बेटे के गम में रो रहा था करोड़पति, भिखारी लड़की चिल्लाई’आपका बेटा जिंदा है!’ फिर सब कुछ बदल गया

अर्जुन खन्ना की कहानी

कभी-कभी ज़िंदगी ऐसे मोड़ पर ले आती है, जहाँ साँस लेना भी मुश्किल हो जाता है। एक पल पहले तक जो सब कुछ अपना लगता था, दूसरे ही पल वह रेत की तरह मुट्ठी से फिसल जाता है। यह एहसास तब और गहरा हो जाता है जब ज़िंदगी हमसे हमारा सबसे अनमोल तोहफा छीन लेती है—हमारी उम्मीद, हमारा भविष्य।

दिल्ली के सबसे बड़े और आलीशान बंगलों में से एक, खन्ना मेंशन में उस दिन मौत का स्याह सन्नाटा पसरा हुआ था। अर्जुन खन्ना की मेहनत, दूरदर्शिता और इच्छाशक्ति का यह बंगला जीता-जागता प्रमाण था। संगमरमर की दीवारें, भव्य झूमर, सलीके से सजा हर कोना उसकी कामयाबी की कहानी कहता था। बिजनेस की दुनिया में अर्जुन का नाम सुनते ही बड़े-बड़े सूरमा थर्रा जाते थे। अपनी मेहनत और तेज़ दिमाग से उन्होंने हजारों करोड़ का साम्राज्य खड़ा किया था। लेकिन आज, वह सब बेईमानी लग रहा था। हवेली के बड़े हॉल के बीचों-बीच रखा शीशे का ताबूत उस दिन की सबसे डरावनी सच्चाई बयां कर रहा था—उसके अंदर अर्जुन का 18 साल का इकलौता बेटा वेदांत हमेशा के लिए खामोश पड़ा था।

अर्जुन खन्ना, जो हमेशा अपनी मजबूत इरादों और फौलादी जिस्म के लिए जाने जाते थे, आज एक हारे हुए, टूटे हुए बाप की तरह ताबूत के सामने खड़े थे। उनकी आंखें सूज चुकी थीं और आंसुओं का सैलाब रुकने का नाम नहीं ले रहा था। उनका महंगा डिजाइनर सूट, जो आम दिनों में उनके व्यक्तित्व को निखारता था, आज सिर्फ एक बेजान कपड़ा लग रहा था। उनकी दुनिया, उनका सब कुछ उस ताबूत में बंद था। वेदांत केवल एक नाम नहीं, अर्जुन के लिए पूरी दुनिया था।

वेदांत का जन्म किसी त्योहार से कम नहीं था। शादी के 5 साल बाद जब डॉक्टरों ने उम्मीद छोड़ दी थी, तब वेदांत ने उनकी जिंदगी में रोशनी बनकर कदम रखा था। अर्जुन और उसकी दिवंगत पत्नी प्रिया ने वेदांत के लिए हर सपना संजोया था। प्रिया, जो हमेशा जिंदगी से भरी रहती थी, वेदांत के आने से और भी खिल उठी थी। उन्हें याद था, जब वेदांत छोटा था, तो प्रिया हर रात उसे परियों की कहानियाँ सुनाती थी और अर्जुन उसे अपने कंधों पर बिठाकर पूरे घर में घुमाता था। वेदांत उनकी जिंदगी का केंद्र था। उसका हर कदम, हर मुस्कान उनके लिए जीने की वजह थी। वेदांत का बचपन किसी शहजादे से कम नहीं था, मगर अर्जुन ने उसे कभी अपनी दौलत का अभिमान नहीं करने दिया। उन्होंने उसे विनम्रता और दयालुता सिखाई।

वेदांत अपनी शरारतों, जिज्ञासा और खुले विचारों के लिए जाना जाता था। उसे किताबों से प्यार था और वह अक्सर अपने पिता के साथ घंटों बिजनेस और दुनियादारी की बातें करता था। अर्जुन को लगता था कि वेदांत एक दिन उनसे भी बड़ा साम्राज्य खड़ा करेगा, लेकिन अपनी जड़ों से जुड़ा रहेगा। उसे याद था, कैसे वेदांत ने एक बार एक गरीब बच्चे को अपनी नई खिलौना कार दे दी थी और उसकी आंखें खुशी से चमक उठी थीं। वही छोटी सी लाल रंग की खिलौना कार आज अर्जुन की आंखों में टीस बनकर चुभ रही थी।

आज सुबह जब उसे वेदांत की मौत की खबर मिली, तो अर्जुन को लगा जैसे किसी ने उसके सीने में खंजर घोंप दिया हो। “कार एक्सीडेंट, मौके पर ही मौत”—यह शब्द उसके कानों में हथौड़े की तरह बज रहे थे। लेकिन एक बाप का दिल मानने को तैयार नहीं था कि उसका जवान बेटा, जो कल तक उसके साथ हँस रहा था, आज इस तरह खामोश हो गया।

हॉल में शहर के बड़े-बड़े लोग, रिश्तेदार, दोस्त मौजूद थे। दिल्ली की सबसे जानी-मानी हस्तियाँ, राजनेता, बिजनेस आइकन सब अपनी हाजिरी लगाने आए थे। कुछ लोगों की आंखों में अर्जुन के लिए सच्ची हमदर्दी थी, जबकि कुछ बस अपने सामाजिक दायित्व को निभा रहे थे या शायद इस दुखद घटना में भी अपने लिए कुछ फायदा देख रहे थे।

अर्जुन का छोटा भाई विक्रम भी उसके पास खड़ा था, कंधे पर हाथ रखकर झूठी दिलासा दे रहा था। “भैया, हिम्मत रखिए, जो भगवान की मर्जी थी…” विक्रम के शब्द खोखले लग रहे थे। अर्जुन को हमेशा पता था कि विक्रम उससे जलता है। दोनों भाइयों के बीच प्रतिद्वंद्वता बचपन से थी। विरासत के बंटवारे में भी अर्जुन को कंपनी का ज्यादा हिस्सा मिला था, जबकि विक्रम को सिर्फ कुछ सहायक कंपनियां मिली थीं। विक्रम हमेशा अर्जुन की परछाई में रहा था और उसकी ईर्ष्या एक आग की तरह थी।

अर्जुन की आंखें वेदांत के मुस्कुराते चेहरे को याद कर रही थीं—उसकी बातें, उसकी शरारतें। उसे याद था, कैसे वेदांत ने उसे “डैड” नहीं, बल्कि हमेशा “पापा” कहकर पुकारा था। वही आवाज, वही चेहरा आज इस ताबूत में बेजान पड़ा था। सब कुछ किसी बुरे सपने जैसा लग रहा था।

रहस्य की शुरुआत
तभी हॉल के मुख्य दरवाजे पर अचानक हलचल हुई। गार्ड्स किसी को अंदर आने से रोकने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन वह शख्स मानने को तैयार नहीं था। एक लड़की, कोई 15-16 साल की, फटे पुराने कपड़ों में, जिसके बाल धूल-मिट्टी से सने थे, गार्ड्स को धकेलते हुए जबरदस्ती अंदर घुसने की कोशिश कर रही थी। उसकी आवाज में अजीब सी जिद थी—”हटो सामने से, मुझे अंदर जाना है।”

लोग हैरान थे। अर्जुन ने गुस्से से उस लड़की की ओर देखा। “तुम्हें पता है तुम क्या कह रही हो? और तुम यहाँ कैसे आई?” उस लड़की की आंखों में कोई डर नहीं था। वह सीधी अर्जुन की आंखों में आंखें डालकर बोली, “हाँ, मुझे पता है मैं क्या कह रही हूँ। इस ताबूत में जो लाश है, वह आपके बेटे की नहीं है। आपका बेटा वेदांत ज़िंदा है।”

यह सुनते ही हॉल में जैसे बिजली सी कौंध गई। विक्रम का चेहरा पहले तो गुस्से से लाल हुआ, फिर घबराहट के निशान दिखने लगे। “कौन हो तुम लड़की? और यह बकवास करने के तुम्हें कितने पैसे मिले हैं?” गार्ड्स उसे बाहर निकालने लगे, लेकिन अर्जुन ने उन्हें रोक दिया। उसके दिल के किसी कोने में एक नन्ही सी उम्मीद की किरण जाग उठी थी।

“तुम्हें यह कैसे पता?” अर्जुन की आवाज कांप रही थी।

लड़की ने गहरी सांस ली। “मेरा नाम प्रियंका है। मैं पास की झुग्गी में रहती हूँ। कल रात मैंने दो आदमियों को बात करते सुना था—उन्होंने कहा कि खन्ना के बेटे की लाश को बदल दिया गया है और असली लड़का कहीं और ज़िंदा है। वे यह भी कह रहे थे कि असली वेदांत की दाहिनी कलाई पर एक छोटा सा सितारे के आकार का जन्म का निशान है।”

यह सुनते ही अर्जुन के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। सितारे का निशान… यह बात सिर्फ वह और उसकी दिवंगत पत्नी प्रिया जानते थे। तो फिर यह लड़की सच कह रही है?

अगर वेदांत ज़िंदा है, तो इस ताबूत में कौन है? और यह सब किसने किया? क्यों किया?

विक्रम का चेहरा पीला पड़ गया था। “यह सब झूठ है! यह लड़की हमें गुमराह कर रही है। भैया, इसकी बातों में मत आइए।” लेकिन अर्जुन अब किसी की नहीं सुन रहा था। उसने प्रियंका से पूछा, “मुझे यह तो नहीं पता कि वह कहाँ है, पर मैंने उन आदमियों को एक पुरानी बंद पड़ी फैक्ट्री का जिक्र करते सुना था।”

बस, अर्जुन के लिए इतना सुनना ही काफी था। उसने प्रियंका का हाथ पकड़ा—”चलो मेरे साथ, तुम मुझे वह जगह दिखाओगी।”

खोज की यात्रा
अर्जुन और प्रियंका शहर के बाहरी इलाके की ओर बढ़े। गाड़ी तेज़ दौड़ रही थी, अर्जुन के दिल में तूफान था—एक तरफ बेटे के ज़िंदा होने की उम्मीद, दूसरी तरफ गहरा गुस्सा और डर। प्रियंका उसकी मार्गदर्शक थी। आखिरकार वे एक वीरान फैक्ट्री के सामने पहुंचे।

फैक्ट्री भूतिया हवेली की तरह लग रही थी। अर्जुन ने अंदर झांका, टॉर्च की रोशनी में एक कोने में पड़ी लाल रंग की खिलौना कार चमक उठी। वही कार, जिसे वेदांत कभी खुद से अलग नहीं करता था। अर्जुन की उम्मीद को पंख मिल गए।

वे दोनों फैक्ट्री के हर कोने में वेदांत को ढूंढने लगे। प्रियंका को एक छोटे से बंद कमरे के दरवाजे के नीचे से हल्की सी रोशनी आती दिखी। अर्जुन ने दरवाजे पर धक्का मारा—दरवाजा टूट गया। अंदर वेदांत जंग लगी कुर्सी पर बैठा था, हाथ-पैर रस्सियों से बंधे, मुंह पर पट्टी। उसकी आंखों में डर था, चेहरा पीला, होठ सूखे।

“पापा!” वेदांत रोते हुए अर्जुन से लिपट गया। अर्जुन ने उसे कसकर गले लगा लिया। वेदांत ने बताया कि उसे रोज सुई लगाई जाती थी—”इससे नींद अच्छी आएगी…” अर्जुन समझ गया, यह सिर्फ अपहरण नहीं था, बल्कि उसके बेटे को मानसिक रूप से कमजोर करने की साजिश थी।

अर्जुन ने अपने सबसे भरोसेमंद जासूस इमरान को बुलाया। प्रियंका को धन्यवाद दिया और उसकी पढ़ाई तथा रहने की जिम्मेदारी ली। वेदांत को लेकर वे वापस खन्ना मेंशन लौटे।

साजिश का पर्दाफाश
डॉक्टरों ने बताया कि वेदांत को हिप्नोटिक ड्रग्स दी गई थीं, जिससे उसकी याददाश्त पर असर पड़ सकता है। इमरान ने जांच की—विक्रम के बैंक खातों से बड़ी रकम निकाली गई थी, जो दवा कंपनियों को ट्रांसफर हुई थी। मुर्दाघर के कर्मचारी को भी पैसे दिए गए थे नकली लाश के लिए।

अर्जुन का दिल प्रतिशोध की आग में जल उठा। वह विक्रम के घर गया। विक्रम ने स्वीकार किया, “यह जायदाद की लड़ाई नहीं, आत्मसम्मान की लड़ाई है। तुमने मुझसे सब कुछ छीना। मैं तुम्हें बस यह महसूस कराना चाहता था कि जब अपना कोई बिछड़ता है तो दर्द कैसा होता है।”

अर्जुन ने पुलिस को बुलाया। विक्रम गिरफ्तार हुआ, जाते-जाते चिल्लाया—”मैंने वेदांत को ऐसी दवाएं दी हैं कि वह धीरे-धीरे अपनी याददाश्त खो देगा। वह तुम्हें भूल जाएगा, अर्जुन!”

अर्जुन जानता था, असली लड़ाई अब शुरू हुई थी। उसे अपने बेटे की यादें वापस लानी थीं।

पुनः जीवन की ओर
अर्जुन ने देश-विदेश के विशेषज्ञ डॉक्टरों से संपर्क किया। वेदांत का इलाज शुरू हुआ। शुरू में कोई खास सुधार नहीं दिखा, लेकिन प्रियंका की मासूमियत और प्रेम ने वेदांत पर जादू जैसा असर किया। धीरे-धीरे वेदांत प्रियंका को पहचानने लगा, फिर अर्जुन को भी।

महीनों की मेहनत के बाद वेदांत की यादें वापस आने लगीं। एक दिन पार्क में उसने अर्जुन का हाथ पकड़ा—”पापा, मुझे घर जाना है।” अर्जुन की आंखों से खुशी के आँसू बह निकले।

अंतिम न्याय
अदालत में विक्रम ने अपने अपराध स्वीकार किए। उसे उम्रकैद की सजा मिली। अर्जुन ने प्रियंका की पढ़ाई पूरी करवाई, उसे अपनी कंपनी में बड़ा पद दिया। प्रियंका आशा ट्रस्ट की स्थापना की, जो हजारों बेसहारा बच्चों के लिए आशा की किरण बन गया।

कहानी का संदेश
यह कहानी हमें सिखाती है कि पैसा और जायदाद रिश्तों से बढ़कर कभी नहीं हो सकते। नफरत की आग में इंसान खुद ही जल जाता है और ईर्ष्या का ज़हर सबको तबाह कर देता है। वहीं, एक छोटी सी नेकी किसी की उजड़ी दुनिया को फिर से बसा सकती है। अर्जुन के प्यार और दृढ़ता ने उसके बेटे को वापस लाया और प्रियंका की बहादुरी और मानवता ने उसे नई जिंदगी दी।

आज खन्ना मेंशन में फिर से खुशी और शांति लौट आई थी। वेदांत पूरी तरह स्वस्थ हो चुका था और अपनी पढ़ाई जारी रखे हुए था। अर्जुन अपने बेटे और प्रियंका के साथ एक नया और खुशहाल जीवन जी रहा था। जीवन में सबसे कीमती चीज धन या रुतबा नहीं, बल्कि परिवार का प्यार और एक नेक दिल इंसान का साथ होता है।

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