बुजुर्ग माँ को भूखा छोड़कर, बेटा-बहू होटल में डिनर करते रहे… फिर जो हुआ, सबके लिए सबक बन गया

“मां की भूख और बेटे की समझ”
जयपुर की एक पॉश कॉलोनी में चमचमाते फ्लैट में रहते थे रवि और पूजा। वहीँ एक छोटे-से कमरे में रहती थी लक्ष्मी देवी—रवि की बूढ़ी मां। उम्र साठ पार, चेहरे पर झुर्रियां, लेकिन आंखों में ममता का वही उजाला जो बचपन में बेटे को स्कूल भेजते समय दिखता था।
लक्ष्मी देवी हर सुबह पूजा करती, रसोई में जाती, बेटे और बहू के लिए नाश्ता बनाती। लेकिन अब किसी को उस नाश्ते का स्वाद नहीं भाता था। रवि जल्दी में रहता, पूजा डाइट चाट का बहाना कर देती। एक दिन मां ने प्यार से कहा, “बेटा, आज तेरी पसंद की दाल चावल बनाए हैं।”
रवि मोबाइल पर नजरें टिकाए बोला, “मां, टाइम नहीं है। मैं बाहर खा लूंगा।”
लक्ष्मी देवी के हाथ वहीं रुक गए, दाल का बर्तन ढक दिया और एक लंबी सांस ली। वह जानती थी पेट की भूख तो होटल में मिट जाती है, लेकिन रिश्तों की भूख का कोई मेन्यू नहीं होता।
शाम को रवि और पूजा होटल से लौटे, बिल की रसीद हाथ में, हंसते हुए बोले, “आज तो खूब मजा आया, होटल रॉयल मील्स का खाना लाजवाब था।”
लक्ष्मी देवी ने मुस्कुरा दिया, “अच्छा किया बेटा, पेट भरकर खा लिया।”
पर किसी ने नहीं पूछा, मां आपने खाया?
वो रसोई में गई, बचे हुए चावल देखे, थोड़ी देर चुप रही, फिर खुद से बोली, “रोटी ठंडी हो गई है, आदत तो पड़ी ही है ठंडा खाने की।”
ठंडी रोटी को पानी में भिगोकर खा लिया, भूख मिट गई, पर मन खाली रह गया।
रात में बिस्तर पर लेटते हुए लक्ष्मी देवी ने सोचा, “क्या सच में अब मेरा होना इस घर में जरूरी नहीं रहा?”
छत पर घूमता पंखा धीरे-धीरे चलता रहा, और वह खामोशी से आंसू पोंछकर सो गई।
अगली सुबह
रवि तैयार हो रहा था। लक्ष्मी देवी ने रसोई से आवाज दी, “बेटा, टिफिन में पराठे रख दिए हैं।”
पूजा ने तुरंत टोका, “मम्मी, ऑयली चीज मत दीजिए। ऑफिस में लोग हंसते हैं।”
लक्ष्मी देवी ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “ठीक है, अगली बार खिचड़ी रख दूंगी।”
पर उनके मन में वो ‘ऑयली’ शब्द जैसे कांटा चुभ गया।
रवि ऑफिस के लिए निकला, मां ने दरवाजे से आवाज दी, “बेटा, शाम को जल्दी आना, बात करनी है।”
रवि ने हंसकर कहा, “जरूर मां,”
पर वो बात कभी नहीं हुई।
शाम को रवि और पूजा ऑफिस पार्टी में चले गए। जाते-जाते बोले, “मां, हमने खाना ऑर्डर कर लिया है, आप खा लेना।”
वो बोली, “बेटा, मैं इंतजार कर लूंगी, साथ खा लेंगे।”
पर दरवाजा बंद होते ही उनके चेहरे की उम्मीद भी बंद हो गई।
रात के 9 बजे रवि और पूजा की हंसी की गूंज फोन पर सुनाई दे रही थी। मां बालकनी में बैठी थी, ठंडी हवा चल रही थी, पेट खाली था। उन्होंने रसोई की ओर देखा, कभी यह रसोई मेरे बच्चों के लिए खुशबू से भर जाती थी, आज उसमें सिर्फ खामोशी थी।
उन्होंने चाय बनाई, पर बिना दूध की। भगवान की मूर्ति से बोली, “हे प्रभु, मैंने तो बेटे की खुशियों में अपनी भूख भुला दी, पर अब लगता है मेरी थाली में सिर्फ सन्नाटा रह गया है।”
रात के 11 बजे दरवाजा खुला। रवि और पूजा अंदर आए, बोले, “मां आपको जगाया तो नहीं?”
मां ने कहा, “नहीं बेटा, मैं सोई कहां हूं?”
पूजा ने कहा, “मम्मी, आज खाना बहुत टेस्टी था, कभी वहां चलिएगा।”
मां ने धीमे स्वर में कहा, “जरूर बेटा, जब वक्त मिले।”
रसोई में जाकर गैस बंद की, लाइट ऑफ की और डायरी में लिखा—
“भूख रोटी की नहीं थी, अपनापन की थी। आज फिर खाना बच गया, शायद अब मैं भी बची रह गई हूं।”
वो रात बहुत लंबी थी। कमरे की घड़ी टिकटिक करती रही, मां की आंखों से आंसू टपकते रहे, धीरे-धीरे बिना आवाज के।
कुछ दिन बाद
रवि फोन पर व्यस्त, पूजा मेकअप में, मां रसोई में चाय बनाती हुई। कप पर उनके हाथ कांप रहे थे, पर आवाज में सुकून था।
“बेटा, चाय में चीनी ठीक है?”
रवि ने जवाब दिया, “मां, आपको ही पता होगा।”
मां मुस्कुराई, “हां बेटा, मुझे ही पता है कौन कितना मीठा चाहता है और कौन कड़वा।”
उन्होंने चाय का कप मेज पर रखा और पहली बार बिना कुछ कहे अपने कमरे में चली गई।
भगवान की मूर्ति के पास बैठी और कहा, “अगर मेरा होना अब किसी को बोझ लगता है, तो मुझे खुद को हल्का करना होगा।”
वह उठीं, अलमारी खोली, पुराने कपड़े निकाले, एक छोटा सा बैग तैयार किया, उसमें कुछ कपड़े, डायरी और बेटे की बचपन की तस्वीर रखी।
धीरे से बोली, “अब वक्त है कि मैं अपनी जगह किसी नई याद को दे दूं।”
फिर वो खिड़की से बाहर देखती रही। रवि और पूजा गाड़ी में बैठ रहे थे, हंसते हुए कहीं जा रहे थे।
मां की आंखें अब स्थिर थीं—ना शिकायत, ना गुस्सा, बस सन्नाटा।
वो बोली, “शायद अब चुप रहना ही मेरी आखिरी भाषा है।”
और वह चुप्पी उस घर की दीवारों में गूंज गई।
अगली सुबह
रवि और पूजा तैयार होकर ऑफिस जा रहे थे।
मां ने कहा, “बेटा, 2 मिनट बैठो, कुछ बात करनी थी।”
रवि ने घड़ी देखी, “मां, देर हो रही है, शाम को बात करते हैं।”
पूजा ने भी कहा, “मम्मी, आप परेशान मत हुआ कीजिए, सब ठीक है।”
लक्ष्मी देवी मुस्कुरा दी, “हां बेटा, सब ठीक है, बस अब मुझे भी ठीक होना है।”
उनकी मुस्कान के पीछे जो खालीपन था, उसे किसी ने नहीं देखा।
रवि और पूजा गाड़ी में बैठ गए, दरवाजा बंद हुआ और घर एकदम शांत हो गया।
लक्ष्मी देवी धीरे-धीरे अपने कमरे में गईं, भगवान की मूर्ति के आगे दीपक जलाया और कहा, “हे प्रभु, मैं जा रही हूं। कहीं ऐसी जगह, जहां मेरा होना किसी को बोझ ना लगे।”
उन्होंने अपनी पुरानी साड़ी पहनी, बैग उठाया और घर के हर कोने को देखा।
वह दीवारें जिन पर कभी रवि की बचपन की तस्वीरें टंगी थीं, अब बस सजावट बनकर रह गई थीं।
रसोई जहां कभी बेटे की पसंद का खाना बनाती थी, अब एक बंद कमरा बन चुका था।
उन्होंने एक पन्ने पर लिखा—
“मैं थोड़ी दूरी पर जा रही हूं बेटा, ताकि तुम्हें मेरे होने की कीमत समझ आए। अपना ख्याल रखना और बहू का भी। मां कहीं जाती नहीं, बस कहीं छुप जाती है, ताकि बेटा उसे ढूंढ सके।”
वह पन्ना भगवान की मूर्ति के नीचे रख दिया और घर का दरवाजा धीरे से बंद कर दिया।
वृद्धाश्रम की ओर
वह सड़क पर उतरी। सूरज तेज था, चेहरे पर शांति थी।
ऑटो वाला बोला, “कहां चलिए अम्मा?”
वो बोली, “जहां जरूरत हो वहां।”
ऑटो चालक ने कहा, “माता जी, पास में एक वृद्धाश्रम है।”
लक्ष्मी देवी ने सिर हिला दिया, “हां बेटा, वही ले चलो।”
वृद्धाश्रम में पहुंचकर उन्होंने कहा, “बेटा, यहां कुछ काम मिल सकता है क्या?”
मैनेजर ने पूछा, “आप रहने आई हैं?”
मां ने कहा, “रहना तो हर कोई चाहता है बेटा, पर मैं सेवा करना चाहती हूं।”
आश्रम की महिलाएं उनसे मिलीं। कोई विधवा थी, कोई अनाथ। सबकी आंखों में अकेलापन था।
पर उस दिन पहली बार वह अकेलापन मुस्कुरा उठा क्योंकि लक्ष्मी देवी वहां आई थी।
उन्होंने रसोई संभाली, खाना बनाते हुए बोली, “भूख सिर्फ पेट की नहीं होती, रिश्तों की भी होती है।”
सभी महिलाएं उन्हें ‘मांझी’ कहने लगीं।
घर में खालीपन
उधर घर में शाम हो चुकी थी। रवि ने दरवाजा खोला, मां कोई जवाब नहीं। रसोई में सन्नाटा, कमरे में दिया जल रहा था। मूर्तियों के पास एक पन्ना रखा था।
रवि ने उठाकर पढ़ा—
“मैं थोड़ी दूरी पर जा रही हूं बेटा, ताकि तुम्हें मेरे होने की कीमत समझ आए।”
रवि के हाथ कांप गए, आंखों से आंसू छलक पड़े।
पूजा बोली, “मां घर छोड़ गई?”
रवि ने सिर पकड़ लिया, “क्योंकि हमने कभी पूछा ही नहीं, मां आपने खाया या नहीं?”
पूरे घर में जैसे शोर मच गया, पर वो शोर अब सन्नाटे से भी ज्यादा भारी था।
अगले दिन रवि ने पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट दर्ज कराई, मोहल्ले में सबको बताया।
तीन दिन बीत गए, हर रात रवि बालकनी में बैठा रहता। उसे बस मां की आवाज याद आती, “बेटा, चाय में चीनी ठीक है?”
मां की रसोई
चौथे दिन रवि ऑफिस नहीं गया। सुबह अखबार खोला, एक कोने में छोटी सी खबर थी—
“स्थानीय वृद्धाश्रम में रहने वाली महिला ने मां की रसोई शुरू की, हर दिन गरीबों को भोजन।”
रवि ने अखबार पर उंगली रखी, आंखें फैल गईं—वो तस्वीर, वही साड़ी, वही मुस्कान। वो उसकी मां थी।
रवि ने पूजा की ओर देखा, “देखो, यही तो है मां।”
पूजा ने अखबार देखा और धीरे से बोली, “कितनी शांति है उनके चेहरे पर।”
रवि ने कहा, “वो शांति हमने कभी दी ही नहीं।”
बिना देर किए रवि गाड़ी लेकर आश्रम पहुंचा।
अंदर बच्चों की हंसी गूंज रही थी, रसोई से खिचड़ी की खुशबू आ रही थी।
लक्ष्मी देवी वही थी, सादे कपड़ों में, हाथ में चम्मच, चेहरे पर वही पुरानी ममता।
रवि कुछ पल दरवाजे पर खड़ा रहा, फिर धीरे-धीरे अंदर आया।
मां ने देखा, उनकी आंखों में आंसू छलक आए, पर आवाज में वही सुकून था, “आ गए बेटा?”
रवि घुटनों पर गिर गया, “मां, मुझे माफ कर दो।”
लक्ष्मी देवी ने उसके सिर पर हाथ रखा, “माफी कैसी बेटा? मां तो हमेशा इंतजार करती है, बस तू लौट आए, यही काफी है।”
पूजा भी पास खड़ी थी, उसकी आंखों में शर्म और पछतावा दोनों थे।
वो बोली, “मां, मैंने आपको समझा नहीं।”
लक्ष्मी देवी मुस्कुराई, “कोई बात नहीं, अब समझ लिया, यही सबसे बड़ी जीत है।”
रवि बोला, “चलो मां, घर चलो, अब सब ठीक कर दूंगा।”
लक्ष्मी देवी ने कहा, “नहीं बेटा, अब मेरा घर यहीं है, जहां भूख मिटती है—सिर्फ पेट की नहीं, दिलों की भी।”
रवि कुछ बोल नहीं सका, बस मां का हाथ अपने सिर पर रख लिया।
वो महसूस कर रहा था, उस हाथ में कोई शिकायत नहीं, बस सुकून था जो अब तक उसने कहीं नहीं पाया था।
शाम तक रवि वही रहा, लोगों को खाना परोसता रहा और हर कौर के साथ उसके अंदर कुछ पिघलता रहा।
उसने मां से कहा, “मां, मैं हर दिन यहां आऊंगा, क्योंकि अब मुझे पता चल गया है—भूख सिर्फ पेट की नहीं होती।”
लक्ष्मी देवी ने सिर पर हाथ रखा, “देर से सही बेटा, तूने मां की कीमत समझ ली।”
रवि की बदलती दुनिया
अगले दिन रवि फिर से आश्रम पहुंचा।
इस बार उसके हाथ में गुलाब के फूल थे और दिल में एक नई इज्जत अपनी मां के लिए।
लक्ष्मी देवी पहले ही रसोई में व्यस्त थी, कढ़ाई में दाल उबल रही थी, बगल में कुछ बूढ़ी महिलाएं सब्जी काट रही थी, कोने में बच्चे हंसते हुए थाली धो रहे थे।
पूरा माहौल किसी मंदिर जैसा लग रहा था।
रवि ने भीतर आते हुए कहा, “मां, मैं मदद कर दूं?”
लक्ष्मी देवी मुस्कुरा उठीं, “अरे बैंक मैनेजर अब रसोई में आएगा?”
रवि ने जवाब दिया, “हां मां, अब बैंक से ज्यादा जरूरी तो यही जगह है।”
वो रसोई में बैठ गया, सारे बर्तन मांझने लगा।
बाकी महिलाएं हंस पड़ीं, “देखो, मांझी का बेटा भी सेवा में लग गया।”
लक्ष्मी देवी ने कहा, “बेटा, जो झुकना सीख जाए, वो रिश्तों को संभालना भी सीख जाता है।”
रवि ने सिर झुका लिया, “मां, शायद मुझे बहुत देर से यह समझ आया।”
कुछ दिनों बाद रवि रोज काम से निकलते ही आश्रम पहुंचने लगा।
वो बच्चों को कॉपियां लाता, बुजुर्गों के लिए दवा लाता और मां के साथ खाना परोसता।
वह देखता, मां हर थाली में रोटी नहीं, आशीर्वाद परोसती थी।
मां की रसोई का नाम
एक दिन एक पत्रकार आश्रम आया, उसने मां से पूछा, “मांझी, आपने यह मां की रसोई कैसे शुरू की?”
लक्ष्मी देवी ने मुस्कुराकर कहा, “बेटा, जब घर में मेरी थाली खाली रह जाती थी, तब मैंने सोचा, क्यों ना किसी और की थाली भर दूं।”
वह शब्द सुनकर रवि की आंखें भीग गईं।
पत्रकार ने कहा, “मांझी, आपका बेटा तो बहुत भाग्यशाली है।”
मां ने जवाब दिया, “हां बेटा, अब है, पहले नहीं था, क्योंकि वह अपनी मां की भूख पहचान नहीं पाया था।”
उस दिन अखबार में बड़ी हेडलाइन छपी—”मां की रसोई: एक वृद्धा का प्रेम जिसने सैकड़ों पेट भर दिए।”
पूरा शहर उस आश्रम में आने लगा, लोग दान देने लगे, बच्चे मां का आशीर्वाद लेने लगे।
हर कोई कहता, “लक्ष्मी देवी जैसी मां फिर कहीं नहीं मिलेगी।”
पूजा का बदलाव
उधर पूजा के भीतर भी बदलाव आने लगा।
वह अब अक्सर रवि के साथ आश्रम जाने लगी।
वहां जाकर वह मां के साथ खाना परोसती और उनकी आंखों में वही अपनापन ढूंढती जिसे उसने कभी खुद से दूर कर दिया था।
एक दिन जब सब लोग जा चुके थे, पूजा ने मां से कहा, “मां, क्या आप मुझे माफ कर सकती हैं?”
लक्ष्मी देवी ने कहा, “बेटी, मां कभी नाराज नहीं होती, बस चुप हो जाती है ताकि बच्चे खुद समझे।”
पूजा के आंसू झरने लगे, “काश, मैंने यह पहले समझ लिया होता।”
मां ने उसके सिर पर हाथ रखा, “अब समझ गई, बस यही काफी है।”
मां की रसोई का एक साल
कुछ दिनों बाद मां की रसोई का एक साल पूरा हुआ।
आश्रम में समारोह रखा गया, पूरा शहर इकट्ठा हुआ।
स्टेज पर मां को सम्मानित किया गया, “जयपुर की करुणा मां” के नाम से।
रवि मंच पर गया, माइक पकड़ा और कहा, “आज मैं अपने जीवन की सबसे बड़ी गलती स्वीकार करना चाहता हूं। मैंने उस मां को अनदेखा किया जिसने मुझे जीना सिखाया। आज अगर मैं सांस ले पा रहा हूं तो उसी मां की दुआओं से।”
पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा।
मां ने सिर झुका लिया, उनकी आंखों से आंसू बहे, लेकिन अब वह आंसू दर्द के नहीं, संतोष के थे।
रवि ने मां के पांव छुए और कहा, “मां, मैं आपका सपना आगे बढ़ाऊंगा, हर शहर में मां की रसोई खोलूंगा।”
मां ने कहा, “बेटा, यह रसोई मेरा सपना नहीं, मेरी तड़प की परिणति है। अगर किसी मां का बेटा किसी और की भूख मिटा दे तो वही असली सेवा है।”
रवि का वादा
रवि ने बैंक से विशेष योजना बनाई, “मां की रसोई ट्रस्ट” के लिए सभी सहयोगियों ने दान दिया और देखते ही देखते मां की रसोई जयपुर से निकलकर अजमेर, कोटा और जोधपुर तक फैल गई।
हर जगह लोग कहते, “यह रसोई नहीं, दुआओं की थाली है।”
लक्ष्मी देवी अब ज्यादा उम्रदराज हो गई थी, पर उनका चेहरा पहले से ज्यादा शांत दिखता था।
वह रोज कहती, “भगवान ने मुझे देर से समझा बेटा दिया, लेकिन दिल का बहुत अच्छा दिया।”
रवि अब हर रविवार वहां जाता, मां के बगल में बैठकर खाता और हर बार पूछता, “मां, चाय में चीनी ठीक है?”
मां हंसती, “अब तो हर चीज में मिठास है बेटा।”
अंतिम समय
एक दिन टीवी चैनल से पत्रकार आया, उसने मां से पूछा, “मांझी, अब आपको कैसा लगता है?”
मां ने कहा, “पहले मैं भूखी रहती थी, अब सैकड़ों के पेट भरते देखती हूं। पहले बेटा दूर था, अब हर भूखा बेटा मेरा है। इससे बड़ी दौलत कोई नहीं।”
रवि वही खड़ा सुन रहा था, उसकी आंखें नम थी, पर दिल भरा हुआ था।
उसने मन ही मन कहा, “मां, अब समझ आया, भूख रोटी से नहीं मिटती, वो मिटती है अपनापन से।”
उस दिन जब मां ने आरती उतारी, रवि उनके पास बैठा रहा। दीपक की लौ हवा में डोल रही थी, पर उस लौ में एक चमक थी जो मां की आत्मा की रोशनी बन चुकी थी।
रवि ने मां का हाथ थामा और कहा, “मां, अब मैं आपके हर सपने को पूरा करूंगा।”
लक्ष्मी देवी ने धीरे से मुस्कुराते हुए कहा, “बस एक सपना बचा है बेटा, कि जब मैं ना रहूं, तू किसी और मां को कभी भूखा ना रहने दे।”
रवि ने सिर झुका लिया, “वादा है मां।”
मां ने मुस्कुराते हुए उसका सिर सहलाया, जैसे वर्षों पुराना बोझ उनके दिल से उतर गया हो।
मां की विदाई
कमरे में आरती की घंटियां गूंज रही थी, दीपक की लौ धीरे-धीरे कांप रही थी, बाहर बारिश की हल्की बूंदे गिरने लगी थी।
उस रात रवि देर तक मां के पास बैठा रहा। मां कभी उससे बातें करती, कभी भगवान की मूर्ति की ओर देखती और कहती, “अब तसल्ली है बेटा, जो खालीपन मैंने सालों झेला, वो अब सैकड़ों थालियों में भर चुका है।”
रवि ने मां के पांव दबाते हुए कहा, “मां, अब आपको किसी चीज की जरूरत नहीं पड़ेगी।”
लक्ष्मी देवी ने हंसते हुए कहा, “अरे पगले, मां को जरूरतें नहीं होती, बस बच्चे का अपनापन चाहिए होता है।”
उनकी आवाज धीमी हो गई थी। रवि ने महसूस किया, उनके हाथ अब ठंडे पड़ रहे हैं, चेहरे पर शांति थी, मगर सांसे हल्की।
डॉक्टर को बुलाया गया, उसने कहा, “इनका शरीर बहुत कमजोर हो गया है, पर इनका दिल अब भी मजबूत है।”
अगले कुछ दिनों में लक्ष्मी देवी की तबीयत गिरती चली गई।
वह बोलती कम, मुस्कुराती ज्यादा थी।
हर सुबह रसोई में जाकर कहती, “आज जरा ज्यादा बनाओ बेटा, कितने नए लोग आए हैं खाने।”
डॉक्टर मना करता, पर वो कहती, “जब तक ये हाथ चल रहे हैं, मैं भूख से किसी को रुलाऊंगी नहीं।”
एक दिन रवि ने उन्हें समझाया, “मां, अब आप आराम कर लीजिए।”
वह बोली, “बेटा, मां तब तक आराम नहीं करती जब तक बच्चे तृप्त रहें।”
रवि कुछ नहीं बोल सका।
फिर एक सुबह आश्रम के आंगन में सूरज उगा, पंछियों की चहचहाहट थी, और मां खिड़की के पास बैठी थी।
उन्होंने आसमान की ओर देखा और कहा, “लगता है अब बुलावा आ गया है।”
रवि ने घबराकर कहा, “मां, ऐसी बातें मत कीजिए।”
मां ने मुस्कुरा कर कहा, “डर मत बेटा, मैं जा नहीं रही, बस जगह बदल रही हूं। अब तेरी हर रसोई में, हर थाली में रहूंगी।”
वो धीरे से आंखें बंद कर लेती है, उनके होठों पर हल्की मुस्कान थी, चेहरा शांत दीपक की तरह दमक रहा था।
रवि ने उनका हाथ थामा, लेकिन अब वो हाथ ठंडा हो चुका था।
“मां, मां उठो ना।” रवि की आवाज कांप रही थी।
पूजा भी दौड़ कर आई। दोनों ने मां को सीने से लगा लिया, पर वह शांति अब अमर हो चुकी थी।
पूरा आश्रम रो पड़ा, हर बच्चे, हर वृद्धा, हर स्वयंसेवक की आंखों से आंसू बहे।
किसी ने कहा, “आज मां की रसोई सच में अनाथ हो गई।”
पर रवि ने सिर उठाकर कहा, “नहीं, मां कहीं नहीं गई, अब हर भूखी थाली में रहेंगी।”
अंतिम यात्रा और विरासत
तीन दिन बाद पूरा शहर उनकी अंतिम यात्रा में उमड़ पड़ा।
कंधे पर फूलों से सजी अर्थी थी, लोग नारे लगा रहे थे, “जयपुर की मां अमर रहे, मां की रसोई अमर रहे।”
रवि ने चिता के पास जाकर कहा, “मां, तुमने जो सिखाया, अब वही मेरा धर्म है।”
मां की अस्थियां विसर्जित करने के बाद रवि सीधा आश्रम लौटा।
उसने मां की कुर्सी के सामने दीपक रखा और कहा, “अब यह रसोई तुम्हारे नाम नहीं, तुम्हारे सिद्धांत के नाम पर चलेगी।”
उसने बोर्ड पर लिखा, “मां की रसोई—भूख मिटाने से पहले दिलों को छूना जरूरी है।”
धीरे-धीरे पूरे देश में मां की रसोई फैल गई।
हर शहर, हर मोहल्ले में एक जगह बनी, जहां कोई भूखा नहीं सोता था।
हर जगह मां की तस्वीर लगी थी—सफेद साड़ी, झुर्रियों में छिपी मुस्कान और नीचे लिखा था, “भूख रोटी की नहीं, अपनापन की होती है।”
रवि अब एक बदला हुआ इंसान था।
वो अब लोगों के लिए जीता था।
हर रविवार आश्रम आता, मां के कमरे में दीपक जलाता और वही पुरानी आवाज सुनाई देती, “बेटा, चाय में चीनी ठीक है?”
रवि हंसता और कहता, “अब सब कुछ ठीक है मां।”
कहानी का संदेश
वह रोज बच्चों को समझाता, “मां को कभी अनसुना मत करना। जब वह चुप हो जाए, समझ लेना वह रो रही है।”
पूरे देश में मां की रसोई दिवस मनाया गया।
सरकार ने लक्ष्मी देवी को मरणोपरांत राष्ट्र सेवा सम्मान दिया।
रवि ने मंच पर जाते हुए कहा, “यह सम्मान मेरी नहीं, हर उस मां की जीत है जो खुद भूखी रहकर भी बच्चों की थाली भरती है।”
हॉल तालियों से गूंज उठा।
मंच से उतरते हुए रवि ने आसमान की ओर देखा,
जहां बादलों के बीच से एक किरण सी मुस्कुरा रही थी।
वो जैसे कह रही थी, “बेटा, अब तू भूखा नहीं है, क्योंकि तूने दिल से देना सीख लिया है।”
रवि की आंखों से आंसू बहे, पर इस बार वो आंसू दुख के नहीं, एक सुकून के थे।
मां का कर्ज आखिर उसने चुका दिया था।
दोस्तों, मां की कीमत पैसे से नहीं, उसके मौन से समझो। जब तक वह बोलती है, डांटती है, तब तक वह तुम्हारे साथ है। पर जब वह चुप हो जाए तो समझ लेना, वो तुमसे नहीं, तुम्हारी दूरी से लड़ रही है।
क्या आप भी अपनी मां की चुप्पी को सिर्फ खामोशी समझते हैं या कभी उस मौन में छिपे दर्द को महसूस किया है?
अगर कहानी ने दिल छू लिया हो, तो शेयर करें, कमेंट करें और चैनल को सब्सक्राइब जरूर करें।
मिलते हैं अगले वीडियो में।
समाप्त
News
कॉलेज में साथ पढ़ने वाला || करोड़पति लड़का 2 साल बाद ऑटो चलाता मिला आखिर क्यों
कॉलेज में साथ पढ़ने वाला || करोड़पति लड़का 2 साल बाद ऑटो चलाता मिला आखिर क्यों पूरी कहानी: आकांक्षा और…
सड़क पर भूख से बेहोश पड़ी गरीब लड़की, फिर एक करोड़पति ने मदद की फिर जो हुआ…
सड़क पर भूख से बेहोश पड़ी गरीब लड़की, फिर एक करोड़पति ने मदद की फिर जो हुआ… सड़क पर मिली…
किराए के फ्लैट में || कार मैकेनिक के पास रात में पहुंची मकान मालिक की खूबसूरत बेटी
किराए के फ्लैट में || कार मैकेनिक के पास रात में पहुंची मकान मालिक की खूबसूरत बेटी एक रात, एक…
मेम आपको अपने पिता की कसम है मुझे फ़ैल मत करना , आंसर शीट पर बच्चे ने जो लिखा पढ़कर टीचर के होश उड़
मेम आपको अपने पिता की कसम है मुझे फ़ैल मत करना , आंसर शीट पर बच्चे ने जो लिखा पढ़कर…
एयरहोस्टेस ने बुज़ुर्ग महिला को धक्का दिया… 5 मिनट बाद Airline बंद हो गई
एयरहोस्टेस ने बुज़ुर्ग महिला को धक्का दिया… 5 मिनट बाद Airline बंद हो गई इंसानियत की असली उड़ान” प्रस्तावना सुबह…
किसान ने अपनी जमीन गिरवी रख कर एक अनाथ लड़की की शादी कराई, फिर लड़की का पति IAS अफसर बनकर लौटा
किसान ने अपनी जमीन गिरवी रख कर एक अनाथ लड़की की शादी कराई, फिर लड़की का पति IAS अफसर बनकर…
End of content
No more pages to load






