बिजनेस मैन एक भिखारन को किराये की पत्नी बनाकर अपने घर ले आया, फिर जो हुआ उसने सबके होश उड़ा दिए

किराए की पत्नी – एक अमीर बिजनेसमैन और बेसहारा लड़की की प्रेरणादायक कहानी

मुंबई, सपनों का शहर। जूहू के समंदर किनारे मेहरा मैनशन – शहर के सबसे अमीर और युवा बिजनेसमैन करण मेहरा का आलीशान बंगला। 30 साल का करण, करोड़ों की कंपनी का मालिक, पैसा, शौहरत, महंगी गाड़ियां, पार्टियां – सब कुछ उसके पास था। लेकिन एक चीज़ की कमी थी – रिश्तों के लिए इज्जत। करण के लिए हर चीज़ एक बिजनेस डील थी, दोस्त मतलब के लिए थे, लड़कियां सिर्फ टाइमपास। शादी का नाम सुनते ही उसे लगता था जैसे आज़ादी छिन जाएगी।

उसके मां-बाप, बलवंत और सावित्री मेहरा, दिल्ली में रहते थे और बेटे की शादी के लिए लगातार दबाव डालते रहते थे। आखिरकार उन्होंने करण को अल्टीमेटम दे दिया – अगले महीने उसके 30वें जन्मदिन पर वे मुंबई आएंगे, और शादी पक्की करके ही लौटेंगे। वरना करण को जायदाद से बेदखल कर देंगे।

करण दुविधा में पड़ गया – ना जायदाद खोना चाहता था, ना आज़ादी। तभी उसके दिमाग में एक शैतानी आइडिया आया – क्यों ना किराए की पत्नी ले आए? जो कुछ महीनों तक मां-बाप के सामने आदर्श बहू बने, फिर पैसे लेकर हमेशा के लिए उसकी जिंदगी से चली जाए।

अपने दोस्त रोहन की मदद से करण ने ऐसी लड़की ढूंढनी शुरू की – सीधी-साधी, गरीब, जिसे पैसों की सख्त जरूरत हो और जो बाद में कोई तमाशा ना करे। कई लड़कियां देखीं, लेकिन कोई फिट नहीं बैठी। तभी एक शाम मंदिर की सीढ़ियों पर बैठी एक लड़की पर करण की नजर पड़ी – साधारण कपड़े, उलझे बाल, थका चेहरा, लेकिन आंखों में गहराई और आत्मसम्मान। वह भीख नहीं मांग रही थी, बल्कि अपनी आधी रोटी एक भूखे बच्चे को दे रही थी।

करण को लगा – यही है उसकी तलाश। उसका नाम था अंजलि। कभी दिल्ली के एक पढ़े-लिखे परिवार की बेटी, अंग्रेजी साहित्य में ग्रेजुएट। एक हादसे ने उसके मां-बाप को छीन लिया, चाचा-चाची ने धोखे से जायदाद छीन ली और घर से निकाल दिया। अंजलि मजबूर होकर मुंबई आई, लेकिन नौकरी नहीं मिली, सहेलियों के घर ज्यादा दिन नहीं रह सकी। आत्मसम्मान उसे किसी के आगे हाथ फैलाने नहीं देता था।

करण ने अंजलि को रेस्टोरेंट में बुलाया, और अपने प्लान के बारे में बताया – तीन महीने तक उसकी पत्नी बनकर रहना, आदर्श बहू का किरदार निभाना, उसके मां-बाप के सामने। बदले में एक लाख रुपये। अंजलि ने साफ मना कर दिया – “यह गलत है, मैं अपनी आत्मा नहीं बेच सकती।”

करण हैरान था। उसने रकम बढ़ाकर 20 लाख, फिर 30 लाख कर दी, लेकिन अंजलि ने फिर भी मना कर दिया। उसने कहा – “मेरे मां-बाप ने सिखाया है कि इज्जत और आत्मसम्मान दुनिया की किसी दौलत से बड़े हैं।” करण पहली बार किसी लड़की के उसूलों से प्रभावित हुआ।

करण ने अपनी रणनीति बदली – “इसे नाटक नहीं, एक नौकरी की तरह देखो। तुम्हें कोई गलत चीज़ नहीं करनी होगी, पूरी इज्जत और सुरक्षा मिलेगी।” मजबूरी और आत्मसम्मान के बीच लड़ते हुए अंजलि ने कुछ शर्तों के साथ हां कर दी – “आप कभी बदतमीजी नहीं करेंगे, मुझे छुएंगे भी नहीं, और जैसे ही आपके मां-बाप जाएंगे, मैं हमेशा के लिए चली जाऊंगी।”

ऑपरेशन आदर्श बहू शुरू हुआ।

अंजलि का मेकओवर हुआ, महंगे कपड़े, पार्लर, ट्रेनिंग – कैसे झूठी कहानियां सुनानी हैं, कैसे आदर्श पत्नी बनना है। करण ने सोचा था सब कुछ उसे सिखाना पड़ेगा, लेकिन अंजलि के संस्कार और स्वभाव इतने अच्छे थे कि वह किरदार निभाने लगी और घर का माहौल बदलने लगा।

मां-बाप मुंबई आए, अंजलि ने पैर छुए, सावित्री ने गले लगाया। मेहरा मैनशन में गृह प्रवेश हुआ। अंजलि ने सुबह-सुबह पूजा की, मधुर आवाज में आरती गाई, घर में सकारात्मक ऊर्जा आ गई। एक दिन रसोइए की तबीयत खराब थी, अंजलि ने अपने हाथों से गरमागरम पराठे और हलवा बनाया – बलवंत बोले, “सालों बाद मां जैसा स्वाद मिला!”

धीरे-धीरे अंजलि घर का हिस्सा बन गई। सावित्री के साथ सीरियल देखती, उनके सिर में तेल मालिश करती, बलवंत के साथ बगीचे में काम करती, नौकरों से दोस्ती कर ली। सब उसे छोटी मालकिन कहकर इज्जत देने लगे।

करण दूर से देख रहा था – जिसे वह अनपढ़ भिखारन समझकर लाया था, वह तो संपूर्ण गृहलक्ष्मी निकली। घर में सालों बाद हंसी और खुशियां लौट आईं। करण को अपने किए पर शर्म आने लगी। वह अंजलि को “किराए की पत्नी” कहकर ताने मारता, लेकिन अंजलि कभी पलटकर जवाब नहीं देती। उसके चेहरे पर हमेशा शांत मुस्कान रहती।

करण का दिल बदलने लगा।

एक रात पार्टी से देर से लौटा, नशे में धुत। अंजलि ने बिना कुछ कहे उसके जूते उतारे, सिर पर ठंडी पट्टी रखी, सुबह नींबू पानी और दवा दी। करण को पहली बार महसूस हुआ – कोई उसकी परवाह करता है, बिना किसी मतलब के।

अब वह अंजलि को अलग नजर से देखने लगा, उसके साथ वक्त बिताने लगा। अंजलि अपनी जिंदगी के बारे में बात टाल जाती, उसकी रहस्यमयी खामोशी करण को और आकर्षित करती।

एक बिजनेस पार्टी में सावित्री ने अंजलि को अपनी शादी का हीरों का हार पहनने को दिया। अंजलि राजकुमारी जैसी लग रही थी। करण के प्रतिद्वंदी सिंघानिया ने अंजलि से बदतमीजी की, उसकी हैसियत पर सवाल उठाए। अंजलि ने जवाब दिया – “किसी औरत की कीमत उसके कपड़ों या गहनों से नहीं, आत्मसम्मान से होती है। मेरे पति ने मुझे इतना सम्मान दिया है कि आपकी बातों से फर्क नहीं पड़ता।”

करण को एहसास हुआ – वह अंजलि की सिर्फ इज्जत ही नहीं, प्यार भी करने लगा है। लेकिन यह प्यार उसके लिए एक झटका था – जिस लड़की को किराए पर लाया, उससे सच में प्यार!

कहानी का चरम बिंदु

अंजलि के चाचा-चाची, जिन्होंने उसे घर से निकाला था, मुंबई आए – सुना था कि अंजलि ने अमीर लड़के से शादी कर ली है। वे लालच में मेहरा मैनशन पहुंचे। अंजलि ने उन्हें देखा तो उसका रंग उड़ गया। चाची ने झूठी कहानी सुनाई कि अंजलि चरित्रहीन है और घर से भाग गई थी।

करण का खून खौल उठा। लेकिन अंजलि ने सबको चुप करा दिया – “जब आपने मुझे घर से निकाला था, क्या सोचा था कि मैं कहां जाऊंगी?” बलवंत और सावित्री के पैरों तले जमीन खिसक गई।

करण ने सबके सामने सच बता दिया – “यह शादी एक नाटक थी, अंजलि किराए की पत्नी थी। लेकिन अब मैं उससे प्यार करता हूं, उसके बिना नहीं जी सकता। मां-पापा, मुझे चाहे जायदाद से बेदखल कर दो, लेकिन अंजलि को मुझसे दूर मत करना।”

सावित्री ने अंजलि का चेहरा अपने हाथों में लिया – “तूने हमें मां-पिताजी ही कहा है, क्या एक बेटी अपने मां-बाप को धोखा दे सकती है?” अंजलि रोने लगी – “मजबूर थी, मां जी।” सावित्री ने गले से लगा लिया – “माफी हमारे बेटे को मांगनी चाहिए। उसने तुझ जैसी हीरे की कीमत नहीं पहचानी।”

फिर सावित्री ने फैसला सुनाया – “आज तक इस घर में सब कुछ बेटे की मर्जी से हुआ, लेकिन आज फैसला मैं करूंगी। यह शादी नाटक नहीं थी, अंजलि ही इस घर की बहू है और रहेगी। अगर करण को अंजलि के साथ रहना है, तो पूरे रीति-रिवाज के साथ शादी करनी होगी।”

बलवंत मेहरा ने भी पत्नी का साथ दिया – “हमें ऐसी ही बहू चाहिए थी।” चाचा-चाची को गार्ड्स ने बाहर निकाल दिया।

करण ने घुटनों के बल अंजलि का हाथ पकड़ा – “अंजलि, क्या तुम मुझसे सच में शादी करोगी?” अंजलि ने रोते हुए हां कह दिया।

कुछ हफ्तों बाद मेहरा मैनशन दुल्हन की तरह सज गया। करण और अंजलि की शादी पूरे रीति-रिवाज और धूमधाम से हुई। इस बार सिंदूर का रंग नाटक नहीं था, बल्कि सच्चा वादा था – आखिरी सांस तक निभाने वाला।

करण पूरी तरह बदल चुका था। उसने पुरानी जिंदगी को अलविदा कह दिया और अंजलि के साथ एक नई, सच्ची जिंदगी शुरू की। अंजलि, जिसे दुनिया ने भिखारन बना दिया था, अपनी अच्छाई और संस्कारों से ना सिर्फ एक घर, बल्कि सबके दिल जीत लिए। अपनी असली जगह एक रानी की तरह हासिल कर ली।

सीख:
यह कहानी सिखाती है कि इंसान की असली पहचान उसके कपड़ों या पैसे से नहीं, बल्कि उसके संस्कार, आत्मसम्मान और दिल से होती है। सच्चा प्यार हर झूठ, हर धोखे और हर परिस्थिति से ऊपर उठकर अपनी जगह बना ही लेता है।

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