रिक्शावाले ने घायल औरत को हॉस्पिटल पहुंचाया, अगले दिन जब डॉक्टर ने बताया वो कौन है तो सब दंग रह गए

एक मामूली इंसान की असाधारण कहानी

प्रस्तावना

कोलकाता – शहर जिसे “सिटी ऑफ जॉय” कहा जाता है। यहाँ की गलियों में गरीबों के सपने अक्सर बारिश की बूंदों में बह जाते हैं, लेकिन कभी-कभी किस्मत किसी मामूली इंसान की नेकी की दस्तक पर ऐसे दरवाज़े खोल देती है, जिनकी कल्पना वह कभी नहीं कर सकता। यह कहानी है हरी की – एक गरीब रिक्शा वाले, जिसकी ईमानदारी और इंसानियत ने उसकी अंधेरी जिंदगी में उम्मीद का सूरज जगा दिया।

हरी की दुनिया

खिद्रीपुर की भूल-भुलैया जैसी गलियों में हरी का छोटा सा घर था – एक टीन की छत वाला एक कमरा, जिसमें उसकी पत्नी सीता और सात साल की बेटी मुनिया रहती थीं। सीता बीमार थी, टीबी की चपेट में आ चुकी थी, और सरकारी अस्पताल की दवाइयाँ भी बेअसर साबित हो रही थीं। मुनिया पढ़ाई में तेज थी, हमेशा अपनी क्लास में अव्वल आती थी। हरी का सपना था कि उसकी बेटी डॉक्टर बने, उसे वो गरीबी और लाचारी कभी ना देखनी पड़े जो उसने देखी थी। लेकिन हर दिन की हाड-तोड़ मेहनत के बाद भी उसका सपना धुंधला पड़ता जा रहा था।

हरी दिन-रात रिक्शा चलाता, ताकि सीता के इलाज और मुनिया की स्कूल फीस का इंतजाम कर सके। कई बार खुद भूखा सो जाता, मगर पत्नी-बेटी के लिए रोटी का जुगाड़ जरूर करता। उसके पिता ने उसे सिखाया था – “ईमान की रोटी सूखी भली, बेईमानी के पकवानों से।” यही उसूल उसकी ताकत थे।

तूफानी रात और किस्मत की दस्तक

एक रात, जब कोलकाता पर मानसून की पहली बारिश कहर बनकर टूटी, हरी सवारियों की तलाश में निकला। सड़कें दरिया बन चुकी थीं, ठंड से उसका शरीर काँप रहा था, और घर की चिंता उसे परेशान कर रही थी। तभी अलीपुर की एक सुनसान सड़क पर उसकी नजर एक पेड़ के नीचे पड़ी एक औरत पर पड़ी। बारिश और अंधेरे में भी हरी समझ गया कि वह बुरी तरह घायल है। शायद किसी तेज रफ्तार गाड़ी ने उसे टक्कर मार दी थी।

वह साड़ी पहने थी, जो कीचड़ और खून से सनी थी। सिर से खून बह रहा था, और वह बेहोश थी। हरी ने बिना देर किए अपनी फटी गमछी से उसका सिर बाँधा, उसे रिक्शे में लिटाया, और अस्पताल की ओर दौड़ पड़ा। बारिश की बौछारें उसके चेहरे पर चाबुक की तरह पड़ रही थीं, मगर उसका दिल सिर्फ उस औरत की जान बचाने के लिए धड़क रहा था।

अस्पताल पहुँचकर हरी ने अपनी दिन भर की कमाई – ₹450 – नर्स को थमा दिए। “दीदी, मेरे पास बस इतना ही है, आप इलाज शुरू कीजिए,” उसने कांपते हाथों से कहा। रात भर वह अस्पताल की ठंडी बेंच पर बैठा रहा, उस अनजान औरत के लिए दुआ करता रहा। उसे अपनी बीमार पत्नी और बेटी की याद आ रही थी, मगर उसकी इंसानियत उसे वहाँ से जाने नहीं दे रही थी।

इंसानियत की परीक्षा

सुबह डॉक्टरों ने उसकी हालत देखी और हरी से पूछा, “तुम इसके कौन हो?” हरी ने सिर झुका कर जवाब दिया, “कोई नहीं, सड़क पर घायल मिली थी तो यहाँ ले आया।” डॉक्टर के दिल में उसके लिए सम्मान जाग गया। उन्होंने कहा, “अब हम देख लेंगे, तुम घर जा सकते हो।”

हरी के पास घर जाने के लिए बस के पैसे भी नहीं थे, वह कई किलोमीटर पैदल चला। घर पहुंचा तो सीता और मुनिया उसकी हालत देखकर घबरा गए। जब हरी ने उन्हें पूरी बात बताई तो सीता की आँखों में आंसू आ गए। “आपने बहुत नेक काम किया है। भगवान उस बेचारी की जान बचा ले। पर अब हमारे घर का खर्च कैसे चलेगा?”

हरी ने एक गहरी सांस ली। “तुम फिकर मत करो सीता। जब तक मेरे हाथ-पैर चल रहे हैं, मैं तुम्हें और मुनिया को कोई तकलीफ नहीं होने दूंगा।”

किस्मत का पलटाव

अगले दिन हरी फिर अस्पताल गया यह जानने के लिए कि उस औरत की हालत कैसी है। लेकिन वहाँ बहुत भीड़ थी – शहर के बड़े डॉक्टर, अस्पताल का स्टाफ, पुलिस वाले। हरी घबरा गया। तभी कल वाले डॉक्टर ने उसे देखा और दौड़कर उसके पास आए। “अरे भाई, तुम कहां थे? हम सब तुम्हें ही ढूंढ रहे थे।”

डॉक्टर ने उसे वार्ड के अंदर ले गए। वहाँ वही औरत अब होश में थी, उसके सिर पर पट्टी थी, और उसके पास शहर के पुलिस कमिश्नर और मेयर खड़े थे। डॉक्टर ने बताया, “यह हैं श्रीमती गायत्री देवी, शहर की सबसे बड़ी समाज सेविका और इसी अस्पताल की मालकिन। कल रात जब वह भेष बदलकर अस्पताल का दौरा कर रही थीं, एक गाड़ी ने उन्हें टक्कर मार दी। अगर तुम सही समय पर उन्हें यहाँ ना लाते, तो शहर ने अपनी सबसे बड़ी नेमत खो दी होती।”

गायत्री देवी ने हरी को अपने पास बुलाया, आँखों में आँसू थे। “बेटा, मेरे पास तुम्हें धन्यवाद देने के लिए शब्द नहीं हैं। तुमने अपनी परवाह किए बिना मेरी जान बचाई। बताओ, तुम्हें क्या चाहिए?”

हरी ने हाथ जोड़ दिए, “मैडम, मैंने तो बस अपना फर्ज निभाया था। मुझे कुछ नहीं चाहिए। बस आप ठीक हो गईं, यही मेरे लिए सबसे बड़ा इनाम है।”

गायत्री देवी मुस्कुराईं, “पर मैं तुम्हें इनाम दिए बिना जाने नहीं दूंगी। मैंने तुम्हारे बारे में सब पता करवा लिया है। तुम्हारी पत्नी का इलाज मेरे पर्सनल डॉक्टर करेंगे, उसकी सारी जिम्मेदारी मेरा ट्रस्ट उठाएगा। तुम्हारी बेटी मुनिया शहर के सबसे अच्छे स्कूल में पढ़ेगी, उसकी पढ़ाई की जिम्मेदारी भी मेरी। और तुम, हरी, मेरे ट्रस्ट के ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट के हेड बनोगे। तुम्हें अच्छी तनख्वाह और रहने के लिए घर मिलेगा। तुम्हारा काम होगा कि कोई भी बीमार सिर्फ गाड़ी ना होने की वजह से अस्पताल पहुँचने से पहले दम ना तोड़ दे।”

नई शुरुआत

उस दिन के बाद हरी की जिंदगी बदल गई। सीता का अच्छा इलाज हुआ, वह पूरी तरह स्वस्थ हो गई। मुनिया बड़े स्कूल में पढ़ने लगी, और अपनी मेहनत से हर साल अव्वल आने लगी। हरी ने अपनी नई जिम्मेदारी को पूरी लगन से निभाया। उसने अपनी इंसानियत और सेवा भाव से गायत्री देवी का दिल जीत लिया। वह अब सिर्फ उनकी कर्मचारी नहीं, बल्कि उनके छोटे भाई की तरह था।

हरी अब रोज़ ट्रस्ट के लिए काम करता था – गाँव-गाँव जाकर गरीबों को अस्पताल तक पहुँचाने के लिए गाड़ियाँ उपलब्ध करवाता। उसकी मेहनत और ईमानदारी की वजह से ट्रस्ट का नाम पूरे बंगाल में फैल गया। हरी ने कई बार ऐसे मरीजों की जान बचाई, जिन्हें समय पर अस्पताल पहुँचाया गया। उसकी बेटी मुनिया ने डॉक्टर बनने का सपना पूरा किया, और सीता अब स्वस्थ होकर समाज सेवा में गायत्री देवी के साथ काम करने लगी।

समाज में बदलाव

हरी की कहानी पूरे शहर में फैल गई। लोग उसकी नेकी की मिसाल देने लगे। कई रिक्शा वाले, मजदूर, गरीब लोग उसके पास सलाह लेने आने लगे। हरी ने अपने अनुभव से सबको सिखाया – “नेकी कभी बेकार नहीं जाती, उसका फल जरूर मिलता है।”

गायत्री देवी ने हरी को ट्रस्ट का चेहरा बना दिया। उसके नाम पर हर साल “नेकी अवार्ड” दिया जाने लगा, जिसमें शहर के सबसे नेक और ईमानदार इंसान को सम्मानित किया जाता। हरी अब बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रेरित करता, गरीबों की मदद करता, और समाज में इंसानियत का संदेश फैलाने में जुट गया।

कहानी का संदेश

यह कहानी हमें सिखाती है कि जब हम बिना किसी स्वार्थ के किसी की मदद करते हैं, तो कायनात हमारी मदद करने के लिए किसी ना किसी को भेज ही देती है। नेकी का दरवाज़ा कभी बंद नहीं होता, बस हमें उसकी दस्तक पहचाननी होती है। हरी की कहानी यह भी बताती है कि गरीबी, मुश्किलें और चुनौतियाँ इंसान को तोड़ सकती हैं, मगर इंसानियत उसे हमेशा ऊपर उठाती है।

अगर हरी की कहानी ने आपके दिल को छुआ है, तो इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाएँ। ताकि इंसानियत और नेकी का संदेश हर दिल तक पहुँचे। याद रखिए, एक छोटी सी नेकी कभी बेकार नहीं जाती – वह एक दिन आपकी किस्मत के बंद दरवाज़े पर ऐसी दस्तक देती है कि दौलत भी सिर झुका लेती है।

धन्यवाद।

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