बारिश में भीगते भूखे कुत्ते को खिलाई थी रोटी , फिर अगले दिन उसी कुत्ते ने उसे करोड़पति बना दिया

एक रोटी की दुआ – राजू और शेरू की कहानी

मुंबई की गलियों में एक उम्मीद की कहानी

मुंबई की तंग गलियों में, जहां आसमान से ज्यादा इमारतें और सपनों से ज्यादा मजबूरियां दिखती हैं, वहीं रहता था राजू – एक 23 वर्षीय गरीब और अनाथ नौजवान। मां-बाप कौन थे, कहां थे, उसे कुछ पता नहीं था। बचपन से ही सड़कों पर पला-बढ़ा राजू कभी किसी दुकान में छोटू बनकर काम करता, कभी रेलवे स्टेशन पर बोझा उठाता। मेहनती और ईमानदार था, मगर किस्मत उससे रूठी हुई थी। इन दिनों उसके पास कोई काम नहीं था। वह एक जर्जर चाल की छोटी सी खोली में रहता था, जिसका किराया भी दो महीने से नहीं दे पाया था।

दो दिन से राजू के पेट में एक दाना भी नहीं गया था। आज सुबह मंदिर के बाहर भंडारे में उसे एक सूखी रोटी मिली थी। उसने सोचा, इसे रात में खाऊंगा। यह रोटी ही उसका आज और शायद कल का भी सहारा थी।

शाम होते-होते मुंबई में मूसलाधार बारिश शुरू हो गई। सड़कों पर पानी भरने लगा, लोग अपने-अपने घरों की ओर भागने लगे। राजू भी अपनी खोली में लौट आया। उसकी खोली में भी पानी टपकने लगा था। वह एक कोने में सिमटकर बैठ गया। भूख से बेहाल राजू ने अपनी जेब से वह सूखी रोटी निकाली। जैसे ही वह पहला टुकड़ा तोड़ने वाला था, दरवाजे के बाहर से किसी के सिसकने की आवाज आई।

दरवाजा खोलकर देखा, तो बारिश में भीगा हुआ एक छोटा सा भूरे रंग का कुत्ता ठंड और दर्द से कांप रहा था। शायद किसी गाड़ी ने उसे टक्कर मार दी थी। उसकी एक टांग से हल्का खून बह रहा था। वह इतना लाचार और बेबस लग रहा था कि राजू का दिल पिघल गया। खुद भूखा था, बहुत भूखा, पर उस बेजुबान जानवर का दर्द देखा नहीं गया।

राजू ने सोचा, “मैं तो इंसान हूं, किसी से मांगकर या छोटा-मोटा काम करके पेट भर लूंगा, पर यह बेचारा क्या करेगा?”
उसने अपनी आखिरी रोटी के दो टुकड़े किए। एक टुकड़ा कुत्ते के आगे रख दिया। कुत्ते ने एक ही झटके में वह टुकड़ा खा लिया और फिर उम्मीद भरी नजरों से राजू की ओर देखने लगा। राजू मुस्कुराया और बचा हुआ टुकड़ा भी उसके आगे रख दिया। “आज तू ही खा ले भाई, शायद तेरी दुआ से मेरी किस्मत भी खुल जाए।”

रोटी खाने के बाद कुत्ते के शरीर में थोड़ी जान आ गई। राजू ने उसे उठाकर अपनी खोली के अंदर ले आया। पुराने कपड़े से उसका भीगा शरीर पोंछा, घायल टांग पर पट्टी बांधी। फिर कुत्ते को बोरी पर लिटा दिया और खुद भूखे पेट ही जमीन पर सो गया। बाहर बारिश का शोर था, मगर राजू के दिल में एक अजीब सी शांति थी – किसी की मदद करके जो सुकून मिलता है, वह शायद पेट भरने के सुख से कहीं बड़ा था।

एक नई सुबह, एक नई दिशा

अगली सुबह बारिश थम चुकी थी। राजू की आंख खुली तो देखा, कुत्ता उसके पैरों के पास बैठा पूंछ हिला रहा था। उसकी आंखों में कृतज्ञता और अपनापन था। राजू ने उसके सिर पर हाथ फेरा, “चल भाई, अब तू अपने रास्ते और मैं अपने रास्ते। मुझे काम ढूंढने जाना है।”

जैसे ही राजू दरवाजा खोलकर बाहर निकलने लगा, कुत्ते ने उसका पाजामा मुंह से पकड़ लिया और उसे खींचने लगा। “अरे, क्या कर रहा है? छोड़ मुझे!” लेकिन कुत्ता नहीं माना। वह गुर्राता और राजू को खींचता जैसे कहीं ले जाना चाहता हो। राजू को उसका व्यवहार बड़ा अजीब लगा। सोचने लगा, शायद यह भूखा है या मुझे अपने मालिक के पास ले जाना चाहता है। वैसे भी उसके पास करने को कुछ खास नहीं था। “चल, तेरी भी बात मान लेता हूं, देखूं कहां ले जाएगा।”

राजू कुत्ते के पीछे-पीछे चल पड़ा। कुत्ता उसे तंग गलियों से बाहर निकालकर शहर की बड़ी और साफ सुथरी सड़कों की ओर ले गया। बार-बार पीछे मुड़कर देखता कि राजू आ रहा है या नहीं। राजू हैरान था – यह कुत्ता उसे कहां ले जा रहा है?

चलते-चलते वे शहर के सबसे पॉश इलाके मालाबार हिल पहुंच गए। यहां बड़ी-बड़ी कोठियां और शांत सड़कें थीं। कुत्ता एक बहुत बड़ी, पुरानी पर आलीशान हवेली के सामने आकर रुक गया। हवेली का बड़ा सा लोहे का गेट बंद था, मगर एक तरफ से थोड़ा सा खुला हुआ था। कुत्ता उसी दरार से अंदर घुस गया और फिर अंदर से भौंक-भौंक कर राजू को बुलाने लगा।

राजू डर गया – यह किसी बड़े आदमी का घर लगता है। अगर मैं अंदर गया और किसी ने देख लिया तो चोरी का इल्जाम लग सकता है। वह वापस मुड़ने ही वाला था कि कुत्ते के भौंकने की आवाज तेज हो गई। उसकी आवाज में बेचैनी थी, जैसे किसी बड़ी मुसीबत का संकेत दे रहा हो।

राजू का दिल नहीं माना। उसने हिम्मत की और धीरे से गेट खोलकर अंदर चला गया। अंदर का बगीचा बहुत सुंदर था, मगर उसमें वीरानी छाई थी। कुत्ता भागता हुआ हवेली के मुख्य दरवाजे पर पहुंचा, जो थोड़ा सा खुला था। वह अपने पंजों से दरवाजे को खरोचने लगा। राजू डरते-डरते उसके पीछे गया। दरवाजे से अंदर झांका और नजारा देखकर उसके होश उड़ गए।

एक फरिश्ते की पहचान

हॉल बहुत बड़ा और शानदार था। पर सारा सामान अस्त-व्यस्त पड़ा था। और बीचोंबीच जमीन पर एक बूढ़ी औरत बेहोश पड़ी थी। उनके सिर से हल्का खून बह रहा था और वह बिल्कुल बेसुध थीं। शायद वह गिर पड़ी थीं और उन्हें चोट लग गई थी। कुत्ता उन्हीं के पास जाकर उनके चेहरे को चाटने लगा और फिर राजू की ओर देख कर भौंकने लगा, जैसे कह रहा हो – मदद करो!

राजू एक पल के लिए भी नहीं रुका। वह भागकर अंदर गया। अम्मा के सिर के नीचे कुशन रखा, उनकी नब्ज टटोली – बहुत धीमी चल रही थी। एक कोने में टेलीफोन पड़ा था, दौड़कर फोन उठाया, एंबुलेंस के लिए नंबर मिलाया। ऑपरेटर को हवेली का पता बताया, जल्दी आने को कहा। फिर वापस अम्मा के पास आकर बैठ गया, उनके हाथ-पैर मलने लगा। कुत्ता भी वहीं बैठा रहा, अपनी मालकिन और राजू को बारी-बारी से देखता रहा।

कुछ ही देर में एंबुलेंस आ गई। राजू की मदद से मेडिकल टीम ने अम्मा को स्ट्रेचर पर लिटाया और अस्पताल ले जाने लगे। “अस्पताल में कौन है इनके साथ?” एक वार्ड बॉय ने पूछा। राजू ने कहा, “मैं हूं।”
उसने अपना नाम और पता लिखवा दिया, हालांकि उसके पास पते के नाम पर बस चाल का जिक्र था।

अस्पताल में डॉक्टर ने बताया – अम्मा को हल्का स्ट्रोक आया था, जिसके कारण वह गिर पड़ीं। अगर उन्हें समय पर अस्पताल नहीं लाया जाता, तो कुछ भी हो सकता था।

राजू बाहर बेंच पर बैठा रहा, अम्मा की चिंता में। कुत्ता – जिसका नाम शेरू था, जैसा कि बाद में पता चला – राजू के पैरों के पास से हिला तक नहीं।

किस्मत की करवट

दो दिन बाद अम्मा को होश आ गया। उनका नाम श्रीमती सावित्री देवी था – शहर की एक बहुत बड़ी, पर अकेली रहने वाली अमीर विधवा। उनके पति का सालों पहले देहांत हो चुका था, कोई औलाद नहीं थी। शेरू ही उनका इकलौता साथी था। उस दिन जब उन्हें स्ट्रोक आया, तो शेरू ही घर से बाहर भागकर मदद ढूंढने गया था।

होश आने पर सावित्री देवी ने नर्स से उस लड़के के बारे में पूछा, जो उन्हें लेकर आया था। नर्स ने राजू के बारे में बताया। सावित्री देवी ने राजू को अपने कमरे में बुलवाया। राजू डरता-डरता अंदर गया।

सावित्री देवी ने कमजोर, मगर ममता भरी आवाज में कहा, “पास आओ बेटा, तुम ही हो जिसने मेरी जान बचाई।”
राजू ने सिर झुका लिया, “जी अम्मा जी, पर आपकी जान तो आपके इस वफादार कुत्ते ने बचाई है। मैं तो बस एक जरिया था।”

सावित्री देवी मुस्कुराई, “पर उस जरिए को शेरू तुम तक ही क्यों लाया? जरूर तुम में कोई खास बात होगी।”

फिर उन्होंने पुलिस और अपने वकीलों से उस रात के बारे में पता करवाया। सुरक्षा कैमरे की फुटेज देखी – कैसे शेरू बारिश में भीगता हुआ राजू की खोली तक पहुंचा, कैसे राजू ने भूखे रहकर अपनी आखिरी रोटी उसे खिलाई, और कैसे सुबह शेरू उसे खींचकर हवेली तक ले आया। यह सब देखकर सावित्री देवी की आंखों से आंसू बहने लगे।

उन्होंने अपनी जिंदगी में बहुत से रिश्ते देखे थे, मगर इतनी निस्वार्थ इंसानियत पहली बार देखी थी।

नेकी का इनाम

अगले दिन जब राजू उनसे मिलने आया, तो उन्होंने उसे अपने पास बिठाया। “बेटा, मैंने तुम्हारे बारे में सब पता कर लिया है। तुम अनाथ हो और बहुत मुश्किलों में जिंदगी गुजार रहे हो।”

राजू चुप रहा।

सावित्री देवी ने उसका हाथ अपने हाथ में लिया, “बेटा, मेरी कोई औलाद नहीं है। यह इतनी बड़ी हवेली, करोड़ों का कारोबार मेरे बाद सब वीरान हो जाएगा। तुमने मेरे शेरू को बचाया और शेरू ने मुझे। यह सब तुम्हारी एक रोटी की नेकी की वजह से हुआ। आज मैं तुम्हें कुछ देना चाहती हूं।”

उन्होंने वकील की ओर इशारा किया। वकील ने कुछ कागजात राजू की ओर बढ़ाए।

“यह क्या है अम्मा जी?”

“बेटा, यह मेरी वसीयत है। आज से तुम सिर्फ राजू नहीं, राजू मेहरा हो। मेरे पोते। मेरी सारी जायदाद, हवेली, कारोबार – सब तुम्हारा है।”

राजू को लगा जैसे किसी ने उसके कानों में पिघला हुआ सीसा डाल दिया हो। वह हक्का-बक्का सा कभी कागजात को देखता, कभी सावित्री देवी को।

“अम्मा… यह आप क्या कह रही हैं? यह कैसे हो सकता है? मैं तो…”

सावित्री देवी ने उसके सिर पर हाथ फेरा, “हो सकता है बेटा। जिसने एक बेजुबान जानवर के लिए अपनी आखिरी रोटी कुर्बान कर दी, वह किसी भी जायदाद का सबसे अच्छा रखवाला हो सकता है। आज से तुम मेरे पोते हो और यह घर तुम्हारा है।”

राजू की आंखों से आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। वह सावित्री देवी के पैरों पर गिर पड़ा। उसे पहली बार किसी का इतना प्यार और अपनापन मिला था।

एक नई शुरुआत

उस दिन के बाद राजू की जिंदगी एक खूबसूरत सपने की तरह बदल गई। वह चाल की खोली से निकलकर आलीशान हवेली में आ गया। मगर मालिक बनकर नहीं, बल्कि प्यार करने वाला पोता बनकर। उसने सावित्री देवी की सेवा की, कारोबार को मेहनत और ईमानदारी से ऊंचाइयों तक पहुंचाया।

और हां, उसने शेरू को कभी नहीं भुलाया। सावित्री देवी के नाम पर शहर में जानवरों का अस्पताल और शेल्टर होम खोला, जहां शेरू जैसे हजारों बेसहारा और बीमार जानवरों का मुफ्त इलाज होता था।

कहानी की सीख

दोस्तों, यह कहानी हमें सिखाती है कि करुणा और दया सिर्फ इंसानों के लिए नहीं, हर जीव के लिए होनी चाहिए। एक बेजुबान को खिलाई गई एक रोटी भी आपको वह दुआएं दे सकती है, जो आपकी पूरी जिंदगी बदल दे।
अगर राजू और शेरू की इस अनोखी दोस्ती ने आपके दिल को छुआ है, तो नेकी का यह संदेश जरूर फैलाएं।
कभी-कभी किस्मत बदलने के लिए सिर्फ एक रोटी और एक नेक दिल की जरूरत होती है।

समाप्त