बिना हेलमेट दौड़ा रहा था गाड़ी माँ सीरियस थी , ट्रैफिक पुलिस ने पकड़ा और वो किया जो आप सोच भी नहीं सकते
इंसानियत का कानून – अमन और इंस्पेक्टर रणदीप
इंसान के दिल में नियमों के भारी भरकम बोझ के अलावा, भावनाओं, दर्द और सहानुभूति के लिए भी हमेशा एक जगह होती है। यह कहानी है अमन की, एक ऐसे बेटे की, जो अपनी मां की उखड़ती सांसों को बचाने के लिए उस दिन हर नियम, हर कानून तोड़ने के लिए तैयार था। और कहानी है इंस्पेक्टर रणदीप सिंह की, जो ट्रैफिक पुलिस में था, लेकिन उसका दिल जिंदगी के एक पुराने जख्म से पत्थर-सा हो गया था।
जब इन दोनों का आमना-सामना हुआ, तो कानून और मजबूरी की जंग छिड़ गई। उस मामूली मुड़ी-तुड़ी दवा की पर्ची ने सब कुछ बदलकर रख दिया। उस पर्ची को देखकर रणदीप सिंह के पत्थर दिल ने जो किया, उसने इंसानियत की वो मिसाल कायम की, जो हमेशा याद रखी जाएगी।
अमन की दुनिया
25 वर्षीय अमन, दिल्ली के पश्चिम विहार की भीड़-भाड़ भरी गलियों में बसे, एक किराए के छोटे-से फ्लैट में अपनी मां शारदा देवी के साथ रहता था। बचपन में उसकी छोटी बहन एक गंभीर बीमारी की वजह से चल बसी थी और पिता का साया भी जल्द ही उठ गया था। अमन की पूरी दुनिया उसकी मां ही थी।
पिछले कुछ सालों से उसकी मां शारदा देवी को दमे की गंभीर बीमारी ने जकड़ रखा था। मौसम बदलते ही, उनकी हालात बेहद खराब हो जाती थी। अमन हर पल मां की चिंता में डूबा रहता था। उसकी छोटी-सी नौकरी से मिलने वाला वेतन किराए, दवाइयों और रोजमर्रा की जरूरतों में खर्च हो जाता था। उसने अपने लिए सालों से कुछ नया नहीं खरीदा, पर मां का इलाज करना उसकी पहली प्राथमिकता थी।
वह अक्सर रात भर जागता, अपनी मां की हल्की-सी सांस भी सुनता और डर जाता – अगर अचानक कुछ हो गया तो? दिन-रात बस मां की सलामती की दुआ करता रहता।
आदमियत की दौड़ – वो दोपहर
एक दिन अमन अपने ऑफिस में जरूरी डिज़ाइन पर काम कर रहा था। बॉस बहुत सख्त थे, चेतावनी भी दे चुके थे कि अगर काम समय पर पूरा नहीं हुआ तो नौकरी खतरे में है। अचानक अमन को पड़ोसी शर्मा अंकल का फोन आया, ‘‘बेटा, जल्दी घर आ जाओ। मां की हालत बहुत खराब है, वो गिर पड़ी हैं, सांस नहीं ले पा रहीं।’’ डॉक्टर को भी फोन गया, पर वो ट्रैफिक में फंसे थे।
अमन के लिए वक्त एक-एक पल कीमती हो गया था। उसने मां की दवा की पर्ची और जेब में पड़े कुछ सौ के नोट उठाए। बॉस की डाँट, नौकरी का डर – सब हवा हो गई। वह भागा और अपने दोस्त राकेश से तुरंत स्कूटर मांगा।
राकेश ने झिझके बिना चाबी थमा दी। अमन स्कूटर उठा घर की ओर भागा, हेलमेट पहनना भूल गया, न ट्रैफिक दिखी, न रेड लाइट, बस मां का दम तोड़ता चेहरा आंखों में था। वह रफ्तार में उड़ा चला जा रहा था।
कानून का पहरा – इंस्पेक्टर रणदीप सिंह
पीरागढ़ी चौराहे पर आज ट्रैफिक पुलिस की रूटीन चेकिंग चल रही थी, लीड कर रहे थे इंस्पेक्टर रणदीप सिंह – सख्त, ईमानदार, हर नियम के पक्के। उनके मन में नियम से बढ़कर कुछ नहीं था। हजारों हादसे देख चुके रणदीप को लगता था कि हर बहाना झूठा होता है और हर नियम तोड़ने वाला अपराधी।
अचनाक उनकी नजर अमन पर पड़ी – बिना हेलमेट, तेज रफ्तार। उन्होंने रुकने का इशारा किया, लेकिन अमन ने गति बढ़ा दी। रणदीप सिंह तुरंत अपनी सरकारी बाइक पर सवार हुए और पीछा शुरू कर दिया। कुछ ही दूरी पर, रणदीप ने बाइक सामने अड़ा दी, अमन को रोक ही लिया।
याचना और सख्ती
रणदीप सिंह की भारी-भरकम आवाज सुनकर अमन डर गया। ‘‘साहब, मेरी मां की हालत बहुत खराब है, दवा लेकर जाना है, प्लीज जाने दें…’’ अमन बार-बार गिड़गिड़ाया, पर रणदीप सिंह का चेहरा भावहीन था – ‘‘ये कहानी मैं रोज़ सुनता हूं। पहले खुद अपनी और दूसरों की जान खतरे में डालते हो, फिर मां-बाप का बहाना लाते हो। लाइसेंस और कागज़ दिखा!’’
अमन रो पड़ा – ‘‘चाहें तो मेरे पड़ोसी से फोन पर पूछ लें, मेरी माँ की जान खतरे में है…’’ रणदीप सिंह चालान बुक निकाल चुके थे। ‘‘5000 रूपए का चालान, 6 महीने लाइसेंस सस्पेंड…’’
एक पर्ची का करिश्मा
अमन बेबस होकर जेब में हाथ डालता है, पैसे निकालने की कोशिश में दवाइयों की मुड़ी-तुड़ी पर्ची भी गिर जाती है। ‘‘साहब, मेरी मां की दवा की पर्ची देखिए। डॉक्टर ने कहा है, यह डेरिफिलिन इंजेक्शन 15 मिनट के अंदर देना है…वरना…’’
रणदीप ने पर्ची उठाई और उस पर अस्पताल और डॉक्टर का नाम देखा — ‘‘जीवन ज्योति हॉस्पिटल, डॉक्टर वर्मा’’… और दवा – ‘‘डेरिफिलिन’’।
रणदीप की आंखों के सामने सब बदल जाता है।
पुराना जख्म – रणदीप का पिघलता दिल
रणदीप के दिमाग में 5 साल पहले का मंजर घूम जाता है। ऐसे ही दौड़ते हुए ट्रैफिक में फंसे थे – मां पर दिल का दौरा, जी-जान से कोशिश, लेकिन जब अस्पताल पहुंचे, बहुत देर हो चुकी थी। डॉक्टर वर्मा ने तब भी यही कहा था — ‘‘15 मिनट पहले आ जाते, तो बचा लेते…’’ वही अस्पताल, वही दवा, वही डॉक्टर… और आज वही हालत इस युवा के साथ।
रणदीप की आंखें नम हो जाती हैं। उन्हें लगता है, शायद खुदा उन्हें आज अपनी गलती सुधारने का एक मौका दे रहा है।
नया फैसला – इंसानियत की जीत
रणदीप ने चालान बुक फाड़कर फेंक दी, अमन का कंधा थामा। ‘‘डरो मत, तुम्हें मेरी जीप में चलना है।’’ अमन घबरा गया। सोचा, अब स्कूटर जब्त होगा, पर रणदीप ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें खुद लेकर चलता हूं।’’
रणदीप ने जीप का सायरन ऑन किया। वायरलेस पर सभी को ट्रैफिक क्लियर करने का आदेश दिया। सायरन बजाती पुलिस की जीप चौराहों को पार करती, मेडिकल स्टोर पहुँची। तब अमन को याद आया कि वॉलेट ऑफिस में छूट गया है। रणदीप ने पैसे दिए, हवलदार को दवाइयां और इंजेक्शन लाने को भेजा।
फिर वे सीधा अमन के घर पहुँचे।
माँ का चमत्कारिक बचाव
घर पहुँचे तो मोहल्ले में पुलिस जीप देखकर भीड़ लग गई। रणदीप ने किसी पर ध्यान नहीं दिया, सीधा घर में घुसे। अमन की मां बेहोश पड़ी थीं, सांसें टूट-सी रही थीं।
रणदीप ने डॉक्टर दोस्त को फोन किया, मां के सिर पर अपने हाथों से ठंडे पानी की पट्टियां रखीं, उन्हें ढाढ़स दिया — ‘‘अम्मा जी, मैं भी बेटा हूँ। और एक बेटे के रहते कुछ नहीं होगा…’’ डॉक्टर कुछ ही मिनट में पहुँच गए, इंजेक्शन दिया, दवाइयां दी। कुछ ही देर में मां की सांसें सामान्य हुईं, आँखें खुलीं, जान बच गई।
डॉक्टर ने कहा: ‘‘अगर और 10 मिनट होते, हम इन्हें नहीं बचा पाते।’’
नया रिश्ता, नई इज्ज़त
अमन अपने आंसू रोक न सका। वो इंस्पेक्टर रणदीप सिंह के पैरों पर गिर पड़ा — ‘‘साहब, आपने मेरी मां ही नहीं, मुझे भी नया जीवन दिया…’’
रणदीप ने उसे गले से लगाया — ‘‘बेटा, मैंने सिर्फ इंसान और बेटे का फर्ज निभाया है। जो अपनी मां के लिए नहीं कर पाया, शायद आज भगवान ने तुम्हारे कारण मुझे वह गलती सुधारने का मौका दिया…’’
जाने से पहले बोले — ‘‘लेकिन बेटा, अगली बार हेलमेट जरूर पहनना। तुम्हारी यह जान तुम्हारी मां के लिए सबसे कीमती है।’’
उस दिन के बाद अमन और रणदीप में एक अनूठा रिश्ता बन गया। कभी रणदीप मां का हालचाल लेने आते, कभी अमन उनकी मदद करता। वह एक घटना, दोनों की जिंदगी बदल गई — एक कठ
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