फौजी को सुना रहा था खरी खोटी , लेकिन बिना एक शब्द बोले फौजी ने जो कर दिया , उसने सोचा भी नहीं था

नफरत से प्यार तक: कश्मीर की वादियों में एक मुलाकात

कभी-कभी जिंदगी में एक छोटी सी मुलाकात आपके दिल की सारी गलतफहमियां मिटा देती है। वह दीवारें जो हमने नफरत और पूर्वाग्रहों से खड़ी की होती हैं, पल भर में ढह जाती हैं। आज मैं आपको एक ऐसे लड़के की कहानी सुनाने जा रहा हूं, जिसके दिल में एक समुदाय के लिए नफरत का जहर भरा था। लेकिन कश्मीर की वादियों में एक अनजान फौजी ने उसे इंसानियत का सबसे बड़ा सबक सिखाया।

यह कहानी है नफरत से प्यार की ओर बढ़ने की, गलतियों को सुधारने की और यह समझने की कि देश का हर इंसान चाहे वह किसी भी धर्म का हो, उतना ही कीमती है। तो तैयार हो जाइए, क्योंकि यह कहानी आपके दिल को छू लेगी और आपको सोचने पर मजबूर कर देगी कि इंसान को इंसान से जोड़ने वाली सबसे बड़ी ताकत क्या है।

रोहन शर्मा की जिंदगी

रोहन शर्मा 26 साल का एक नौजवान था, दिल्ली के रोहिणी इलाके में रहता था। उसका परिवार मध्यमवर्गीय था – एक छोटा सा फ्लैट, दो कमरे, तंग सा किचन और एक छोटी सी बालकनी। रोहन अक्सर अपने दोस्तों के साथ बालकनी में बैठकर गप्पे मारता था।

उसके पिता सुरेश शर्मा एक सरकारी बैंक में क्लर्क थे और मां मीना शर्मा पास के एक प्राइमरी स्कूल में टीचर। रोहन ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की थी और एक मल्टीनेशनल कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी करता था। बाहर से देखने में वह समझदार, मेहनती और हंसमुख लड़का था। लेकिन उसके दिल में एक गहरी नफरत थी – मुसलमानों के प्रति।

रोहन की यह नफरत कोई एक दिन में नहीं बनी थी। इसके पीछे कई सालों की गलतफहमियां, सुनी-सुनाई बातें और जहरीली खबरें थीं। बचपन से ही रोहन ने अपने मोहल्ले के कुछ अंकल-आंटियों को मुसलमानों के खिलाफ बातें करते सुना था। मोहल्ले का WhatsApp ग्रुप – “रोहिणी रेजिडेंट्स वेलफेयर” – हर दिन फर्जी मैसेजेस से भरा रहता। कोई मैसेज कहता, “मुसलमान लोग देश को बर्बाद कर रहे हैं।” कोई और मैसेज किसी आतंकी हमले की फोटो के साथ लिखता, “देखो, इन लोगों ने फिर खून खराबा किया।”

रोहन इन मैसेजेस को पढ़ता और उसका गुस्सा बढ़ता जाता। इसके अलावा रोहन हर शाम मीडिया के चैनलों पर डिबेट देखता – वो चैनल जो हर खबर को धर्म से जोड़कर चीख-चीख कर बहस करते थे। एंकर की तेज आवाज, “क्या यह लोग देश के लिए खतरा हैं?” यह सवाल रोहन के मन में गूंजते रहते।

वह अपने दोस्तों के साथ बैठकर इन डिबेट्स पर चर्चा करता और कहता, “देखो, मैं तो पहले से कहता था – सारी समस्याओं की जड़ यही लोग हैं। अगर यह ना होते तो देश में सब शांति होती।” उसके दोस्त भी उसकी बातों का समर्थन करते।

रोहन का एक दोस्त राहुल अक्सर कहता, “यार तू बिल्कुल सही कहता है। इन लोगों को तो कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक कंट्रोल करना होगा।” रोहन की सोच धीरे-धीरे इतनी कट्टर हो गई कि वह हर मुसलमान को एक ही नजर से देखने लगा। उसे लगता, यह लोग देश के लिए खतरा हैं और इनके बिना सब कुछ बेहतर हो जाएगा।

उसके परिवार ने कई बार उसे समझाने की कोशिश की। उसकी मां मीना जो एक शिक्षिका थी, अक्सर कहती, “बेटा, इंसान को इंसान से प्यार करना चाहिए। धर्म तो बस एक रास्ता है, मंजिल तो सबकी एक है।” लेकिन रोहन उनकी बातों को अनसुना कर देता, “अम्मा, तुम नहीं समझोगी – यह लोग हमारे देश को बर्बाद कर रहे हैं।” उसके पिता सुरेश भी चुप रहते, क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि बेटे से बहस हो। उनकी चुप्पी ने रोहन की सोच को और मजबूत कर दिया।

कश्मीर का सफर

जून 2023 में रोहन ने ऑफिस से एक हफ्ते की छुट्टी ली और कश्मीर घूमने का प्लान बनाया। उसे हमेशा से कश्मीर की वादियों की खूबसूरती देखने का शौक था। उसने सोचा – श्रीनगर, गुलमर्ग और पहलगाम – ये जगह देखकर थोड़ा सुकून मिलेगा। साथ ही उसके मन में एक अजीब सा रोमांच भी था। कश्मीर, जिसे वह मीडिया की खबरों के जरिए सिर्फ आतंक और अशांति की जगह समझता था, उसे अपनी आंखों से देखने की उत्सुकता थी।

रोहन ने अपनी कार, एक पुरानी Maruti Swift को सर्विस कराया। कुछ कपड़े, कैमरा और जरूरी सामान पैक किया। उसकी मां ने उसे घर का बना पराठा और आचार का डिब्बा दिया और कहा, “बेटा, सावधान रहना – कश्मीर में कुछ भी हो सकता है।” रोहन ने हंसते हुए कहा, “अम्मा, टेंशन मत लो – मैं सब संभाल लूंगा।” लेकिन मन ही मन वह सोच रहा था, “वहां तो फौज है ना, वह उन लोगों को कंट्रोल करके रखती है।”

दिल्ली से श्रीनगर का सफर ट्रेन से तय किया और वहां से एक किराए की कार लेकर गुलमर्ग की ओर निकल पड़ा। कश्मीर की खूबसूरती ने उसे मंत्रमुग्ध कर दिया – हरे-भरे पहाड़, ठंडी हवाएं, लिदर नदी का साफ पानी – सब कुछ वैसा ही था जैसा उसने तस्वीरों में देखा था। लेकिन उसके मन में एक अजीब सी बेचैनी थी। वह हर जगह, हर चेहरे को शक की नजर से देखता। अगर कोई दाढ़ी वाला शख्स या टोपी पहने इंसान दिखता, तो वह मन ही मन सोचता, “यह जरूर कुछ गड़बड़ करेगा।”

एक मुलाकात – अब्दुल राशिद खान

गुलमर्ग में दो दिन बिताने के बाद रोहन पहलगाम की ओर निकला। रास्ते में उसे भूख और प्यास लगी। उसने सोचा, किसी ढाबे पर रुककर चाय पानी पी लिया जाए। उसने अपनी कार एक छोटे से ढाबे के सामने रोकी – “कश्मीर वैली ढाबा।” ढाबा सड़क किनारे था, बाहर कुछ लकड़ी की बेंच और मेजें रखी थीं। हवा में चाय की खुशबू और पराठों की ताजगी थी।

रोहन ने कार पार्क की और एक बेंच पर बैठ गया। उसने वेटर को बुलाकर एक चाय और दो पराठे ऑर्डर किए। चाय का कप हाथ में लेकर रोहन आसपास का नजारा देख रहा था। तभी उसकी नजर एक फौजी पर पड़ी, जो ढाबे के एक कोने में खड़ा चाय पी रहा था। फौजी की वर्दी, उसका राइफल और उसका शांत चेहरा – सब कुछ रोहन को प्रभावित कर रहा था।

फौजी की शक्ल-सूरत से वह किसी पूर्वोत्तर राज्य – शायद असम या तिब्बत का लग रहा था। उसकी आंखों में एक गहरा सा सुकून था, और वह खामोश खड़ा अपनी चाय की चुस्कियां ले रहा था। रोहन के मन में देशभक्ति का जज्बा जाग उठा। उसने सोचा, “यह मौका अच्छा है – क्यों ना इस फौजी से बात की जाए और उनकी बहादुरी की तारीफ की जाए।”

रोहन चाय का कप लिए फौजी के पास गया। उसने मुस्कुराते हुए कहा, “सर नमस्ते। मैं रोहन दिल्ली से। आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा। आप लोग जो करते हैं, वह कोई साधारण इंसान नहीं कर सकता। भारतीय फौज को मेरा सलाम।”

फौजी ने हल्के से सिर हिलाया और चुपचाप अपनी चाय पीता रहा। रोहन को लगा कि फौजी शायद थोड़ा शर्मीला है, तो उसने और जोश के साथ बात शुरू की, “सर, सचमुच आप लोगों ने ही देश को बचा कर रखा है। खासकर यहां कश्मीर में, जहां हर दिन खतरा रहता है। आपने इन मुसलमानों को टाइट करके रखा है, वरना तो इन्होंने देश में फसाद बरपा कर दिया होता।”

रोहन की आवाज में एक अजीब सा गुस्सा था। वह बोलता गया, “सर, आप तो रोज इन लोगों को देखते होंगे। यह लोग हर जगह परेशानी खड़ी करते हैं। मीडिया पर रोज खबरें आती हैं – कहीं आतंक, कहीं दंगा। हमारे मोहल्ले के WhatsApp ग्रुप में भी लोग यही कहते हैं कि सारी समस्याओं की जड़ यही लोग हैं। अगर यह ना होते तो देश कितना आगे बढ़ गया होता।”

फौजी चुपचाप खड़ा रोहन की बातें सुनता रहा। उसने एक शब्द भी नहीं बोला। उसकी आंखों में हल्की सी चमक थी, लेकिन चेहरा शांत था। रोहन को लगा कि फौजी उसकी बातों से सहमत है, तो वह और जोश में आ गया। उसने कहा, “सर, आप जैसे फौजी ना होते तो यह लोग कब का देश को बर्बाद कर चुके होते। आप लोगों को सल्यूट है।”

रोहन ने अपनी चाय खत्म की और फौजी की तरफ देखकर बोला, “सर, आपसे मिलकर बहुत खुशी हुई। आपका शुभ नाम क्या है?” फौजी ने चाय का आखिरी घूंट लिया, कप को मेज पर रखा और हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, “अब्दुल राशिद खान।”

रोहन के लिए यह शब्द किसी बम के धमाके से कम नहीं थे। उसका चेहरा सफेद पड़ गया। जिस फौजी की वह तारीफ कर रहा था, जिसे वह देश का हीरो मान रहा था, वह एक मुसलमान था – वही मुसलमान जिसके बारे में रोहन ने अभी-अभी जहर उगला था।

फौजी की मुस्कान अब रोहन के लिए एक तमाचे की तरह थी। वह चुपचाप खड़ा रहा, उसकी आंखें जमीन की ओर झुकी हुई थीं। अब्दुल राशिद खान ने कुछ नहीं कहा। उसने बस अपनी राइफल उठाई, ढाबे के मालिक को पैसे दिए और चुपचाप अपनी जीप की ओर बढ़ गया।

रोहन वहीं खड़ा रहा जैसे कोई मूर्ति। उसके मन में एक तूफान उठ रहा था – शर्मिंदगी, ग्लानि, अफसोस – सब कुछ उसे अंदर से तोड़ रहा था। उसने अभी-अभी एक फौजी का अपमान किया था, जिसने शायद अपनी जिंदगी दांव पर लगाकर देश की सेवा की थी, और वह फौजी चुपचाप उसकी बातें सुनता रहा, बिना एक शब्द बोले।

अंतर्मन का बदलाव

रोहन ने अपनी कार में बैठने से पहले एक बार फिर फौजी की जीप की ओर देखा। अब्दुल राशिद खान जीप में बैठ चुका था और उसकी नजर अब सड़क पर थी। रोहन के पास हिम्मत नहीं थी कि वह जाकर माफी मांगे। वह चुपचाप अपनी कार में बैठा और पहलगाम की ओर चल पड़ा।

उस रात पहलगाम के एक छोटे से गेस्ट हाउस में रोहन सो नहीं पाया। उसकी आंखों के सामने अब्दुल राशिद खान का चेहरा बार-बार आ रहा था – वो मुस्कान, वह शांति और वह चुप्पी – सब कुछ उसे कचोट रहा था।

उसने अपने मोबाइल में WhatsApp ग्रुप खोला और उन मैसेजेस को देखा जिन्हें वह पहले सच मानता था। पहली बार उसे वह मैसेज फर्जी लगे। उसने टीवी ऑन किया और मीडिया की एक डिबेट देखने की कोशिश की, लेकिन उसे वह चीख-चिलाहट अब बेतुकी लग रही थी।

रोहन ने अपनी मां की बातें याद की – “इंसान को इंसान से प्यार करना चाहिए।” उसने सोचा, “मैं कितना गलत था। अब्दुल राशिद खान जैसे लोग देश की शान हैं। वह मेरे लिए, मेरे देश के लिए अपनी जान जोखिम में डालते हैं, और मैंने उनके धर्म के आधार पर उन्हें गलत समझा।”

उस रात रोहन ने अपने दिल में एक नया संकल्प लिया। उसने तय किया कि वह अब कभी किसी को धर्म के आधार पर जज नहीं करेगा। हर इंसान का देश में उतना ही योगदान है, जितना किसी और का।

नई सोच, नया सफर

दिल्ली लौटने के बाद रोहन एक बदला हुआ इंसान था। उसने अपने दोस्तों को समझाना शुरू किया कि मीडिया और WhatsApp के मैसेजेस पर आंख मूंदकर भरोसा नहीं करना चाहिए। उसने अपने मोहल्ले के WhatsApp ग्रुप में एक मैसेज लिखा:

“दोस्तों, हमें नफरत फैलाने वाले मैसेज फॉरवर्ड करने की बजाय एक दूसरे को समझने की कोशिश करनी चाहिए। देश हर धर्म के लोगों का है।”

कई लोगों ने उसका मजाक उड़ाया, लेकिन कुछ लोग उसकी बात से सहमत हुए। रोहन ने अपने ऑफिस में भी एक छोटा सा कैंपेन शुरू किया, जिसमें उसने लोगों को सोशल मीडिया पर फर्जी खबरों से बचने की सलाह दी। उसने अपने माता-पिता से भी माफी मांगी और कहा, “अम्मा-पापा, आप सही थे। मैं गलत था।”

रोहन ने अब्दुल राशिद खान को ढूंढने की कोशिश की। उसने पहलगाम के पास के आर्मी कैंप में फोन किया, लेकिन उसे कोई जानकारी नहीं मिली। शायद अब्दुल राशिद खान कहीं और ट्रांसफर हो चुके थे। लेकिन रोहन के लिए वह सिर्फ एक फौजी नहीं, बल्कि एक गुरु थे, जिन्होंने उसे बिना कुछ कहे जिंदगी का सबसे बड़ा सबक सिखाया।

कहानी की सीख

रोहन की यह कहानी हमें सिखाती है कि नफरत की आग में जलने से पहले हमें सच को परखना चाहिए। मीडिया और फर्जी मैसेजेस हमें बांट सकते हैं, लेकिन इंसानियत हमें जोड़ती है। अब्दुल राशिद खान जैसे लोग हमें याद दिलाते हैं कि देश का हर इंसान, चाहे वह किसी भी धर्म का हो, उतना ही कीमती है। और सबसे बड़ी बात – हमें अपनी गलतियों को स्वीकार करने और उन्हें सुधारने की हिम्मत दिखानी चाहिए।

तो दोस्तों, अगली बार जब आप किसी को धर्म के आधार पर जज करने लगे, तो एक बार अब्दुल राशिद खान की मुस्कान याद कर लेना। शायद वह मुस्कान आपके दिल को भी बदल दे। अगर आप भी मेरी तरह एक इमोशनल इंसान हैं, तो इस कहानी को लाइक करें, शेयर करें और कमेंट्स में लिखें उस जगह का नाम जहां से आप यह कहानी सुन रहे हैं।

इंसानियत सबसे बड़ा धर्म है।