पिता मजदूरी कर रहा था बेटी कलेक्टर बनकर पहुँची ; देखते ही पिता फुट – फुट कर रोने लगा …

“एक मजदूर की बेटी – संघर्ष से कलेक्टर बनने तक”

नमस्कार मेरे प्यारे दर्शकों! आज मैं आपको सुनाने जा रहा हूँ एक ऐसी प्रेरणादायक कहानी, जो आपके दिल को छू जाएगी। यह कहानी है एक गरीब मजदूर की बेटी की, जिसने तमाम मुश्किलों को पार कर अपना और अपने गाँव का नाम रोशन किया।

शुरुआत – दोपहरी की मजदूरी और सपनों की उड़ान

एक तेज़ दोपहरी थी। महेश नामक व्यक्ति गाँव में मजदूरी कर रहा था। तभी उसने देखा कि दूर से एक काफिला आ रहा है। उस काफिले में एक गाड़ी थी, जिसे लोग चारों तरफ से घेरे हुए थे। गाड़ी के ऊपर एक लड़की सूप से बाहर निकली हुई थी, उसके गले में फूल-मालाएँ थीं और लोग जय-जयकार कर रहे थे।

महेश हैरान होकर यह दृश्य देखने लगा। देखते ही देखते काफिला उसके पास आ गया। वह लड़की गाड़ी से उतरकर सीधा महेश के पास आई और बोली – “पिताजी, मैं जिला कलेक्टर बन गई हूँ!” यह सुनते ही महेश की आँखों से आँसू बहने लगे और वह फूट-फूटकर रोने लगा।

आखिर कौन थी वह लड़की और क्या थी उसकी कहानी?

महेश और अनीता – संघर्ष की शुरुआत

महेश एक गरीब मजदूर था, जिसने अपनी पत्नी के निधन के बाद अकेले ही अपनी बेटी अनीता का पालन-पोषण किया। महेश ने अनीता को माँ और पिता दोनों का प्यार दिया। अनीता पढ़ाई में बहुत होशियार थी। गाँव में लड़कियों को आठवीं के बाद आगे पढ़ाया नहीं जाता था, लेकिन महेश ने अपनी बेटी को पढ़ाने का सपना देखा।

अनीता ने 12वीं कक्षा में पूरे जिले में टॉप किया। यह खबर गाँव में फैल गई। महेश को पढ़ाई-लिखाई की ज्यादा समझ नहीं थी, लेकिन उसे गर्व हुआ कि उसकी बेटी ने कुछ बड़ा हासिल किया है।

अनीता के टीचर ने महेश को समझाया कि उसकी बेटी बहुत प्रतिभाशाली है और उसे आगे पढ़ाना चाहिए। गाँव के लोग महेश का मजाक उड़ाने लगे – “क्या तेरी बेटी कलेक्टर बनेगी?” लेकिन महेश ने ठान लिया कि वह अपनी बेटी को शहर भेजेगा।

शहर की पढ़ाई और संघर्ष

अनीता का एडमिशन पास के शहर के सरकारी कॉलेज में हो गया। पहले दिन कॉलेज में अनीता ने देखा कि वहाँ की चकाचौंध उसके साधारण कपड़ों से मेल नहीं खाती थी। उसके पिता मजदूरी करते थे, इसलिए उसके पास अच्छे कपड़े नहीं थे। क्लास में सभी विद्यार्थी उसकी गरीबी का मजाक उड़ाते थे, लेकिन अनीता ने हार नहीं मानी।

धीरे-धीरे अनीता ने अपनी मेहनत से कॉलेज में नाम कमाया। फर्स्ट ईयर में उसने यूनिवर्सिटी में टॉप 20 में जगह बनाई। अब वही लोग, जो उसका मजाक उड़ाते थे, उसकी इज्जत करने लगे। हर साल अच्छे अंक लाकर उसने अपने कॉलेज और गाँव का नाम रोशन किया।

आगे की पढ़ाई और समाज की बाधाएँ

अनीता के कॉलेज के टीचर ने उसे यूपीएसएसएससी और आईएएस की तैयारी के लिए प्रेरित किया। लेकिन महेश ने आर्थिक तंगी और समाज के दबाव के चलते अनीता की आगे की पढ़ाई बंद करने का फैसला किया। उसने कहा – “बेटी, अब तेरी शादी करनी है। लोग बातें बना रहे हैं, कोई ऊँच-नीच हो गई तो क्या होगा?”

अनीता ने पिता को समझाया कि जब उसने 12वीं में टॉप किया था तब भी लोगों ने मजाक उड़ाया था, लेकिन महेश ने उनकी बात नहीं सुनी थी। “एक बार और मत सुनिए, पिताजी!” लेकिन महेश के पास पैसे नहीं थे।

टीचर का सहारा और सफलता की राह

कुछ दिन बाद अनीता के टीचर ने महेश को बुलाया और कहा – “आप चिंता मत करें, आपकी बेटी की आगे की पढ़ाई का पूरा खर्च मैं उठाऊँगा। सरकारी स्कीमों से भी मदद मिलेगी, नहीं तो मैं अपने पास से खर्च करूँगा।” महेश मान गया और अनीता को कोचिंग सेंटर में दाखिल करा दिया गया।

अनीता ने दिल लगाकर पढ़ाई की, यूपीएसएसएससी का टेस्ट पास किया और जिला कलेक्टर बन गई।

गर्व का क्षण – गाँव में वापसी

जब अनीता जिला कलेक्टर बनी, तो पूरे जिले में उसका नाम फैल गया। गाँव में काफिला आया, फूल-मालाएँ, जय-जयकार। महेश मजदूरी कर रहा था, तभी काफिला उसके पास पहुँचा। अनीता गाड़ी से उतरी, पिता के पास गई और बोली – “पिताजी, मैं कलेक्टर बन गई हूँ!” महेश की आँखों में आँसू आ गए, उसने अपनी बेटी को गले लगा लिया।

अब अनीता अपने पिता को अपने साथ सरकारी आवास में ले गई। जो लोग पहले मजाक उड़ाते थे, वे अब तारीफ करते थे – “धन्य है तुम्हारी बेटी, जो गरीबी से निकलकर इतना ऊँचा स्थान हासिल किया।”

अनीता ने अपने टीचर का भी आभार जताया – “अगर आप नहीं होते तो मैं यह मुकाम नहीं पा सकती थी। आप मेरे लिए पिता समान हैं।”

समाप्ति – प्रेरणा का संदेश

दोस्तों, यह थी कहानी एक गरीब मजदूर की बेटी की, जिसने संघर्ष, समाज की बंदिशें और आर्थिक तंगी के बावजूद हार नहीं मानी। उसने अपने गाँव और पिता का नाम रोशन किया।

आप क्या कहना चाहते हैं उन अध्यापकों के बारे में जिन्होंने अनीता को सहारा दिया? अपनी राय कमेंट सेक्शन में जरूर बताइए।

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जय श्री राम।