बूढ़े ने रास्ते में खोये हुए रोते बच्चे को घर छोड़ा, मगर अगले दिन कुछ ऐसा हुआ कि उसकी किस्मत चमक उठी

दिल्ली की सर्द रातों में हरिया की कहानी

दिल्ली की सर्द रातें हमेशा कुछ अलग होती हैं। कोहरे में डूबी गलियां, पुरानी हवेलियों की कहानियां और मॉडर्न मेट्रो की रफ्तार, सब एक साथ टकराते हैं। इन्हीं गलियों के बीच, एक बूढ़ा इंसान, हरिया, अपनी सादगी और मेहनत से जिंदगी जी रहा था। उम्र 70 के पार, कमर झुकी हुई, मगर दिल जवान। चांदनी चौक की गलियों में उसकी एक छोटी सी चाय की दुकान थी। उसका सपना बस इतना था कि अपने पोते सोनू की पढ़ाई पूरी करवाए और उसकी शादी देखे।

हरिया का घर पुरानी दिल्ली की तंग गलियों में था। वहां उसका पोता सोनू और बहू कमला रहते थे। बेटे की मौत के बाद हरिया ने ही परिवार की जिम्मेदारी संभाली थी। कमला बीमार रहती थी, सोनू स्कूल जाता था। हरिया की सारी कमाई सोनू की फीस और कमला की दवाइयों में चली जाती। फिर भी वह हमेशा मुस्कुराता और कहता, “जब तक मेरे हाथ चलते हैं, मेरे सोनू को कोई कमी नहीं होगी।”

एक जनवरी की सर्द रात थी। दिल्ली की सड़कें कोहरे से ढकी थीं। चांदनी चौक की दुकानें जल्दी बंद हो रही थीं। हरिया अपनी दुकान समेट रहा था। उसने चूल्हा बुझाया, साइकिल उठाई और घर की ओर चल पड़ा। तभी अचानक उसे बच्चे के रोने की आवाज आई। सड़क के किनारे, स्ट्रीट लैंप के नीचे, एक छोटा सा बच्चा बैठा था। उम्र लगभग छह-सात साल। फटा स्वेटर, ठंड से कांपता हुआ।

हरिया उसके पास गया। “बेटा, तू यहां अकेला क्या कर रहा है?” बच्चे ने रोते हुए कहा, “मैं अपनी मम्मी से बिछड़ गया हूँ, मुझे घर जाना है।” हरिया का दिल पसीज गया। उसने अपनी शाल बच्चे को ओढ़ाई। “रो मत बेटा, तेरा नाम क्या है?” “विक्की,” बच्चे ने सुबकते हुए कहा। “घर कहाँ है?” “पहाड़गंज, गली नंबर तीन।” हरिया ने एक पल सोचा, पहाड़गंज उसकी राह से थोड़ा दूर था, रात गहरी हो रही थी, मगर बच्चे की हालत देखकर वह रुक नहीं सका।

हरिया ने विक्की को अपनी साइकिल के पीछे बिठाया और पहाड़गंज की ओर चल पड़ा। कोहरा इतना घना था कि सड़कें मुश्किल से दिख रही थीं। रास्ते में वह विक्की से बात करता रहा ताकि उसका डर कम हो। “बेटा, तू स्कूल जाता है?” “हाँ अंकल, मगर आज मैं मम्मी के साथ बाजार गया था, खो गया।” “कोई बात नहीं, अब तू घर पहुँच जाएगा।”

आधे घंटे बाद वे पहाड़गंज की गली नंबर तीन पहुँचे। वहाँ एक छोटे से मकान के सामने एक औरत घबराई हुई खड़ी थी। विक्की ने उसे देखते ही चिल्लाया, “मम्मी!” औरत दौड़ कर आई और विक्की को गले लगा लिया। “विक्की, तू कहाँ चला गया था?” उसकी आँखें आँसुओं से भरी थीं। हरिया ने साइकिल खड़ी की। “मैडम, यह रास्ते में रो रहा था, मैं इसे घर छोड़ने आया।” औरत ने हरिया की ओर देखा, “आपने मेरे बेटे को बचाया, मैं आपकी जिंदगी भर आभारी रहूँगी।” हरिया ने सिर झुकाया, “कोई बात नहीं मैडम, बच्चे भगवान का रूप होते हैं।”

औरत ने अपना पर्स निकाला, “कृपया कुछ पैसे ले लीजिए।” हरिया ने मना कर दिया, “नहीं मैडम, यही मेरे लिए काफी है।” उसने विक्की का माथा चूमा और साइकिल लेकर घर चला गया।

घर पहुँचकर उसने कमला और सोनू को सारी बात बताई। कमला ने कहा, “बाबा, तूने बहुत अच्छा किया, मगर तुझे पैसे लेने चाहिए थे, मेरी दवाइयाँ खत्म हो रही हैं।” हरिया ने हँसकर कहा, “पैसे तो फिर कमा लेंगे, मगर उस माँ की आँखों में जो सुकून था, वो मेरी सबसे बड़ी कमाई है।” सोनू ने उत्सुकता से पूछा, “दादा जी, वो बच्चा ठीक है ना?” “हाँ बेटा, अब वो अपनी मम्मी के पास है।”

उस रात हरिया का मन सुकून से भरा था। उसने सोचा, शायद उसकी यह नेकी सोनू के लिए दुआ बन जाएगी। मगर उसे नहीं पता था कि उसकी किस्मत अगले दिन एक नया मोड़ लेने वाली थी।

अगली सुबह हरिया अपनी चाय की दुकान पर पहुँचा। वह चूल्हा जला रहा था, जब एक काली कार उसकी दुकान के सामने रुकी। उसमें से एक अधेड़ उम्र का आदमी और वही औरत, जो विक्की की माँ थी, उतरे। औरत ने हरिया को देखते ही हाथ जोड़े, “बाबा, आपने कल मेरे बेटे की जान बचाई।” हरिया ने सिर झुकाया, “मैडम, मैंने तो वही किया जो सही था।”

आदमी ने आगे बढ़कर कहा, “मैं राजेश मेहरा हूँ, विक्की का पिता। मैं तुझसे मिलना चाहता था।” हरिया ने सावधानी से पूछा, “साहब, सब ठीक है ना?” राजेश की आँखें नम हो गईं, “हाँ बाबा, मगर तूने जो किया, वो कोई साधारण इंसान नहीं कर सकता। मैं तुझसे कुछ कहना चाहता हूँ।”

राजेश ने शुरू किया, “कल रात जब विक्की खो गया, मेरी पत्नी अनीता टूट चुकी थी। हमने उसे हर जगह ढूँढा, अगर तू उसे घर न पहुँचाता तो शायद हम उसे खो देते।” अनीता ने कहा, “बाबा, मैंने तेरे बारे में पूछा, मुझे पता चला कि तू अपनी बहू की दवाइयों और पोते की पढ़ाई के लिए मेहनत करता है। मैं चाहती हूँ कि तेरा सपना पूरा हो।”

हरिया ने हैरानी से पूछा, “मैडम, मेरा सपना?” राजेश ने मुस्कुराकर कहा, “हाँ बाबा, मैं एक बिजनेसमैन हूँ। मैं तेरे पोते सोनू की पढ़ाई का सारा खर्च उठाऊँगा और तेरी बहू का इलाज मेरे दोस्त जो डॉक्टर हैं, मुफ्त करेंगे।” हरिया की आँखें भर आईं। उसने उनके पैर छूने की कोशिश की, मगर राजेश ने उसे रोक लिया, “बाबा, यह मेरा धन्यवाद है। मगर एक और बात है।”

अनीता ने कहा, “हम एक स्कूल चलाते हैं जहाँ गरीब बच्चे पढ़ते हैं। मैं चाहती हूँ कि तू वहाँ बच्चों को अपनी कहानियाँ सुनाए। तेरी सादगी और नेकी उन्हें सही रास्ता दिखा सकती है।” हरिया का गला भर आया, “मैडम, मैं तैयार हूँ।”

मगर कहानी अभी खत्म नहीं हुई थी। अनीता और राजेश की सच्चाई में एक और राज था और हरिया की नेकी का इनाम अभी पूरा नहीं हुआ था।

अगले दिन हरिया राजेश और अनीता के स्कूल पहुँचा। स्कूल पहाड़गंज के पास एक साधारण इमारत में था, मगर इसका आँगन बच्चों की हँसी और किताबों की खुशबू से भरा था। दीवारों पर रंग-बिरंगी पेंटिंग्स थीं, एक कोने में बच्चे कविताएँ पढ़ रहे थे। अनीता ने हरिया का स्वागत किया, “बाबा, आज से तू हमारे स्कूल का हिस्सा है। बच्चों को तेरी कहानियाँ सुनने का इंतजार है।”

हरिया ने सिर झुकाया, “मैडम, मैं तो बस एक चाय वाला हूँ, क्या मेरी कहानियाँ बच्चों को पसंद आएँगी?” अनीता ने मुस्कुराकर कहा, “बाबा, तेरी सादगी और नेकी ही सबसे बड़ी कहानी है, बस उन्हें सच बोल।”

हरिया ने स्कूल में बच्चों से मुलाकात की, अपनी जिंदगी की कहानी सुनाई। कैसे वह चांदनी चौक में चाय बेचता था, कैसे उसने अपने बेटे को खोया और कैसे उसने एक रोते बच्चे को घर पहुँचाया। बच्चे उसकी बातें सुनकर मंत्रमुग्ध हो गए। एक बच्चे ने पूछा, “दादा जी, आपने विक्की को क्यों बचाया?” हरिया ने हँसकर कहा, “बेटा, क्योंकि बच्चे भगवान का रूप होते हैं। उनकी मुस्कान मेरी सबसे बड़ी दौलत है।”

बच्चों ने तालियाँ बजाईं। हरिया का मन सुकून से भर गया। उस दिन से वह हर हफ्ते स्कूल जाता और बच्चों को अपनी कहानियाँ सुनाता। उसकी सादगी और ईमानदारी ने ना सिर्फ बच्चों बल्कि शिक्षकों का भी दिल जीत लिया।

इस बीच राजेश ने अपने वादे पूरे किए। सोनू को दिल्ली के एक अच्छे स्कूल में दाखिल करवाया गया और कमला का इलाज शुरू हो गया। डॉक्टरों ने बताया कि कमला की बीमारी शुरुआती अवस्था में थी और सही इलाज से वह पूरी तरह ठीक हो सकती थी।

हरिया की चाय की दुकान अभी भी चल रही थी, मगर अब उसकी कमाई का बोझ कम हो गया था। वह हर रात सोनू और कमला के साथ हँसी-खुशी बिताता।

मगर एक दिन अनीता ने हरिया को अपने घर बुलाया। वहाँ राजेश और एक और आदमी था, जिसकी उम्र करीब 60 थी। अनीता का चेहरा गंभीर था। “बाबा, हमें तुझसे कुछ जरूरी बात करनी है।” हरिया ने सावधानी से पूछा, “मैडम, सब ठीक है ना?” अनीता ने गहरी साँस ली, “बाबा, ये मेरे पिता सुरेश जी हैं। मैंने तुझसे पूरी सच्चाई नहीं बताई। हमारा स्कूल सिर्फ बच्चों को पढ़ाने के लिए नहीं है, यह उन बच्चों के लिए है जो सड़कों पर खो जाते हैं या जिन्हें उनके परिवार छोड़ देते हैं।”

सुरेश ने शुरू किया, “हरिया, 30 साल पहले मैंने अपनी एक गलती से अपने बेटे को खो दिया। वह सिर्फ 5 साल का था। मैंने उसे एक मेले में छोड़ दिया क्योंकि मैं उसकी जिम्मेदारी नहीं उठा सकता था। सालों बाद मुझे पता चला कि वह जिंदा है।” हरिया का दिल जोर से धड़का, “साहब, आपका बेटा?” अनीता ने कहा, “बाबा, मेरे पिता का बेटा वह राजेश है। पिताजी ने सालों बाद उसे ढूँढा, मगर तब तक राजेश एक अनाथालय में पल चुका था। हमने यह स्कूल उनके लिए शुरू किया ताकि कोई और बच्चा अपने परिवार से ना बिछड़े।”

हरिया की आँखें नम हो गईं, “मैडम, आपने कितना दुख सहा।” सुरेश ने हरिया का हाथ पकड़ा, “बाबा, जब अनीता ने मुझे तेरी कहानी बताई कि कैसे तूने विक्की को घर पहुँचाया, तो मुझे अपने बेटे की याद आई। तूने ना सिर्फ विक्की को बचाया बल्कि मुझे मेरी गलती का एहसास दिलाया।”

अनीता ने कहा, “बाबा, हम चाहते हैं कि तू हमारे स्कूल का हिस्सा बने। हम एक नया प्रोजेक्ट शुरू कर रहे हैं जो सड़कों पर खोए बच्चों को उनके परिवारों से मिलाएगा। तुझे उसकी जिम्मेदारी लेनी होगी।” हरिया ने हिचकते हुए कहा, “मैडम, मैं तो अनपढ़ हूँ, मैं यह कैसे करूंगा?” राजेश ने हँसकर कहा, “बाबा, तेरे पास वो दिल है जो परिवारों को जोड़ सकता है। हम तुझ पर भरोसा करते हैं।”

हरिया का मन भर आया। उसने सिर हिलाया, “साहब, मैं तैयार हूँ।”

अगले कुछ महीनों में हरिया ने स्कूल के नए प्रोजेक्ट में जी-जान से काम किया। वह सड़कों पर खोए बच्चों को ढूँढता, उनके परिवारों का पता लगाता और उन्हें मिलवाता। उसकी मेहनत ने दर्जनों बच्चों को उनके माता-पिता से मिलवाया। दिल्ली की गलियों में हरिया की कहानी अब एक मिसाल बन गई थी।

कमला पूरी तरह ठीक हो गई थी और सोनू स्कूल में सबसे होशियार बच्चों में था। एक दिन अनीता और राजेश ने हरिया को एक समारोह में बुलाया। वहाँ दिल्ली के बड़े लोग थे। अनीता ने मंच पर हरिया को बुलाया, “यह हरिया हैं, जिन्होंने एक बच्चे को घर पहुँचाकर ना सिर्फ हमारा दिल जीता बल्कि सैकड़ों बच्चों को उनके परिवारों से मिलवाया। आज हम अपने प्रोजेक्ट का नाम उनके नाम पर रख रहे हैं – ‘हरिया का रास्ता’।”

हरिया की आँखें नम हो गईं। उसने माइक पकड़ा, “मैंने सिर्फ एक बच्चे को घर पहुँचाया था, मगर आप सब ने मुझे इतना प्यार दिया। यह मेरी नहीं, मेरे सोनू के भविष्य की जीत है।” सुरेश ने हरिया को गले लगाया, “बाबा, तूने मुझे मेरा बेटा वापस दिया। मैं तुझसे माफी माँगता हूँ।” हरिया ने मुस्कुराकर कहा, “साहब, अब सब ठीक है।”

हरिया की नेकी ने ना सिर्फ उसका परिवार बचा लिया, बल्कि अनीता और सुरेश का टूटा हुआ रिश्ता भी जोड़ दिया। सोनू अब कॉलेज की पढ़ाई की ओर बढ़ रहा था और हरिया का सपना सच हो रहा था।

एक सर्द शाम जब हरिया अपनी चाय की दुकान बंद कर रहा था, एक छोटी सी लड़की उसके पास आई। “दादा जी, मैं अपनी मम्मी से बिछड़ गई, क्या तू मुझे घर ले जाएगा?” हरिया ने मुस्कुराकर अपनी साइकिल उठाई, “चल बेटी, मैं तुझे घर पहुँचा दूंगा।”

यह कहानी हमें सिखाती है कि एक छोटी सी नेकी – एक बच्चे को घर पहुँचाने का फैसला – किसी की पूरी जिंदगी बदल सकता है। हरिया ने सिर्फ एक रोते बच्चे को घर छोड़ा, मगर उसकी वह नेकी ने सैकड़ों परिवारों को जोड़ा और चांदनी चौक की गलियों में एक नई रोशनी जला दी।

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समाप्त