बैंक मैनेजर ने बुजुर्ग को बाहर निकाला | लेकिन जब सच्चाई सामने आई तो पैरों तले ज़मीन खिसक गई!
“कपड़ों से नहीं, काबिलियत से पहचानो”
सुबह के करीब 11 बजे थे। दिल्ली के एक बड़े बैंक में रोज़ की तरह भीड़ थी। अमीर ग्राहक, सूट-बूट पहने कर्मचारी, हर कोई अपने-अपने काम में व्यस्त था। अचानक, एक बुजुर्ग व्यक्ति साधारण कपड़ों में, हाथ में एक पुराना लिफाफा लिए, बैंक में दाखिल होते हैं। उनकी चाल धीमी थी, उम्र का असर साफ दिखता था, लेकिन आंखों में गज़ब का आत्मविश्वास था।
जैसे ही वह बैंक में कदम रखते हैं, लोग उनकी ओर घूरने लगते हैं। फुसफुसाहटें शुरू हो जाती हैं— “यह भिखारी यहां क्या कर रहा है?” “इस बैंक में इसका अकाउंट कैसे हो सकता है?”
लेकिन उस बुजुर्ग व्यक्ति—रघुनाथ प्रसाद—ने किसी की परवाह नहीं की। वह धीरे-धीरे कस्टमर सर्विस काउंटर की ओर बढ़े, जहां एक महिला कर्मचारी, नेहा, बैठी थी। नेहा ने उनकी वेशभूषा को देखा और मन ही मन सोचने लगी कि यह आदमी बैंक में क्यों आया है।
रघुनाथ प्रसाद ने शांति से कहा,
“बेटी, मेरे अकाउंट में कुछ समस्या आ रही है, कृपया इसे देख लो।”
नेहा ने झिझकते हुए जवाब दिया,
“बाबा, मुझे नहीं लगता कि आपका अकाउंट इस बैंक में होगा।”
रघुनाथ प्रसाद मुस्कुरा कर बोले,
“एक बार देख तो लो, शायद हो सकता है।”
नेहा ने अनमने ढंग से उनका लिफाफा लिया और कहा,
“ठीक है बाबा, लेकिन इसमें टाइम लगेगा, आपको इंतजार करना होगा।”
बैंक में बैठे कस्टमर्स और स्टाफ उनके बारे में तरह-तरह की बातें करने लगे— “लगता है कोई भिखारी बैंक में आ गया है।” “इतना बड़ा बैंक, इसमें इसका खाता कैसे हो सकता है?”
रघुनाथ प्रसाद सब कुछ सुन रहे थे, लेकिन उन्होंने चुप रहना बेहतर समझा। बैंक में रोहन नाम का एक जूनियर कर्मचारी था, जो छोटे-मोटे काम संभालता था। जब वह बैंक में आया, तो उसने देखा कि सब लोग उस बुजुर्ग व्यक्ति का मजाक उड़ा रहे हैं। उसे यह देखकर बहुत दुख हुआ। वह बुजुर्ग व्यक्ति के पास गया और आदरपूर्वक पूछा, “बाबा, आपको क्या काम है?”
रघुनाथ प्रसाद बोले, “बेटा, मुझे बैंक मैनेजर से मिलना है, कुछ जरूरी बात करनी है।”
रोहन तुरंत बैंक मैनेजर अमित वर्मा के केबिन में गया और कहा, “सर, एक बुजुर्ग व्यक्ति आपसे मिलना चाहते हैं।”
मैनेजर बिना उनकी बात सुने चिड़कर जवाब देता है, “ऐसे लोगों के लिए मेरे पास टाइम नहीं है। बिठा दो, थोड़ी देर बाद खुद ही चले जाएंगे।”
रोहन को यह सुनकर बहुत बुरा लगता है, लेकिन वह कुछ नहीं कहता।
रघुनाथ प्रसाद एक घंटे तक वेटिंग एरिया में बैठे रहते हैं। अब उनका धैर्य जवाब देने लगा था।
वह उठते हैं और मैनेजर के केबिन की ओर बढ़ते हैं।
मैनेजर उन्हें दरवाजे पर ही रोकता है और असभ्य लहजे में पूछता है, “हां बाबा, बताओ क्या काम है?”
रघुनाथ प्रसाद शांत लहजे में कहते हैं, “बेटा, मेरे अकाउंट में कुछ समस्या आ रही है, क्या तुम इसे देख सकते हो?”
मैनेजर बिना चेक किए ही जवाब देता है, “बाबा, जिनके अकाउंट में पैसे नहीं होते, उनके साथ ऐसा ही होता है। आपने भी पैसे नहीं जमा किए होंगे, इसलिए आपका अकाउंट बंद हो गया है।”
लेकिन रघुनाथ प्रसाद एक बार फिर विनम्रता से कहते हैं, “बेटा, एक बार चेक तो कर लो।”
मैनेजर हंसते हुए कहता है, “मैं लोगों के चेहरे देखकर बता सकता हूं कि किसके अकाउंट में कितने पैसे होंगे।”
और फिर गुस्से में कहता है कि वह बैंक छोड़कर चले जाएं।
रघुनाथ प्रसाद अपना लिफाफा टेबल पर रखकर कहते हैं, “ठीक है बेटा, लेकिन इसे एक बार जरूर देख लेना।”
इसके बाद वे बैंक से चले जाते हैं।
लेकिन रोहन को यह बात ठीक नहीं लगती।
वह लिफाफे को उठाकर बैंक के कंप्यूटर में रघुनाथ प्रसाद का अकाउंट चेक करता है, और जो उसने देखा, उसे देखकर उसके पैरों तले जमीन खिसक गई।
रघुनाथ प्रसाद इस बैंक के सबसे बड़े शेयर होल्डर थे।
70% बैंक के शेयर उन्हीं के नाम पर थे।
मतलब बैंक के असली मालिक वही थे।
रोहन भागता हुआ बैंक मैनेजर के पास गया और रिपोर्ट उसकी टेबल पर रख दी।
लेकिन मैनेजर ने उसे देखने से भी मना कर दिया।
अगले दिन
रघुनाथ प्रसाद फिर से बैंक आए, लेकिन इस बार उनके साथ एक सूट-बूट पहना व्यक्ति भी था, जिसके हाथ में एक फाइल थी।
जैसे ही वे बैंक में दाखिल हुए, सभी कर्मचारियों और ग्राहकों की नजरें उन पर टिक गईं।
बैंक मैनेजर थोड़ा घबराया, लेकिन फिर भी उसने सोचा कि यह क्या कर सकते हैं।
तभी रघुनाथ प्रसाद ने अपनी असली पहचान उजागर की और कहा, “मैं इस बैंक का 70% शेयर होल्डर हूं, इसका असली मालिक।
आज से तुम्हें मैनेजर के पद से हटाया जा रहा है।
तुम्हारी जगह रोहन को नया बैंक मैनेजर बनाया जा रहा है।”
मैनेजर बोखला गया और गिड़गिड़ाने लगा, “मुझे माफ कर दीजिए सर!”
लेकिन रघुनाथ प्रसाद शांत लहजे में बोले, “माफी उन लोगों को दी जाती है जो अपनी गलती सुधारने के लिए तैयार हैं।”
बैंक के सभी लोग हैरान रह गए।
उनकी आंखों के सामने एक साधारण कपड़ों वाला बुजुर्ग व्यक्ति असली मालिक बनकर खड़ा था।
सबके चेहरों पर शर्म और पछतावा था।
सीख:
दोस्तों, इस कहानी से हमें एक बहुत बड़ी सीख मिलती है—
इंसान को उसके कपड़ों से नहीं, उसकी काबिलियत से परखो।
हर किसी के पीछे एक कहानी होती है, हर चेहरे के पीछे एक संघर्ष छुपा होता है।
कभी किसी को उसकी वेशभूषा, उम्र या हालत देखकर छोटा मत समझिए।
सम्मान हर किसी को दीजिए, क्योंकि असली पहचान कपड़ों से नहीं, दिल और हुनर से होती है।
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मिलते हैं अगली प्रेरणादायक कहानी के साथ।
जय हिंद।
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