बच्चे ने सिर्फ़ एक कचौड़ी माँगी थी… कचौड़ी वाले ने जो किया, इंसानियत हिल गई

भूखे बच्चे की कचौड़ी और इंसानियत का इनाम

लखनऊ शहर की हलचल भरी शाम थी। आसमान में काले बादल छा रहे थे, हल्की बूंदा-बांदी शुरू हो चुकी थी। विवेक रोज की तरह अपने चौराहे पर कचौड़ी की छोटी सी रेड़ी लगा रहा था। वह सामान समेटने ही वाला था कि उसकी नजर एक छोटे से बच्चे पर पड़ी। करीब सात साल का, कमजोर, थका हुआ, फटे पुराने कपड़े, पैरों में टूटी-फूटी चप्पल, चेहरे पर धूल की परत। लेकिन उसकी आंखों में मासूमियत थी।

बच्चा धीरे-धीरे विवेक के पास आया और कांपती आवाज में बोला, “क्या आप मुझे कुछ खिला सकते हो?”
विवेक ने मुस्कराकर कहा, “हां बेटा, क्यों नहीं? मैं तुम्हें अभी कचौड़ी लगा देता हूं।”
उसने गरमा गरम कचौड़ी, सब्जी और चटनी मिलाकर बच्चे को दी। बच्चा झिझकते हुए बोला, “मेरे पास पैसे नहीं हैं… कहीं आप बाद में पैसे मांगने लगो तो?”
विवेक का दिल भर आया। उसने हंसकर जवाब दिया, “नहीं बेटा, मैं तुमसे पैसे नहीं मांगूंगा। वैसे भी दुकान समेट रहा हूं, ये कचौड़ियां अब मेरे किसी काम की नहीं। तुम निश्चिंत होकर खा लो।”

बच्चे ने प्लेट ली और अपने हाथ का एक पुराना लिफाफा रेड़ी पर रख दिया। वह बगल में बैठकर बड़े चाव से कचौड़ी खाने लगा। विवेक उसकी भूख और मासूमियत देखता रहा। तभी उसकी नजर उस लिफाफे पर पड़ी। उसने धीरे-धीरे लिफाफा खोला। उसमें एक पुरानी तस्वीर थी—एक खूबसूरत औरत, आधुनिक कपड़ों में, हल्की मुस्कान और गोद में वही बच्चा।

विवेक ने पूछा, “बेटा, ये फोटो किसकी है?”
बच्चा कचौड़ी खाते-खाते आंसू भरी आंखों से बोला, “ये मेरी मां की है। वो मुझसे बहुत दिनों से दूर हो गई हैं। मैं उन्हें ढूंढ रहा हूं। नाना जी ने भी बहुत कोशिश की, लेकिन वो नहीं मिलीं। जब भी उनकी याद आती है, मैं ये फोटो लेकर निकल पड़ता हूं, शायद कहीं मिल जाएं।”

विवेक का दिल द्रवित हो उठा। उसने फोटो सावधानी से वापस लिफाफे में रख दी। बच्चा कचौड़ी खाकर प्लेट साइड में रखकर बिना कुछ कहे चला गया। बारिश में भीगता हुआ गली के मोड़ पर गुम हो गया। विवेक उसकी ओर देखता रह गया। तभी उसने देखा कि लिफाफा बच्चा भूल गया था। विवेक ने लिफाफा अपने थैले में रख लिया।

घर पहुंचकर विवेक ने थैला अपनी छोटी बहन को दिया। बहन ने लिफाफा देखा और फोटो निकाली, “भैया, ये बच्चा कौन है?”
विवेक ने सब बताया। बहन की आंखें भर आईं। मां भी आईं, उन्होंने फोटो देखी और बोलीं, “मुझे ये चेहरा कहीं देखा सा लगता है।”
विवेक ने कहा, “अम्मा, याद करने की कोशिश करो, हो सकता है हम उस बच्चे की मदद कर पाएं।”
मां ने माथे पर हाथ रखकर बहुत सोचा, लेकिन याद नहीं आया। उन्होंने कहा, “कल मैं इसे अपने साथ ले जाऊंगी, शायद बार-बार देखने से याद आ जाए।”

अगली सुबह

मां रोज की तरह दूसरों के घर काम करने गईं। उन्होंने लिफाफा साथ लिया। काम के बीच बार-बार फोटो देखती रहीं। अचानक एक प्लेट गिरने की आवाज के साथ उनकी आंखों के सामने एक पुरानी याद बिजली की तरह चमक उठी। छह महीने पहले एक अमीर घर में काम करती थीं। वहां एक बुजुर्ग दंपत्ति रहते थे और एक औरत भी, जो गुमसुम रहती थी। वही औरत इस तस्वीर में थी। मां का दिल धड़क उठा।

काम खत्म होते ही मां उसी घर की ओर निकल पड़ी। दरवाजा खुला, मालकिन आईं। मां ने हाथ जोड़कर कहा, “मालकिन, आपके घर में जो औरत रहती है, क्या मैं उससे मिल सकती हूं?”
मालकिन ने शक से पूछा, “क्यों?”
मां ने फोटो दिखाई, “ये वही औरत है ना? ये उसका बच्चा है, बेचारा अपनी मां को ढूंढ रहा है।”
मालकिन की आंखें चौड़ी हो गईं, “हां, ये वही औरत है।”
वो औरत बाहर आई, मां ने फोटो उसके चेहरे से मिलाई। हां, वही है। लेकिन औरत बेहद गुमसुम थी, आंखों में पहचान की कोई चमक नहीं थी।

उधर विवेक की रेड़ी पर

विवेक पूरे दिन उस बच्चे की राह देखता रहा, लेकिन बच्चा नहीं आया। शाम को एक बड़ी कार उसकी रेड़ी के सामने रुकी। एक बुजुर्ग आदमी उतरे।
“मैं यहां इसलिए आया हूं क्योंकि कल तुमने मेरे नाती को खाना खिलाया था। उसने अपनी मां का फोटो तुम्हारे पास भूल गया है। मैं वही लेने आया हूं, और पैसे भी देने आया हूं।”

विवेक हैरान, “अंकल जी, वो बच्चा आपका नाती था?”
बुजुर्ग की आंखें नम, “हां बेटा, वही मेरा नाती है। उसकी मां मेरी बेटी थी।”
उन्होंने पूरी कहानी सुनाई—बेटी आशा कॉलेज में पढ़ती थी, एक लड़के से प्यार हुआ, घर छोड़कर चली गई। पति की मौत के बाद मानसिक हालत बिगड़ गई, एक दिन अचानक कहीं चली गई, कभी वापस नहीं लौटी। बेटा अपनी मां को ढूंढता रहता है।

विवेक ने कहा, “अंकल जी, फोटो मेरी मां के पास है, उन्होंने कहा था कि चेहरा जाना-पहचाना लग रहा है, शायद उन्होंने देखा हो।”
बुजुर्ग की आंखें चमक उठीं, “अगर तुम्हारी मां ने सच में उसे देखा है तो शायद अब मेरी बेटी मिल जाए।”

विवेक ने भरोसा दिलाया, “जैसे ही मेरी मां लौटेंगी, मैं खबर दूंगा।”
बुजुर्ग ने अपना पता और नंबर दिया।

मिलन का पल

शाम को विवेक घर पहुंचा, मां ने मुस्कुराकर कहा, “बेटा, मुझे सब याद आ गया। वो औरत पास के बड़े घर में रहती है, जहां मैं काम करती थी।”
विवेक ने पड़ोस वाले घर से फोन कराया और अमीर व्यक्ति को खबर दी।

कुछ ही देर बाद रात के अंधेरे में झोपड़ी के बाहर बड़ी कार रुकी। बुजुर्ग आदमी और उनका नाती अच्छे कपड़ों में थे। विवेक ने उन्हें उस बड़े घर तक पहुंचाया। दरवाजा खुला, औरत सामने आई। बच्चा दौड़कर लिपट गया, “मां!” उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। बुजुर्ग पिता भी बेटी को देखकर रो पड़े। लेकिन आशा गुमसुम थी, पहचान नहीं पा रही थी।

बुजुर्ग आदमी ने विवेक की ओर देखा, “बहुत धन्यवाद बेटा, तुम्हारी वजह से आज हमें हमारी बेटी और उसके बेटे की झलक मिल सकी। हम इसे अपने साथ ले जाएंगे और इसका इलाज अच्छे से कराएंगे।”

नई शुरुआत

अगले दिन वही कार फिर विवेक की झोपड़ी के सामने आई। इस बार आशा भी थी, अब पहले से बेहतर हालत में।
बुजुर्ग आदमी बोले, “बेटा विवेक, तुमने हमारी बेटी से हमें मिलाया है। हम तुम्हारे लिए कुछ करना चाहते हैं। हमारी बेटी की देखभाल के लिए एक भरोसेमंद इंसान चाहिए, तुमसे बेहतर कोई नहीं। जितना तुम आज कमाते हो, तुम्हें उससे दस गुना मिलेगा। तुम्हारी बहन की शादी भी हम अच्छे से कराएंगे।”

मां ने कहा, “बेटा, यह भगवान का दिया अवसर है, स्वीकार कर लो।”
कुछ ही दिनों में विवेक उस अमीर घर में काम करने लगा। वह आशा की देखभाल करता, बच्चे के लिए पिता जैसा सहारा बन गया। डॉक्टर की देखरेख और विवेक की सेवा से आशा की तबीयत ठीक होने लगी। पांच महीने में उसने बेटे को पहचान लिया, मुस्कुराने लगी।

सम्मान और सुख

बुजुर्ग दंपति ने मन ही मन निर्णय लिया, “बेटा विवेक, हमारी बेटी अब ठीक है, उसकी जिंदगी में एक सहारा चाहिए, और वह तुमसे बेहतर कोई नहीं। तुम चाहो तो हमारी बेटी से विवाह कर लो।”
विवेक ने झिझक दिखाई, लेकिन आशा ने भी सिर झुका लिया।
कुछ समय बाद धूमधाम से विवेक और आशा की शादी हुई। गरीब बस्ती का साधारण कचौड़ी बेचने वाला लड़का अब बड़े घर का दामाद बन चुका था। उसकी मां और बहन भी उसी घर में रहने लगीं। बहन की शादी भी सम्मान से हुई।

अब विवेक की जिंदगी बदल चुकी थी। उसकी मुस्कान में संघर्ष की थकान नहीं, सुकून की चमक थी।

सीख

भलाई करने से कभी किसी का नुकसान नहीं होता। एक छोटी सी मदद किसी की जिंदगी बदल सकती है, और कई बार वही मदद हमारी जिंदगी को भी नई दिशा दे देती है।
अगर कभी आपकी जिंदगी में कोई भूखा बच्चा आए, तो क्या आप उसे बिना सोचे खिलाएंगे?
अपना जवाब कमेंट में जरूर लिखें।
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मिलते हैं अगली कहानी में। जय हिंद, जय भारत!