का हाथ थामें और कश्मीर के लिए प्यार और एकता का संदेश फैलाएं।
अगर यह कहानी आपके दिल को छू गई, तो लाइक करें, शेयर करें और कमेंट में लिखें आप किस जगह से सुन रहे हैं।
– समाप्त –
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