भिखारी को मिला MLA का खोया हुआ आईफोन, लौटाने गया तो हुआ जलील , फिर MLA ने दिया ऐसा ईनाम जो सोचा नहीं

एक छोटी सी ईमानदारी – देवा और विधायक की कहानी

शहर के सबसे बड़े और पिछड़े इलाके शांति नगर में उस दिन चुनावी रैली का शोर था। मंच पर खड़े थे विधायक अविनाश सिंह – सफेद कड़क कुर्ता-पायजामा, पार्टी के रंग का गमछा, चेहरे पर पेशेवर मुस्कान। उनके भाषण में गरीबों के हक, मजदूरों की बातें, और वादों की झड़ी थी।
लेकिन असल में, अविनाश सिंह ने गरीबी को बस अपनी गाड़ी के बंद शीशों से देखा था। उनके लिए गरीबी एक आंकड़ा थी, चुनावी मुद्दा थी, भावुकता का साधन थी।

रैली के बाद, समर्थकों और मीडिया की भीड़ में अफरातफरी मच गई। उसी धक्कामुक्की में अविनाश सिंह का महंगा iPhone कीचड़ में गिर गया – उन्हें पता तक नहीं चला।
यह फोन उनकी दुनिया था – निजी संपर्क, राजनीतिक रणनीतियां, सबकुछ।
गाड़ी में बैठकर जब जेब टटोली, फोन गायब था। गुस्से में सुरक्षा गार्डों को फोन खोजने का आदेश दिया, लेकिन हजारों की भीड़ में एक फोन खोजना नामुमकिन था।
अविनाश सिंह परेशान होकर घर लौट आए।

देवा – लाचार मगर ईमानदार

रैली के शोर के बाद, शांति नगर का अपाहिज भिखारी देवा अपनी जगह पर लौटा।
पचास पार की उम्र, एक पैर कट चुका, टूटी झोपड़ी में रहता था।
कभी हुनरमंद बढ़ई था, मगर हादसे के बाद मालिक ने कुछ हजार रुपए देकर पल्ला झाड़ लिया।
पत्नी पहले ही बीमारी में गुजर चुकी थी।
अब देवा मंदिर या रैलियों के बाहर भीख मांगकर पेट भरता था।

उस दिन उसे भीख भी कम मिली थी। थका-हारा, बैसाखी के सहारे लौट रहा था, तभी सड़क के किनारे कीचड़ में चमकती चीज दिखी।
झुककर उठाया – नया फोन!
देवा ने कभी ऐसा फोन छुआ तक नहीं था।
फटे कुर्ते से पोंछा, बटन दबाया – स्क्रीन पर एक औरत और बच्चे की तस्वीर थी।
शायद फोन के मालिक का परिवार।

देवा का दिल डर और लालच के बीच कांप गया।
अगर फोन बेच दे तो सालभर भीख नहीं मांगनी पड़ेगी, झोपड़ी ठीक करवा सकता है, नकली टांग लगवा सकता है।
वह फोन लेकर अपनी झोपड़ी में आ गया।

रात में नींद नहीं आई।
एक तरफ अपनी बेबसी और जरूरतें, दूसरी तरफ जमीर।
फिर से स्क्रीन देखी – परिवार की तस्वीर।
उसे अपने बीवी-बच्चों की याद आ गई।
सोचा, जिसका भी फोन है, कितना परेशान होगा।
“नहीं, मैं यह पाप नहीं कर सकता।”
उसने फैसला किया – फोन लौटाएगा।

ईमानदारी का इम्तिहान

सुबह, देवा बैसाखी के सहारे कई किलोमीटर चलकर विधायक के ऑफिस पहुंचा।
गेट पर खड़े गार्ड ने उसे दुत्कारा – “यह एमएलए साहब का दफ्तर है, कोई धर्मशाला नहीं।”
देवा ने हाथ जोड़कर बहुत मिन्नतें की – “साहब, मुझे एमएलए साहब से मिलना है, उनका जरूरी सामान मेरे पास है।”
गार्ड ने धक्का दे दिया, देवा गिर पड़ा।
आंखों में आंसू, लाचारी पर गुस्सा।
वह वहीं फुटपाथ पर बैठ गया।

शाम तक वहीं बैठा रहा।
तभी अविनाश सिंह की गाड़ी बाहर निकली।
देवा लंगड़ाता हुआ गाड़ी के आगे आ गया।
ड्राइवर ने ब्रेक लगाए, विधायक ने शीशा नीचे किया – “तुम यहां तक आ गए, चाहिए क्या?”

देवा ने कांपते हाथों से फोन निकाला – “साहब, यह आपका फोन है, रैली वाली जगह पर मिला था।”

अविनाश सिंह हैरान – फोन सही सलामत!
उन्होंने पर्स से ₹5000 निकालकर देवा को दिए – “यह लो इनाम, अब जाओ।”

देवा ने चुपचाप पैसे लिए, सलाम किया और अपनी झुग्गी की ओर चल पड़ा।

नेता का बदलता दिल

अविनाश सिंह को राहत तो मिली, लेकिन देवा की आंखों की सच्चाई उन्हें भूल नहीं पा रहे थे।
रातभर उन्हें नींद नहीं आई।
सोचते रहे – “मैंने उसे बस ₹5000 देकर भेज दिया। क्या उसकी ईमानदारी की यही कीमत थी?”
पहली बार उनके अंदर का नेता नहीं, इंसान जाग रहा था।

सुबह, अविनाश सिंह अकेले गाड़ी लेकर शांति नगर पहुंचे।
महंगी गाड़ी कीचड़ भरी गलियों में घुसी, बच्चे कौतूहल से देखने लगे।
गाड़ी आगे नहीं जा सकती थी, विधायक उतर गए।
महंगे जूतों पर कीचड़ लग गया, लेकिन परवाह नहीं थी।

लोगों से पूछकर देवा की झोपड़ी पहुंचे – प्लास्टिक, बांस की टुकड़ों से बनी अस्थाई संरचना।
अंदर बच्चों की हंसी, बूढ़ी औरत की आशीर्वाद की आवाजें।
दरवाजे की जगह फटा बोरा हटाकर अंदर झांका –
101 भूखे बच्चे, दो-तीन बेसहारा बूढ़ी औरतें।
देवा ₹5000 से खरीदी जलेबियां और समोसे सबको बांट रहा था।
“खाओ आज सब पेट भर के, ऊपर वाले ने दावत भेजी है!”

एक बच्ची बोली – “देवा काका, आप नहीं खाओगे?”
देवा मुस्कुराया – “तुम सबने खा लिया तो समझो मेरा भी पेट भर गया। मेरी खुशी तुम लोगों की मुस्कान है।”

यह दृश्य अविनाश सिंह के दिल में पिघला हुआ लावा बन गया।
जो खुद भिखारी था, वह अपनी टांग का इलाज या झोपड़ी ठीक करवाने के बजाय दूसरों का पेट भर रहा था।

अविनाश सिंह को अपने सारे भाषण, सारे वादे झूठे लगने लगे।
वह रोते हुए झोपड़ी में गए।
देवा और सब लोग डरकर खड़े हो गए।

नया इतिहास

विधायक ने देवा को गले लगा लिया –
“आज तुमने मुझे इंसानियत का पाठ पढ़ाया है जो मैंने अपनी जिंदगी में कभी नहीं सीखा। असली नेता तुम हो, मैं नहीं। मैं तुम सबसे माफी मांगने आया हूं।”

उन्होंने तुरंत अपने पीए और कमिश्नर को फोन किया –
“अगले एक घंटे में नगर निगम की पूरी टीम यहां शांति नगर में हो। अभी से इस बस्ती की तकदीर बदलने का काम शुरू होगा।”

उस दिन शांति नगर में नया इतिहास लिखा गया।
पक्के मकानों का निर्माण शुरू हुआ, बिजली-पानी के कनेक्शन लगे, बच्चों के लिए स्कूल और अस्पताल खुला।
देवा को बस्ती का विकास प्रमुख बनाया गया।
“आज से भीख बंद, आज से सेवा। सरकार तुम्हें तनख्वाह और सम्मान देगी। तुमसे बेहतर यह काम कोई नहीं कर सकता।”

देवा की नकली टांग का इंतजाम भी हुआ।
आज वह समाज का सम्मानित नागरिक था।

सीख

यह सब देवा की एक छोटी सी ईमानदारी का नतीजा था।
सच्ची ताकत और सच्ची अमीरी पैसे या पद में नहीं, इंसान के चरित्र और नियत में होती है।
जब एक ताकतवर इंसान अपनी आंखों से पर्दा हटाकर सच्चाई देखता है, तो वह हजारों-लाखों की किस्मत बदल सकता है।

अगर देवा की ईमानदारी और अविनाश सिंह के हृदय परिवर्तन ने आपके दिल को छुआ हो, तो इस कहानी को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें –
क्योंकि इंसानियत का संदेश हर दिल तक पहुंचना चाहिए।

समाप्त