माली के बेटे से प्यार करती थी लड़की ,करोड़पति पिता ने किया इंकार ,5 साल बाद लड़का हेलिकॉप्टर से आया तो
अर्जुन और रिया की अमलतास-सी प्रेरणादायक प्रेम कहानी
दिल्ली के वसंधार की जगमगाती कोठियों और अट्टहास करती सड़कों के बीच ठाकुर विक्रम सिंह की आलीशान कोठी अपनी अनोखी शान के लिए जानी जाती थी। उस राजमहल-सी कोठी में संगमरमर की दीवारें, विदेशी फूलों से सजा बग़ीचा, और फव्वारे की मधुर धुन न केवल ठाकुर साहब की रुतबे की गवाही देते थे, बल्कि वहां की असली रौनक थी उनकी इकलौती बेटी—रिया। उसके चेहरे की मुस्कान में बग़ीचे के गुलाब भी फीके पड़ जाते।
रिया अपने पिता की दौलत या उनके घमंड को कभी अहमियत न देती। उसका दिल साधारण जीवन, सादगी में बसता था। उसके इस स्वप्निल बग़ीचे का सच्चा निर्माता था रामू काका—तीन दशकों से ठाकुर परिवार का माली। रामू काका का बेटा अर्जुन, बचपन से ही रिया का हमसफर, उसका सच्चा दोस्त था। दिन में वह गुलाब के पौधों को पानी देता, रात में अपनी छोटी सी झोपड़ी में बैठकर कोडिंग के सपने बुनता—आशा, आत्मसम्मान और संघर्ष अर्जुन की पहचान थे। उसकी आंखों का सपना था—एक दिन बड़ा ऐप डेवलपर बनना।
दोस्ती से प्यार की ओर
बचपन की मासूम दोस्ती कब अदृश्य कदमों से प्रेम में बदल गई—रिया और अर्जुन को भी पता नहीं चला। ज्यों-ज्यों अर्जुन की मेहनत और सपनों की चमक बढ़ी, रिया के मन में उसके लिए सम्मान भी गहरा होता गया। अमलतास के नीचे बैठी रिया ने एक बार अर्जुन से कहा, “तुम सचमुच एक दिन बहुत बड़ा नाम कमाओगे।” अर्जुन ने मुस्कुराकर वादा किया—“और उस दिन मैं तुम्हारे पापा से तुम्हारा हाथ मांगने आऊंगा।”
लेकिन रुतबा, अहंकार और अमीरी के बीच में खड़ी ठाकुर साहब की ऊंची दीवारें इस प्रेम के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा थीं। ठाकुर साहब अपनी बेटी को किसी अमीर राजकुमार के साथ ही देखना चाहते थे। अर्जुन के बारे में जानने पर उनका घमंड फूट पड़ा। अर्जुन और उसके पिता रामू काका को कोठी से बेइज्जत कर निकाल दिया गया। रिया को एक पिंजरे में कैद कर दिया गया।
संघर्ष और सपनों की राह
झुग्गी की गंदी गलियों, सिलेट की छत और टपकती दीवारों के बीच अर्जुन और उसके बूढ़े पिता की जिंदगी आगे बढ़ी। अर्जुन, जो कभी ठाकुर की कोठी के बग़ीचे में फूल सींचता था, अब मोबाइल रिपेयरिंग की दुकान में काम करता, रात को कोड़िंग करता। उसके भीतर पिता के प्रति जिम्मेदारी, रिया की याद और सम्मान पाने की आग थी। उसके सपनों का ऐप—“हुनर”—गरीबों और हुनरमंदों को बड़े बाज़ार से जोड़ने वाला मंच, दिन-रात मेहनत का नतीजा था।
रामू काका की बिगड़ती सेहत, पैसों की कमी और संघर्षों के बीच अर्जुन को एक दिन उड़ते-फिरते एक स्टार्टअप कंपटीशन की खबर मिली—जीतने पर लाख रुपए, निवेशक… अर्जुन ने सारी हिम्मत, अपने दर्द और उम्मीद को एक-एक शब्द में समेटकर मंच पर प्रेजेंटेशन दी। उसकी सचाई, लगन और जिद ने सबको प्रभावित किया—वह प्रतियोगिता जीत गया, निवेश मिला, और “हुनर” देश ही नहीं, दुनिया में नाम कमाने लगा। अर्जुन अब करोड़पति था, टेक इंडस्ट्री का उभरता सितारा।
प्यार की दीवार टूटी—मुकम्मल सफर
इन पांच सालों में अर्जुन ने अपने पिता को अच्छी जगह दिलाई, कंपनी को आगे बढ़ाया लेकिन रिया उसकी रग-रग में थी। उधर, ठाकुर साहब ने रिया को दुनिया से दूर कर उसके लिए सोने का पिंजरा बना दिया था। रिया ने सारे रिश्ते-नातों, शादी के प्रस्ताव ठुकरा दिए—उसने अर्जुन का इंतजार किया।
पाँच साल बाद, सिंह इंडस्ट्रीज की सिल्वर जुबली पर उसी कोठी में शहर के बड़े-बड़े बिजनेसमैन जमा हुए थे। एक रहस्यमयी विदेशी टेक फर्म के नए मालिक से डील होने वाली थी, जो हेलीकॉप्टर से पार्टी में आया। सबका दिल तब दहल गया जब वह शख्स काले सूट में अर्जुन था—आज उसी कोठी का मेहमान, उसी ठाकुर साहब की डील का मुख्य चेहरा!
रिया की नजर जैसे ही अर्जुन से मिली, सारा वक्त, सारे गिले-शिकवे पिघल गए। सबके सामने ठाकुर साहब अपनी गलतियों को, अपने घमंड को स्वीकारते हुए अर्जुन से माफी मांगने लगे—“माफ कर दो बेटा, तुम सच में मेरी बेटी के काबिल हो।” अर्जुन ने रिया का हाथ थामा—“मेरा वादा था मैं लौटकर आऊंगा, आज आया हूं।”
नई शुरुआत: प्रेरणा और समाजसेवा
अर्जुन और रिया की शादी उसी कोठी में धूमधाम से हुई। अर्जुन ने अपने पिता रामू काका के नाम से चैरिटेबल ट्रस्ट बनाया और गांव-गांव में स्कूल, ट्रेनिंग सेंटर बनाए। रिया ने अर्जुन का पूरा साथ दिया—अब दोनों की दुनिया मेहनत, लगन और सेवा पर टिकी थी। बग़ीचे के अमलतास के पेड़ के नीचे हाथ थामे, उन्होंने तय किया—यह कहानी यहीं नहीं रुकेगी।
संक्षेप में सीख:
गरीबी, औकात, और घमंड सब मेहनत, सच्चे प्यार और लगन के सामने टिक नहीं सकते।
सच्चा प्यार, मेहनत और नेक इरादा हर मुश्किल से लड़कर मुकाम पा ही लेता है।
जो आज तुम्हें नीचा दिखा रहे हैं, कल वही तुम्हारे सामने सिर झुकाएंगे।
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