बाप को बोझ समझकर बेटे-बहू ने रची साजिश, भेजा जेल… लेकिन फिर जो हुआ

पूरी कहानी – एक पिता, एक बहन और टूटता-बनता परिवार

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के रहने वाले राजन बाबू की जिंदगी पत्नी के गुजर जाने के बाद बदल गई थी। घर का उजाला चला गया, तन्हाई उनके जीवन का स्थाई हिस्सा बन गई। एक वक्त था जब उनके घर की दीवारें भी हंसती थीं, अब वही दीवारें रोज उनकी तन्हाई पर रोती थीं।

इसी तन्हाई से बचने के लिए वह हर साल कुछ महीने अपने बेटे प्रभात के पास लंदन चले जाते। प्रभात बड़ी कंपनी में काम करता था, पत्नी प्रिया और दो बच्चों एना, नील के साथ रहता था। राजन बाबू को बेटे से बहुत प्यार था, लेकिन बहू और पोते-पोतियों की आदतें, पहनावा, बोलचाल सब कुछ उन्हें अजनबी सा लगता था। वे महसूस करते थे कि इस घर में रहते हुए भी वे किसी और ही देश, किसी और ही दुनिया में जी रहे हैं।

बच्चे सुबह स्कूल जाते, प्रभात-प्रिया ऑफिस चले जाते, और राजन बाबू पूरे दिन घर की खामोश दीवारों को घूरते रहते। वे सोचते – क्या यही जिंदगी है जिसके लिए मैंने सब कुछ छोड़ा था? यह कैसा देश है जहां अपने लोग भी अजनबी हो जाते हैं?

कई बार उन्होंने प्रभात से कहा – “बेटा, चलो गांव चलते हैं, अपने घर चलें, जहां रिश्तों में गर्मी है, बातों में मिठास है, हर चेहरे पर अपनापन है।” मगर प्रभात हमेशा बात टाल देता।

एक दिन की शुरुआत

उस दिन राजन बाबू कुर्सी पर बैठे थे, मन ही मन बड़बड़ाते हुए। तभी दरवाजे की घंटी बजी। सामने सावित्री खड़ी थी – घर की सफाई और खाना बनाने वाली। उम्र कोई 55-56 की रही होगी, एक सीधी-सादी भारतीय महिला जिसने लंदन को ही अपना घर बना लिया था।

राजन बाबू ने मुस्कुराकर दरवाजा खोला – “आओ सावित्री बहन, कैसे हो?”
सावित्री हल्की मुस्कान के साथ बोली – “ठीक हूं साहब, आप कैसे हो?”

जब भी सावित्री घर आती, राजन बाबू को थोड़ा सुकून मिलता। उससे बातें करते-करते समय कट जाता। उस दिन अचानक उन्होंने पूछा – “सावित्री बहन, तुम्हारा बेटा तो अब नहीं रहा। फिर वापस भारत क्यों नहीं गई?”

सावित्री एक पल को चुप हो गई, फिर गहरी सांस लेकर बोली – “क्या करती साहब? जो थोड़ी बहुत जमीन-जायदाद थी, वह बेटा बेचकर मुझे अपने साथ ले आया था। अब वहां मेरा कोई नहीं और यहां मेरी बहू जो विदेशी थी, बेटे की मौत के बाद मुझे घर से निकाल दिया। तब से यही काम कर रही हूं। प्रभात साहब का बेटा मेरे बेटे का दोस्त था, उसी ने मुझे यहां रखा। लेकिन बोझ नहीं बनना चाहती किसी पर।”

राजन बाबू की आंखें भर आईं। दिल ही दिल में सोचने लगे – मैं भी तो यही गलती करने जा रहा हूं। बेटा कहता है सब बेच दो, यही बस जाओ। लेकिन अगर कभी कुछ हो गया तो…

परिवार में दूरी

सावित्री ने कहा – “साहब, खाना बन गया है, आज आपकी पसंद की कढ़ी बनाई है। आइए खा लीजिए, बच्चे भी आते ही होंगे।”
राजन बाबू ने डाइनिंग टेबल की तरफ रुख किया। तभी एना और नील स्कूल से लौट आए। लेकिन राजन बाबू का मन कभी उनके साथ खाने बैठने का नहीं करता था। वह चुपचाप अपनी थाली में खाना लगाकर एक कोने में बैठ गए।

थोड़ी देर बाद उन्होंने कहा – “सावित्री, मेरा चश्मा नहीं मिल रहा, देखो जरा कहीं रखा है क्या?”
सावित्री ने जवाब दिया – “साहब, मैंने तो एना के कमरे में देखा था।”

राजन बाबू जैसे ही कमरे में दाखिल हुए, एना जोर से चिल्ला पड़ी – “How dare you? Don’t you know how to knock? You are in my room!”

राजन बाबू हकबका गए – “बेटा, माफ कर, मुझे ध्यान नहीं रहा, बस चश्मा लेने आया था।”
लेकिन एना का गुस्सा थमता ही नहीं था। राजन बाबू थरथराते हुए बाहर निकल गए, आंखों से आंसू बहने लगे। बाहर आकर सावित्री ने उनका चश्मा लाकर दिया।

“साहब, यह लंदन है। यहां ना तो कोई रिश्तों की गर्मी समझता है, ना ही किसी का दर्द। आप इतना परेशान मत होइए। बच्ची है, कुछ भी कह गई होगी।”

राजन बाबू बोले – “नहीं सावित्री, अब मैं इस घर में एक पल भी नहीं रहूंगा। अपना सामान पैक कर लिया है। चलो तुम्हारे घर चलता हूं। कहीं तो होटल मिल ही जाएगा। जब प्रभात आएगा तब देखूंगा।”

सावित्री ने घबरा कर कहा – “अरे साहब, कहां जाएंगे आप इस उम्र में? आप तो हमारे रूम पर चलो। जब प्रभात आएगा तब बात करेंगे।”

राजन बाबू ने हामी भरी और दोनों घर से निकल गए। एना और नील खिड़की से उन्हें जाते देख रहे थे और फिर एक-दूसरे को देखकर हंसते हुए बोले – “Wow, what a love story! दादू मेड के घर रहने चले गए!” और दोनों जोर-जोर से हंस पड़े।

सावित्री का घर – अपनापन

राजन बाबू सावित्री के छोटे से घर में पहुंच चुके थे। छोटा जरूर था वो घर, मगर उसमें एक अपनापन था, एक शांति थी जो राजन बाबू को अपने आलीशान बेटे के घर में भी महसूस नहीं होती थी।

सावित्री ने आत्मीयता से उन्हें अपने घर में जगह दी। वही एक पुरानी सी कुर्सी पर बैठते हुए राजन बाबू बोले – “तुम्हें यहां क्या मिल रहा है, सावित्री, जो इतनी दूर सात समंदर पार बिना किसी अपने के अकेली जी रही हो? चलो मेरे साथ मेरे गांव चलो, मुझे भी बहन का साथ मिल जाएगा और तुम्हें भाई का सहारा।”

सावित्री कुछ देर चुप रही, फिर आंखें पोंछते हुए बोली – “भैया, जब तक मैं यहां हूं, मुझे लगता है मेरा बेटा मेरे आसपास है। अगर आपके साथ चली जाऊंगी तो मुझे डर है उसकी यादें यहां ही दफन हो जाएंगी। मैं उसे खो चुकी हूं, पर उसकी मौजूदगी अब इसी शहर में है, इसी घर में है।”

राजन बाबू कुछ नहीं बोले, बस सिर झुका लिया। कहीं ना कहीं वह उसकी बात को समझ रहे थे।

झूठे इल्जाम और परिवार की दरार

शाम को प्रभात और प्रिया घर लौटे तो एना ने आते ही शिकायतें शुरू कर दीं – “डैडी, दादू मेरे कमरे में बिना नॉक किए घुस आए थे, जानबूझकर।”
नील भी बोल पड़ा – “दादू तो मेड के साथ चले गए हैं, उनका अफेयर चल रहा है शायद।”

प्रभात को गुस्सा तो आया, लेकिन उससे भी ज्यादा वह भीतर से टूट गया। उसकी पत्नी और बच्चे अब उसके ही खिलाफ खड़े थे।

अगली सुबह राजन बाबू ने सावित्री से कहा – “आज से तुम कहीं नहीं जाओगी। अब तुम्हें घर-घर जाकर काम करने की कोई जरूरत नहीं। माना कि तुम मेरे गांव नहीं चल सकती, लेकिन मैं तो तुम्हारे घर में रह सकता हूं ना। अब जब तक मैं हूं, तुम मेरी बहन हो। और तुम्हारा भाई जिंदा है, तो तू अकेली नहीं है।”

सावित्री की आंखें भर आईं – “मेरे तो कोई भाई नहीं था भैया। लेकिन ईश्वर ने मुझे सात समंदर पार भेजकर भी एक सच्चा भाई दे दिया।”

इतना कहकर वह फूट-फूट कर रोने लगी और अपने भाई के गले लग गई।

बेटे के मन में शक – रिश्तों की दरार

तभी दरवाजे पर प्रभात आया। सावित्री थोड़ा घबरा गई, लेकिन राजन बाबू बिल्कुल शांत खड़े थे। प्रभात कुछ देर तक उन्हें एक साथ देखता रहा, फिर बिना कुछ कहे वापस चला गया। वह सोचता रहा – क्या अपने बच्चों की बातों पर भरोसा करूं या जो अभी अपनी आंखों से देखा उस पर यकीन करूं?

अगले दिन सुबह सावित्री का मोबाइल बजा – स्क्रीन पर नाम चमक रहा था, प्रभात कॉलिंग।
“हां प्रभात बेटा, कैसे हो?”
लेकिन दूसरी ओर से आवाज ताने और इल्जाम से भरी थी – “मैं तो ठीक हूं आंटी, लेकिन आप जो कर रही हो इस उम्र में वह ठीक नहीं है। कल जब मैं पापा को लेने आया था तो देखा आप उनके गले लगी थी। आप समझती क्या हैं खुद को?”

सावित्री के हाथ कांपने लगे, आंखों से आंसू टपकने लगे। उसने फोन स्पीकर पर कर दिया, राजन बाबू भी सब सुन रहे थे। उन्होंने गुस्से में आकर फोन अपने हाथ में लिया – “बेटा, नहीं अब मैं बोल रहा हूं, तुम्हारा बाप। और जो बातें तू कर रहा है ना, वो सिर्फ एक नीच कमजोर और गुलाम सोच वाला इंसान ही कर सकता है। तेरी बीवी ने तुझे इतना बदल दिया कि अब तुझे अपने बाप और एक बहन के रिश्ते में भी गंदगी नजर आती है? क्या तुझे मैंने यही संस्कार दिए थे? प्रभात, शर्म आनी चाहिए तुझे। मैं मर जाऊं उससे पहले यह दिन देखूंगा, कभी नहीं सोचा था।”

फोन पर सन्नाटा छा गया। फिर एक धीमी आवाज आई – “पापा, मैं…”
लेकिन राजन बाबू ने फोन काट दिया।

आरोप, साजिश और टूटता परिवार

उसी दोपहर एना और नील खाना खोजते हुए इधर-उधर घूम रहे थे। जैसे ही एहसास हुआ कि सावित्री नहीं आई है, एना चिल्लाने लगी – “मॉम, आज डिनर कौन बनाएगा? उस मेड को कभी वापस मत बुलाना। उसने दादू को फंसा लिया है। मुझे भूख लगी है।”

प्रिया बोली – “तेरे दादू ने नौकरानी को लेकर भागने का काम किया है और तुझे भूख लगी है।”
प्रभात ने कहा – “स्टॉप इट! वो मेरे पिता हैं, रिस्पेक्ट से बात करो वरना…”
मगर प्रिया ने उंगली दिखाकर कहा – “यू सेट अप। अगर तुम्हें अपने डैडी के साथ जाना है तो जाओ, पर मेरे बच्चों से ऊंची आवाज में बात मत करना।”

प्रभात कुछ कह नहीं सका। उसकी आंखों में भी अब पछतावे का सैलाब था।

त्याग और बलिदान

वो रात बहुत भारी थी। सावित्री और राजन बाबू दोनों चुपचाप बैठे थे। दोनों को यह समझ आ गया था कि कुछ रिश्तों को बचाने के लिए कभी-कभी खुद को मिटाना पड़ता है।

सावित्री ने धीरे से कहा – “भैया, सब मेरी वजह से हुआ है। अगर मैं ना होती, तो शायद यह सब ना होता। अब जब मेरी वजह से आपके बेटे की जिंदगी बिखर रही है तो मुझे ही कुछ करना पड़ेगा। मैं नहीं चाहती कि आपके बेटे की फैमिली टूटे।”

राजन बाबू चुपचाप सुनते रहे, आंखों में आंसू थे और दिल में तूफान। उसी रात बिना किसी को बताए, राजन बाबू उठे, एक छोटा बैग तैयार किया और सावित्री को सोता छोड़कर घर से निकल गए। टैक्सी ली और एक छोटे होटल में जाकर ठहर गए।

सुबह जब सावित्री उठी तो बिस्तर खाली था। राजन बाबू का बैग और चश्मा भी गायब थे। “हे भगवान! भैया कहां चले गए?” उसने प्रभात को कॉल किया – “तेरे पापा कहीं चले गए हैं, सुबह से नहीं हैं। मैं डर गई हूं।”

प्रभात का दिल धक से रह गया – “नहीं आंटी, यह सब मेरी गलती है। मैं पुलिस को कॉल करता हूं। मैं उन्हें ढूंढकर ही दम लूंगा।”

सच्चाई का खुलासा और माफी

शाम के चार बज चुके थे। लंदन की सड़कों पर भीड़ लौट रही थी, लेकिन एक परिवार बेचैनी में दर-बदर भटक रहा था। पुलिस जब प्रभात के घर पहुंची और साथ में राजन बाबू को लाकर खड़ा किया तो सब एकदम सन्न रह गए। उनके कपड़े अस्त-व्यस्त थे, बाल बिखरे हुए, माथे पर पट्टी बंधी थी।

सावित्री दौड़कर उनके पास आई – “भैया, क्या हुआ आपको?”
राजन बाबू ने फीकी मुस्कान के साथ कहा – “कुछ नहीं सावित्री, तेरी भाभी तो पहले ही चली गई थी, फिर मुझे लगा अपनी जान दे दूं। लेकिन किस्मत देखो, पुलिस बीच में आ गई।”

पुलिस ने प्रिया से पूछताछ की, तो वह साफ मुकर गई – “मैंने इन्हें नहीं मारा, यह खुद गिर गए होंगे।”
राजन बाबू ने बेटे की आंखों में देखते हुए कहा – “क्या तेरी बीवी ने मुझे धक्का नहीं दिया था प्रभात? क्या यह खून मेरे माथे पर खुद से आ गया?”

दरअसल, राजन बाबू रात को सावित्री के घर से वापस बेटे-बहू के घर आए थे, लेकिन प्रिया ने उन्हें ताने मारते हुए धक्का दे दिया था। और राजन बाबू उसी वक्त घर से चुपचाप निकल गए थे।

प्रभात की आंखें झुकी थीं, वो कभी प्रिया की ओर देखता, कभी अपने पिता की ओर, बोलना चाहता था, लेकिन कुछ बोल नहीं सका।

तभी एना आगे आई और जहर उगल दिया – “दादू और वो मेड दोनों का अफेयर चल रहा है। मम्मी को बुरा लगा तो उन्होंने बस धक्का दे दिया। वैसे भी मुझे डर लगता है इस ओल्ड मैन से। पुलिस अंकल, प्लीज इन्हें अरेस्ट कर लीजिए।”

यह सुनकर सब पत्थर हो गए। सावित्री की आंखें भीग चुकी थीं। और प्रभात वहीं खड़ा रह गया – ना बोल सका, ना रोक सका। पुलिस ने राजन बाबू को गिरफ्तार कर लिया। सावित्री पीछे भागी – “भैया रुको, कुछ तो बोलो।” मगर राजन बाबू ने सिर्फ एक बार पीछे देखा, फिर सिर झुका लिया।

सच्चा पछतावा और परिवार का पुनर्जन्म

सावित्री वहीं रुक गई और प्रभात की ओर मुड़कर बोली – “धिक्कार है तुम पर। एक पिता अपने बेटे के घर कुछ दिन को आया था और तुम सब ने उसे झूठे इल्जाम में जेल भिजवा दिया।”

एना हंसती रही – “ओल्ड लेडी, तू भी उसके साथ चली जा। तेरी भी सेटिंग है ना?”

सावित्री ने कुछ नहीं कहा, सिर्फ आंखें पोंछते हुए घर लौट गई। मगर उसी वक्त प्रभात के अंदर कुछ टूट चुका था। वो सावित्री के घर पहुंचा और उसके पैरों में गिर गया – “आंटी, मुझे माफ कर दो। मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी है। पापा को जेल भेजने में मैंने कुछ नहीं किया, कुछ नहीं कहा। अब मैं भी उन्हीं के साथ रहूंगा।”

सावित्री ने कांपते हाथों से उसके सिर पर हाथ रखा – “अब पछताएगा वो जब चिड़िया चुग गई खेत बेटा। लेकिन चल, अभी हम उन्हें छुड़ा सकते हैं। तू साथ चल, मैं भी चलूंगी।”

प्रभात और सावित्री पुलिस स्टेशन गए, बड़ी मशक्कत के बाद राजन बाबू की जमानत करवाई। जब वह बाहर आए तो सावित्री ने कहा – “भैया, चलो घर चलते हैं।”
लेकिन राजन बाबू ने सिर झुकाकर कहा – “नहीं, अब मैं कहीं नहीं जाऊंगा।”
उन्होंने प्रभात की ओर देखा – “तेरी मां हमेशा कहती थी कि बुढ़ापे में बेटा ही सहारा बनेगा। लेकिन देख, इस विदेश में वह दिन भी देख लिया कि बेटे की बेटी ने मुझे दरिंदा कह डाला। अब क्या बचा है यहां?”

सावित्री रो पड़ी – “भैया, अगर आप समझते हैं कि मैं आपको लेकर बदनाम हो रही हूं तो मैं तैयार हूं आपके साथ भारत लौटने के लिए। मैं बस चाहती थी कि प्रभात का घर बच जाए।”

राजन बाबू की आंखों में पानी आ गया – “सच कहूं, मुझे अब किसी का डर नहीं। बस इस डर से जी रहा हूं कि मेरी वजह से तू ना टूट जाए।”

तभी प्रभात बोला – “पापा, अगर आप इंडिया जाएंगे तो मैं भी साथ चलूंगा। अब और नहीं सहूंगा मैं यह सब। मैं तलाक के पेपर तैयार करवा रहा हूं। मेरे लिए अब सिर्फ आप मायने रखते हैं।”

अचानक संकट और परिवार का मिलन

अभी यह बातें चल ही रही थीं कि अचानक एना का फोन आया – “डैडी, जल्दी घर आइए। मम्मी गिर गई है, सर से खून बह रहा है। मैंने एंबुलेंस बुला ली है। प्लीज जल्दी आ जाइए।”

प्रभात हड़बड़ा कर खड़ा हो गया। सावित्री ने कहा – “क्या देख रहे हो? चलो।”
तीनों अस्पताल की तरफ भागे।

अस्पताल की आपातकालीन वार्ड के बाहर तीनों लोग – राजन बाबू, प्रभात और सावित्री – चुपचाप खड़े थे। सामने ऑपरेशन थिएटर की लाल बत्ती जल रही थी। प्रिया की हालत गंभीर थी, सर में गहरी चोट आई थी। डॉक्टर कह चुके थे – अगले कुछ घंटे बहुत अहम हैं।

राजन बाबू ने कांपते हुए हाथ जोड़े और आंखें मूंदकर भगवान से प्रार्थना करने लगे – “हे प्रभु, मेरे बच्चे की पत्नी है वह, मेरे बेटे की जिंदगी की साथी, मेरी पोती की जननी, उसे कुछ मत होने देना।”

उनकी आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे। बगल में एना बैठी थी – वही एना जिसने अपने दादू पर झूठा इल्जाम लगाया था। आज वह भी आंखें मूंदकर भगवान से मन्नत मांग रही थी – “भगवान, मेरी मम्मी को ठीक कर दो और मुझे माफ कर दो। मैंने बहुत बुरा किया है दादू के साथ।”

कुछ देर बाद डॉक्टर बाहर आए – “ऑपरेशन सफल रहा, अब खतरे से बाहर है। आप थोड़ी देर में मिल सकते हैं।”

सभी ने राहत की सांस ली। एना दौड़कर अपने दादू के पैरों में गिर पड़ी – “दादू, प्लीज माफ कर दीजिए। मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई थी।”

राजन बाबू ने उसके आंसुओं से भीगी हथेली अपने हाथों में लेकर कहा – “चल उठ बिटिया, अब सब ठीक है। तेरी मम्मी भी ठीक हो जाएगी, और हमारा परिवार भी।”

नील भी आया और अपने दादू से लिपट गया। फिर वह पल आया जब प्रिया को स्ट्रेचर पर बाहर लाया गया। आंखें हल्की खुली थीं, उसने जैसे ही राजन बाबू को देखा, दोनों हाथ जोड़ दिए – “पिताजी, मुझे माफ कर दीजिए। मैंने आपको नहीं समझा, लेकिन अब समझ गई हूं। आप अगर वापस भारत जाना चाहें तो हम सब आपके साथ चलेंगे।”

राजन बाबू की आंखें फिर छलक उठीं – “बेटी, माफी शब्द से बड़ा कोई रिश्ता नहीं होता। अगर तुमने यह महसूस कर लिया कि रिश्ते भावनाओं से बनते हैं, तो समझ लो कि हमारी जिंदगी की सबसे बड़ी जीत हो गई।”

नया घर, नया रिश्ता, नया जीवन

अगले दो दिन अस्पताल में बीते। राजन बाबू, सावित्री, प्रभात और दोनों बच्चे सब साथ थे। जब प्रिया की छुट्टी हुई तो सबने एक साथ घर वापसी की। घर की हवा में पहली बार अपनापन था, गर्माहट थी और वह भारतीयपन जिसे राजन बाबू हर साल ढूंढते थे।

अब सावित्री भी उसी घर में रहने लगी, लेकिन अब वह सिर्फ मेड नहीं थी – वो परिवार की इज्जत थी, उस घर की बड़ी बहन और दादू की छाया।

एक शाम चाय की चुस्कियों के बीच एना ने पूछा – “दादू, अगर मैं फिर से कभी गलती करूं तो क्या आप मुझे फिर माफ कर देंगे?”
राजन बाबू ने हंसते हुए कहा – “गलती इंसान करता है बेटा और माफ करना भगवान का काम है। मगर हम भारतीय हैं, हम इंसान बनकर भगवान की तरह माफ करना सीखते हैं।”

फिर उन्होंने सावित्री की ओर देखा – “अगर सावित्री बहन ना होती तो शायद आज यह घर टूट चुका होता।”
सावित्री मुस्कुराई – “नहीं भैया, घर जोड़ने के लिए प्यार चाहिए और वह आपके पास हमेशा था। बस लोगों को उसकी अहमियत अब समझ आई है।”

सीख और संदेश

कभी-कभी रिश्ते हमें तोड़ते नहीं, हमें तोड़कर फिर से जोड़ते हैं। इस कहानी में किसी ने बहन बनकर सहारा दिया, किसी ने बाप बनकर डांटा, किसी ने बच्चों की तरह गलती की। लेकिन अंत में सबने सीखा कि माफी से बड़ी कोई ताकत नहीं।

आपके घर में भी क्या कभी ऐसा हुआ है जब किसी की एक बात ने पूरे परिवार को फिर से जोड़ दिया हो?
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धन्यवाद। जय हिंद!