बेटी ने माँ को घर से निकाला… लेकिन माँ के पास छुपे थे 2 मिलियन डॉलर
पूरी कहानी: “मां की दौलत”
मां अब तुम यहां और नहीं रह सकती।
बेटी की कड़वी आवाज ने पूरे घर का सन्नाटा तोड़ दिया। बूढ़ी मां ने हैरानी से अपनी इकलौती संतान की ओर देखा। चेहरा पत्थर की तरह सख्त था, आंखों में जरा भी ममता नहीं थी।
“लेकिन बेटा, मैंने क्या गलती की?”
मां की कांपती हुई आवाज मुश्किल से होठों से निकली।
बेटी ने हाथ झटकते हुए कहा, “गलती यह है कि अब तुम मेरे लिए बोझ बन चुकी हो। मुझे अपनी जिंदगी जीनी है। दोस्तों के साथ घूमना है। तुम्हारे लिए मेरे पास वक्त नहीं।”
मां की आंखों से आंसू छलक पड़े। उसने याद किया कैसे वही बेटी बचपन में बिना उसकी गोद के सो भी नहीं पाती थी। कैसे स्कूल जाने से पहले उसका हाथ पकड़ कर चलती थी। आज वही हाथ उसे घर से बाहर धकेल रहा था।
उसने उम्मीद भरी नजरों से आखिरी बार पूछा, “क्या वाकई तुम्हें अपनी मां की जरा भी जरूरत नहीं?”
बेटी ने दरवाजा खोलते हुए ठंडी सांस ली और बोली, “नहीं मां, तुम्हें अब बाहर जाना होगा।”
अगले ही पल मां की कांपती देह दरवाजे के बाहर खड़ी थी।
हाथ में बस एक पुराना बैग और दिल में हजारों सवालों का बोझ था।
भारी कदमों से घर से बाहर निकली। ठंडी हवा उसके झुर्रियों वाले चेहरे से टकराई, जैसे पूरी दुनिया उसे याद दिला रही हो कि अब उसका कोई ठिकाना नहीं रहा।
हाथ में छोटा सा बैग था जिसमें बस दो जोड़ी कपड़े और कुछ पुरानी तस्वीरें थीं।
पड़ोसी दरवाजे के पास खड़े होकर चुपचाप देख रहे थे।
कुछ के चेहरों पर सहानुभूति थी तो कुछ के चेहरे पर उपेक्षा।
पर किसी ने आगे बढ़कर उसका हाथ नहीं थामा।
वह अपने आंसू पोंछते हुए सोच रही थी, “क्या वाकई मां का कोई मोल नहीं? जिसने जन्म दिया, पाला, पढ़ाया… वही बेकार हो जाती है जब बूढ़ी हो जाती है?”
गली से निकलकर वह पास के पार्क तक पहुंची।
बेंच पर बैठते ही उसकी यादों का सैलाब उमड़ पड़ा।
बेटी की छोटी-छोटी मुस्कानें, स्कूल की ड्रेस, पहले कदम… सब उसकी आंखों के सामने घूमने लगे।
उसके सीने में टीस उठी। मगर अगले ही पल उसने आसमान की ओर देखा और बुदबुदाई,
“शायद भगवान ने मुझे इस मोड़ पर किसी वजह से लाकर खड़ा किया है। अभी सब खत्म नहीं हुआ।”
रात गहराने लगी थी।
पार्क की पीली स्ट्रीट लाइट के नीचे बैठी वह बूढ़ी मां अपने बैग को सीने से लगाकर सोच में डूबी थी।
ठंडी हवा उसके बालों को बिखेर रही थी।
पर उसकी आंखें कहीं और अटकी हुई थीं – बीते वक्त पर।
उसे याद आया बरसों पहले उसने एक छोटा सा पुराना संदूक खरीदा था।
उस संदूक में उसने धीरे-धीरे पैसे जमा किए थे।
हर महीने की बचत, पुराने गहने और कुछ कीमती जेवर जो उसके पति ने छोड़ गए थे।
यह सब उसने अपनी बेटी के भविष्य के लिए छुपाकर रखा था।
“अगर कभी मेरी बेटी पर मुश्किल आए तो यह खजाना उसकी जिंदगी बदल देगा।”
यही सोचकर उसने उस संदूक को घर की पिछली झोपड़ी में छिपा दिया था।
मगर अब हालात बदल चुके थे।
वही बेटी जिसने उसके लिए सब कुछ था, उसे घर से निकाल चुकी थी।
उसकी आंखों से आंसू लुढ़कते हुए जमीन पर गिरे, लेकिन होठों पर हल्की मुस्कान भी आई।
“द मिलियन डॉलर… और उसे आज तक नहीं पता।”
उसके दिल में हल्की सी ज़िद जगी।
“शायद अब वक्त आ गया है कि मैं इस राज को दुनिया के सामने लाऊं।
पर अपनी बेटी के लिए नहीं, बल्कि उनके लिए जो सच में इसके हकदार हैं।”
सुबह की धूप उसकी झुर्रियों पर पड़ी तो जैसे उसके भीतर एक नया हौसला जाग उठा।
वह धीरे-धीरे उस पुरानी झोपड़ी की ओर चली, जहां उसने सालों से किसी को जाने नहीं दिया था।
झोपड़ी धूल और जाले से ढकी थी।
दरवाजा चरमराहट के साथ खुला।
अंदर कदम रखते ही यादों की परतें खुलने लगीं।
वही कोना, जहां उसने कभी अपनी बेटी को गोद में लेकर कहानियां सुनाई थीं।
वही दीवार, जिस पर पुरानी तस्वीरें टंगी थीं।
और वही पुराना संदूक – लोहे का, जंग खाया हुआ, पर अब भी मजबूती से बंद।
उसने कांपते हाथों से चाबी निकाली और धीरे-धीरे ताले को घुमाया।
टक टक टक… ताले की आवाज जैसे उसकी धड़कनों से मिल रही थी।
संदूक खुलते ही उसकी आंखें चौंधिया गईं – गहनों की चमक, सोने की बिस्कुटें और डॉलर के बंडल सब कुछ वहां सुरक्षित था।
उसने जल्दी से हाथ फेर कर देखा, कहीं सपना तो नहीं?
उसकी आंखों से आंसू बह निकले।
“हे भगवान, मैंने यह सब अपनी बेटी की खुशियों के लिए बचाया था।
पर जिसने मुझे ठुकरा दिया, उसके लिए अब यह सब क्यों?”
उसने नोटों के बंडल उठाए।
अपनी हथेलियों में थामे और जोर से कहा,
“यह अब उन लोगों के काम आएगा जिनके पास सच में कुछ नहीं है।”
उसकी आंखों में अब कमजोरी नहीं, बल्कि एक नई चमक थी – आजादी की और अपने फैसले की ताकत की।
उधर शहर में अचानक खबर फैल गई।
वह बूढ़ी औरत जिसे बेटी ने घर से निकाला था, उसके पास 2 मिलियन डॉलर छुपे थे।
यह खबर सुनते ही बेटी के पैरों तले जमीन खिसक गई।
दोस्तों के बीच उसका मजाक उड़ने लगा।
“तू तो अपनी मां को बोझ कहती थी और असली दौलत तो उसके पास निकली!”
बेटी बेचैन हो गई।
बिना देर किए वह कार लेकर उस पुरानी झोपड़ी की तरफ भागी।
दरवाजे पर पहुंचते ही उसने मां को जमीन पर बैठा देखा, जो डॉलर के बंडल छोटे-छोटे पैकेट में बांट रही थी।
“मां…”
बेटी की आवाज कांपी।
मां ने सिर उठाया।
उसकी आंखों में ठंडा सन्नाटा था।
“मां, मैं बहुत शर्मिंदा हूं। मुझे माफ कर दो। मुझे नहीं पता था कि तुम्हारे पास इतना सब है। मैं… मैं तुम्हारे साथ रहना चाहती हूं।”
बेटी के चेहरे पर पछतावे से ज्यादा लालच छलक रहा था।
उसकी आंखें सीधे नोटों के बंडलों पर टिक गई थीं।
मां ने गहरी सांस ली और कहा,
“आज तुझे याद आया कि तेरी मां भी है। वह भी तब जब तुझे पैसे दिखाई दिए।”
बेटी ने हड़बड़ाते हुए उसका हाथ पकड़ने की कोशिश की,
“नहीं मां, मैं सच में तुम्हें प्यार करती हूं। मैं तुम्हें अकेला छोड़कर नहीं जाऊंगी।”
लेकिन मां की आंखें सब कह चुकी थीं।
वह जानती थी कि बेटी का प्यार सच्चा नहीं, बल्कि डॉलर से जुड़ा हुआ है।
बेटी रोती-गिड़गिड़ाती रही।
लेकिन मां का चेहरा अब पत्थर सा सख्त था।
उसने पैसों के बंडल समेटे और शांति से बोली,
“बेटी, याद है उस दिन जब तुमने कहा था कि मैं तुम्हारे लिए बोझ हूं?
आज मैं तुम्हें बता दूं कि दौलत मैंने अपनी जिंदगी भर की मेहनत से बचाई थी।
यह सब तेरे लिए था, लेकिन अब नहीं।”
बेटी ने घबराकर कहा,
“मां, प्लीज मुझे एक मौका और दो। मैं बदल जाऊंगी।”
मां ने हल्की मुस्कान दी, मगर उसमें दर्द छुपा था।
“इंसान तब बदलता है जब उसके दिल में मोहब्बत हो, लालच नहीं।
तूने मां की इज्जत खो दी है और वह किसी दौलत से वापस नहीं खरीदी जा सकती।”
उसने पैसों के पैकेट उठाए और बाहर खड़े अनाथ बच्चों के हाथों में रख दिए, जो झोपड़ी के पास खेल रहे थे।
बच्चे खुशी से झूम उठे।
बेटी यह सब देखती रह गई।
उसकी आंखों से आंसू बहते रहे, मगर अब बहुत देर हो चुकी थी।
मां ने दरवाजे की ओर बढ़ते हुए आखिरी बार कहा,
“मेरे पास अब मिलियन डॉलर नहीं, लेकिन मेरे पास सुकून है और यही सबसे बड़ी दौलत है।”
वह झोपड़ी से बाहर चली गई और बेटी वहीं जमीन पर बैठी रह गई –
खाली हाथ, खाली दिल और पछतावे में डूबी हुई।
सीख:
मां की ममता और इज्जत किसी दौलत से नहीं खरीदी जा सकती।
रिश्ते, प्यार और सम्मान – यही असली संपत्ति है।
लालच से भरे रिश्ते हमेशा खाली रह जाते हैं।
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