बीवी को लगता था ये सिर्फ रसोई का आदमी है असलियत देख कर उड़ गए होश

दिखावा और असलियत का पर्दा

 

कविता ने ऊंचे स्वर में कहा, “आप मेरी मर्जी के खिलाफ यह रिश्ता कैसे तय कर सकते हैं, पापा?” विजय शर्मा ने शांत लेकिन दृढ़ आवाज़ में कहा, “क्योंकि मैं तुझसे प्यार करता हूँ, बेटी और आर्यन जैसा जीवन साथी हर किसी को नहीं मिलता।” कविता ने तमतमाकर कहा, “वह साधारण लड़का! न नौकरी, न कोई स्टेटस और ऊपर से आप चाहते हैं कि वह हमारे घर में घर जमाई बनकर रहे?” विजय ने गंभीर होकर उत्तर दिया, “अगर इस घर और जायदाद से रिश्ता रखना है तो यही शादी होगी, वरना तुम्हारी मर्जी।”

कविता ने अपनी नज़रें झुका लीं। उसने मजबूरी में, पिता के डर से और संपत्ति से ना कटने के लिए शादी को मंजूरी दे दी। शहर के सबसे महंगे होटल में एक भव्य शादी हुई। सजे हुए फूल, झिलमिलाती लाइटें और मेहमानों की भीड़ थी, पर दूल्हा-दुल्हन के बीच एक अनकही दूरी थी।

आर्यन ने धीरे से कहा, “अगर तुम यह शादी नहीं चाहती, तो अभी भी रुक सकते हैं। मैं तुम्हारे फैसले का सम्मान करूंगा।” कविता ने रूखे स्वर में कहा, “यह रिश्ता मेरे लिए सिर्फ एक समझौता है और तुम सिर्फ एक नाम।” आर्यन चुप रहा। उसने सिर्फ इतना सोचा, ‘कभी-कभी लोग जो देख नहीं पाते, वही सबसे बड़ा सच होता है।’

 

अपमान और एक रहस्य

 

ससुराल में आर्यन का पहला कदम पड़ते ही, कविता की माँ मालविका देवी ने आँखों में तिरस्कार भरकर कहा, “दामाद जी, आपका स्वागत है। अब यही आपका घर है। घर जमाई जो ठहरे।” आर्यन ने आदर से कहा, “धन्यवाद माँ जी। मैं कोशिश करूंगा कि इस घर में कोई तकलीफ ना हो।” मालविका ने हल्की हँसी के साथ कहा, “तकलीफ तो तब होती है जब कोई बोझ बन जाए। उम्मीद है आप नहीं बनेंगे।” आर्यन ने मुस्कुराकर सिर झुका दिया।

अगली सुबह आर्यन ने रसोई में पराठे बनाए। कविता ने बैठते हुए कहा, “कम से कम खाना तो बना लेते हो। घर में रहने वालों को यही तो आना चाहिए।” आर्यन ने शांति से कहा, “जीवन में कोई भी काम छोटा नहीं होता।” मालविका ने अख़बार से नज़रें हटाते हुए कहा, “वैसे भी बाहर की दुनिया तो आपके बस की है नहीं, तो घर के काम ही ठीक हैं।” कविता ने अपनी सहेली से फोन पर मज़ाक उड़ाया, “लगता है तुमने एक अच्छा घरेलू सहायक चुन लिया है, पति के नाम पर।” आर्यन यह सब सुनता, लेकिन कभी जवाब नहीं देता। उसके मन में कोई शिकवा नहीं था, पर भीतर कहीं एक ज्वाला जल रही थी।

रात को जब सब सोते तो आर्यन बालकनी में बैठकर चाँद की रोशनी में कुछ सोचता रहता। कभी-कभी वह एक विशेष नंबर पर फ़ोन करता और सिर्फ इतना कहता, “प्रोजेक्ट ए के डॉक्यूमेंट्स भेजो। कॉन्फिडेंशियल होना चाहिए,” और फिर फ़ोन काट देता।

एक दिन कविता के चेहरे पर चिंता थी। उसकी कंपनी स्काइलिंक के शेयर गिर रहे थे और एक विदेशी कंपनी टेकओवर की कोशिश कर रही थी। मालविका ने चिंतित होकर कहा, “उस घर जमाई को तो बताना भी मत। उसे बिज़नेस की क्या समझ?” आर्यन सब सुन रहा था, पर उसने कुछ नहीं कहा।

 

पार्टी और एक चुनौती

 

विजय शर्मा ने स्काइलिंक के निवेशकों के लिए एक बड़ी बिज़नेस पार्टी रखी। कविता ने आर्यन के लिए फॉर्मल कपड़े दिलवाते हुए कहा, “वरना लोग समझेंगे मैं कोई नौकर लेकर आई हूँ।” पार्टी में जब आर्यन उसके साथ आया, तो कानाफूसी शुरू हो गई। एक उद्योगपति ने व्यंग्य से पूछा, “कविता जी, क्या करते हैं ये?” कविता ने मुस्कुराकर कहा, “कुछ नहीं करते। घर संभालते हैं और हाँ, चाय अच्छी बनाते हैं।” सब हँसने लगे। आर्यन चुपचाप मुस्कुराता रहा, जैसे किसी तूफान का सन्नाटा हो।

पार्टी से लौटने के बाद आर्यन ने कविता से कहा, “अगर चाहो तो मैं स्काइलिंक के मुद्दे में कुछ मदद कर सकता हूँ।” कविता ने तेज़ी से कहा, “मजाक मत करो। यह बिज़नेस है, खाना पकाने जैसा नहीं है।” आर्यन ने धीरे से कहा, “सिर्फ एक मौका दो। बस एक फ़ोन करने देना।” कविता ने मुँह फेर लिया। आर्यन चुपचाप बाहर गया, फ़ोन निकाला और एक नंबर डायल किया। कहा, “फेज वन शुरू कर दो। स्काइलिंक को गिरने नहीं देना है।” फोन कटते ही उसकी आँखों में एक चमक थी। शांत, लेकिन बेहद तेज।

 

सामने आया सच

 

अगली सुबह कविता की नींद किसी डर की वजह से खुली। उसके मोबाइल पर मेल्स और मैसेजेस की भरमार थी। स्काइलिंक के शेयर अचानक ऊपर चले गए थे। जो कंपनी टेकओवर करने वाली थी, उन्होंने खुद ही सौदा रद्द कर दिया था। कविता हैरान थी। उसने आर्यन से पूछा, “तुमने कुछ किया क्या? मेरी कंपनी के लिए?” आर्यन ने बिना उसकी तरफ देखे कहा, “तुमने कहा था मुझे बिज़नेस की समझ नहीं?”

उस रात कविता छत पर अकेली थी। उसका मन अशांत था। उसने खुद से कहा, “अगर यह आर्यन की वजह से हुआ है, तो मैं उसे कभी समझ ही नहीं सकी।” तभी पीछे से आर्यन की आवाज़ आई, “कभी-कभी जिन लोगों को हम सबसे कमज़ोर समझते हैं, वही सबसे गहरे होते हैं।” कविता ने पूछा, “क्यों किया तुमने यह सब? जब मैंने तुम्हें नीचा दिखाया, ताने मारे, तब भी?” आर्यन ने गहरी साँस लेते हुए कहा, “क्योंकि तुम्हारे लिए नहीं, मैं उस सपने के लिए लड़ा जो तुम्हारे साथ मैंने भी देखा था।” कविता की आँखें नम हो गईं।

अगले दिन कविता ने आर्यन के कमरे की अलमारी खोली। वहाँ एक लैपटॉप और कुछ पुरानी फाइलें थीं। लेकिन सबसे ऊपर था एक विजिटिंग कार्ड: आर्यन सिंह राठौर, फाउंडर एंड ग्लोबल डायरेक्टर, राठौर होल्डिंग्स, सिंगापुर

कविता चौंक कर चिल्लाई, “यह क्या है? यह तो एशिया की टॉप निवेशक कंपनी है!” आर्यन कमरे में आते हुए बोले, “जिसे तुम घर जमाई समझती रही, वो असल में तुम्हारे सबसे बड़े रिवॉल्व इन्वेस्टर ग्रुप का मालिक है।” कविता अवाक खड़ी रह गई।

आर्यन ने कहा, “मैं यहाँ दामाद बनकर नहीं आया था, कविता। मैं आया था यह देखने कि तुम सिर्फ दौलत से रिश्ता रखती हो या किसी इंसान से भी।”

मालविका ने गुस्से में कहा, “यह धोखा है!” आर्यन ने शांत स्वर में कहा, “जो सच ना सह सके, वह झूठ के पीछे छुप जाता है। मैंने कुछ नहीं छिपाया। आपने कभी जानने की कोशिश नहीं की।” विजय शर्मा ने दूर से मुस्कुराते हुए कहा, “मैं जानता था बेटा, इसलिए तो तुमसे यह शादी करवाई थी।” मालविका और कविता दोनों हतप्रभ रह गए।

 

प्यार और सम्मान की जीत

 

उस रात कविता चुपचाप रसोई में आर्यन के लिए चाय बना रही थी। उसने धीरे से कहा, “आज पहली बार महसूस हुआ कि तुम सिर्फ मेरे पति नहीं हो, बल्कि मेरी कमजोरी और ताकत दोनों हो।” आर्यन ने मुस्कुराकर कहा, “तो क्या अब मैं सिर्फ चाय बनाने वाला नहीं हूँ?” कविता ने नज़रें नीची करते हुए कहा, “अब मैं चाहती हूँ कि तुम स्काइलिंक के को-ओनर बनो।” आर्यन ने उसका हाथ थामते हुए कहा, “मालिक बनना नहीं चाहता, साथी बनकर रहना चाहता हूँ।” और वहीं से उनकी नफरत से भरी शुरुआत एक भरोसे और प्रेम की नई दिशा में बदल गई।

एक बार फिर शहर के पाँच सितारा होटल में एक बड़ी बिज़नेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया था। इस बार स्काइलिंक की सीईओ कविता शर्मा के साथ उनके पति आर्यन सिंह राठौड़ को भी विशेष अतिथि के रूप में आमंत्रण भेजा गया था। मंच पर आते हुए आर्यन ने शांत लेकिन आत्मविश्वास भरी नज़रों से सभी को देखा और कहा, “मैं जानता हूँ कि बहुत से लोग मुझे उस इंसान के रूप में जानते हैं जो पत्नी के साथ बाइक चला रहा था, चाय बना रहा था और घर के छोटे-मोटे काम कर रहा था। बहुतों ने मुझे ताना मारा, मजाक उड़ाया। पर आज मैं सिर्फ उन्हें जवाब देने नहीं आया हूँ। मैं आज उन सबके सामने खड़ा हूँ जो मानते हैं कि ताकत सिर्फ सूट-बूट, कार और दफ्तरों की दीवारों में होती है।”

“मुझे ख़ुशी है कि मैंने अपने जीवन का सबसे बड़ा निवेश एक इंसान में किया, दौलत में नहीं। कभी-कभी चुप रहकर भी बहुत कुछ कहा जा सकता है। और कभी-कभी किसी की बेइज्जती सह लेना खुद की सबसे बड़ी जीत बन जाती है।”

हॉल में सन्नाटा छा गया। वो लोग जो हँसते थे अब सिर झुकाए बैठे थे। जो मजाक उड़ाते थे अब तालियाँ बजा रहे थे। एक उद्योगपति ने पास वाले से कहा, “हमें समझ ही नहीं आया। वह असली राजा हमारे बीच बैठा था और हम सोच रहे थे कि वह कोई नौसिखिया है।” कविता की आँखों में इस बार शर्म के नहीं, बल्कि गर्व के आँसू थे।

अगली सुबह मालविका ने पूजा कर रहे आर्यन के पास आरती की थाली रख दी और धीरे से कहा, “बेटा, मुझे माफ़ कर दो।” आर्यन ने मुस्कुराकर कहा, “माँ, आपके दिए हुए तानों ने मुझे मजबूत बनाया। इसलिए आपको धन्यवाद देना चाहिए।”

अब कविता और आर्यन साथ-साथ स्काइलिंक और राठौर होल्डिंग्स को संभालते थे। जहाँ कभी एक घर जमाई का ताना लगता था, वहाँ अब लोग कहते थे, “आर्यन जैसा दामाद मिले तो बेटी की किस्मत बन जाती है।” शर्मा परिवार की पहचान अब सिर्फ उनकी दौलत से नहीं, बल्कि उनके दामाद के चरित्र और सोच से होती थी। आर्यन सिंह राठौड़ एक ऐसा नाम बन चुका था जो हर अपमान को ताकत में बदलने की कला जानता था।