भूखे बच्चे ने लौटाया हीरो का हार, मालकिन ने दिया ऐसा इनाम कि माँ के उड़ गए होश!

एक भूखा पेट और एक चमकता हुआ हीरों का हार। जब ये दोनों आमने-सामने हों, तो कौन जीतेगा – इंसान की जरूरत या उसकी इंसानियत?

यह कहानी है एक ऐसे मासूम बच्चे की, जिसके पेट में भूख की आग जल रही थी, लेकिन उसकी आंखों में ईमानदारी की चमक थी। उसे सड़क पर लाखों का हीरों का हार मिला, जिससे वह अपनी जिंदगी की हर मुश्किल को मिटा सकता था, लेकिन उसने चुना सच्चाई का रास्ता। जब उसने वह हार उसकी असली मालकिन को लौटाया, तो उस मालकिन ने उसे एक ऐसा इनाम दिया जिसे देखकर उस बच्चे की मां के होश उड़ गए। आखिर क्या था वो इनाम? कैसे एक छोटे से बच्चे की ईमानदारी ने उसकी पूरी दुनिया बदल दी? आइए इस दिल को छू लेने वाली कहानी में डूब जाते हैं।

मुंबई – एक ऐसा शहर जो कभी सोता नहीं, लेकिन उसकी एक ऐसी गली थी जहां जिंदगी कभी चैन से जागी भी नहीं थी। धारावी की भूल-भुलैया जैसी तंग गलियों में, जहां आसमान भी बमुश्किल नजर आता था, एक छोटे से सीलन भरे कमरे में सीमा और उसका 10 साल का बेटा रोहन रहते थे। यह कमरा ही उनकी पूरी दुनिया था। एक कोने में रसोई के कुछ बर्तन, तो दूसरे कोने में एक पुरानी चारपाई, जिस पर मां-बेटे की रातें कटती थीं। बारिश होती तो टिन की छत से टपकता पानी उनके सपनों में भी खलल डाल देता और उन्हें रात भर जागकर बर्तनों में पानी भरने पर मजबूर कर देता।

दो साल पहले, जब रोहन के पिता – जो एक फैक्ट्री में मजदूरी करते थे – एक हादसे का शिकार होकर हमेशा के लिए दुनिया छोड़ गए, उस दिन के बाद सीमा ने ही मां और बाप दोनों की भूमिका निभाई थी। वह आसपास के बड़े घरों में झाड़ू-पोछा और बर्तन मांजने का काम करती। दिन भर की कड़ी मेहनत के बाद जो कुछ पैसे मिलते, उससे रोहन की स्कूल की फीस और घर का किराया जैसे-तैसे निकल पाता। पर सीमा की सेहत उसका साथ नहीं दे रही थी। लगातार काम और ठीक से खानपान न होने के कारण उसे सूखी खांसी और कमजोरी ने घेर लिया था। डॉक्टर ने कहा था कि उसे आराम और अच्छी खुराक की जरूरत है, लेकिन सीमा के लिए ये दोनों ही शब्द किसी महंगी चीज की तरह थे, जिन्हें वह खरीद नहीं सकती थी।

रोहन जो अभी पांचवी कक्षा में था, अपनी मां की हालत को हर पल महसूस करता था। वह अपनी उम्र के बच्चों की तरह खिलंदड़ नहीं था। उसकी आंखों में एक अजीब सी गंभीरता बस गई थी। वह जानता था कि जिस रोटी को मां उसे बड़े प्यार से खिलाती है, उसके पीछे मां का अपना भूखा पेट होता है। वह कई बार मां से कहता – “मां, मैं स्कूल छोड़कर काम पर जाता, हम तुम्हारी दवा के पैसे भी कमा लेंगे और हम पेट भर खाना भी खा पाएंगे।” यह सुनकर सीमा की आंखों में आंसू आ जाते। वह रोहन को अपने सीने से लगाकर कहती – “नहीं बेटा, खबरदार जो ऐसी बात कही। तेरे बाबूजी का सपना था कि मेरा बेटा पढ़-लिखकर बड़ा साहब बनेगा। मैं उनकी आखिरी निशानी को मजदूर बनते नहीं देख सकती। मैं जब तक जिंदा हूं, तू सिर्फ पढ़ेगा।” रोहन मां की इस कसम के आगे चुप हो जाता, पर उसके नन्हे से दिल पर अपनी बेबसी का बोझ हर दिन भारी होता जा रहा था।

एक दिन शाम को सीमा की तबीयत अचानक बहुत बिगड़ गई। उसे तेज बुखार था और खांसते-खांसते उसका चेहरा लाल पड़ गया था। वह चारपाई से उठने की भी हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी। घर में न तो दवा के पैसे थे, न ही अनाज का एक दाना। रोहन का पेट सुबह से ही भूख के मारे ऐंठ रहा था, पर मां की हालत देखकर वह अपना दर्द भूल गया था। उसने गीले कपड़े की पट्टियां मां के माथे पर रखीं और बोला, “मां, तुम चिंता मत करो। मैं अभी डॉक्टर को बुलाकर लाता हूं और कुछ खाने के लिए भी लेकर आता हूं।” यह कहकर वह खाली जेब और भारी मन से घर से बाहर निकल पड़ा। उसे नहीं पता था कि वह कहां जा रहा है, किससे मदद मांगेगा। वह बस चलता जा रहा था, अपनी चाल की तंग गलियों से निकलकर शहर की चौड़ी और रोशन सड़कों पर।

चलते-चलते वह शहर के सबसे पॉश इलाके, जूहू, में आ पहुंचा। यहां की दुनिया उसकी दुनिया से बिल्कुल अलग थी – आलीशान बंगले, महंगी गाड़ियां और हवा में भी जैसे अमीरी की खुशबू घुली हुई थी। यहीं शहर का सबसे बड़ा फाइव स्टार होटल ‘ग्रैंड पैलेस’ था। आज होटल के बाहर जरूरत से ज्यादा चहल-पहल थी, शायद किसी बहुत बड़े आदमी की शादी या कोई पार्टी थी। रोहन एक कोने में एक बड़े से पेड़ के पीछे छिपकर खड़ा हो गया। वह अपनी फटी हुई नीली कमीज और नंगे पैरों को लोगों की नजरों से बचाना चाहता था। उसकी भूखी नजरें होटल के गेट पर टिकी थीं, जहां से वेटर खाने की बड़ी-बड़ी ट्रे लेकर अंदर-बाहर आ जा रहे थे। उन ट्रे में रखे पकवानों की महक रोहन के पेट की आग को और भड़का रही थी। काश, इसमें से बस एक टुकड़ा ही मुझे मिल जाए… वह मन ही मन सोच रहा था।

तभी एक काली चमचमाती Mercedes गाड़ी होटल के पोर्च में आकर रुकी। गाड़ी का दरवाजा खुला और उसमें से एक बेहद आकर्षक और शाही अंदाज वाली महिला बाहर निकलीं। उन्होंने गहरे लाल रंग की सितारों जड़ी साड़ी पहन रखी थी और उनके गले में हीरों का एक हार ऐसा चमक रहा था जैसे रात के अंधेरे में किसी ने मुट्ठी भर तारे बिखेर दिए हों। वह थी शहर की सबसे बड़ी बिजनेस वूमन, श्रीमती आरती मेहरा। वह अपने परोपकारी कामों के लिए जानी जाती थीं, पर उनका मिजाज थोड़ा सख्त और अनुशासनप्रिय था। गाड़ी से उतरते समय उनका फोन बजा और वह किसी से बात करते हुए जल्दी में होटल के अंदर चली गईं। शायद वह समारोह के लिए लेट हो रही थीं।

रोहन तो बस उस हार को देखता ही रह गया। उसने अपनी जिंदगी में, क्या कहानियों में भी इतनी चमक एक साथ नहीं देखी थी। वह कुछ देर वहीं खड़ा रहा, उस अमीर दुनिया को अपनी गरीब आंखों से तौलता रहा। जब पार्टी की भीड़ थोड़ी कम हुई, तो रोहन हिम्मत करके उस जगह पर गया जहां से आरती मेहरा की गाड़ी गुजरी थी। वह जमीन पर नजरें गड़ाए कुछ ढूंढ रहा था – शायद कोई गिरा हुआ 10 का नोट या खाने की कोई चीज़। तभी फुटपाथ के किनारे लगे एक गमले के नीचे उसे कुछ चमकता हुआ दिखाई दिया। उसने पास जाकर उसे उठाया। जैसे ही वह चीज़ उसकी हथेली पर आई, उसके पूरे शरीर में जैसे बिजली दौड़ गई। उसके हाथ कांपने लगे और दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। यह वही हीरों का हार था! शायद गाड़ी से उतरते समय जल्दबाजी में उस महिला के गले से गिर गया था और किसी ने ध्यान नहीं दिया था।

रोहन ने डर के मारे जल्दी से उसे अपनी मुट्ठी में भींच लिया और चारों ओर देखा – कोई देख तो नहीं रहा? वह भागकर वापस उसी पेड़ के पीछे छिप गया। उसकी मुट्ठी में जैसे आग का गोला था, इतनी गर्मी महसूस हो रही थी। उसने धीरे से अपनी मुट्ठी खोली। रात की रोशनी में वह हीरे और भी तेजी से चमक रहे थे। यह कितना कीमती होगा? लाखों का या करोड़ों का? उसे इन बड़ी-बड़ी संख्याओं का अंदाजा भी नहीं था, पर वह इतना जानता था कि यह हार उसकी और उसकी मां की पूरी जिंदगी बदल सकता है।

उसके दिमाग में विचारों का तूफान उठ खड़ा हुआ। वह सोचने लगा – अगर मैं इसे बेच दूं, तो हमारे पास बहुत पैसे आ जाएंगे। मैं मां का इलाज सबसे बड़े अस्पताल में करवा सकता हूं। हम इस गंदी चाल से निकलकर एक बड़ा और सुंदर सा घर खरीद सकते हैं। मैं शहर के सबसे अच्छे इंग्लिश स्कूल में पढ़ने जा सकता हूं। मां को फिर कभी किसी के घर काम नहीं करना पड़ेगा और हमें कभी भी भूखा नहीं सोना पड़ेगा। यह सोचते-सोचते उसकी आंखों में आंसू आ गए। भूख और जरूरत का शैतान उसके मन में फुसफुसा रहा था – “रख ले इसे रोहन, यह भगवान ने तेरी मदद के लिए ही भेजा है। उस अमीर औरत के पास तो ऐसे बहुत से हार होंगे, उसे एक के खो जाने से क्या फर्क पड़ेगा?”

वह उठ खड़ा हुआ। उसने फैसला कर लिया था कि वह इस हार को लेकर घर जाएगा। वह भागने ही वाला था कि अचानक उसके कानों में उसकी मां की आवाज गूंजी – वह आवाज जो वह हर रात सुनता था, हर मुश्किल में याद करता था – “बेटा, याद रखना, गरीबी इंसान को तोड़ सकती है, पर झुका नहीं सकती। हमारी सबसे बड़ी दौलत हमारी ईमानदारी है। जिस दिन तूने अपनी ईमानदारी खो दी, उस दिन तूने मुझे खो दिया। जिस दिन तूने किसी की बेईमानी का एक दाना भी खाया, समझ लेना वह मेरे खून के बराबर है।”

रोहन वहीं रुक गया, उसके कदम जैसे जमीन में धंस गए हों। काफी देर तक रोने के बाद उसका मन थोड़ा हल्का हुआ। उसने अपने आंसू पोंछे। उसकी आंखों में अब एक नया निश्चय था – “नहीं, मैं अपनी मां को धोखा नहीं दे सकता। मैं अपने बाबूजी के सपने को नहीं तोड़ सकता। यह हार मेरा नहीं है और मुझे इसे लौटाना ही होगा।”

पर कैसे? वह उस औरत का नाम तक नहीं जानता था। वह बस इतना जानता था कि वह इस होटल के अंदर है। उसने हिम्मत जुटाई और एक बार फिर होटल के गेट की तरफ बढ़ा। इस बार भी वही गार्ड खड़ा था। उसने रोहन को देखते ही डांटा – “अरे, तू फिर आ गया? मैंने कहा था ना, भाग यहां से!” रोहन ने हाथ जोड़ लिए – “अंकल जी, प्लीज मुझे अंदर जाने दीजिए। मेरी एक बहुत कीमती चीज़ उस लाल साड़ी वाली मैडम के पास है। मुझे उन्हें कुछ लौटाना है।” गार्ड उसकी बात सुनकर हंसा – “तेरी कीमती चीज और उस मैडम के पास! लगता है आज मार खाकर ही जाएगा। चल, निकल यहां से।”

रोहन की सारी उम्मीदें टूट गईं। वह उदास होकर गेट के पास ही एक बेंच पर बैठ गया। वह इंतजार करने लगा। उसने सोचा – जब पार्टी खत्म होगी और वह मैडम बाहर आएंगी, तब मैं उन्हें यह हार दे दूंगा। एक घंटा, दो घंटे, रात के 11 बज गए। ठंड भरने लगी थी। रोहन को मां की चिंता हो रही थी – वह अकेली होंगी, भूखी होंगी और मेरी राह देख रही होंगी। भूख और ठंड से उसका शरीर अकड़ने लगा था। तभी पार्टी खत्म हुई और मेहमान बाहर आने लगे। रोहन की आंखें उस भीड़ में बस आरती मेहरा को ढूंढ रही थीं। आखिरकार वह दिखाई दीं। वह फोन पर किसी से बात कर रही थीं और बेहद परेशान लग रही थीं – “नहीं, कहीं नहीं मिल रहा। मैंने सब जगह देख लिया। वह मेरे पति की आखिरी निशानी थी। मैं क्या करूंगी अब?” उनकी आवाज में गहरा दर्द और बेबसी थी।

रोहन समझ गया। वह हिम्मत करके भीड़ को चीरता हुआ उनकी तरफ भागा – “मैडम, मैडम जी, एक मिनट रुकिए!” आरती मेहरा ने परेशान होकर मुड़कर देखा। एक गंदा सा फटेहाल लड़का उन्हें पुकार रहा था – “क्या है?” उन्होंने गुस्से से पूछा, शायद उसे कोई भिखारी समझ रही थीं। रोहन ने अपनी कांपती हुई मुट्ठी खोली – “मैडम, क्या यह हार आपका है?” उसकी नन्ही सी हथेली पर चमकते हुए उस हार को देखकर आरती मेहरा की सांसें जैसे रुक गईं। उनका मुंह आश्चर्य से खुला रह गया। उनकी आंखों में अविश्वास और फिर बेइंतहा खुशी के भाव तैर गए – “यह… यह तुम्हें कहां से मिला?” उन्होंने कांपते हुए हार को अपने हाथ में लिया और उसे अपनी आंखों से लगा लिया।

रोहन ने सारी बात सच-सच बता दी – कैसे उसे यह सड़क के किनारे मिला था। आरती मेहरा को यकीन ही नहीं हो रहा था। उन्होंने रोहन को ऊपर से नीचे तक देखा – एक 10 साल का बच्चा, जिसके तन पर ढंग के कपड़े नहीं थे, पैरों में चप्पल नहीं थी और जिसके चेहरे पर भूख साफ झलक रही थी, वह उन्हें लाखों का हार लौटा रहा था। उन्होंने अपने पर्स से नोटों की एक मोटी गड्डी निकाली – “बेटा, मुझे नहीं पता मैं तुम्हारा शुक्रिया कैसे अदा करूं। यह लो, यह तुम्हारा इनाम है। इससे अपनी जिंदगी बदल लेना।”

रोहन ने दोनों हाथ पीछे कर लिए – “नहीं मैडम, मुझे पैसे नहीं चाहिए। मेरी मां ने सिखाया है कि ईमानदारी का कोई मोल नहीं होता। मैंने तो बस अपना फर्ज निभाया है।” आरती मेहरा के लिए यह दूसरा झटका था। इस छोटी सी उम्र में इतनी बड़ी और गहरी सोच! उन्होंने अपनी जिंदगी में बड़े-बड़े अमीर और पढ़े-लिखे लोग देखे थे, पर इतनी शुद्ध और सच्ची आत्मा आज पहली बार देखी थी। उन्होंने पैसे वापस पर्स में रख लिए – “बेटा, तुम्हारा नाम क्या है? और तुम रहते कहां हो? तुम्हारी मां क्या करती हैं?”

जब रोहन ने अपनी गरीबी और अपनी मां की बीमारी के बारे में बताया, तो आरती मेहरा का दिल भर आया। आज इस बच्चे ने उन्हें जिंदगी का सबसे बड़ा सबक सिखाया था। उन्होंने फैसला कर लिया कि वह इस नन्हे फरिश्ते की जिंदगी को संवार कर रहेंगी। “चलो रोहन, मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ देती हूं और तुम्हारी मां से भी मिलना चाहूंगी। मैं उस महान मां को देखना चाहती हूं जिसने तुम जैसे हीरे को जन्म दिया है।”

रोहन की शानदार गाड़ी जब धारावी की उन तंग गलियों में पहुंची तो जैसे कोई तमाशा शुरू हो गया। लोग अपनी-अपनी झोपड़ियों से निकल कर उस अजूबे को देखने लगे। गाड़ी रोहन के घर के सामने रुकी। सीमा अपनी दरवाजे की चौखट पर बैठी रोहन की राह देख रही थी। जब उसने रोहन को एक अमीर औरत के साथ गाड़ी से उतरते देखा तो उसका दिल घबरा गया। रोहन दौड़कर मां से लिपट गया – “मां, चिंता मत करो, मैं आ गया।”

आरती मेहरा गाड़ी से उतरीं। उन्होंने जब सीमा की हालत और उस टूटे-फूटे घर को देखा तो उनकी आंखें नम हो गईं। वह सीमा के पास गईं और उसके आगे हाथ जोड़ दिए – “नमस्ते बहन जी। आपके बेटे ने आज मुझ पर जो उपकार किया है, मैं उसे कभी नहीं चुका सकती।” उन्होंने सीमा को पूरी कहानी सुनाई। सीमा की आंखों से आंसू बहने लगे, पर यह गर्व के आंसू थे। उसने रोहन को कसकर अपने सीने से लगा लिया – “मेरा बेटा, मेरा हीरा, मुझे तुझ पर नाज है।”

आरती मेहरा ने सीमा का हाथ अपने हाथ में लिया – “बहन जी, आज से आप मेरी जिम्मेदारी हैं। अब आप कोई काम नहीं करेंगी। आप और रोहन मेरे साथ मेरे घर चलेंगे। रोहन की पढ़ाई शहर के सबसे अच्छे स्कूल में होगी और आपका इलाज देश के सबसे अच्छे डॉक्टर करेंगे।” सीमा को लगा जैसे वह कोई सपना देख रही है, उसके होश जैसे उड़ गए थे। वह हक्की-बक्की सी कभी आरती मेहरा को देखती, कभी अपने बेटे को – “यह… यह आप क्या कह रही हैं मैडम? यह कैसे हो सकता है? हम गरीब लोग…” आरती मेहरा ने उसे बीच में ही रोक दिया – “नहीं बहन जी, अमीर या गरीब इंसान अपनी सोच और अपने कर्मों से होता है, पैसों से नहीं। आपके बेटे ने आज मुझे सिखाया है कि असली दौलत क्या होती है, और वह दौलत आपके पास है। अब मुझे बस अपनी जिम्मेदारी निभाने दीजिए।”

उस रात रोहन और सीमा ने अपनी पुरानी जिंदगी को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। आरती मेहरा ने उन्हें सिर्फ एक नया घर ही नहीं, बल्कि एक नया जीवन, सम्मान और अपनापन भी दिया। रोहन अब बड़े स्कूल में पढ़ने लगा और सीमा का इलाज भी शुरू हो गया। आरती मेहरा के लिए रोहन अब सिर्फ एक लड़का नहीं, बल्कि उनका अपना बेटा बन गया था और सीमा उनकी बड़ी बहन।

यह सब मुमकिन हुआ सिर्फ एक भूखे बच्चे की अटूट ईमानदारी की वजह से। दोस्तों, रोहन की यह कहानी हमें सिखाती है कि हालात कितने भी मुश्किल क्यों न हों, हमें अपनी अच्छाई और ईमानदारी का दामन कभी नहीं छोड़ना चाहिए। क्योंकि नेकी एक ऐसी रोशनी है, जो देर-सवेर हमारी जिंदगी के हर अंधेरे को मिटा ही देती है।

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